काली हल्दी की खेती कैसे करें

हल्दी मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है, काली और पीली हल्दी जो इनके रंग के आधार पाई जाती है. दोनों हल्दियों का औषधीय और सौंदर्य प्रसाधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इनके अलावा पीली हल्दी का खाने में इस्तेमाल किया जाता है. और काली हल्दी का तांत्रिक गतिविधियों में इस्तेमाल होता है. काली हल्दी की खेती किसान भाई औषधीय पौधे के रूप में करता है. इसका पौधा तना रहित होता है. इसके पौधे पत्तियों के रूप में बढ़ता हैं. जिस पर केले की जैसी बड़ी बड़ी पत्तियां बनती हैं.

काली हल्दी की खेती

काली हल्दी की खेती के लिए समशीतोष्ण और शीतोष्ण दोनों जलवायु उपयुक्त होती है. इसके पौधे रोपाई के लगभग 8 से 9 महीने बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते हैं. भारत में इसकी खेती ज्यादातर मध्य और दक्षिण भारत के राज्यों में की जाती है. इसके पौधों को विकास करने के लिए अधिक बारिश की या अधिक गर्म मौसम की जरूरत नही होती. काली हल्दी का बाजार भाव काफी अच्छा मिलता है. जिस कारण इसकी खेती किसानों के लिए काफी लाभदायक होती है.

अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

काली हल्दी की खेती सामान्य रूप से किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है. इसका पौधा हर तरह की मिट्टी में आसानी से विकास कर लेता है. लेकिन फसल के उत्तम उत्पादन और कटाई में सुविधा के लिए इसे हल्की बलुई दोमट मिट्टी में उगाना चाहिए. जलभराव या कम उपजाऊ भूमि में इसकी खेती नही की जा सकती. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 5 से 7 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

काली हल्दी की खेती के लिए समशीतोष्ण और शीतोष्ण जलवायु को उपयुक्त माना जाता है. इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य मौसम की जरूरत होती है. अधिक गर्म मौसम में इसके पौधे की पत्तियां झुलस जाती हैं. और पौधों का विकास रुक जाता है. जबकि सर्दी के मौसम में इसके पौधे आसानी से अपना विकास कर लेते हैं. इसके अलावा कुछ हद तक ये सर्दियों में पड़ने वाले पाले को भी सहन कर सकते हैं. इसके पौधों को विकास करने के लिए अधिक बारिश की आवश्यकता नही होती.

काली हल्दी के पौधों के विकास में तापमान की एक ख़ास भूमिका होती है. इसके कंदों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. उसके बाद विकास के दौरान इसके पौधे सर्दियों में न्यूनतम 10 और गर्मियों में अधिकतम 38 डिग्री के आसपास तापमान पर आसानी से अपना विकास कर सकते हैं. लेकिन 25 डिग्री के आसपास का तापमान इसके पौधों के विकास के लिए काफी बेहतर होता है.

खेत की तैयारी

काली हल्दी की खेती के लिए भूमि की अच्छे से तैयारी की जाती है. इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दें. उसके बाद खेत को सूर्य की धूप लगने के लिए कुछ दिनों तक खुला छोड़ दें. ताकि मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीट खुद नष्ट हो जाएँ.

उसके बाद खेत में उचित मात्रा में जैविक खाद या पुरानी गोबर की खाद को डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की दो से तीन बार तिरछी जुताई कर दें. जुताई के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेव कर दें. पलेव करने के बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी हुई दिखाई देने लगे तब खेत की फिर से जुताई कर उसमें रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत को समतल बना दें.

पौध तैयार करना

काली हल्दी के पौधों की रोपाई इसके कंद और पौध के रूप में की जाती है. लेकिन ज्यादातर किसान भाई इसे कंद के रूप में ही उगाना पसंद करते हैं. लेकिन कुछ किसान भाई इसे पौध के रूप में भी उगाते हैं. पौध के रूप में लगाने के लिए पहले इसकी पौध नर्सरी में तैयार की जाती है. नर्सरी में पौध तैयार करने के दौरान इसके कंदों की रोपाई प्रो-ट्रे या पॉलीथीन में उर्वरक मिली मिट्टी भरकर की जाती है. इसके कंदों की रोपाई से पहले उनसे बाविस्टीन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए. इसके कंद नर्सरी में रोपाई के लगभ दो से तीन महीने बाद खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

पौध रोपाई का तरीका और टाइम

काली हल्दी के पौधों की रोपाई दो तरह से की जाती है. जिसमें इसके पौधों को बीज और पौध दोनों रूपों में उगाया जाता है. एक हेक्टेयर में खेती के लिए 20 किवंटल के आसपास कंदों की जरूरत होती है. इसके कंदों की रोपाई से पहले उन्हें उपचारित कर ही खेत में लगाना चाहिए. क्योंकि इसकी खेती में खर्च होने वाला ज्यादातर खर्च इसके बीज पर ही होता है. इसलिए बीज(कंद) खरीदते वक्त में केवल स्वस्थ दिखाई देने वाले कंदों को ही खरीदना चाहिए.

कंदों के रूप में रोपाई के दौरान इसके कंदों की रोपाई खेत में कतारों में की जाती है. इस दौरान प्रत्येक कतारों के बीच लगभग डेढ़ से दो फिट के आसपास दूरी होनी चाहिए. और कतारों में लगाए जाने वाले कंदों के बीच लगभग 20 से 25 सेंटीमीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए. इसके कंदों की रोपाई जमीन में 7 सेंटीमीटर के आसपास गहराई के करनी चाहिए.

पौध के रूप में रोपाई के दौरान इसके पौधों की रोपाई मेड बनाकर की जाती है. मेड पर रोपाई के दौरान प्रत्येक मेड़ों के बीच एक से सवा फिट के आसपास दूरी होनी चाहिए. जबकि मेड पर लगाए जाने वाले पौधों के बीच लगभग 25 से 30 सेंटीमीटर के बीच दूरी होनी चाहिए. इसकी मेड की चौड़ाई आधा फिट के आसपास होनी चाहिए.

इसकी पौध और कंद दोनों की रोपाई बारिश के मौसम के शुरुआत में की जाती है. इस दौरान रोपाई करने से इसके पौधों को विकास करने के लिए उचित वातावरण मिलता है. इसके अलावा जिन किसान भाइयों के पाई पानी की उचित सुविधा हो वो इसे मई के माह में उगा सकते हैं.

पौधों की सिंचाई

काली हल्दी के पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत नही होती. इसके कंदों की रोपाई आद्र (नमी युक्त) भूमि में की जाती है. इसके कंद या पौध रोपाई के तुरंत बाद उनकी सिंचाई कर देनी चाहिए. हल्के गर्म मौसम में इसके पौधों को 10 से 12 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. जबकि सर्दी के मौसम में इसके पौधों की 15 से 20 दिन के अंतराल में सिंचाई कर देनी चाहिए. बारिश के मौसम में इसके पौधों को सिंचाई की आवश्यकता नही होती. लेकिन बारिश सही वक्त पर ना हो तो पौधों की सिंचाई आवश्यकता के अनुसार कर देनी चाहिए.

उर्वरक की मात्रा

काली हल्दी के पौधों को उर्वरक की जरूरत सामान्य तौर पर बाकी फसलों की तरह ही होती है. शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त लगभग 15 से 17 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाकर पौधों को देनी चाहिए. काली हल्दी का इस्तेमाल औषधीय रूप में किया जाता है. इस कारण हो सके तो इसकी खेती जैविक तरीके से की जानी चाहिए.

लेकिन जो किसान भाई रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहता है वो अपने खेत की आखिरी जुताई के वक्त लगभग 50 किलो एन.पी.के. की मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में छिड़कर मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा पौधों के विकास के दौरान उचित मात्रा में घर पर तैयार किये गए जीवामृत, घन जीवामृत और पंचगव्य (तरल जैव उर्वरक) को सिंचाई के साथ पौधों को देना चाहिए. जिससे पौधों में रोग भी कम मात्रा में दिखाई देता है. और पौधे भी अच्छे से विकास करते हैं.

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खरपतवार नियंत्रण

काली हल्दी की खेती में रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण नही करना चाहिए. इसकी खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से नीलाई गुड़ाई कर किया जाता है. प्राकृतिक रूप से खरपतवार नियंत्रण के लिए शुरुआत में इसके पौधों की रोपाई के लगभग 25 से 30 दिन बाद हल्की नीलाई गुड़ाई कर देनी चाहिए. इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए दो से तीन गुड़ाई काफी होती है. इसके पौधों की प्रत्येक गुड़ाई 20 दिन के अंतराल में लगातार कर देनी चाहिए. उसके बाद जब भी खेत में किसी तरह की खरपतवार दिखाई देने लगे तो उन्हें खेत से निकाल देना चाहिए. पौध रोपाई के लगभग 50 दिन बाद खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई कर नही करना चाहिए. इससे इसके कंदों को नुक्सान पहुँच सकता है.

मिट्टी चढ़ाना

इसके पौधों में मिट्टी चढ़ाने का काम कंदों के विकास के दौरान किया जाता है. इसके पौधे की रोपाई के लगभग दो महीने बाद नीलाई गुड़ाई के साथ पौधों की जड़ों में मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. इसके बाद हर एक से डेढ़ महीने बाद पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ानी चाहिए.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

काली हल्दी के पौधों में अभी तक किसी ख़ास तरह का रोग देखने को नही मिला हैं. लेकिन कुछ कीट रोगों का प्रभाव देखने को जरुर मिल जाता है. जिनकी रोकथाम के लिए पौधों पर बॉरडाक्स या जैविक कीटनाशकों का छिडकाव कर देना चाहिए.

कंदों की खुदाई और सफाई

काली हल्दी के पौधे रोपाई के लगभग 250 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस दौरान इसके पौधों की खुदाई कर लेनी चाहिए. इसके कंदों की खुदाई का कार्य सर्दी के मौसम के खत्म होने के दौरान फसल की रोपाई के आधार पर जनवरी से मार्च, अप्रैल तक किया जाता है. पौधों की खुदाई के दौरान इसकी गाठों को अधिक नुकसान नही पहुँचाना चाहिए.

इसके कंदों की खुदाई के बाद उनकी सफाई की जाती हैं. सफाई के दौरान इसके कंदों से लगी मिट्टी को साफ़ कर उनके बाहरी छिलके को हटा देते हैं. जिसके बाद गाठों को धूप में सुखाकर उन्हें बाजार में बेचने के लिए भेज देते हैं. या संरक्षित कर लेते हैं.

पैदावार और लाभ

काली हल्दी के प्रत्येक पौधों की अच्छे से देखभाल करने पर प्रत्येक पौधों से दो से ढाई किलो ताजा गाठें प्राप्त होती हैं. जबकि एक हेक्टेयर में 1100 के आसपास पौधे लगाए जाते हैं. जिनसे लगभग 48 टन के आसपास पैदावार प्राप्त होती हैं. जिनका बाजार भाव भी काफी अच्छा प्राप्त होता है. जिसे किसान भाई बाजार में उचित दामों में बेचकर अच्छा लाभ कमा सकते हैं.

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