पान की खेती कैसे करें – पूरी जानकारी!

पान के पौधे को लता ( बेल ) वाले पौधों की श्रेणी में शामिल किया गया है. इसकी बेल कई सालों तक पैदावार देती है. हिंदू संस्क्रति में पान के पत्तों का पूजा- पाठ और हवन के कार्यों में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. इसके अलावा पाने के पत्ते को खाया जाता है. पाने के पत्ते को शहद, कत्था, चुना और सुपारी के साथ खाया जाता है. इसके अलावा मुखशुद्धि की चीजों में भी इसका इस्तेमाल होता है.

पाने के पत्ते को खाने से कई तरह की बीमारियों से निजात मिलती है. इसके खाने से पाचन शक्ति बढती है, जिससे शरीर स्वास्थ बना रहता है. इसके पत्ते को पीसकर किसी घाव या फोड़े पर लगाने से आराम मिलता है. इसके अलावा इसका व्यापारिक इस्तेमाल भी होता है. इसके पत्तों से धूम्रपान की चीजें बनाई जाती है.

पान की खेती

भारत में पान की खेती ज्यादातर पूर्वी और दक्षिण भारत में की जाती है. यहाँ की जलवायु इसकी खेती के लिए अनुकूल हैं. इसके पौधे को सामान्य तापमान और छायादार जगह की जरूरत होती है. पान के पौधे को बारिश की ज्यादा जरूरत होती है. गर्म हवाएं इसकी पैदावार को नुक्सान पहुँचाती है. गर्म हवाओं के चलने पर इसकी पत्तियां जलने लगती है.

अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

पान की खेती कई तरह की मिट्टी में की जा रही है. इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी और उपजाऊ भूमि आवश्यक है. इसकी खेती जल भराव वाली जमीन में नही की जा सकती. क्योंकि जल भराव होने पर इसकी बेल की जड़ें जल्दी गलकर नष्ट हो जाती है. इसकी खेती के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 7 के आसपास होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

इसकी खेती में जलवायु और तापमान दोनों ही मुख्य कारक हैं. ये दोनों इनकी पैदावार को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं. पान की खेती के लिए नम और आद्र जलवायु की जरूरत होती है. इसकी खेती के लिए बारिश की ज्यादा जरूरत होती है. गर्म और तेज़ हवाएं इसकी खेती के लिए नुकसानदायक होती है. जबकि आद्रता युक्त हवाएं इसकी खेती के लिए उपयोगी होती हैं. अधिक ठंडे और गर्म प्रदेशों में इसकी खेती नही की जा सकती.
इसकी खेती के लिए शुरुआत में 15 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. उसके बाद इसकी बेल को वृद्धि करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तापमान को सहन कर सकते हैं. सर्दियों में 10 डिग्री से कम तापमान होने पर इसके पत्ते सुखकर गिरने लगते हैं.

उन्नत किस्में

पान की कई तरह की किस्में है. इन सभी से अलग अलग आकार के पत्ते प्राप्त होते हैं,जो बड़े और छोटे आकार में होते हैं. इन पत्तों के आकार और स्वाद के आधार पर ही इनकी किस्में तैयार की गई है. जिनमें बनारसी, कलकतिया, रामटेक, मघई, कपूरी, बांग्ला, सोफिया, बंगला, देशावरी, मीठा और सांची किस्में प्रमुख हैं.

खेत की जुताई

पान की खेती करने के लिए शुरुआत में खेत की गहरी जुताई के लिए मिट्टी को अलट पलट करने वाले हलों से खेत की जुताई करें. खेत की तैयारी मई के महीने में की जाती है. खेत की पहली गहरी जुताई के बाद उसे कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें. लगभग 10 दिन खुला छोड़ने के बाद खेत में कल्टीवेटर चलाकर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई करें. उसके बाद खेत में पानी छोड़ दें. पानी छोड़ने के कुछ दिन बाद खेत में खरपतवार निकलने लगती हैं. जब खरपतवार निकल आयें तब खेत की एक बार फिर जुताई कर खेत को समतल बना दें.

बरेजा का निर्माण

बरेजा का निर्माण

पान की खेत जहाँ बारिश ज्यादा आती है, और तापमान सामान्य बना रहता हैं. वहां इसे सामान्य रूप से उगाया जाता है. लेकिन ज्यादातर जगहों पर इसकी खेती बरेजा में ही की जाती है. बरेजा ग्रामीण इलाकों में बनाए जाने वाले छप्पर जैसा ही होता है.

बरेजा बनाने के लिए बांस की लकड़ी और पुलाव की जरूरत होती है. बरेजा बनाने के लिए एक मीटर की दूरी रखते हुए बॉस की लकड़ियों को एक पंक्ति के रूप में गाड देते हैं. प्रत्येक पंक्तियों के बीच दो मीटर की दूरी रखते हैं. उसके बाद बॉस की लकड़ियों पर दो से ढाई मीटर की उंचाई पर बाँस की चपटी को आडा सीधा बांधकर उन पर पुलाव बिछा देते हैं. पुलाव बिछाने के बाद पुलाव को बाँस की चपटीयों के साथ रस्सी की सहायता से बाँध देते हैं.
बरेजा की छत तैयार होने के बाद उसे चारों तरफ से पुलाव से तैयार जी गई टटिया से बंद कर दिया जाता है. जिससे बरेजा का आकार एक बड़े कमरे की तरह दिखाई देता है. लेकिन टटिया बनाते टाइम ध्यान रखे की पूर्वी दिशा की टटिया हलकी तैयार करें. और बाकी तीनों दिशा की टटिया भारी तैयार करें ताकि गर्म हवा अंदर ना आ सके.

कलम तैयार करना

पान के पौधों को कलम के माध्यम से लगाया जाता है. इसकी कलम तैयार करने के लिए एक साल पुराने पौधे की जरूरत होती हैं. इसकी कलम बनाने के लिए पान की बील को बीच से काटकर नीचे की डंडियाँ लेनी चाहिए. क्योंकि नीचे की डंडियों की अंकुरण क्षमता अधिक होती है.

बेल की कलम को नर्सरी में तैयार कर या सीधा खेत में भी लगा सकते हैं. लेकिन कलम को तैयार कर खेत में लगाना अच्छा होता है. कलम की रोपाई से पहले 0.25 फीसदी बोर्डों मिश्रण या ब्लाइटाक्स की उचित मात्रा से कलम और मिट्टी दोनों का शोधन कर लेना चाहिए. इसकी कलम खेत की तैयारी शुरू करने से पहले लगा दें. कलम को काटकर सीधा मिट्टी में लगा देते हैं. इसके लिए बेल में मौजूद दो से तीन गाँठ को मिट्टी में दबा देना चाहिए. और बाकी सम्पूर्ण भाग बहार होना चाहिए.

मिट्टी का शोधन और बेड का निर्माण

कलम के तैयार होने के बाद उन्हें खेत में लगाया जाता हैं. लेकिन कलम के लगाने से पहले खेत की मिट्टी का शोधन करना जरूरी होता है. मिट्टी का शोधन बरेजा बनाने के बाद करना चाहिए. मिट्टी के शोधन के लिए पहले बरेजा में बेड ( मेड ) का निर्माण किया जाता है. इस मेड को चौड़ाई डेढ़ से दो फिट की होनी चाहिए, जिसके बीच में बाँस की गाडी हुई लकड़ी आयें. प्रत्येक बेड के बीच एक से सवा दो फिट की दूरी रखे.

बेड के निर्माण के बाद मिट्टी में एक प्रतिशत बोर्डों मिश्रण का छिडकाव कर मिट्टी का शोधन करें. मिट्टी का शोधन फसल के तैयार होने के दौरान बारिश के पहले और बारिश के बाद किया जाता है. बारिश के बाद मिट्टी का शोधन करने के लिए 0.5 प्रतिशत बोर्डों मिश्रण को ट्राइकोडर्मा विरडी के साथ मिलकर मिट्टी में डाल दें. इससे पौधे में फफूंदी रोग नही लगता.

बेल ( कलम ) की रोपाई का तरीका और टाइम

पान की बेल

बेल की रोपाई मेड के दोनों तरफ पंक्ति में की जाती है. मेड पर दोनों पंक्तियों के बीच की दूरी एक फिट होनी चाहिए. और मेड पर लगाईं जाने वाली प्रत्येक बेल के बीच लगभग 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए. अगर आप बेल सीधा खेत में उगा रहे हैं तो उसे जमीन में चार से पांच सेंटीमीटर नीचे सामान दूरी पर लगाएं. बेलों को मेड पर लगाने से पहले या तुरंत बाद मेड पर हजारे के माध्यम से पानी जरुर दें. इसकी बेल को हमेशा दोपहर बाद खेत में लगाना चाहिए. इसे बेल के खराब होने की संभावना काफी कम हो जाती हैं.

इसकी बेलों की रोपाई मध्य फरवरी से मध्य मार्च और मई से मध्य जून तक की जानी चाहिए. क्योंकि इन दोनों समय में ही बारिश का मौसम बना रहता है. और वातावरण भी अनुकूल होता है.

पौधों की सिंचाई

पान के पत्ते को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है. खासकर गर्मियों के मौसम में इसे पानी की ज्यादा जरूरत होती है. गर्मियों के मौसम में इसके पौधे को दो दिन बाद हर दो घंटे के अंतराल में हल्का हल्का पानी तीन से चार बार में देना चाहिए. और सर्दियों के मौसम में इसके पौधे को पानी की कम जरूरत होती है. इसलिए सदियों में इसके पौधे को 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. बारिश के मौसम में इसको पानी की जरूरत नही होती. लेकिन अगर बारिश वक्त पर ना हो तो पौधों की हलकी सिंचाई आवश्यकता के अनुसार करते रहना चाहिए.

बेलों को सहारा देना

जब बेल अंकुरित होकर बढ़ने लगती हैं तब उन्हें उपर की तरफ बढ़ने के लिए सहारे की जरूरत होती है. बेल को सहारा देने के लिए उसे पतले धागे से बांधकर रस्सियों के सहारे उपर की और चढ़ाया जाता है. इससे बेल पर लगने वाली पत्तियां अच्छी गुणवत्ता वाली बनती हैं.

उर्वरक की मात्रा

इसकी खेती की शुरुआत में 20 गाडी पुरानी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत की जुताई के वक्त खेत में डाल देनी चाहिए. इसके अलावा रासायनिक खाद के इस्तेमाल के लिए खेत की आखिरी जुताई के वक्त एन.पी.के. का एक बोरा खाद प्रति हेक्टेयर देना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए पौधों की लगातार हर महीने हलकी नीलाई गुड़ाई करते रहना चाहिए. पौधों की पहली गुड़ाई के दौरान सिर्फ हाथ से खरपतवार निकालना अच्छा होता है. क्योंकि इस दौरान बेल में जड़ें छोटी होती हैं. और गुड़ाई से उन्हें नुक्सान पहुँच सकता है.

पौधों की सुरक्षा

पौधों की सुरक्षा उन पर लगने वाले रोगों से बचाकर की जाती हैं. पान के पत्तों में कई तरह के रोग पाए जाते हैं. जिनका असर इसकी पैदावार पर ज्यादा देखने को मिलता है. इस कारण इनकी उचित समय रहते देखभाल करना जरूरी होता है.

प्रमुख रोग

पौधों पर वायरस और फफूंद की वजह से कई तरह के रोग होते हैं. लेकिन इनमें कुछ ऐसे रोग हैं जो पौधे को सबसे ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं.

पाद और जड़ गलन

पाद गलन का रोग एक फफूंद जनित रोग हैं. इस रोग का प्रभाव पानी भराव की वजह से होता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं. और कुछ दिन बाद सूखकर गिरने लग जाती हैं. इस रोग की रोकथाम पानी भराव को रोककर किया जा सकता है. इसके अलावा पौधों पर रोग लगने के बाद ट्राइकोडर्मा या बोर्डो मिश्रण का छिडकाव पौधों की जड़ों में करना चाहिए.

पत्ती गलन

पत्ती गलन का रोग

पान की खेती में पत्ती गलन रोग पेरासिटिक फंगस की वजह से होता है. इस रोग के लगने पर पत्तियों पर भूरे काले धब्बे बन जाते हैं. जो पातियों के किनारे या मध्य भाग से शुरू होते हैं. पौधों पर ये रोग मानसून के वक्त दिखाई देता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैंकोजेब की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

जड़ सडन रोग

पान के पौधों पर ये रोग राइजोप्टोनिया फफूंद की वजह से लगता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की जड़ें सूखने लगती हैं. जिससे पौधा सम्पूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे की जड़ों में कार्बेंडाजिम मैंकोजेब की उचित मात्रा का छिडकाव हर महीने करना चाहिए.

तना कैंसर

पान के पौधों में लगने वाला ये रोग भी एक वायरस जनित रोग है. इस रोग के लगने पर बेल के तने पर भूरे रंग के लम्बे लम्बे धब्बे बनने लग जाते हैं. इस रोग की वजह से बेल का तना जल्द फट जाता है. तने के फटने की वजह से पौधे को पोषक तत्व उचित मात्रा में नही मिल पाते. जिस कारण इसकी पत्तियां सूखकर गिरने लगती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर प्लांटो बाइसिन या कॉपर सल्फेट की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

कीटों का आक्रमण

पान के पत्तीओं पर कई तरह के कीटों का आक्रमण देखने को मिलता है. ये कीट पान की पत्तियों को काफी नुक्सान पहुँचाते हैं.

लाल काली चीटी

पान की बेलों पर इन चीटियों का आक्रमण गर्मियों के मौसम में देखने को मिलता हैं. दरअसल माहू के प्रकोप के बाद जब उसके किट बेलों पर शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं. तब उस पदार्थ की वजह से इनका आक्रमण देखने को मिलता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल या पानी का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा कार्बोफ्यूरान की उचित मात्रा का छिडकाव कर सकते हैं.

सफ़ेद मक्खी

रोग लगी पत्तियां

सफ़ेद मक्खी पान के पत्तीओं का रस चूसकर उन्हें सुखा देती है. जिससे पैदावार कम मिलती है. इसके कीट पत्ते की निचे की सतह पर सफ़ेद रंग के दिखाई देते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल और पानी का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा रोगार या डेमोक्रान की उचित मात्रा छिडकाव करना लाभदायक होता है.

लीफ ब्लाईट

इस रोग के लगने पर पत्तियां ख़राब हो जाती हैं. इस रोग के लगने पर पत्तियों पर काले भूरे धब्बे बनने लगते हैं. इस रोग की वजह से कुछ दिनों बाद पूरी पत्ती झुलसकर नष्ट हो जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर स्ट्रेप्टोसायक्लिन का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

पत्तों की तुड़ाई और छटाई

पान के पत्ते जब हलके पीले और कडकदार दिखाई दें तब उन्हें तोड़ना चाहिए. इस तरह के पत्तों का बाज़ार में भाव अच्छा मिलता है. पान के पत्तों को तोड़ते वक्त उन्हें डंठल सहित तोड़ना चाहिए. इससे पौधा ज्यादा टाइम तक ताज़ा बना रहता है.

पत्तों की तुड़ाई के बाद उनकी छटाई की जाती है. जिसमें समान आकार वाले पत्तों को एक साथ कर उनका बंडल बनाकर तैयार कर लें. एक बंडल में लगभग 150 पत्ते होते हैं. बंडल के तैयार होने के बाद उनके डंठलो को एक सेंटीमीटर छोड़ते हुए काटकर अलग कर दें.

पैदावार और लाभ

पान की पैदावार

पान के पत्तों की खेती एक मेहनत वाली खेती ज़रुर हैं. लेकिन इसकी खेती से किसान भाई अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं. एक एकड़ में पान के 60 हज़ार पौधे लगाए जा सकते हैं. प्रत्येक पौधे से एक साल में 50 से 60 पत्तियाँ आसानी से प्राप्त हो जाती हैं. इस हिसाब से एक साल में एक एकड़ से 30 लाख पत्तियां प्राप्त हो जाती हैं. जिनका बाज़ार भाव अगर एक रूपये प्रति पत्ती भी मिले तो एक साल में किसान भाई 30 लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते है.

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