Kheti Gyan

  • होम
  • मंडी भाव
  • मेरा गाँव
  • फल
  • फूल
  • सब्ज़ी
  • मसाले
  • योजना
  • अन्य
  • Social Groups

खुबानी की खेती कैसे करें

2019-11-01T12:18:18+05:30Updated on 2019-11-01 2019-11-01T12:18:18+05:30 by bishamber Leave a Comment

खुबानी की खेती नगदी फसल के रूप में की जाती है. भारत में इसे चोले के नाम से भी जाना जाता है. इसके फलों के अंदर गुठली पाई जाती है. इसका फल आडू और आलू बुखार की प्रजाति का ही माना जाता हैं. विश्व में सबसे ज्यादा इसे तुर्की में उगाया जाता है. भारत में इसे हिमालय की तराई वाले राज्यों ( कश्मीर, उतराखंड और हिमाचल ) में उगाया जाता है. इसका पौधा सामान्य ऊंचाई का होता है.

Table of Contents

  • उपयुक्त मिट्टी
  • जलवायु और तापमान
  • उन्नत किस्में
    • कैशा
    • गौरव लाल गाल खुबानी
    • काला मखमल
    • मेलिटोपोल ब्लैक
    • अनानास खुबानी
    • चारमग्ज
    • ब्लैक प्रिंस
    • हरकोट
    • सफेदा
  • खेत की तैयारी
  • पौध तैयार करना
  • पौध रोपाई का तरीका और टाइम
  • पौधों की सिंचाई
  • उर्वरक की मात्रा
  • खरपतवार नियंत्रण
  • पौधों की देखभाल
  • अतिरिक्त कमाई
  • पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
    • मोनिलियल बर्न
    • ग्रे सड़ांध
    • इंडियन जिप्सी मोथ
    • पर्ण चित्ती
    • पत्ती मरोड़
  • फलों की तुड़ाई
  • पैदावार और लाभ
खुबानी की खेती

खुबानी के फल पीले, सफेद, काले, गुलाबी और भूरे के पाए जाते हैं. इसके फलों में पाया जाने वाला बीज बादाम की तरह होता है. जिसके दो से तीन बीजों को व्यस्क इंसान आसानी से खा सकता है. लेकिन बच्चों को इसे खिलाना अच्छा नही होता. क्योंकि इसमें एक धीमा जहर होता है. सूखे हुए खुबानी को शुष्क मेवा के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके ताजे फलों से जूस, जैम और जैली बनाई जाती है. इसके अलावा इससे चटनी भी बनाई जाती है.

इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण और शीतोष्ण जलवायु वाली जगह अच्छी होती है. इसके पौधे अधिक गर्मी के मौसम में विकास नही कर पाते हैं. जबकि सर्दी के मौसम में आसानी से विकास कर लेते हैं. इसके पौधों को अधिक बारिश की जरूरत नही होती. फूल खिलते वक्त बारिश या अधिक ठंड का होना इसके लिए उपयुक्त नही होता. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए.

अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेत के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

खुबानी की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली गहरी उपजाऊ दोमट मिट्टी की जरूरत होती हैं. इसकी खेती के लिए जलभराव वाली कठोर भूमि उपयुक्त नही होती. खुबानी की खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 7 के आसपास होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

खुबानी की खेती के लिए समुद्र तल से 1000 से 2000 मीटर की ऊचाई वाले स्थान उपयुक्त होते हैं. इसके पौधों को विकास करने के लिए समशीतोष्ण और शीतोष्ण दोनों जलवायु की जरूरत होती हैं. लेकिन समशीतोष्ण प्रदेशों में जहाँ अधिक वक्त तक तेज़ गर्मी रहती हैं वहां इसे नही उगाना चाहिए. इसके पौधे अधिक समय तक तेज़ गर्मी को सहन नही कर पाते. क्योंकि इससे पौधों में फलन की क्रिया प्रभावित होती है. इसके पौधों के लिए सर्दी का का मौसम उपयुक्त होता है. लेकिन सदियों में पौधे पर फूल खिलने के दौरान पड़ने वाला पाला नुकसानदायक होता है. इसके पौधों को सामान्य बारिश की जरूरत होती है.

खुबानी की खेती के लिए सामान्य तापमान उपयुक्त माना जाता हैं. कम तापमान पर इसके पौधे विकास कर लेते हैं. लेकिन पौधों पर फूल बनने के दौरान 5 डिग्री से नीचे तापमान जाने पर फूल खराब हो जाते हैं. इसके फलों के विकास के दौरान उन्हें 700 से 800 घंटे तक 7 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. इसके फलों के बेहतर विकास के लिए औसतन 15 से 30 डिग्री के बीच के तापमान को उपयुक्त माना जाता हैं.

उन्नत किस्में

खुबानी की कई उन्नत किस्में हैं. जिन्हें अलग अलग समयावधि पर अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है.

कैशा

खुबानी की इस किस्म के पौधे जल्दी पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इस किस्म के पौधे जून के शुरुआत में ही फल देना शुरू कर देते हैं. इस किस्म के फल गोल और सामान्य आकार के होते हैं. जिनका बाहरी रंग लालिमा लिए हुए पीला दिखाई देता है.

गौरव लाल गाल खुबानी

इस किस्म के फलों का स्वाद अनोखा मीठा होता है. इसके पौधे खेत में लगाने के चार साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं. जिनका 15 साल बाद उत्पादन 70 से 100 किलो प्रति पेड़ पाया जाता है. इसके पौधे गर्मीं के मौसम को अधिक समय तक सहन कर सकते हैं. इसके फल भंडारण के लिए उपयुक्त होते हैं.

काला मखमल

खुबानी की ये एक संकर किस्म हैं जिसे चेरी बेर और अमेरिकी खुबानी के संकरण से तैयार किया गया है. इसके पौधे कम ऊंचाई के होते हैं. इसके पौधे देरी से फल देने के लिए जाने जाते हैं. इसके फल अगस्त माह तक पकते हैं. इसके फलों का रंग काला दिखाई देता है. खुबानी की इस किस्म का इस्तेमाल आचार बनाने में भी किया जाता है.

मेलिटोपोल ब्लैक

खुबानी की इस किस्म के फलों का रंग बाहर से काला दिखाई देता है जबकि इसके गुदा का रंग लाल दिखाई देता है. इस किस्म के फल और पौधे दोनों अधिक ठंड के प्रतिरोधी पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधे जुलाई महीने में फल देना शुरू कर देते हैं. जिनका उत्पादन सामान्य पाया जाता है.

अनानास खुबानी

इस किस्म के पौधे खेत में रोपाई के चौथे साल पैदावार देना शुरू करते हैं. इसका पूर्ण रूप से तैयार एक वृक्ष सालाना 100 से 125 किलो तक पैदावार आसानी से दे सकता हैं. इस किस्म के पौधे जुलाई माह तक फल देते हैं. इस किस्म के फलों का रंग पीला दिखाई देता हैं. जिनका स्वाद मीठा होता है. इस किस्म के पौधे अधिक सर्दी को सहन कर सकते हैं.

चारमग्ज

इस किस्म के पौधे जल्दी पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इसके फल जून के महीने में पककर तैयार हो जाते हैं. इसके पूर्ण रूप से तैयार एक पौधा 80 किलो तक पैदावार दे सकता है. इस किस्म के फल हरापन लिए पीले रंग के होते हैं. इसके फलों का स्वाद मीठा होता है. जिन्हें ताजा खाने और सूखाने के लिए उपयोग में लिए जा सकता है.

ब्लैक प्रिंस

उन्नत किस्म की काली खुबानी

खुबानी की ये एक संकर किस्म हैं. इसके पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. इसके फल इसके नाम के अनुरूप नही पाए जाते. इसके फलों का रंग लाल दिखाई देता है. जिनका उत्पादन बाकी संकर किस्मों से अधिक पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर रोग काफी कम देखने को मिलते हैं. इस किस्म के पौधे ठंड के प्रतिरोधी कम होते हैं.

हरकोट

खुबानी की इस किस्म को मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में उगाने के लिए तैयार किये गया है. जिसके फल जून माह के मध्य तक पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के फल हल्के पीले गुलाबी रंग के होते हैं. इस किस्म के पौधों पर कई तरह के फफूंदी जनित रोग नही लगते हैं.

सफेदा

इस किस्म के पौधे मध्य समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इस किस्म के फल बड़े आकार वाले होते हैं. जिनका उत्पादन 100 किलो प्रति पौधा के हिसाब से पाया जाता है. इसके फलों का रंग हल्का पीला दिखाई देता है. जो जुलाई के महीने में पककर तैयार हो जाते हैं. इसके फलों को गिरी का स्वाद भी मीठा होता है.

इनके अलावा और भी कई किस्में हैं. जिन्हें अलग अलग जगहों पर उत्तम पैदावार लेने के लिए उगाया जाता है. जिनमें नगेट, शक्करपारा, नाटी, पैरा पैरोला, नरी, सेन्ट एम्ब्रियोज, रायल, एलेक्स और वुल्कान जैसी और भी कई किस्में शामिल हैं.

खेत की तैयारी

खुबानी के पौधों को खेत में गड्डे तैयार कर लगाया जाता हैं. गड्डों के तैयार करने से पहले खेत की मिट्टी को भुरभुरा करने करने के लिए खेत की जुताई की जाती है. इसके लिए शुरुआत में खेत की सफाई कर मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दें. उसके बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत में पाटा लगा दें, ताकि भूमि समतल दिखाई दें. जिससे बारिश के मौसम में खेत में जलभराव जैसी समस्याओं का सामना नही करना पड़ता हैं.

भूमि को समतल बनाने के बाद उसमें गड्डे तैयार किया जाते हैं. इन गड्डों को खेत में पंक्तियों में तैयार किया जाता है. पंक्तियों में गड्डों को तैयार करने के दौरान प्रत्येक गड्डों में बीच 5 से 6 मीटर के आसपास जगह होनी चाहिये. और प्रत्येक पंक्तियों के बीच भी 5 मीटर की दूरी होनी चाहिए.

गड्डों के तैयार हो जाने के बाद उनमें जैविक और रासायनिक उर्वरकों की उचित मात्रा को मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भर दें. गड्डों को भरने के बाद उनकी गहरी सिंचाई कर दें. इससे गड्डों की मिट्टी अच्छे से बैठकर कठोर हो जाती है. इन गड्डों को पौध रोपाई से लगभग तीन महीने पहले तैयार कर लें. गड्डों को तैयार करने के बाद उन्हें पुलाव से ढक दें.

पौध तैयार करना

खुबानी के पौधों की रोपाई नर्सरी में कलम तैयार कर की जाती है. इसकी कलम बीज, ग्राफ्टिंग, कलम दाब और गुटी बांधने की विधि से तैयार की जाती है. जिनके बारें में अधिक जानकारी आप हमारे कलम रोपाई की विधि वाले इस आर्टिकल से ले सकते हैं.

इन सभी विधि से तैयार कलम से बनने वाले पौधे में मुख्य पौधे जैसे ही गुण पाए हैं. लेकिन बीज विधि से कलम तैयार करने पर पौधों के गुणों में कमी देखने को मिलती है. इनकी पौध नर्सरी में बारिश या बारिश के मौसम के बाद तैयार की जाती है. जिनकी रोपाई बसंत के मौसम में की जाती हैं.

इसके अलावा वर्तमान में सरकार द्वारा रजिस्टर्ड काफी ऐसी नर्सरियां हैं, जो इसकी पौध कम रूपये में किसान भाइयों को देती हैं. इसलिए किसान भाई इसकी पौध को नर्सरी से खरीदकर भी लगा सकता हैं. इसकी पौध खरीदते वक्त किसान भाई ध्यान रखे कि पौध पर किसी तरह का कोई रोग ना लगा हो और पौधा एक साल पुराना हो, और जो अच्छे से विकास कर रहा हों.

पौध रोपाई का तरीका और टाइम

खुबानी के पेड़

खुबानी के पौधों की रोपाई खेत में तैयार किये गए गड्डों में की जाती है. इसके लिए पहले गड्डों के बीचोंबीच एक छोटा गड्डा तैयार कर लें. गड्डा तैयार होने के बाद उसे उपचारित कर लें. गड्डे को उपचारित करने के लिए बाविस्टीन या गोमूत्र का इस्तेमाल किसान भाई कर सकते हैं. गड्डे को उपचारित करने के बाद उसमें नर्सरी में तैयार की गई पौधा या नर्सरी से खरीदी गई पौध को लगा देते हैं. पौध लगाने के बाद उसके चारों तरफ मिट्टी डालकर पौधे के तने को भूमि की सतह से एक सेंटीमीटर ऊंचाई तक ढक दें.

खुबानी की पौधों की रोपाई मार्च से लेकर जुलाई, अगस्त तक की जा सकती हैं. जहाँ सिंचाई की उचित सुविधा हो वहां इसे मार्च के महीने में किसान भाई लगा सकते हैं. इस दौरान पौधे की रोपाई करने पर उसे अधिक देखभाल की जरूरत होती है. लेकिन जहाँ सिंचाई की उचित व्यवस्था ना हों वहां किसान भाई इसे जून के महीने में बारिश के शुरू होने के बाद लगा सकते हैं. इस दौरान पौधे की रोपाई करने पर उसे विकास करने के लिए उचित वातावरण मिलता है. इसलिए इस दौरान पौधा अच्छे से विकास करता हैं.

पौधों की सिंचाई

खुबानी के पौधों को सिंचाई की सामान्य जरूरत होती हैं. लेकिन शुरुआत में पौधों को सिंचाई की अधिक जरूरत होती है. इसके लिए शुरुआत में पौधों को गर्मियों के मौसम में महीने में चार बार पानी देना चाहिए. इससे पौधे अच्छे से विकास करते हैं. सर्दियों के मौसम में पौधों को पानी की कम आवश्यकता होती है. इसके लिए सर्दियों के मौसम में पौधों को 20 से 25 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. लेकिन सर्दियों में पाला पड़ने के दौरान पौधों को पानी हल्की मात्रा में 8 से 10 दिन के अंतराल में देना चाहिए. इससे पौधे पर पाले का प्रभाव नही पड़ता हैं.

बारिश के मौसम में इसके पौधों को पानी की जरूरत नही होती. लेकिन बारिश वक्त पर ना हो तो पौधों को आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए. वैसे इसके पौधों की ड्रिप विधि ( टपक सिंचाई ) से सिंचाई करना ज्यादा बेहतर माना जाता है. इस विधि से पौधों को उचित मात्रा में रोजाना पानी दिया जा सकता है.

उर्वरक की मात्रा

खुबानी के पौधों को उर्वरक की जरूरत बाकी बागवानी फसलों के पौधों की तरह ही होती है. इसके लिए शुरुआत में गड्डों की तैयारी के वक्त प्रत्येक गड्डों में लगभग 12 से 15 किलो पुरानी गोबर की खाद और 400 से 500 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा को मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भर दें. पौधों को उर्वरक की ये मात्रा पौधों पर फल लगने तक देनी चाहिए.

उसके बाद पौधे के विकास के साथ साथ उर्वरक की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए. जब पौधा फल देना शुरू करें तब उसे उर्वरक फल लगने से पहले दें. ताकि पौधों में फल अच्छे से बन सके. पूर्ण रूप से तैयार 15 साल के एक पौधे को पूरे साल में लगभग 30 किलो जैविक और दो से तीन किलो रासायनिक खाद देना चाहिये. जो किसान भाई जैविक तरीके से इसकी खेती करना चाहता है. वो पौधों को दिए जाने वाले रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का इस्तेमाल कर सकता हैं.

पूर्ण विकसित पौधे को खाद देने के लिए पहले पेड़ के तने से दो से ढाई फिट की दूरी रखते हुए दो फिट चौड़ा और आधा फिट गहरा एक गोल घेरा बना लें. इस घेरे में उर्वरक की मात्रा को डालकर उस पर हल्की मात्रा में मिट्टी की परत बना दे. उसके बाद घेरे की सिंचाई कर दें. इससे पौधे की सम्पूर्ण जड़ों में उर्वरक का संचार अच्छे से होता है.

खरपतवार नियंत्रण

खुबानी के पौधों में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से किया जाता हैं. इसके लिए शुरुआत में पौधों की रोपाई के लगभग एक महीने बाद पौधे के आसपास दिखाई देने वाली खरपतवार को निकालकर पौधे की हल्की गुड़ाई कर देनी चाहिए. इसके पौधों को शुरुआत में 7 से 8 गुड़ाई की जरूरत होती है. लेकिन जब इसके पौधे पूर्ण रूप से तैयार हो जाते हैं तब उन्हें साल में तीन से चार बार ही गुड़ाई की जरूरत होती है.

इसके अलावा खेत में खाली बची जमीन पर अगर किसी भी तरह की कोई फसल ना लगाईं गई हो तो बारिश के मौसम के बाद जब भूमि हल्की सुखी हुई दिखाई दें तब उसकी जुताई कर देनी देनी चाहिए. इससे बारिश के बाद जन्म लेने वाली सभी तरह की खरपतवार नष्ट हो जाती हैं.

पौधों की देखभाल

खुबानी के पौधों को देखभाल की जरूरत शुरुआत से होती है. इसके लिए पौधों की रोपाई से पहले उन्हें आवारा पशुओं से बचाने के लिए खेत की तारबंदी कर देनी चाहिए. इसके अलावा पौधों की रोपाई के बाद उन पर शुरुआत में एक मीटर तक किसी भी तरह की नई शाखाओं को जन्म ना लेने दे. इससे पौधे का तना अच्छे से विकास करता है. जब खुबानी का पेड़ फल देने लग जाए तब फलों की तुड़ाई के बाद सर्दियों के मौसम में पौधों की कटाई छटाई कर देनी चाहिए. कटाई चटाई के दौरान पौधे की रोगग्रस्त, सूखी और अनावश्यक डालियों को काटकर हटा देना चाहिए. इससे पौधे पर नई शाखाओं का निर्माण होता है. जिससे पौधों की पैदावार में भी वृद्धि देखने को मिलती है.

अतिरिक्त कमाई

खुबानी के पौधे खेत में लगाने के तीन से चार साल बाद पैदावार देना शुरू करते हैं. इस दौरान खेत में खाली बची जमीन में किसान भाई मसाले, सब्जी, औषधीय और कम समय की बागबानी फसलों ( पपीता ) को उगाकर अच्छी कमाई कर सकता है. इससे किसान भाइयों को उनके खेत से पैदावार भी मिलती रहती है. और उन्हें किसी तरह की आर्थिक समस्या का सामना भी नही करना पड़ता.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

खुबानी के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जो पौधों के साथ साथ इसकी पैदावार को भी काफी नुक्सान पहुँचाते हैं. जिनकी उचित टाइम पर रोकथाम कर पौधों और फलों को खराब होने बचाया जा सकता है.

मोनिलियल बर्न

रोग लगा खुबानी पौधा

खुबानी के पौधों में मोनिलियल बर्न रोग अधिक समय तक जल भराव और उच्च आद्रता की वजह से फैलता हैं. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियां सूखने लगती है. रोग बढ़ने से पूरा पौधा जल्द ही नष्ट हो जाता हैं. इसके अलावा फलों पर गहरे काले रंग के धब्बे बन जाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए रोगग्रस्त डालियों को काटकर हटा देना चाहिए. और खेत में जल भराव की स्थिति ना होने दें.

ग्रे सड़ांध

खुबानी के पौधों में ग्रे सड़ांध का रोग फलन के वक्त पौधों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने से फलों पर शुरुआत में गहरे काले धब्बे दिखाई देते हैं. रोग बढ़ने पर फलों पर गहरे भूरे रंग के बड़े धब्बे दिखाई देने लगते है. और कुछ दिन बाद रोगग्रस्त फल टूटकर गिरने लगते हैं. इस दौरान अगर रोगग्रस्त फल अगर दूसरे फल के सम्पर्क में आ जाए तो दूसरा फल भी खराब हो जाता है. इसलिए उचित टाइम पर इसकी देखभाल ना की जाए तो ये रोग पैदावार को काफी हद तक प्रभावित कर देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर बोर्डेक्स तरल मिश्रण या क्वाड्रिस दावा का छिडकाव करना चाहिए. और रोगग्रस्त फलों को तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए.

इंडियन जिप्सी मोथ

इंडियन जिप्सी मोथ एक कीट रोग है. इस रोग की सुंडी इसके पौधों को नुकसान पहुँचाती हैं. इस रोग की सुंडी पौधे की पत्तियों और बाकी के कोमल भागों को खाकर पौधे को नुक्सान पहुँचाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर कार्बारिल दावा का उचित मात्रा में छिडकाव करना चाहिए.

पर्ण चित्ती

खुबानी के पौधों में लगने वाला पर्ण चित्ती के रोग को चेरी पत्ती स्थान के नाम से कई जगहों पर जाना जाता है. इस रोग के लगने से पौधों की पत्तियों पर छोटे छोटे गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. पौधों पर इस रोग का प्रभाव मई माह के आखिर में देखने को मिलता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर फिटोस्पोरिन-एम या फंडाज़ोल की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

पत्ती मरोड़

खुबानी के पौधों पर पाया जाने वाला ये एक कीट जनित रोग है. खुबानी के पौधों पर इस रोग का प्रभाव सर्दियों के तुरंत बाद दिखाई देता है. इस रोग के कीट पौधे की पत्ती और उसके कोमल भागों का रस चूसकर उनके विकास को प्रभावित करते हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियां सिकुड़ने लगती है. और कुछ दिन बाद वो पीली पड़कर नीचे गिर जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पेड़ो पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड और थिरम की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

फलों की तुड़ाई

खुबानी के पौधे खेत में पौध रोपाई के लगभग तीन से चार साल बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इसके पौधों पर फलन अप्रैल माह में शुरू होता है. जिसके बाद इसकी विभिन्न किस्मों के फल जून से लेकर अगस्त माह तक पकते हैं. इसके फल पूर्ण रूप से पकने से एक दो दिन पहले तोड़ लें. ताकि फलों को अधिक दूरी तक आसानी से भेजा जा सके.

इसके पके हुए फल अलग अलग किस्मों के आधार पर अलग अलग रंग के दिखाई देते हैं. जो पकने के बाद पहले बीच काफी नर्म हो जाते हैं. इस दौरान इसके फलों को तोड़ लेना चाहिए. उसके बाद फलों की गुणवत्ता के आधार पर उनकी छटाई कर बाज़ार में बेचने के लिए किसी बॉक्स में भरकर बाज़ार में भेज देना चाहिए.

पैदावार और लाभ

खुबानी के पौधे एक बार लगाने के बाद लगभग 50 से 60 साल तक पैदावार देते हैं. इसकी विभिन्न किस्मों के पूर्ण रूप से तैयार एक वृक्ष से एक साल में औसतन 80 किलो के आसपास फल प्राप्त किये जा सकते हैं. जिनका बाज़ार भाव 100 रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता है. जबकि सुखाने पर इसका भाव और ज्यादा मिलता है. जिस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से 20 लाख तक की कमाई कर सकता हैं.

 

Filed Under: फल

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

  • भेड़ पालन कैसे शुरू करें 
  • प्रमुख तिलहनी फसलों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
  • बरसीम की खेती कैसे करें
  • बायोगैस क्या हैं? पशुओं के अपशिष्ट से बायोगैस बनाने की पूरी जानकारी
  • सूअर पालन कैसे शुरू करें? Pig Farming Information

Categories

  • All
  • अनाज
  • अन्य
  • उन्नत किस्में
  • उर्वरक
  • औषधि
  • जैविक खेती
  • पौधे
  • फल
  • फूल
  • मसाले
  • मेरा गाँव
  • योजना
  • रोग एवं रोकथाम
  • सब्ज़ी
  • स्माल बिज़नेस

Follow Us

facebookyoutube

About

खेती ज्ञान(www.khetigyan.in) के माध्यम से हमारा मुख्य उद्देश्य किसानों को खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारियां देना है. अगर आप खेती संबंधित कोई भी जानकारी देना या लेना चाहते है. तो आप इस ईमेल पर सम्पर्क कर सकते है.

Email – khetigyan4777[@]gmail.com

Important Links

  • About Us – हमारे बारे में!
  • Contact Us (सम्पर्क करें)
  • Disclaimer (अस्वीकरण)
  • Privacy Policy

Follow Us

facebookyoutube

All Rights Reserved © 2017-2022. Powered by Wordpress.