बेल वाली फसलों की खेती जायद के मौसम में की जाती है. जिन्हें लतादार और बेल वाली फसलों के नाम से भी जाना जाता है. इन फसलों की खेती कम समय की होती है. और इनकी खेती से किसान भाइयों को अच्छा लाभ प्राप्त होता है. बेल वाली फसलों में लौकी, पेठा, करेला, खीर, ककड़ी, टिंडा, मटर, खरबूज जैसी और भी कई फसलें आती हैं.
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लतादार फसलों में रोग लगने की संभावना अधिक पाई जाती हैं. इन फसल में रोग लगने पर पौधों से पैदावार कम प्राप्त होती हैं. जिसकी वजह से किसान भाइयों को कभी कभी नुक्सान भी उठाना पड़ जाता है. लता वाली फसलों में लगने वाले ज्यादातर रोग एक जैसे ही होते हैं. जिनकी रोकथाम करना काफी आसान होता है.
आज हम आपको बेल वाली फसलों में लगने वाले सामान्य रोग और उनकी रोकथाम के बारें में बताने वाले हैं.
लाल भृंग कीट रोग
लतादार फसलों में लाल भृंग कीट रोग काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता हैं. इस रोग के कीट पौधे को जमीन के अंदर और बाहर दोनों जगहों पर नुक्सान पहुँचाते हैं. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों और फलों को काटकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं. जबकि इसके छोटे कीट और सुंडी जो जमीन के अंदर पाई जाती हैं. वो पौधों की जड़ों की काटकर उन्हें नुकसान पहुँचाती हैं. पौधों पर ये रोग सामान्यत उनके विकास के दौरान ही देखने को मिलता है.
रोकथाम – बेल वाली फसलों में इस रोग की रोकथाम के लिए कार्बारिल 50 डब्ल्यू पी की 150 ग्राम मात्रा को 100 लीटर पानी में अच्छे से मिलाकर 10 दिन के अन्तराल में दो से तीन बार छिडकाव कर दें. इसके अलावा डेढ़ किलो कार्बोफ्यूरान की मात्रा को पौधों की गुड़ाई के वक्त जमीन में मिला दें. या फिर क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. की ढाई लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के वक्त पानी में मिलकर दें.
सफेद मक्खी
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बेल वाली फसलों में सफ़ेद मक्खी कीट रोग का प्रभाव होने से पैदावार काफी कम प्राप्त होती है. इस रोग के कीट पौधों की पत्तियों की नीचे की सतह पर रहकर पत्तियों का रस चुस्ती है. जिससे पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लता है. और कुछ दिन बाद पत्तियां टूटकर गिर जाती है. जिससे पौधे को भोजन पर्याप्त मात्रा में नही मिल पता.
रोकथाम :- सफ़ेद मक्खी रोग की रोकथाम के लिए एन्डोसल्फान 35 ई.सी. की 200 मिलीलीटर मात्रा को 100 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकाव कर दें. इसके अलावा इमिडाक्लोप्रिड की उचित मात्रा का छिडकाव भी किसान भाई कर सकते हैं.
चेपा
चेपा का रोग लगभग सभी लतादार फसलों में देखने को मिलता है. इस रोग के कीट बहुत छोटे आकार के होते हैं. जो पौधों पर एक समूह के रूप में रहकर आक्रमण करते हैं. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों के साथ साथ पौधों के बाकी कोमल भागों का रस चूसकर उनकी वृद्धि को रोक देते हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है.
रोकथाम – पौधों पर इस रोग के दिखाई देने पर डाइमेथोएट 30 ई.सी. की 200 मिलीलीटर मात्रा को 100 लीटर पानी में मिलकर उसका छिडकाव पौधों पर करना चाहिए. इसके अलावा इमिडाक्लोप्रिड या क्विनलफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव करना भी लाभदायक होता है.
फल मक्खी
फल मक्खी का रोग लतादार फसलों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाता है. इस रोग के कीट फलों की सतह पर अंडे देते हैं. और अंडे देते वक्त ये फलों की सतह में छेद कर देते हैं. इनके अंडों से पैदा होने वाला लार्वा फलों में जाकर उनके गुदे को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाता हैं. जिससे फल जल्द खराब होकर गिर जाता हैं. इस रोग के बढ़ने से पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता हैं.
रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एन्डोसल्फान 35 ई.सी. की आधा लीटर मात्रा को 100 लीटर पानी में मिलाकर 12 दिन के अंतराल में तीन बार छिडकाव कर दें. इसके अलावा रोग लगे फल को हटाकर खेत से बहार मिट्टी की गहराई में दबा दें.
मृदुरोमिल आसिता
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बेल वाली फसलों में पाए जाने वाले इस रोग को तुलासिता और डाउनी मिल्ड्यू के नाम से भी जानते हैं. इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों की ऊपरी सतह पर चिकने पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. और पत्तियों की निचली सतह पर धब्बों के नीचे रुई के रेशों की तरह फफूंद दिखाई देती हैं. जिससे पत्तियों की निचली सतह पर भूरे बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं. रोग बढ़ने पर पौधे की पत्तियां सूखने लगती है. और कुछ दिनों बाद पूरी बेल ही सूखकर नष्ट हो जाती है.
रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए बीजों की रोपाई से पहले उन्हें कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए. जबकि खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर मैंकोजेब की 200 ग्राम मात्रा को 100 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर 10 दिन के अंतराल में तीन बार छिड़क देना चाहिए. इसके अलावा जिनेब या क्लोरोथैलोनिल की उचित मात्रा का छिडकाव भी रोग की रोकथाम के लिए लाभदायक होता है.
चूर्णिल आसिता
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लतादार फसलों में लगने वाले इस रोग को भभूतिया और छाछया रोग के नाम से भी जाना जाता है. जायद की फसलों में लगने वाला ये रोग फफूंद की वजह से फैलता हैं. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. उसके बाद रोग बढ़ने की अवस्था में रोग ग्रस्त पौधे की सभी पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर दिखाई देता हैं. इस रोग से ग्रसित सम्पूर्ण पौधे की पत्तियों की उपरी सतह पर सफ़ेद पाउडर दिखाई देनें लगता है. जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देता हैं.
रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर शुरुआत में रोग दिखाई देने पर कैराथेन की 100 ग्राम मात्रा को 100 लीटर पानी में मिलाकर 10 से 12 दिन के अंतराल में तीन बार छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा अधिक रोगग्रस्त पौधों को जड़ से उखाड़कर खेत से बहार निकालकर नष्ट कर दें. ताकि रोग अन्य पौधों तक ना फैल पाए.
उखठा रोग
कद्दूवर्गीय फसलों में उखठा रोग फफूंद की वजह से लगता है. जिसका प्रभाव टिंडे की फसल में सबसे ज्यादा देखने को मिलता हैं. इस रोग की फफूंद मिट्टी में जन्म लेती हैं. जिसका प्रभाव बढ़ने पर बेल सिरे से धीरे धीरे सूखने लगती है. ज्यादातर फसलों में ये रोग मिट्टी में नमी के बढ़ने की वजह से फैलता हैं. इस रोग के लगने से पौधों की पैदावार को काफी नुक्सान पहुँचता है.
रोकथाम – किसी भी बेल वाली फसल को इस रोग से बचाने के लिए शुरुआत में बीजों की रोपाई के वक्त उन्हें कार्बनडाजिम की उचित मात्रा से उपचारित करना लाभदायक होता है. जबकि खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों की जड़ों में कार्बनडाजिम की 200 ग्राम मात्र को 100 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए.
श्याम वर्ण
लतादार फसलों में श्याम वर्ण का रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों पर शुरुआत में हल्के काले धब्बे दिखाई देते हैं. पौधों पर रोग बढ़ने की अवस्था में धब्बों का रंग गहरा कला भूरा दिखाई देने लगता हैं. जिससे पत्तियां सड़कर गिरने लगती हैं. जिसका असर पौधों की पैदावार पर भी देखने को मिलता हैं.
रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैंकोजेब की 200 ग्राम मात्रा को 100 लीटर पानी में अच्छे से मिलकर 10 दिन के अंतराल में तीन बार छिड़कना चाहिए.
karela ka phal pila hona aur adhik phal ka na lagna ah kaun se rog ke karan hai aur eske roktham ka upay bataye
karaile ki kheti
Chandar Sain