आलू की उन्नत किस्में और उनकी पैदावार

आलू एक कंदवर्गीय सब्जी फसल है. जिसको लगभग सम्पूर्ण भारत में उगाया जाता है. आलू का इस्तेमाल मुख्य रूप से सब्जी में किया जाता है. आलू को लगभग सभी तरह की सब्जियों के साथ बनाया जा सकता है. आलू के उत्पादन में भारत का विश्व भर में तीसरा स्थान है. सब्जियों के अलावा आलू का इस्तेमाल चिप्स और फ़ास्ट फूड बनाने में भी किया जाता है. आलू का इस्तेमाल शरीर के लिए लाभदायक और नुकसानदायक दोनों ही होता है. आलू के अंदर पानी और स्टार्च की मात्रा अधिक पाई जाती है. इस कारण इसके अधिक इस्तेमाल से शरीर में चर्बी बढ़ जाती है. आलू की खेती अगर उन्नत किस्मों का चयन कर सही समय पर की जाए तो काफी लाभकारी होती है. वर्तमान में बाज़ार में काफी उन्नत किस्में मौजूद हैं. जिनको अलग अलग मौसम में उगाया जाता है.

आलू की उन्नत किस्में

आज हम आपको आलू की कुछ मुख्य किस्मों के बारे में बताने वाले हैं जिन्हे उगाकर किसान भाई अच्छी उपज हासिल कर सकता है.

कुफरी संतुलज

आलू की इस किस्म को पठारी और नदी तटीय भूमि में उगाने के लिए तैयार किया गया है. आलू की इस किस्म के कंद रोपाई के लगभग 70 से 80 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25  से 30 तन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर कर तरह के जीवाणु जनित रोगों का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है.

कुफरी जवाहर

आलू की ये एक संकर किस्म है, जिसको जे एच – 222 के नाम से भी जाना  जाता है. इस किस्म के पौधों को मध्य समय में अधिक उत्पादन देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 90 से 110 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25 से 30 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में झुलसा रोग देखने को नही मिलता.

लेडी रोसैट्टा

आलू की ये भी एक माध्यम समय में उत्तम पैदावार देने वाली किस्म है. जिसको गुजरात और पंजाब में अधिक उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. इसके पौधों पर कई तरह के कीट और जीवाणु रोगों का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 120 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 67 टन तक पाया जाता है.

कुफरी चंद्रमुखी

आलू की इस किस्म को अगेती फसल के रूप में उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग तीन महीने बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 20 से 25 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के कंद अंडाकार और सफ़ेद रंग के पाए जाते हैं. इसके कंदों पर पछेती अंगमारी रोग का प्रभाव अधिक देखने को मिलता है. इसलिए इसे अगेती पैदावार के रूप में ही उगाना चाहिए.

जी 2524

आलू की ये एक संकर किस्म है, जिसको कुफरी नवताल के नाम से भी जाना जाता है. आलू की इस किस्म को अगेती फसल के रूप में उगाया जाता है. इसके पौधे रोपाई के लगभग 80 से 90 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 20 से 25 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म को मैदानी और पर्वतीय दोनों जगहों पर आसानी से उगाया जा सकता है. इसके कंद बाहर से सफ़ेद, अंडाकार दिखाई देते हैं. जबकि अंदर से इनका गुदा हल्का पीलापन लिए होता है.

जे. ऍफ़. 5106

आलू की ये एक संकर किस्म है. जिसको उत्तर भारत में अधिक उगाया जाता है. इस किस्म के कंद लम्बे, सफ़ेद और आकर्षक दिखाई देते हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 70 से 75 दिन बाद पैदावार देना शुरु कर देते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25 से 28 टन के बीच पाया है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. जिन पर कई तरह के रोगों का प्रभाव देखने को नही मिलता.

ई – 4,486

आलू की इस किस्म को देरी से पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 130 से 140 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार होते हैं. आलू की इस किस्म को उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, गुजरात, बिहार और मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा उगाया जाता है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25 से 30 टन के बीच पाया जाता है.

कुफरी देवा

आलू की ये एक संकर किस्म है, जिसको पछेती पैदावार लेने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे सर्दियों में पड़ने वाले पाले को भी सहन कर लेते हैं. इसके कंद अंडाकार और गुलाबी सफ़ेद रंग के पाए जाते हैं. इसके कंदों का भंडारण अधिक समय तक किया जाता है. क्योंकि इसके कंद काफी कम सड़ते हैं. इसके पौधे रोपाई के लगभग 120 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 30 से 40 टन के बीच पाया जाता है.

ई 3792

आलू की इस किस्म को खरीफ और रबी दोनों तरह की पैदावार लेने के लिए तैयार किया गया है. आलू की इस किस्म को कुफरी बहार के नाम से भी जाना जाता है. रबी के मौसम में रोपाई के दौरान इसके पौधे 90 से 100 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस दौरान इनकी रोपाई अगेती पैदावार के रूप में की जाती है. जबकि खरीफ के मौसम में इसके पौधे रोपाई के लगभग 120 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार होते हैं. इस किस्म के कंदों का रंग बाहर से सफ़ेद दिखाई देता है. इनका स्वाद फीका पाया जाता है.

कुफरी ज्योति

आलू की इस किस्म को मुख्य रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में उगाने के लिए तैयार किया गया है. लेकिन इसकी रोपाई मैदानी भागों में भी जा सकती हैं. मैदानी भागों में इसके कंद बहुत जल्दी तैयार हो जाते हैं. इस कारण देरी होने पर कंद फट जाते हैं. मैदानी भागों में इसकी खुदाई कंद रोपाई के 70 से 80 दिन बाद कर लेनी चाहिए. जबकि पर्वतीय भागों में इसके कंद रोपाई के लगभग 120 से 130 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार होते हैं. इस किस्म के कंद अंडाकार और उथली आँखों वाले होते हैं. जो बाहर से सफ़ेद दिखाई देते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 15 से 20 टन के बीच पाया जाता है.

कुफरी अशोक (पी जे- 376)

आलू की ये एक संकर किस्म है. जिसको अगेती पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. आलू की इस किस्म को गंगा नदी के आसपास वाले मैदानी क्षेत्रों में अधिक उगाया जाता है. इस किस्म के पौधों में कई तरह के रोग दिखाई नही देते. इसके कंद गोलाकार और सफ़ेद पाए जाते हैं. जो रोपाई के लगभग 70 से 80 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25 टन के आसपास पाया जाता है.

कुफरी लालिमा

आलू की ये एक संकर किस्म है जिसको जल्दी पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग तीन महीने बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके कंद गोलाकार गुलाबी रंग के दिखाई देते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 30 टन के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर अगेती झुलसा रोग का प्रभाव बहुत कम देखने को मिलता है.

कुफरी स्वर्ण

आलू की इस किस्म को पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के कंद सफ़ेद रंग के दिखाई देते हैं. जिनको जायद और खरीफ दोनों मौसम में आसानी से उगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधों पर निमाटोड और झुलसा रोग देखने को नही मिलता. इसके पौधे रोपाई के लगभग 95 से 100 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 30 टन के आसपास पाया जाता है.

कुफरी बादशाह

आलू की इस किस्म को देरी से पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 120 से 130 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 25 से 30 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर अगेती और पछेती दोनों अंगमारी रोग का प्रभाव देखने को नही मिलता है. इसके कंद बड़े आकार वाले और सफ़ेद रंग के होते हैं. जिनका स्वाद फीका पाया जाता है.

जे ई एक्स सी – 166

आलू की इस किस्म के पौधे मध्य समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. जो रोपाई के लगभग 90 दिन के आसपास खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 30 टन से भी ज्यादा पाया जाता है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. जिन पर कई तरह के जीवाणु जनित रोगों का प्रकोप काफी कम देखने को मिलता है.

कुफरी सिंदूरी

आलू की इस किस्म को पछेती पैदावार लेने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के 120 से 130 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके कंदों का रंग रंग गुलाबी और आँखे गहरी पाई जाती हैं. इसके कंद आकार के सामान्य आकार के गोल दिखाई देते हैं. जिनका गुदा सफ़ेद दिखाई देता है. इस किस्म के पौधों की ऊचाई सामान्य पाई जाती हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 35 टन के आसपास पाया जाता है.

कुफरी पुष्कर

आलू की इस किस्म को रेतीली भूमि में जायद के मौसम में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 100 से 110 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 30 से 35 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर अगेती और पछेती झुलसा रोगों का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है.

कुफरी लीमा

आलू की इस किस्म को अगेती पैदावार के रूप में उगाने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 80 से 90 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 20 से 25 टन के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में माइट रोग का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है. इसके कंद सफ़ेद क्रीमी रंग के दिखाई देते हैं, जिनका आकार अंडाकार पाया जाता है.

कुफरी सूर्या

आलू की इस किस्म को शुष्क प्रदेशों में जल्दी खुदाई के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 70 से 80 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके पौधों में पछेती झुलसा और माईट रोग का प्रभाव देखने को नही मिलता. इसके पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 30 टन के आसपास पाया जाता है.

कुफरी चिप्सोना 1

आलू की इस किस्म को मध्य समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधों पर पछेती झुलसा का रोग देखने को नही मिलता. इस किस्म के कंद सब्जी के रूप में अधिक उपयोग में लिए जाते हैं. इसके कंद सामान्य मोटाई में अंडाकार दिखाई देते हैं. जिनका रंग सफ़ेद दिखाई देता है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 90 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

कुफरी हिमसोना

आलू की इस किस्म के पौधे मध्यम देरी से पककर तैयार होते हैं. इसके पौधे कंद रोपाई के लगभग 110 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के पौधों पर पछेती झुलसा रोग का प्रभाव देखने को नही मिलता. आलू की इस किस्म के कंद चिप्स बनाने के लिए अधिक उपयोग में लिए जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 35 टन के आसपास पाया जाता है.

कुफरी चिप्सोना 3

आलू की इस किस्म को मध्यम समय में पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 90 से 100 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 35 टन से ज्यादा पाया जाता है. इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं. जिन पर पछेती झुलसा रोग का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है. इसके कंदों का आकार काफी बड़ा पाया जाता है. जिनका इस्तेमाल चिप्स और फ्लैक्स बनाने में अधिक किया जाता है.

कुफरी फ्राईसोना

आलू की इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 100 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 30 टन के आसपास पाया जाता है. इसके कंद गोलाकार दिखाई देते हैं. जिनमें मिठास बहुत कम पाया जाता है. इसके कंदों का इस्तेमाल फ्रेंच फ्राई के रूप में अधिक किया जाता है. इसके पौधों पर पछेती झुलसा रोग का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है.

आलू की ये वो उन्नत किस्में हैं जिन्हें लगभग सभी जगह उगाया जाता है. इनके अलावा और भी कुछ किस्में हैं. जिन्हें किसान भाई क्षेत्रीय हिसाब से अलग अलग समय पर अधिक उत्पादन लेने के लिए उगाते हैं.

Leave a Comment