मटर की खेती दलहन फसल के रूप में की जाती है. इसके पौधे का तना खोखला होता है. इसकी खेती रबी फसलों के साथ की जाती है. मटर के बीजों को उगाने का सबसे उत्तम टाइम अक्टूबर का महीना माना जाता है. मटर के दानो का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता है. जिनमें इसके हरे कच्चे दानो का इस्तेमाल सब्जी और खाने में किये जाता है. इसके अलावा पके हुए दानो को सुखाकर उनसे कई तरह की खाने की चीजों को बनाने में किया जाता है.
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भारत में मटर की खेती मुख्य रूप से उत्तर भारत के मैदानी और पहाड़ी इलाकों में की जाती है. पहाड़ी इलाकों में इसकी खेती गर्मियों और पतझड़ के मौसम में की जाती है. मटर की खेती के लिए सर्दी का मौसम उपयुक्त माना जाता है. लेकिन सर्दियों में पड़ने वाला अधिक पाला इसकी फसल के लिए नुकसानदायक होता है. वर्तमान में मटर की काफी सारी उन्नत किस्में बाज़ार में मौजूद हैं. इन किस्मों का उचित चयन कर किसान भाई अच्छी पैदावार हासिल कर सकता है.
आज हम आपको मटर की उन्नत किस्मों और उनकी पैदावार के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है.
आर्केल
मटर की ये एक झुर्रीदार बीज वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे बौने दिखाई देते हैं. जिनकी लम्बाई एक से डेढ़ फिट के बीच पाई जाती है. इस किस्म के पौधे पर सफ़ेद रंग के फूल खिलते हैं. इसकी फलियों की सतह चमकीली और आकर्षक होती है. इसकी एक फली में औसतन 6 से 7 दाने पायें जाते हैं. जिनमें मिठास की मात्रा ज्यादा होती है. इस किस्म के पौधों से हरी फली के रूप में प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 10 से 13 टन तक पाई जाती है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 50 से 60 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं.
काशी शक्ति
मटर इस किस्म के पौधों की लम्बाई तीन फिट के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के पौधे की फलियों की लम्बाई 10 सेंटीमीटर के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के पौधों की हरी फली के रूप में पहली तुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 70 से 75 दिन बाद की जाती है. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 13 से 15 टन के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर कई तरह के जीवाणु जनित रोगों का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है.
पंत मटर 155
मटर की ये एक संकर किस्म है. जिसको पंत मटर 13 और डी डी आर- 27 के संकरण से तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे 130 दिन में पूर्ण रूप से पककर तैयार हो जाते हैं. जबकि हरी फलियों के रूप में पहली तुड़ाई के लिए बीज रोपाई के बाद 50 से 60 दिन का वक्त लेते हैं. इसके पौधों पर चूर्ण फफूंद और फली छेदक रोग का प्रकोप काफी कम देखने को मिलता है. इस किस्म के पौधों की हरी फलियों के रूप में प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 15 टन के आसपास पाया जाता है.
अर्ली बैजर
मटर की ये एक विदेशी किस्म है, जिसके पौधों की फलियों में बनने वाले बीज झुर्रीदार पाए जाते हैं. इस किस्म का पौधा बौना दिखाई देता है. जिसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 50 से 60 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों की प्रत्येक फलियों में औसतन 5 से 6 दाने पाए जाते हैं. इस किस्म पौधों से हरी फलियों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 टन के आसपास पाया जाता है.
आजाद मटर 1
मटर की इस किस्म को मध्यम समय में उत्तम पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे की फलियों की लम्बाई 10 सेंटीमीटर तक पाई जाती है. जिनमें 6 से 8 दाने पाए जाते हैं. इसकी फलियाँ गहरे हरे रंग की और मुड़ी हुई दिखाई देती हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 55 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 8 टन के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे पर कई तरह के जीवाणु जनित रोग देखने को नही मिलते.
काशी नंदिनी
मटर की ये एक अगेती पैदावार देने वाली किस्म है. जिसको वी आर पी 5 के नाम से भी जाना जाता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 50 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे की फलियां मुड़ी हुई होती हैं. जिनमें दानो की संख्या 7 से 8 तक पाई जाती है. इस किस्म के पौधे पर किट रोगों का प्रभाव कम देखने को मिलता है. इसके पौधों की लम्बाई डेढ़ फिट के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के पौधों पर जीवाणु जनित कुछ रोगों का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है.
पूसा प्रगति
मटर की इस किस्म के पौधे जल्दी पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. जिसके पौधे रोपाई के लगभग 60 दिन के आसपास पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे की फलियों में 8 से 10 तक दाने पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधों का हरी फली के रूप में प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 7 टन के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे में पाउडरी मिल्ड्यू रोग का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है.
जवाहर मटर 1
मटर की इस किस्म का निर्माण जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर द्वारा किया गया है. इस किस्म के पौधे सामान्य लम्बाई के पाए जाते हैं. इसकी फलियों में दानो की संख्या 8 से 9 तक पाई जाती है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 70 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 से 12 टन के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में चूर्णिल आसिता रोग का प्रकोप कम देखने को मिलता है.
काशी उदय
मटर की ये एक आगेती फसल के रूप में उगाई जाने वाली किस्म है. इस किस्म के पौधों की लम्बाई दो फिट के आसपास पाई जाती है. इसके पौधे रोपाई के लगभग 60 से 65 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जबकि फसल के उत्पादन के लिए इसके पौधे 120 दिन के आसपास का टाइम लेते हैं. इस किस्म के पौधों का कच्ची फलियों के रूप में प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 11 से 13 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में कई तरह के जीवाणु और कीट जनित रोगों का प्रभाव कम देखने को मिलता हैं.
लिंकन
मटर की इस किस्म को पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए तैयार किया गया है. मटर की इस किस्म के पौधे देरी से पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इसके पौधों की पहली तुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 80 से 90 दिन बाद की जाती है. इस किस्म के पौधों पर लगने वाली फलियों का रंग गहरा हरा और लम्बाई अधिक पाई जाती है. इसकी फलियाँ सिरे पर से हल्की मुड़ी हुई होती हैं. जिनमें 8 से 10 दानो की संख्या पाई जाती है. इसके दाने स्वाद में काफी मीठे होते हैं.
आजाद मटर 3
मटर की इस किस्म को कानपुर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे सामान्य लम्बाई के पाए जाते हैं. जबकि इसकी पत्तियों का आकार बड़ा होता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 65 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे की फलियों की लम्बाई ज्यादा पाई जाती है. इसकी एक फली में 8 से 11 तक की संख्या में मटर के दाने पाए जाते हैं.
जवाहर मटर
मटर की इस क़िस्म को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर ने तैयार किया है. इस किस्म के पौधे झाड़ीदार दिखाई देते हैं. जिनकी ऊंचाई दो से ढाई फिट तक पाई जाती है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 65 से 70 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों की फलियों की लम्बाई 8 सेंटीमीटर के आसपास पाई जाती है. इसके दाने फलियों में ठोस रूप में भरे होते हैं. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 12 टन के आसपास पाया जाता है.
टी 9
टी 9 मटर की मध्यम समय में पैदावार देने वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे की पहली तुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 60 दिन बाद की जाती है. जबकि इसकी फसल 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म के पौधों पर सफ़ेद फूल खिलते है. और इसकी फलियों का रंग हरा चमकीला पाया जाता है. इसके पौधों से हरी फलियों की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 10 टन के आसपास पाई जाती है.
एन पी 29
मटर की इस किस्म को अगेती पैदावार लेने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे 115 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों पर कई तरह के जीवाणु जनित रोग देखने को कम मिलते है. इस किस्म के पौधे से हरी फली के रूप में पहली पैदावार बीज रोपाई के लगभग 70 दिन बाद मिलती है. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 से 12 टन के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के दाने पकने के बाद झुर्रीदार दिखाई देते हैं.
अर्ली दिसंबर
मटर की ये एक संकर किस्म है, जिसको टा. 21 और अर्ली बैजर के संकरण से तैयार किया गया है. मटर की इस किस्म को अगेती पैदावार लेने के लिए उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 55 से 60 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे की फलियों का रंग गहरा हरा और लम्बाई 7 सेंटीमीटर के आसपास पाई जाती है. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 7 से 10 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर मृदा जनित रोगों का प्रभाव कम देखने को मिलता है.
काशी अगेती
इस किस्म के पौधे मध्यम समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इसके पौधों की लम्बाई दो फिट के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के पौधे पर लगने वाली फलियाँ सीधी और गहरी पाई जाती हैं. जिनकी पौधों से पहली तुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 50 दिन बाद की जाती है. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 टन के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर जीवाणु जनित रोगों का प्रभाव कम पाया जाता है.
टा 19
मटर की इस किस्म के पौधे मध्यम अवधि में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 70 दिन बाद हरी फलियों के रूप में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जबकि फसल के पूर्ण उत्पादन के लिए 120 दिन के आसपास वक्त लेते हैं. इस किस्म के दाने हल्का हरापन लिए हुए सफ़ेद दिखाई देते हैं. इस किस्म के पौधों से हरी फली के रूप में प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 8 से 10 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में कई तरह की जीवाणु जनित रोगों का प्रभाव कम देखने को मिलता है.
बोनविले
मटर की ये एक दोहरी फलियों वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे माध्यम ऊंचाई के पाए जाते है. इसके दाने झुर्रीदार दिखाई देते हैं. इसके पौधे रोपाई के लगभग 55 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधे की फलियाँ हल्के हरे रंग में 9 सेंटीमीटर तक की लम्बाई में पाई जाती हैं. इसकी किस्म के कच्चे दाने स्वाद में मीठे पाए जाते हैं. इसकी फसल पूर्ण रूप से पककर तैयार होने में 90 से 110 दिन का वक्त लेती हैं. इस किस्म के पौधों का कच्ची फलियों के रूप में प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 से 12 टन के बीच पाया जाता है.
असौजी
मटर की इस किस्म की पैदावार अगेती किस्म के रूप में की जाती है. जिसके पौधे बौने आकार के पाए जाते हैं. इसके पौधे पर पाई जाने वाली फलियाँ दोनों तरफ से नुकीली और लम्बी दिखाई देती हैं. इसकी प्रत्येक फलियों में 6 के आसपास दाने पाए जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 9 से 10 टन के बीच पाया जाता है. हरी फलियों के रूप में इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं.
मटर की ये वो उन्नत किस्में हैं जिन्हें सम्पूर्ण भारत में अलग अलग तरह की भूमि में उगाया जाता है. इनके अलावा कुछ और किस्में हैं जिन्हें किसान भाई छोटे पैमाने पर उगाते हैं. जिनमें पंत मटर- 42, उत्तरा, अलंकार, जे पी- 885, अंबिका और इंद्रा जैसी कुछ क्षेत्रीय किस्में शामिल हैं.
Kashi sakti seed lena hi
Beej mangwane ke liya kya karna hoga