संतरा की खेती बागवानी फसल के रूप में की जाती है. जिसकी गिनती नींबू वर्गीय फसलों में की जाती है. संतरे का इस्तेमाल सीधा खाने के अलावा जूस, जैम, जैली, और कैंडी बनाने में किया जाता है. संतरा के फलों में विटामिन की मात्रा काफी ज्यादा पाई जाती है. इसके अलावा इसका फल स्वास्थ्य के लिए काफी उपयोगी होता है. भारत में आम के बाद इसका सबसे ज्यादा उपयोग लिया जाता है. इसकी खेती ज्यादातर शुष्क प्रदेशों में की जाती है.
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संतरे का पौधा कई सालों तक पैदावार देता है. लेकिन इसके पौधों पर कई तरह के कीट और जीवाणु जनित रोग देखने को मिलते हैं, जो पौधों के विकास को काफी ज्यादा प्रभावित करते हैं. इसके पौधों पर लगने वाली बिमारी की रोकथाम उचित समय पर ना की जाए तो पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता हैं.
आज हम आपको संतरे के पौधे पर लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के बारें में बताने वाले हैं.
कैंकर रोग
संतरे के पौधों में लगने वाले इस रोग को टहनी मार रोग के नाम से भी जानते हैं. इस रोग का प्रभाव पौधों के विकास के दौरान देखने को मिलता है. पौधों पर इसका प्रभाव बारिश के मौसम से अधिक देखने को मिलता है. इस रोग के लगने की वजह से पौधे की पत्तियों पर शुरुआत में पीले धब्बे दिखाई देते हैं. रोग के बढ़ने पर ये धब्बे फलों पर भी दिखाई देने लगते हैं. जिससे पौधे की पत्ती, शाखा और फल सभी पर खुरदरे धब्बे बन जाते हैं. और पौधे की शखाएं ऊपर से नीचे की तरफ सूखने लगती हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए रोगग्रस्त शाखाओं को काटकर हटा देना चाहिए.
- रोग लगे पौधों पर मैंकोजेब की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
- इसके अलावा स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या ब्लाइटोक्स की उचित मात्रा का छिडकाव भी रोग नियंत्रण के लिए उपयुक्त होता है.
मेलानोज
संतरे के पौधों पर मेलानोज का प्रभाव फफूंद की वजह से दिखाई देता है. पौधे पर इस रोग का प्रभाव फलों के पकने के दौरान पत्तियों और फल दोनों पर दिखाई देता है. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियों और फलों पर लाल भूरे और काले भूरे धब्बे दिखाई देने लगते हैं. इसके फल डंठल के पास से सड़कर गिर जाते हैं. और पत्तियां रोग के प्रभाव बढ़ने पर सूखकर गिर जाती हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत बाद मैंकोजेब की उचित मात्रा का छिडकाव कर देना चाहिए.
- पौधों में यह रोग सूखी टहनियों में बनने वाली फफूंद से उत्पन्न होता है. जिसकी रोकथाम के लिए पौधों की उचित समय पर कटाई छटाई करते रहना चाहिए.
मिली बग
संतरे के पौधों पर दिखाई देने वाला ये एक कीट जनित रोग हैं, जो पौधों के विकास के दौरान दिखाई देता है. इस रोग के कीट सफ़ेद रंग के होते हैं. जो पौधे पर समूह में पाए जाते हैं. इस रोग के कीट पौधों का रस चूसकर उनके विकास को प्रभावित कर देते हैं. जिससे पौधे की पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती हैं. और फल समय से पहले ही गिरकर नष्ट हो जाते हैं. इसके कीट पौधों का रस चूसने के बाद चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं. जिससे पौधों पर फफूंद जन्म लेने लगती हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डेल्टामेथ्रिन या पायरथ्रोइड्स की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
- इसके अलावा नीम के तेल का छिडकाव भी लाभदायक होता है.
गोंदिया रोग
संतरे के पौधों में गोंदिया रोग का प्रभाव फफूंद की वजह से दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत के में पौधों की छाल में पानी से भरे हुए गहरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. रोग के लगने से पौधे की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं. और रोगग्रस्त शाखा से गोंद का रिसाव होने लगता है. रोग के बढ़ने पर सम्पूर्ण पौधा सूख जाता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए रोग दिखाई देने के तुरंत बाद पौधों की जड़ों में रिडोमिल या फोसेटाईल की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
- रोगग्रस्त जगहों जो साफ कर उस पर बोर्डो मिश्रण का लेप कर दें.
- भूमि में जलभराव ना होने दें.
- रोगग्रस्त शाखाओं को काटकर पौधों से अलग कर दें. और कटे भाग पर कॉपर युक्त कीटनाशक का लेप कर दें.
जीवाणु पत्ती धब्बा
संतरे के पौधों में जीवाणु पत्ती धब्बा रोग का प्रभाव जीवाणु के माध्यम से फैलता है. इस रोग का प्रभाव पौधों पर किसी भी वक्त दिखाई दे सकता है. इस रोग के शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. जो मध्य से कत्थई रंग के दिखाई देते हैं. पौधों पर रोग का प्रभाव बढ़ने से सभी पत्तियां झुलसकर गिर जाती हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत बाद मैंकोजेब की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
- पेड़ों की कटाई छटाई उचित समय पर कर देनी चाहिए.
लीफ माइनर
संतरे के पौधों में लीफ माइनर रोग का प्रभाव कीट की वजह से दिखाई देता है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों के हरे भाग को खाकर उनमें नालीनुमा छिद्र बना देते हैं. रोग के बढ़ने पर पौधे की पत्तियां पारदर्शी दिखाई देने लगती हैं. और पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देते हैं. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत बाद मोनोक्रोटोफास, मैटासिस्टाक्स या रोगर दवा की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर कर देना चाहिए.
- इसके अलावा रोगग्रस्त सभी पत्तियों को तोडकर जला देना चाहिए. और पौधे पर नीम के तेल का छिडकाव करना चाहिए.
हरी फफूंद
संतरे की खेती में इस रोग का प्रभाव फलों के बनने के दौरान फलों पर दिखाई देता है. इस रोग की वजह से फलों पर सफ़ेद, हरे रंग की फफूंद दिखाई देने लगती है. फलों पर इसकी फफूंद उनके छतिग्रस्त होने पर जल्दी दिखाई देती है. जो नमी के वक्त अधिक प्रभावित होती है. इस रोग के बढ़ने फलों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल का छिडकाव करना चाहिए.
- इसके अलावा रोगग्रस्त फलों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए.
फल मक्खी
संतरे के पौधों पर लगने वाला ये एक कीट जनित रोग है. जो इसके फलों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाता है. इस रोग के कीट संतरे के फलों पर अपने लार्वा को जन्म देती है. और उस जगह से फलों को खुरदरा कर देती हैं. जिससे इसका लार्वा फलों में प्रवेश कर जाता है. और फलों को खराब कर देता है. जिससे फल जल्द ही टूटकर गिरने लगते हैं. रोग के बढ़ने पर इसकी फसल को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल या नीम के आर्क का छिडकाव फल बनने के बाद 15 दिन के अंतराल में करते रहना चाहिए.
- इसके अलावा मेलाथियोन की उचित मात्रा का छिडकाव रोग दिखाई देने पर तुरंत कर देना चाहिए.
- इसके कीटों के नियत्रण के लिए चिपचिपी पीली टेप को खेतों में लगाना चाहिए.
झुलसा
नींबू वर्गीय फसलों में झुलसा रोग का प्रभाव जीवाणु के माध्यम से फैलता है. जो अधिक समय तक नमी के बने रहने की वजह से दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों के डंठल पर काले धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग के बढ़ने पर इन धब्बों का प्रभाव पौधे की शखाओं पर भी दिखाई देने लगता है. और कुछ दिनों बाद सम्पूर्ण पौधे के पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं. जिससे सम्पूर्ण पौधा नष्ट हो जाता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर बोर्डो मिश्रण का छिडकाव करना चाहिए.
- इसके अलावा रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने के बाद क्युप्रिक हाईडॉक्साइड और मैंकोजेब को उचित मात्रा में मिलाकर पौधों की जड़ों में देना चाहिए.
- भूमि में नमी की मात्रा अधिक समय तक ना बनी रहने दें.
एंथ्राक्नोज
संतरे के पौधों में एंथ्राक्नोज रोग फफूंद की वजह से दिखाई देता है. इस रोग का प्रभाव पौधे की नई पत्तियों और फलों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियों और फलों पर छोटे घाव दिखाई देने लगते हैं. रोग के बढ़ने पर घावों का आकार बढ़ जाता है. और फल टूटकर गिर जाते हैं. और रोग पत्तियों से होते हुए शाखाओं पर पहुँच जाता है. जिससे पूरा पौधा भी रोग ग्रस्त हो जाता है.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर कैप्टान दवा की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
- रोग रोधी किस्म के पौधों का चुनाव कर उन्हें उगाना चाहिए.
- पौधों की कटाई के बाद कटी हुई जगहों पर कवकनाशी का लेप कर देना चाहिए.
काला धब्बा रोग
संतरे के पौधों में लगने वाला ये रोग फफूंद की वजह से दिखाई देता है. इस रोग का प्रभाव इसके फलों पर अधिक दिखाई देता है. इस रोग के लगने से संतरे के फलों पर काले रंग के चित्ते दिखाई देने लगते हैं. इस रोग के जनक बीजाणु बार बार अधिक बारिश होने के दौरान बाहर निकलते हैं. जो पौधे की पूरानी पत्तियों में रहकर इस रोग को बढ़ाते हैं. इसके जीवाणु जिलेटिन जैसा पदार्थ उत्पन्न करते हैं, जो वातावरण में घुलकर फलों को संक्रमित करते हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने के शुरुआत में ही बेंजीमिडाजोल की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
- फल बनने से पहले पौधों पर दिखाई देने वाली पुरानी पत्तियों को हटाकर नष्ट कर देना चाहिए.
सूत्रकृमी
नींबू वर्गीय फसलों में दिखाई देने वाल ये एक मृदा जनित रोग है. जो पौधे की जड़ों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाता है. इस रोग का जीवाणु बेलनाकार और लगभग एक इंच के आसपास लम्बाई का दिखाई देता है. जो शुरुआत में पौधे की जड़ों पर आक्रमण करता है. इसके लगने से पौधों की जड़ों में गाठों का निर्माण हो जाता है. जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं. रोग के अधिक बढ़ने पर पौधे की पत्तियां मुड़कर पीली पड़ने लगती हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में कार्बोफ्यूरान की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
- इसका प्रभाव नमी युक्त भूमि में अधिक दिखाई देता हैं. इसलिए भूमि में अधिक समय तक जलभराव ना होने दें.
- रोग की रोकथाम के लिए पौधों के पास मैरीगोल्ड और कैलेंडुला गेंदे की किस्म को लगाने से रोग की संभावना काफी कम हो जाती है.
- इसके अलावा पौधों की जड़ों में डेजोमेट का छिडकाव करना चाहिए.
चूर्णिल आसिता
संतरे के पौधों में चूर्णिल आसिता रोग का कवक की वजह से फैलता है. इस रोग के लगने से शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर सफ़ेद धब्बे दिखाई देने लगते हैं. इस रोग की फफूंद मौसम में कम तापमान और अधिक नमी के बनने से फैलती है. इस रोग के बढ़ने से पौधे की सभी पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर जमा हो जाता है. जिससे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नही कर पाते हैं. जिससे पौधों का विकास रुक जाता हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर कैलक्सीन की उचित मात्रा का छिडकाव रोग दिखाई देने के तुरंत बाद 15 दिन के अंतराल में दो से तीन बार करना चाहिए.
- इसके अलावा कार्बेन्ड़ाजिम और सल्फर का छिडकाव पौधों पर करने से रोकथाम में मदद मिलती है.
आद्र गलन
संतरे के पौधों में इस रोग का प्रभाव शुरुआत में नर्सरी के वक्त दिखाई देता है. जो कवक के माध्यम से पौधों में फैलता है. पौधों में इस रोग का प्रभाव अधिक नमी और आद्रता की वजह से दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर पौधे मुरझाकर सूखने लगते हैं. रोग बढ़ने पर सभी पौधे मुरझाकर नष्ट हो जाते हैं.
रोकथाम
- इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में मिट्टी को बाविस्टीन, कैप्टान या थिरम से उपचारित कर लेना चाहिए.
- पौधों में रोग दिखाई देने के तुरंत बाद रोगग्रस्त पौधों को निकालकर नष्ट कर देना चाहिए. और रोगग्रस्त पौधे के आसपास की मिट्टी में बोर्डो मिश्रण का छिडकाव करना चाहिए.
ये संतरा के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग हैं. जिन्हें समय रहते पहचान कर किसान भाई उनकी रोकथाम कर पौधों की पैदावार को बचा सकते हैं.