पपीता के पौधों में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम

पपीता की खेती बागवानी फसल के रूप में की जाती है. पपीता का इस्तेमाल खाने और जूस बनाने में किया जाता है. भारत में पपीता की खेती सबसे ज्यादा की जाती है. पपीता का पौधा अन्य बागवानी फसलों की तुलना में जल्दी पैदावार देता है. इसके पौधों को अन्य बागवानी फसलों के साथ भी आसानी से उगाया जा सकता है. जिससे किसानों को एक खेत से कई तरह की फसलों का उत्पादन आसानी से मिल जाता है. लेकिन इसकी फसल को देखरेख की जरूरत अधिक होती है. क्योंकि इसके पौधों पर रोग और प्राकृतिक कारकों का काफी ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है. अधिक बारिश या ठंड इसकी फसल को काफी नुक्सान पहुँचाती है.

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पपीता के पौधों में लगने वाले प्रमुख रोग

इसके पौधों में कई तरह के रोग भी देखने को मिलते हैं. जिनके बढ़ने पर इसकी फसल को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता है. इसके पौधों की देखभाल शुरुआत से ना की जाए तो इसके पौधे बहुत जल्द खराब हो जाते हैं. कभी कभी तो रोग का प्रभाव अधिक बढ़ने की वजह से सम्पूर्ण फसल ही खराब हो जाती है. जिससे किसान भाइयों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता है.

आज हम आपको पपीता के पौधों में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के बारें में बताने वाले हैं.

वल्य रोग

पपीता के पौधों में यह रोग विषाणु के माध्यम से बारिश के मौसम में अधिक फैलता है. इस रोग का प्रभाव पौधों पर किसी भी अवस्था में दिखाई दे सकता है. लेकिन एक साल पुराने पौधों पर इसका प्रभाव अधिक देखने को मिलता है. इसका प्रभाव पौधों की नई बनने वाली पत्तियों पर सबसे पहले दिखाई देता हैं. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियां चितकबरी दिखाई देने लगती हैं. जिससे पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है. जिन पर गहरे हरे रंग के फफोले बन जाते हैं. और नई निकलने वाली पत्तियों कटी हुई होती हैं. और पत्तियों के डंठल का आकार भी छोटा दिखाई देता है. पौधे के तने पर लम्बी धारियां बन जाती है. इस रोग के लगने से पौधों का विकास रुक जाता हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए इसके पौधों की रोपाई बारिश के मौसम के बाद करनी चाहिए.
  2. रोग लगे पौधे को उखाड़कर फेंक देना चाहिए.
  3. इसके अलावा पौधों की रोपाई के वक्त नीम की खली का इस्तेमाल करना चाहिए.
  4. पौधों पर किसी तरह के कीट रोग का प्रभाव दिखाई ना दे. इसके लिए पौधों पर नीम के तेल या डाईमेथेएट की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

पर्ण कुंचन

पपीता के पौधों में पर्ण कुंचन रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों पर दिखाई देता है. जो पौधों में विषाणु के माध्यम से फैलता हैं. इस रोग को लीफ कर्ल के नाम से भी जाना जाता है. पौधों पर इस रोग के लगने पर उनकी पत्तियां विकृत हो जाती हैं. जिनका आकार छोटा और झुर्रीदार दिखाई देता है. पतियों की शिराओं का रंग पीला पड़ जाता है. और पत्तियां नीचे की तरफ झुक जाती है. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है. इस रोग से ग्रसित पौधों पर फूल नही खिलते और खिलते भी हैं तो उनकी संख्या ना के बराबर होती है.

रोकथाम

  1. पौधों में यह रोग सफ़ेद मक्खी की वजह से फैलता हैं. क्योंकि इस जब कोई सफ़ेद मक्खी रोग ग्रस्त पौधे की पत्तियों का रस चुस्ती हैं तो वो इसके साथ इसके विषाणुओं को भी चुस्ती है. जिसके बाद जब वो सफ़ेद मक्खी किसी स्वस्थ पौधे की पत्तियों का रस चुस्ती है तो विषाणु उस पौधों में प्रवेश कर जाते हैं. जिससे उनका विकास रुक जाता है. इसलिए इसकी रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल या इमिडाक्लोरोप्रिड की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
  2. इस रोग से ग्रसित पौधे को तुरंत निकाल देना चाहिए.

चेपा

पपीता के पौधों में चेपा रोग का प्रभाव मौसम परिवर्तन के वक्त दिखाई देता है. इस रोग के कीट पौधे की पत्ती और उसके कोमल भागों पर आक्रमण कर उनका विकास रोक देते हैं. इस रोग के कीट आकर में काफी छोटे होते है. जिनका रंग हरा, काला और पीला दिखाई देता है. पौधों पर इस रोग के कीट समूह में आक्रमण करते हैं. इसका प्रभाव बढ़ने पर पौधों का विकास रुक जाता है. इसके कीट पौधों का रस चूसने के बाद चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं. जिससे पौधे पर काली फफूंद जमा हो जाती है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डाईमेथोएट की उचित मात्रा का छिडकाव रोग दिखाई देने के तुरंत बाद कर देना चाहिए.
  2. इसके अलावा इसकी रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल या नीम के आर्क का छिडकाव 10 से 15 दिन के अंतराल में दो बार करना चाहिए.

आर्द्र गलन

पपीता के पौधों में यह रोग फफूंद की वजह से फैलता है. पौधों में यह रोग शुरूआती अवस्था में नर्सरी में पौध तैयार करने के दौरान दिखाई देता है. इस रोग के लगने से सम्पूर्ण फसल खराब हो जाती है. इस रोग के लगने पर इसके पौधे मुरझाकर गिर जाते हैं. जिससे पौधे खेत में रोपाई से पहले ही नष्ट हो जाते हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के शुरुआत में बीजों की रोपाई के लिए मिट्टी की तैयारी के वक्त ही उसे बाविस्टिन या नीम की खली से उपचारित कर लेना चाहिए.
  2. इसके बीजों की रोपाई से पहले उन्हें कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर लेना चाहिए.
  3. इसके अलावा रोग दिखाई देने पर पौधों में मेटालैक्सिल या मैंकोजेब की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर पौधों में छिड़कना चाहिए.
  4. पौधों की सिंचाई उचित मात्रा में आवश्यकता के अनुसार ही करनी चाहिए.

फल सडन

पपीता के पौधों में फल सडन रोग का प्रभाव कवक के माध्यम से फैलता हैं. इस रोग का प्रभाव पौधों पर फलों के लगने के दौरान देखने को मिलता है. फलों पर इस रोग का प्रभाव कच्चे और पक्के दोनों रूपों में दिखाई देता है. इस रोग के लगने से फलों पर छोटे गोलाकार धब्बे बन जाते हैं. रोग बढ़ने पर धब्बे आपस में मिलकर एक बड़े धब्बे का निर्माण कर लेते हैं. जिससे फलों पर भूरा काला धब्बा बन जाता है. इस रोग के लगने से फल पकने से पहले ही टूटकर गिर जाते हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत बाद मैंकोजेब या कॉपरऑक्सीक्लोराइड की उचित मात्रा का छिडकाव कर देना चाहिए.
  2. इसके अलावा रोगग्रस्त फल और पौधे दोनों को नष्ट कर देना चाहिए. और रोग ग्रस्त पौधे को हटाने के बाद उस जगह बाविस्टीन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

सफ़ेद मक्खी

पपीता के पौधों पर लगने वाला सफ़ेद मक्खी रोग एक कीट रोग है. इस रोग की मक्खी पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर रहकर पौधों का रस चुस्ती हैं. जिससे पौधे की पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता है. रोग बढ़ने पर पत्तियां समय से पहले सूखकर गिर जाती है. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है. इसके अलावा इस रोग के कीट पर्ण कुंचन रोग को भी बढ़ावा देते है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत बाद इमिडाक्लोरोप्रिड या मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिडकाव कर देना चाहिए.
  2. इसके अलावा पौधों पर नीम के तेल या नीम के आर्क का छिडकाव करना भी लाभदायक होता है.

रिंग स्पॉट

पपीता के पौधों में यह रोग उसके फलों पर दिखाई देता है. जो विषाणु के माध्यम से पौधों में फैलता हैं. इस रोग के लगने से पपीता के फलों पर गहरे हरे धब्बे बन जाते हैं. और पौधे की पत्तियों का आकार छोटा दिखाई देने लगता है. इसके अलावा पौधे के तने पर पानी से भरे धब्बे बन जाते हैं. रोग के बढ़ने पर फलों का आकार छोटा और विकृत दिखाई देने लगता है. जिससे फल बेचने लायक भी नही बच पाते. पौधों में यह रोग सर्दी के मौसम में अधिक तेजी से फैलता है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर किसी तरह के कीट रोग को ना लगने दें. इसके लिए पौधों पर नीम आर्क या नीम के तेल का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा डाईमिथोएट की उचित मात्रा का छिडकाव भी पौधों के लिए लाभदायक होता है.
  2. रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर जाल लगाना चाहिए.
  3. इसके अलावा खेत के आसपास कद्दू वर्गीय फसलों को नही उगाना चाहिए.

चूर्णिल आसिता

पपीता के पौधों में इस रोग का प्रभाव फफूंद की वजह से दिखी देता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर सफ़ेद रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग बढ़ने से इन धब्बों का आकार बढ़ जाता है. और रोग ग्रस्त पौधों की पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर जमा हो जाता है. जिससे पौधे सूर्य का प्रकाश ग्रहण नही कर पाने की वजह से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देते हैं. जिससे उनका विकास रुक जाता है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत बाद उन पर घुलनशील सल्फर का छिडकाव करना चाहिए.
  2. इसके अलावा रोग ग्रस्त पत्तियों को तुरंत तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए.

सर्कोस्पोरा पर्ण चित्ती

पपीता के पौधों में सर्कोस्पोरा पर्ण चित्ती रोग कवक के माध्यम से फैलता है. पौधों पर इस रोग का प्रभाव उसकी पत्ती और फल दोनों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. और फलों पर धब्बों का रंग हल्का भूरा काला दिखाई देता है. रोग बढ़ने पर इन धब्बों का आकार बढ़ जाता है. जिससे फल ख़राब हो जाते हैं और पत्तियां पीली पड़कर गिर जाती हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिया रोग ग्रस्त पौधों पर मैंकोजेब या टाप्सीन एम की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत बाद कर देना चाहिए.
  2. इसके अलावा रोग ग्रस्त पौधों की पत्तियों और फलों को नष्ट कर देना चाहिए.

एन्थ्रेक्नोज

पपीता के पौधों में लगने वाले इस रोग को श्यामवर्ण के नाम से भी जाना जाता है. पपीता के पौधों में यह रोग फफूंद की वजह से फैलता है. पौधों में इस रोग का प्रभाव उनके फलों पर देखने को मिलता है. फलों पर यह रोग उनकी कच्ची अवस्था में लगता है. इस रोग के लगने से पर प्रारम्भ में फलों पर छोटे गोल जलीय धब्बे दिखाई देते हैं. रोग के बढ़ने पर इन धब्बों का आकार बढ़ जाता है. और उनका रंग हल्का गुलाबी और नारंगी दिखाई देने लगता है. धीरे धीरे फल सड़ने लगता है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैंकोजेब, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव रोग दिखाई देने के तुरंत बाद कर देना चाहिए.
  2. इसके अलावा शुरुआत में पौधों की रोपाई के दौरान उनके बीच उचित दूरी रखनी चाहिए.

लाल मकड़ी

पपीता के पौधों में यह रोग कीट की वजह से फैलता हैं. इस रोग के कीट आकार में काफी छोटे पाए जाते हैं. जो पौधे की पत्तियों पर एक समूह में बहुत अधिक संख्या में रहते हैं. और पत्तियों के संचरण तंत्र को प्रभावित करते है. जिससे पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है. और पत्तियां प्रकाश संस्लेषण की क्रिया करना बंद कर देती हैं. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है. रोग का प्रभाव अधिक बढ़ने पर पौधों पर फल नही बनते.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिडकाव करें .
  2. इसके अलावा डायमिथोएट या नीम के तेल का छिडकाव भी रोग की रोकथाम के लिए लाभदायक होता है.

ये पपीता के पौधों में लगने वाले प्रमुख रोग है. जिनकी रोकथाम सही समय पर ना की जाए तो इसकी पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता है. किसान भाई इन सभी रोगों की उचित समय पर पहचान करने के बाद इनकी रोकथाम कर अपनी फसल को खराब होने से बचा सकता है. जिससे उसे उसकी फसल से उचित उत्पादन प्राप्त होता है.

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