भारत दुनिया का सबसे बड़ा कृषि प्रधान देश है. यहाँ के ज्यादातर लोग आज भी कृषि पर ही आधारित है. भारत के आजाद होने के बाद देश को कृषि उत्पादों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए हरित क्रांति की शुरुआत की गई. और इस हरित क्रांति के दौरान ही सरकार की तरफ से खेतों से अधिक उत्पादन के रासायनिक उर्वरकों और दवाइयों के इस्तेमालकी बात कही गई.
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जिसके कारण शुरुआत में तो इसके इस्तेमाल से किसान भाइयों को अधिक पैदावार मिलने लगी. लेकिन लगातार इनके अधिक दोहन से जमीन ने अपनी उर्वरक शक्ति को खो दिया है. जिस कारण आज फसलों की पैदावार स्थिर हो चुकी है. और भूमि बंजर दिखाई देने लगी है. इन परिस्थितियों को देखते हुए भारत सरकार कृषि एवं सहकारिता विभाग द्वारा वर्ष 2015-16 में परम्परागत कृषि विकास योजना की शुरुआत की गई. जिसका जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के दिन अपने भाषण में भी किया है.
Paramparagat Krishi Vikas Yojana क्या है.
परम्परागत कृषि विकास योजना ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई योजना है. जिसके माध्यम से सरकार जमीन की उर्वरक शक्ति को बढाने पर ध्यान दे रही है. ताकि आने वाले समय में जीरो बज़ट खेती से किसान भाइयों की आय को बढ़ा सके. और उन्हें कम खर्च में अधिक उत्पादन मिल सके. इस योजना का लाभ कम और ज्यादा किसी भी तरह की भूमि रखने वाले किसान भाई उठा सकते हैं.
“परम्परागत कृषि विकास योजना खेती करने का एक पुराना तरीका है. जिसमें किसी भी तरह की रासायनिक चीजों के इस्तेमाल के बिना खेती की जाती है. जिससे जैविक खेती के नाम से भी जाना जाता है”. जैविक खेती कृषि की वो पद्धति है जिसके माध्यम से खेती करने पर पर्यावरण स्वस्थ रहता है. और प्राकृतिक संतुलन बना रहता है.
परम्परागत कृषि विकास योजना के उद्देश्य.
इस योजना के कई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष उद्देश्य है. जिनका मूल उद्देश्य भूमि की गुणवत्ता में सुधार लाकर उसकी उत्पादन क्षमता को बढ़ाना है.
- रासायनिक खाद और दवाइयों के इस्तेमाल को कम कर भूमि को प्रदूषित होने से बचाना.
- कम खर्च पर अधिक पैदावार प्राप्त करना जिससे जीरो बजट की खेती को बढ़ावा मिले.
- पर्यावरण संतुलन को बनाते हुए फसल से अधिक उत्पादन हासिल करना.
- कृषि को लाभकारी व्यवसाय बनाकर किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना.
- कृषि संबंधित निवेशों से किसान को आत्मनिर्भर बनाना.
परम्परागत कृषि विकास योजना का क्रियान्वयन कैसे किया जाता है.
- परम्परागत कृषि विकास योजना को शुरू करने के लिए आसपास के लगभग 50 किसानों का एक समूह ( कलस्टर ) बनाया जाता है. जिनके पास 50 एकड़ जमीन होती है.
- इस योजना के माध्यम से खेती करने वाले किसानों पर उनके जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण के खर्च के लिए भार नही डाला जाता.
- जैविक खेती करने वाले किसानों को फसल के बीज खरीदने और उसके उत्पाद को बाज़ार तक पहुँचाने के लिए हर किसान को तीन साल में 20 हज़ार रूपये प्रति एकड़ के हिसाब से दिए जाते हैं.
- इस योजना के माध्यम से परम्परागत संसाधनों का इस्तेमाल कर जैविक खेती को बढ़ावा देने के बारें में बताया जाता है और जैविक उत्पादों को बाज़ार से जोड़ा जाता है.
- इसके लिए किसानों को परम्परागत कृषि विकास योजना में ऑनलाईन पंजीकरण करवाना पड़ता है.
- किसानों को इस योजना के लाभ का भुगतान उनके बैंक खातों में सीधा सरकार द्वारा किया जाता है.
योजना का लाभ किस तरह मिलता है.
इस योजना का लाभ समूह ( कलस्टर ) में मौजूद किसान भाइयों को ही मिलता है. इसके लिए सरकार तीन साल में एक कलस्टर पर 14.35 लाख रूपये का खर्च करती है. सरकार द्वारा दी जाने वाली इस राशि का इस्तेमाल किसानों को जैविक खेती के बारे में बताने के लिए होने वाली बैठक, ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, एक्सपोजर विजिट, मृदा परीक्षण, ट्रेनिंग सत्र, ऑर्गेनिक खेती, लिक्विड बायोफर्टीलाइजर, लिक्विड बायो पेस्टीसाइड उपलब्ध कराने, नीम तेल, वर्मी कम्पोस्ट और कृषि यंत्र आदि उपलब्ध कराने में किया जाता है.
इसके अलावा इस योजना के माध्यम से वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन एवं उपयोग, पंच गव्य के उपयोग और उत्पादन पर प्रशिक्षण, बायोफर्टीलाइजर और बायोपेस्टीसाइड के बारे में प्रशिक्षण और जैविक खेती से पैदा होने वाले उत्पाद की पैकिंग और ट्रांसपोर्टेशन के लिए भी सहायता राशि दी जाती है.
योजना के कार्यों का सत्यापन और भुगतान की प्रक्रिया
- लाभार्थी किसान को इस योजना के लाभों का भुगतान RTGS या NEFT के माध्यम से सीधा उन्हें खातों में किया जायेगा.
- योजना में शामिल किसी भी एन.जी.ओ. को भुगतान उसके निर्धारित अनुबंधों के आधार पर कार्य के पूर्ण होने पर किया जाएगा.
- इस योजना के अंतर्गत हुए सभी कार्यों का सत्यापन 100 प्रतिशत कलस्टर के नोडल अधिकारी, 20 प्रतिशत उप कृषि निदेशक द्वारा किया जाएगा.
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