मूली की खेती कंद वाली सब्जी फसल के रूप में की जाती है. सब्जी के अलावा इसका इस्तेमाल सलाद के रूप में बड़े पैमाने पर किया जाता हैं. मूली की खेती को किसानों के लिए फायदे की खेती माना जाता हैं. इसकी खेती से किसानों को कम लागत में अधिक पैदावार प्राप्त होती हैं. मूली को कच्चे रूप में खाना ज्यादा लाभकारी होता है. इसके खाने से पेट संबंधित कई तरह के रोगों से छुटकारा मिलता हैं.
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मूली की खेती किसान भाई सहफसली खेती के रूप में भी कर सकते हैं. जिसमें किसान भाई मूली को गेहूं, सरसों, गन्ना, जो और मेथी के साथ उगाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं. मूली की खेती करने वाले किसान भाई एक मौसम में ही इसकी आसानी से दो बार पैदावार ले सकते हैं. क्योंकि इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग दो महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं.
इसकी खेती के लिए ठंडी और आद्र जलवायु सबसे उपयुक्त होती हैं. मूली के अच्छे उत्पादन के लिए सर्दी का मौसम सबसे उपयुक्त होता है. ठंड के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान सामान्य होना चाहिए. मुली को बलुई दोमट मिट्टी में उगाना सबसे उपयुक्त होता हैं. भारत में पर्वतीय भागों के अलावा इसकी खेती लगभग सभी जगहों पर की जा सकती हैं.
अगर आप भी इसकी खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
मूली की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली हल्की रेतीली भूमि की आवश्यकता होती है. मूली की खेती पथरीली और कठोर भूमि में नही करनी चाहिए. इस तरह की भूमि में इसके पौधे विकास नही कर पाते. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
मूली की खेती के लिए ठंडी जलवायु सबसे उपयुक्त होती है. भारत में इसकी खेती विभिन्न जगहों पर अलग अलग मौसम के आधार पर की जाती हैं. इसके पौधे सर्दियों के दौरान पड़ने वाले पाले को भी सहन कर सकते हैं. गर्मियों का मौसम इसकी खेती के प्रति अनुकूल नही होता.
मूली के बीजों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. पौधों के अंकुरित होने के बाद उनके विकास के लिए 10 से 15 डिग्री का तापमान उपयुक्त माना जाता है. लेकिन इसके पौधे अधिकतम 25 और न्यूनतम 4 डिग्री तापमान पर भी आसानी से विकास कर लेते हैं. अधिकतम तापमान 25 डिग्री से ज्यादा बढ़ता है तो इसके फलों (कंदों) की गुणवत्ता में कमी देखने को मिलती हैं.
उन्नत किस्में
मूली कई तरह की देशी और विदेशी उन्नत किस्में बाज़ार में उपलब्ध हैं. जिनको अधिक उत्पादन लेने के लिए तैयार किया गया है.
जापानी सफ़ेद
मूली की इस किस्म के कंद बिलकुल सफ़ेद रंग के होते हैं. जिनकी लम्बाई एक फिट के आसपास पाई जाती है. इस किस्म की जड़ें स्वाद में कम तीखी होती हैं. जो बीज रोपाई के लगभग 50 से 60 दिन बाद पककर तैयार हो जाती हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 250 से 300 क्विंटल तक पाया जाता हैं.
रेपिड रेड व्हाइट टिप्ड
मूली की इस किस्म के पौधे बहुत तेज़ी से विकास करते हैं. जिनका रंग लाल और सफ़ेद होता है. इस किस्म के पौधे बहुत जल्द पककर तैयार हो जाते हैं. इसकी जड़ें छोटे आकार की होती हैं. जो 25 से 30 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं. इस किस्म के पौधों की पैदावार एक मौसम में कई बार की जा सकती है.
हिसार न. 1
मूली की ये एक उन्नत किस्म है. जिसको उत्तर भारत में मैदानी राज्यों में अधिक उगाया जाता है. इस किस्म के पौधों की जड़े सीधी और लम्बाई वाली होती हैं. जिनके मूल का बाहरी छिलका चिकना और सफ़ेद दिखाई देता है. जिनका स्वाद मीठापन लिए बहुत कम तीखा होता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 50 से 55 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 250 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.
पूसा हिमानी
मूली की ये एक अधिक पैदावार देने वाली किस्म है. जिसके कंद बीज रोपाई के लगभग दो महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 300 से 350 क्विंटल तक पाया जाता है. इस किस्म के कंद एक फिट के आसपास लम्बाई के होते हैं. जिनका स्वाद तीखा होता है. इस किस्म के बीज अधिक ठंडे मौसम में भी आसानी से उग जाते हैं.
पूसा चेतकी
मूली की इस किस्म के पौधों अधिक तापमान पर भी कम तीखे होते हैं. इस कारण इसे सर्दियों के अलावा हल्की गर्मी और बारिश के मौसम में भी उगाया जा सकता है. सर्दी में इसके कंद मुलायम और बहुत कम तीखे होते हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 40 से 50 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 250 से 280 क्विंटल तक पाया जाता है.
पंजाब पसंद
पंजाब पसंद मूली की एक जल्द पककर तैयार होने वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 45 से 50 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म को सर्दी और बरसात दोनों मौसम में उगाया जा सकता है. इसकी जड़ों की लम्बाई 18 से 25 सेंटीमीटर तक पाई जाती हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 250 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.
व्हाईट आइसीकिल
इस किस्म के पौधों की जड़ें कम लम्बाई वाली और मुलायम होती है. जिनका रंग सफ़ेद दिखाई देता है. इस किस्म के पौधे सर्दियों में बुवाई के लिए ही उपयुक्त होते हैं. मूली की इस किस्म के पौधे भी एक मौसम में कई बार पैदावार दे सकते हैं. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 30 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं.
इनके अलावा और भी कई किस्में हैं जिनको भारत के विभिन्न राज्यों में अलग अलग समय पर उगाया जाता है. जिनमें पूसा चेतकी, जौनपुरी मूली, के एन- 1, पूसा देशी, सकुरा जमा, पूसा रेशमी, व्हाईट लौंग, पंजाब अगेती, स्कारलेट ग्लोब और फ्रेंच ब्रेकफास्ट जैसी कई उन्नत किस्में शामिल हैं.
खेत की तैयारी
मूली की खेती के लिए खेत की तैयारी के दौरान शुरुआत में खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को हटाकर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से अच्छे से जुताई कर दें. उसके बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद को डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें. इसके लिए खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर दें.
खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद पानी चलाकर खेत का पलेव कर दें. पलेव करने के तीन से चार दिन बाद जब मिट्टी हल्की सूखने लगे तब खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना ले. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बना दें. मूली के बीजों की रोपाई किसान भाई समतल भूमि में और मेड़ो पर करते है. इसलिए मेड पर खेत के लिए खेत में एक से डेढ़ फिट की दूरी पर मेड तैयार कर लें.
बीज की मात्रा और उपचार
मूली की खेती में बीज की मात्रा उसकी जड़ों की लम्बाई के आधार पर निर्धारित होती है. लम्बी जड़ वाली किस्मों के बीजों की रोपाई के दौरान प्रति हेक्टेयर 8 से 10 किलो बीज काफी होता है. जबकि छोटी जड़ वाली किस्मों की रोपाई के दौरान 10 से 12 किलो बीज की जरूरत होती है. इसके बीजों को खेत में लगाने से पहले उन्हें गोमूत्र से उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि अंकुरण के वक्त पौधों में किसी भी तरह का रोग देखने को ना मिले.
बीज रोपाई का तरीका और टाइम
मूली के बीजों की रोपाई समतल भूमि में और मेड बनाकर की जाती है. समतल भूमि में इसके बीजों की रोपाई ड्रिल के माध्यम से की जाती है. ड्रिल के माध्यम से रोपाई के दौरान इसके बीजों को पंक्तियों में 5 सेंटीमीटर के आसपास दूरी रखते हुए उगाते हैं. मुली की रोपाई के दौरान इन पंक्तियों के बीच एक फिट के आसपास दूरी होनी चाहिए.
मेड पर रोपाई के दौरान इसके बीजों को हाथ में माध्यम से लगाया जाता है. मेड पर इसके बीजों को 5 सेंटीमीटर की दूरी पर ही लगाया जाता है. जबकि कुछ छोटे किसान भाई इसकी रोपाई छिडकाव विधि से भी करते हैं. छिडकाव विधि से रोपाई के दौरान इसके बीजों को समतल भूमि में छिड़का देते हैं. उसके बाद कल्टीवेटर के पीछे हल्का पाटा बांधकर खेत की दो बार हलकी जुताई कर देते हैं. जिससे बीज 3 से 5 सेंटीमीटर नीचे चला जाता है. मूली के बीजों को हमेशा 3 सेंटीमीटर के आसपास गहराई में उगाना अच्छा होता है.
मूली के बीजों की रोपाई वैसे तो पूरे साल भर की जा सकती है. लेकिन आर्थिक रूप से अच्छी पैदावार लेने के लिए इसकी खेती सर्दियों में मौसम में सितम्बर से लेकर जनवरी माह के आखिर तक की जाती है. इस दौरान इसकी खेती से किसान भाई दो बार आसानी से उपज ले सकते हैं.
पौधों की सिंचाई
मूली के पौधों को सिंचाई की सामान्य जरूरत होती है. इसके बीजों की रोपाई नम भूमि में की जाती है. इस कारण बीज रोपाई के तुरंत बाद पानी की जरूरत नही होती. लेकिन जो किसान भाई सूखी भूमि में इसकी रोपाई करते हैं. उन्हें बीज रोपाई के तुरंत बाद पानी दे देना चाहिए. उसके बाद जब इसके बीज अच्छे से अंकुरित हो जाये तब तक हल्की सिंचाई करनी चाहिए.
लेकिन जब इसके पौधों की जड़ें कुछ मोटाई की हो जाये तब पानी की मात्रा कम कर देनी चाहिए. जिससे जड़ें अधिक लम्बाई की बनती है. और जब जड़ों का आकर अच्छा दिखाई देने लगे तब पौधों की सिंचाई की दर बढ़ा देनी चाहिए. बारिश या गर्मी के मौसम में इसकी पैदावार के दौरान सप्ताह में दो से तीन बार पौधों को पानी देना अच्छा होता है.
उर्वरक की मात्रा
मूली के पौधों को उर्वरक की ज्यादा जरूरत होती है. क्योंकि इसके पौधे तेज़ी से विकास करते हैं. इसके लिए पौधों को पर्याप्त मात्रा में उर्वरक की आवश्यकता होती है. इसकी खेती के लिए खेत की तैयारी के वक्त जैविक खाद के रूप में लगभग 15 गाडी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला दें.
जैविक खाद के अलावा रासायनिक खाद के रूप में 100 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो सुपर फास्फेट और 100 किलो पोटाश की मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की आखिरी जुताई के वक्त खेत में छिड़क दें. इसके अलावा लगभग 20 से 25 किलो यूरिया की मात्रा बीज रोपाई के लगभग एक महीने बाद पौधों की जड़ों में देना चाहिए. इस दौरान उर्वरक पौधों की पत्तियों पर नही पड़ना चाहिए. इसलिए ड्रिंच विधि से पौधों की जड़ों में खाद डालना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
मूली की खेती में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीकों से किया जाता है. रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमिथालिन की उचित मात्रा का छिडकाव बीज रोपाई के तुरंत बाद कर देना चाहिए. इससे खेत में खरपतवार जन्म नही ले पाती और जो जन्म लेती हैं उनकी मात्रा काफी कम होती है.
प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके पौधों की नीलाई गुड़ाई की जाती है. इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए दो गुड़ाई काफी होती है. जिनमे पहली गुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 15 से 20 दिन बाद कर देनी चाहिए. और दूसरी गुड़ाई पहली गुड़ाई के 10 से 15 दिन बाद करनी चाहिए. प्रत्येक गुड़ाई के दौरान पौधों की जड़ों को नुक्सान ना पहुंचे इसके लिए दोनों गुड़ाई हल्के रूप में करनी चाहिए. और गुड़ाई के दौरान जड़ों पर हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए.
पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
मूली के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनकी उचित वक्त रहते रोकथाम नहीं कर पाने से पैदावार को काफी नुक्सान पहुँचता है.
माहू
मूली के पौधों में माहू का रोग मौसम परिवर्तन के दौरान देखने को ज्यादा मिलता है. इस रोग के कीट बहुत छोटे आकार के होते हैं. जो पौधे की पत्तियों पर समूह बनाकर उनका रस चूसते हैं. इनके रस चूसने की वजह से पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता हैं. और फलों की गुणवत्ता में कमी देखने को मिलती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैलाथियान की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
बालदार सुंडी
मूली के पौधों में बालदार सुंडी का रोग किसी भी अवस्था में देखने को मिल सकता हैं. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों को खाकर उनको नुक्सान पहुँचाते हैं. इनके खाने से पौधे की पत्तियां छलनी की तरह दिखाई देने लगती हैं. जिससे पौधों को भोजन ना मिल पाने के कारण वो विकास करना बंद कर देते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर क्विनालफॉस या सर्फ के घोल का छिडकाव करना चाहिए.
झुलसा
मूली के पौधों में झुलसा रोग जनवरी से मार्च के महीने में अधिक देखने को मिलता है. इस रोग के लगने की वजह से पौधों की पत्तियों पर गहरे काले रंग के धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं. जिनका आकार रोग बढ़ने की स्थिति में बढ़ जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैन्कोजेब या कैप्टन दवा की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
काली भुंडी का रोग
मूली के पौधों पर काली भुंडी का रोग एक कीट जनित रोग हैं. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों को काटकर खा जाते हैं. जिससे पत्तियों में बड़े आकार के छिद्र दिखाई देने लगते हैं. जिससे पौधों को भोजन नही मिल पाता हैं. जिससे उनका विकास रुक जाता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैलाथियान की उचित मात्रा का छिडकाव 10 से 12 दिन के अंतराल में दो से तीन बार करना चाहिए.
पौधों की खुदाई
मूली की लम्बी जड़ों वाले पौधे लगभग दो महीने में खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जबकि छोटी जड़ों वाले पौधे एक महीने में खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस दौरान मूली के आकार को देखकर उनकी खुदाई किसान भाई कर सकते हैं. इसकी खुदाई के दौरान इसकी जड़ों का नरम और कोमल होना जरूरी है. इसकी खुदाई 10 से 15 दिन में पूरी हो जाती हैं. इसकी जड़ों की खुदाई के बाद उन्हें अच्छे से साफ़ कर बाज़ार में बेचने के लिए भेज देनी चाहिए.
पैदावार और लाभ
मूली की विभिन्न किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 250 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. जो पौधे की उचित देखभाल कर बढ़ाई भी जा सकती हैं. जिनका बाज़ार भाव लगभग 5 रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता हैं. और इस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से सवा लाख तक की कमाई आसानी से कर सकता हैं.