चना की उन्नत किस्में और उनकी पैदावार

चना की खेती मुख्य रूप से दलहन फसल के रूप में की जाती है. चना का दाना सूखने के बाद काफी कठोर हो जाता है. इसके दानो का इस्तेमाल दाल बनाने और आटा बनाने में किया जाता है. जिसे बेसन के नाम से जाना जाता है. इसके आटे (बेसन) और दानो के इस्तेमाल से हलवा, लड्डू, बूंदी, नमकीन, बर्फी, बड़ी, भुगड़े, दाल और पकोड़े जैसी कई तरह की खाद्य चीजों को बनाया जाता है. इसके अलावा इसकी दाल का इस्तेमाल सब्जी के रूप में बड़े पैमाने पर किया जाता है. जबकि ग्रामीण इलाकों में चने का इस्तेमाल पशुओं के चारे में रूप में भी करते हैं.

चना की उन्नत किस्में

चने की खेती रबी के समय की जाती है. इसके पौधों को विकास करने के लिए ठंडे मौसम की जरूरत होती है. चने की खेती के कीट रोग काफी नुक्सान पहुँचाते हैं. लेकिन वर्तsमान में काफी ऐसी किस्मों का निर्माण कर लिया गया है. जिनमें कई तरह के कीट रोग देखने को नही मिलते.

आज हम आपको देशी चने की उन्नत किस्मों के बारें में बताने वाले हैं जिन्हें उगाकर किसान भाई अच्छी खासी कमाई कर सकता है.

जाकी 9218

चना की ये एक मध्यम समय में पैदावार देने वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 110 से 115 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म की खेती सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर की जा सकती है. इसके पौधों का फैलाव कम पाया जाता है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 20 क्विंटल के आसपास पाया जाता हैं. इस किस्म को मध्य प्रदेश में अधिक उगाया जाता है.

हरियाणा देसी चना

चने की इस किस्म का उत्पादन अगेती और पछेती खेती के लिए किया गया है. बारानी और सिंचित जगहों में इस किस्म के पौधों की रोपाई पछेती फसल के रूप में करनी चाहिए. जबकि सामान्य भूमि में इसकी रोपाई अगेती किस्म के रूप में की जाती है. इस किस्म के पौधों का आकार बौना दिखाई देता है. इस किस्म के दानो का रंग पीला और आकर्षक होता है. इसके पौधे रोपाई के लगभग 125 से 130 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25 से 30 क्विंटल के बीच पाया जाता है.

जे.जी. 14

चने की इस किस्म को कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 95 से 110 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके पौधे समय से देरी होने पर भी बुवाई के लिए उपयुक्त होते हैं. इस किस्म के पौधों में उख्टा रोग देखने को नही मिलता. इस किस्म के दाने दाल बनाने के रूप से सबसे उपयुक्त माने जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 20 से 25 क्विंटल के बीच पाया जाता है.

जी एन जी 146

चने की इस किस्म के पौधे मध्यम समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इसके पौधों की की ऊंचाई सामान्य पाई जाती है. इस किस्म के पौधे पर गुलाबी रंग के फूल दिखाई देते है. इस किस्म का पौधा रोपाई के लगभग 140 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाता है. इसके पौधों पर झुलसा रोग देखने को नही मिलता. इस किस्म के दानो का आकार काफी अच्छा दिखाई देता है. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

वरदान

चने की इस किस्म को सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर आसानी से उगाए जा सकता है. इसके पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 150 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके पौधे पर गुलाबी बैंगनी रंग के फूल दिखाई देते हैं, जबकि इसके दानो का रंग गुलाबी भूरा दिखाई देता है. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 20 से 25 क्विंटल के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में झुलसा का रोग देखने की नही मिलता.

सी 235

चने की इस किस्म को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, हरियाणा द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 150 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इसके किस्म के पौधों को तराई और सिंचाई वाली जगहों पर उगाने के लिए तैयार किया गया हैं. इस किस्म के दानो का रंग हल्का भूरा दिखाई देता है. इसके पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. जिन पर अंगमारी रोग का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है.

हरियाणा चना न. 5

चने की इस किस्म को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार, हरियाणा द्वारा तैयार किया गया है. जिसको बारानी क्षेत्रों को छोड़कर बाकी किसी भी जगह आसानी से लगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 150 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25 से 30 क्विंटल के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों की लम्बाई अधिक पाई जाती है. इसके पौधे की पत्तियों की चौड़ाई बाकी किस्मों से अधिक पाई जाती है. इस किस्म के पौधों में जड़ गलन और उख्टा रोग का प्रकोप देखने को नही मिलता.

जे.जी 16

चना की इस किस्म को सिंचित और असिंचित दोनों तरह की भूमि में आसानी से उगा सकते हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई एक लगभग 130 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 20 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. इसके पौधों पर उख्टा रोग का प्रभाव देखने को नही मिलता.

सम्राट

चने की इस किस्म को भी सिंचित और असिंचित दोनों तरह की भूमि में आसानी से उगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधे कम फैले हुए होते हैं. जिनकी ऊंचाई सामान्य पाई जाती है. इसके पौधों पर गुलाबी रंग के फूल दिखाई देते हैं. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 120 से 140 के बीच कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों में भूमिगत रोगों का प्रभाव कम देखने को मिलता है.

प्रताप चना

चने की इस किस्म को सुखी भूमि में उत्तम पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधों पर कई तरह के कीट और जीवाणु रोग देखने को नही मिलते. इसके पौधे रोपाई के लगभग 110 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 18 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों की ऊंचाई एक फिट के आसपास पाई जाती है.

पूसा 256

चने की इस किस्म के पौधे सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर समय पर पछेती रोपाई के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे लम्बे और सीधे दिखाई देते हैं. जो बीज रोपाई के लगभग 130 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 27 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में अंगमारी की बिमारी काफी कम देखने को मिलती है.

फुले जी 5

चान की ये एक मोटे दानो वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे रोपाई के 135 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों की रोपाई सिंचित जगहों में करने पर अधिक उत्पादन मिलता है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. और इसके फूल और पत्तियों का आकार चौड़ा होता है. इस किस्म के पौधों में कई तरह के जीवाणु रोग देखने को नही मिलते. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 20 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

पूसा 547

चने की इस किस्म को राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और दिल्ली के आसपास के प्रदेशों में उगाया जाता है. इस किस्म के पौधों की ऊंचाई सामान्य पाई जाती है. इसके पौधे रोपाई के लगभग 135 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 18 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में जड़ गलन और फली छेदक जैसे रोगों का प्रकोप देखने को नही मिलता.

पूसा 112

चना की इस किस्म के पौधों की रोपाई सभी तरह की भूमि में की जा सकती है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के बाद लगभग 120 से 130 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके दानो का रंग हरा पाया जाता है. इसके पौधों में झुलसा का रोग काफी कम देखने को मिलता है.

जे.जी 218

चने की इस किस्म को मालवा क्षेत्र में उगाने के लिए तैयार किया गया है. इसके पौधे की पत्तियों का रंग गहरा हरा और बादानी दिखाई देता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 110 से 120 दिन बाद कटाई के तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 18 से 20 क्विंटल के बीच पाया जाता है. इसके पौधों पर उख्टा और विल्ट जैसे रोगों का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है.

बी जे डी 128

चने की इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई एक लगभग 120 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म का निर्माण सूखी भूमि में लगाने के लिए किया गया है. इस किस्म के पौधों की रोपाई पछेती किस्म के रूप में भी की जाती है. इस किस्म के पौधों को ज्यादातर मध्य भारत में उगाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर कई तरह के मृदा जनित कीट रोगों का प्रभाव कम देखने को मिलता है. इसके पौधों की ऊंचाई सामान्य पाई जाती हैं. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

पूसा 244

चने की इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा तैयार किया गया है. इसके पौधे रोपाई एक लगभग 120 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में उगाने के लिए सबसे उत्तम माने जाते हैं. इस किस्म के पौधे में तना गलन और उख्टा जैसे रोग काफी कम देखने को मिलते हैं. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 18 से 25 क्विंटल के बीच पाया जाता है. इस किस्म के दानो का आकार बड़ा दिखाई देता है.

एच 208

चान की इस किस्म को असिंचित जगहों पर उगाने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे थोड़ी कम ऊंचाई के होते हैं. इसके दाने सामान्य आकार और कत्थई रंग के दिखाई देते हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 130 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके पौधों में कीट रोगों का प्रभाव काफी कम दिखाई देता है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 17 से 20 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

आर एस जी 44

चने की इस किस्म को सिंचित क्षेत्रों में उगाने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के 140 से 150 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के होते हैं. जिन पर एक जगह दो फलियाँ आती हैं. इस किस्म के दानो का आकार सामान्य और पीला दिखाई देता है. जिसका इस्तेमाल बेसन के रूप में अधिक किया जाता है.

पूसा 09

चने की इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 120 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे को बारानी और सिंचित क्षेत्रों में उगाने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के दानो का आकार बड़ा दिखाई देता है. इसके पौधे में तना गलन और उख्टा जैसे रोग काफी कम देखने को मिलते हैं. इसके पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 22 से 30 क्विंटल के बीच पाया जाता है. इसके पौधों की ऊंचाई सामान्य पाई जाती है.

चने की ये कुछ प्रमुख फसलें हैं जिन्हें बड़े पैमाने पर लगभग सम्उपूर्गाण जगहों पर उगाया जाता है. जबकि इनके अलावा और भी कुछ किस्में हैं जिन्हें क्षेत्रीय आधार पर बहुत कम भू भाग में उगाया जाता है.

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