जैविक खाद तैयार करने की वर्तमान में कई विधियाँ प्रचलन में हैं. जिनमे गोबर की खाद का काफी ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन आज हम आपको एक ऐसी विधि के बारें में बताने वाले हैं जिसमें गोबर खाद का बहुत कम इस्तेमाल किया जाता है. इस विधि का निर्माण महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के पूसर गाँव में रहने वाले नारायम देवराव पाण्डे ने किया है. जिसे उसी के नाम के आधार नाडेप नाम दिया गया है. इस विधि के माध्यम से कम गोबर के इस्तेमाल से अधिक मात्रा में जैविक खाद का निर्माण कर सकते हैं.
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नाडेप खाद बनाने के लिए अधिक खर्च करने की भी जरूरत नही होती. जो किसान भाई इसे व्यापारिक तौर से बनाना चाहते हैं तो वो इससे अच्छी कमाई कर सकते हैं. इसको बनाने के लिए अपशिष्ट पदार्थों के साथ उन्हें सड़ाकर खाद बनाने के लिए एक जगह ही जरूरत होती है जिसे टांका कहा जाता है.
नाडेप बनाने के लिए टांका तैयार करना
नाडेप खाद बनाने के लिए पहले ईटों से पक्का टांका तैयार किया जाता है. जिसमें हवा जाने की उचित व्यवस्था रखी जाती है. इसके लिए टांके के बनाते वक्त उसमें बीच बीच में रिक्त स्थान छोड़ दिये जाते है. इन रिक्त स्थानों को ईटों की पहली, तीसरी, छठी और नवें नंबर की परत में दो ईटें लगाने के बाद छोड़े. इन छिद्रों में से नाडेप में हवा अच्छे से पास हो जाती है. जिससे खाद भी अच्छे से सूखकर तैयार हो जाती है. नाडेप बनाते वक्त उसकी लम्बाई, चौड़ाई और उंचाई क्रमशः 10, 6 और 3 फिट होनी चाहिए. टांका तैयार होने के बाद उसे अंदर और बाहर से गोबर को मिट्टी में मिलाकर लेप दिया जाता है. एक टांके से साल में तीन या चार बार नाडेप खाद तैयार की जा सकती है.
नाडेप बनाने के लिए कच्चे और टटिया टांकें भी बनाए जा सकते हैं. लेकिन इनका इस्तेमाल सिर्फ एक या दो बार ही कर सकते हैं. जिससे बार बार टांकें बनाने के लिए किसान भाई को परेशान होना पड़ता है. लेकिन पक्के टांकें एक बार बनाने के बाद कई सालों तक सुरक्षित रहते हैं.
खाद बनाने के लिए आवश्यक चीजें और उनको टांके में डालने का तरीका
नाडेप खाद बनाने के लिए कई तत्वों की जरूरत होती है. इन तत्वों को उचित तरीके से मिलाकर नाडेप खाद तैयार की जाती है. इन तत्वों को ईंटों के माध्यम से तैयार किये गए टांकों में परत के रूप में डालकर खाद बनाने के लिए तैयार किया जाता है.
पहली परत : इसकी पहली परत के रूप में सूखे हुए जैविक पदार्थों को डाला जाता है. इन सूखे जैविक पदार्थों के रूप में सब्जी, पेड़, फूल और फल के छिलके, डंठल, सूखे हरे पत्ते, जड़ें, पौधों की बारीक टहनियां और ख़राब जाने वाला रसोई का खाद पदार्थ डाला जाता है. सूखे हुए पदार्थों को डालते वक्त ध्यान रखे की उसमें प्लास्टिक, पॉलीथीन, काँच या पत्थर नही डालने चाहिए.
दूसरी परत : दूसरी परत के रूप में गाय या भैंस के गोबर का इस्तेमाल किया जाता है. गोबर की उचित मात्रा को पूरे टांकें में डालकर पहली परत को ढक दें. इस विधि से खाद तैयार करने में गोबर की काफी कम आवश्यकता होती है.
तीसरी परत : तीसरी परत के रूप में किसी तालाब या नाले की मिट्टी की जरूरत होती है. अगर तालाब या नाले की मिट्टी ना हो तो पशुओं के बांधने के स्थान की मिट्टी का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. एक टांकें में मिट्टी की लगभग 1700 किलो मात्रा की आवश्यकता होती है.
चौथी परत : इसकी चौथी परत के रूप में पानी का इस्तेमाल किया जाता है. जिसकी जरूरत मौसम के आधार पर होती है. गर्मी के मौसम में पानी की जरूरत ज्यादा होती है. जबकि सर्दी और बारिश के मौसम में पानी की जरूरत काफी कम होती है. मिट्टी से बनी सतह पर पानी छिड़ककर भिगो देना चाहिए.
टांके का भराव
टांके का भराव परत दर परत किया जाता है. टांके का भराव के दौरान परतों के क्रम को कई बार दोहराना पड़ता है. टांको के भराव के दौरान पहली परत के रूप में सूखे पदार्थों को आधा फिट तक भरा जाता है. जिसमें लगभग 100 किलो के आसपास सूखे पदार्थों की जरूरत होती है. उसके बाद चार किलो के आसपास गोबर की मात्रा को पानी में मिलाकर गाढ़ा घोल तैयार कर लिया जाता है. इस घोल को सूखे कचरे की परत पर छिड़क दें.
गोबर की परत बनाने के बाद उसमें मिट्टी डालकर आधा इंच मोटाई की एक समतल परत बनाकर तैयर कर लें. मिट्टी की परत बनाने के दौरान मिट्टी का भराव अच्छे से करना चाहिए. उसके बाद मिट्टी पर पानी छिड़ककर उसे गिला कर लें. मिट्टी को गिला करने के बाद इस क्रम को फिर से टांके के सम्पूर्ण भरने तक बार बार दोहराते रहें.
टांकों के उपर तक अच्छे से भर जाने के बाद उस पर गीली मिट्टी में गोबर मिलाकर उसका लेप कर दे. जिससे टांके की उपर की सतह पूरी तरह से बंद हो जाती है. खाद की गुणवत्ता को और भी अधिक बढ़ाने के लिए जिप्सम और रॉक फास्फेट दोनों की कुल तीन किलो मात्रा में एक किलो यूरिया की मात्रा को मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें. इस मिश्रण की लगभग 100 ग्राम मात्रा को मिट्टी की हर परत के बाद डाल दें.
टांके के भराव के लगभग 15 से 20 दिन बाद उसकी सतह पर दरारे दिखाई देने लगती है. और मिश्रण वाली परते नीचे बैठने लगती है. मिश्रण के बैठने के बाद फिर से टांके का उसी क्रम में भराव कर दें. इस दौरान टांके में नमी की मात्रा 60 प्रतिशत तक बनी रहनी चाहिए. जब टांका पूरी तरह भर जाए और मिश्रण नीचे बैठाना बंद कर दें. तब फिर से गीली मिट्टी के लेप के माध्यम से टांके को बंद कर दें.
खाद तैयार करना
टांके को बंद करने के बाद मिश्रण अपघटित होने लगता है. लगभग 90 से 110 दिन में मिश्रण पूरी तरह से अपघटित हो जाता है. उसके बाद उसे सूखाकर और छानकर व्यापार करने के रूप में पैकिंग कर बाज़ार में बेच सकते हैं. या अपने खेत में छिड़कर खेती में इस्तेमाल कर सकते हैं.
नाडेप के एक टांके को बनाने में लगभग दो से ढाई हज़ार का खर्च आता है. एक बार तैयार किया गया टांका 10 साल तक आसानी से चल सकता है. कोई भी किसान भाई इसके कुछ टांके बनाकर उनसे खाद तैयार कर अच्छी कमाई कर सकता है. इसके अलावा खुद की खेती के लिए भी अच्छी खाद तैयार कर सकता है. जिससे उसका रासायनिक खादों पर होने वाला खर्च भी कम हो जाता है.