बेबी कॉर्न की खेती कैसे करें – Baby Corn Farming

बेबी कॉर्न मक्के के बिना दाने वाले कच्चे भुट्टे को बोला जाता है. जिसको सिल्क आने के एक से तीन दिन के अंदर तोड़कर पौधे से अलग कर लिया जाता है. वर्तमान में भारत में इसकी खेती को लेकर किसान काफी जागरूक हर हुए हैं. बेबी कॉर्न की साल में तीन से चार फसलें आसानी से ली जा सकती है. इसकी खेती में काफी कम लागत लगती हैं. और अधिक मुनाफा किसान भाइयों को मिलता हैं.

बेबी कॉर्न की खेती

बेबी कॉर्न को स्वादिष्ट पौष्टिक आहार माना जाता है. बेबी कॉर्न का इस्तेमाल खाने में सब्जी के रूप में किया जाता है. सब्जी के अलावा भी इसका कई तरीके से खाने में इस्तेमाल किया जाता है. बेबी कॉर्न से कैन्डी, मुरब्बा, हलवा, आचार, बर्फी, जैम, खीर, लड्डू, भुजिया, रायता, सूप, पकौड़ा, सलाद और कोफ़्ता जैसी काफी चीजें बनाई जाती है.

इसकी खेती अलग अलग मौसम के आधार पर कम और ज्यादा समय में पककर तैयार होती है. इसके पौधे गर्मी के मौसम में बहुत जल्द पैदावार देने लगते हैं. इसके पौधों को विकास करने के लिए अधिक बारिश की भी जरूरत नही होती. इसकी खेती से पशुओं को हरा चारा पूरे साल भर मिलता रहता है. बेबी कॉर्न की खेती भारत के सभी मैदानी भागों में की जाती है.

अगर आप भी बेबी कॉर्न की खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

बेबी कॉर्न की खेती के लिए भूमि की जल धारण क्षमता अच्छी होनी चाहिए. इसकी खेती के लिए हल्की बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. अधिक अम्लीय और क्षारीय मिट्टी में इसकी पैदावार काफी कम प्राप्त होती है. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 7 के आसपास होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

बेबी कॉर्न की खेती के लिए शुष्क और आद्र मौसम सबसे उपयुक्त होता है. इसके पौधे गर्मियों के मौसम में अच्छे से विकास करते हैं. जबकि सर्दियों के मौसम में इसके पौधे बहुत धीमी गति से विकास करते हैं. सर्दियों में अधिक वक्त तक पड़ने वाला पाला इसकी खेती के लिए लाभदायक नही होता. इसकी अच्छी पैदावार के लिए सामान्य बारिश का होना अच्छा होता है.

बेबी कॉर्न की खेती के लिए सामान्य तापमान सबसे उपयुक्त होती है. इसके बीजों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान होना चाहिए. बीजों के अंकुरित होने के बाद बेबी कॉर्न के पौधों को विकास करने के लिए 25 से 30 डिग्री के बीच तापमान की जरूरत होती है. लेकिन इसका पौधा न्यूनतम 10 डिग्री तापमान पर भी विकास कर सकता है.

उन्नत किस्में

बेबी कॉर्न की कई तरह की उन्नत किस्में हैं. जिनको साल में अलग अलग मौसम में अधिक और जल्द उत्पादन देने के लिए तैयार किया गया हैं.

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बेबी कॉर्न उत्पादन के लिए इस किस्म को सबसे उत्तम माना जाता है. इस किस्म को साल के तीनों मौसम में उगा सकते हैं. इस किस्म के पौधे गर्मी के मौसम में बीज रोपाई के लगभग दो महीने बाद ही पैदावार देना शुरू कर देते हैं. जिनका उत्पादन 20 से 25 क्विंटल तक पाया जाता है. हरियाणा में इस किस्म को सबसे ज्यादा उगाया जाता है. इसके पौधों से 200 से 300 क्विंटल तक हरा चारा प्राप्त होता हैं.

प्रकाश

इस किस्म के पौधों को साल में तीन बार किसान भाई उगा सकते हैं. जिसके लिए देखभाल ज्यादा करनी पड़ती हैं. इस किस्म के पौधों की प्रति हेक्टेयर पैदावार 15 से 20 क्विंटल तक पाई जाती हैं. इसके पौधे की ऊंचाई सामान्य पाई जाती है. जिनसे औसतन 250 क्विंटल तक हरा चारा भी किसान भाइयों को प्राप्त होता है.

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बेबी कॉर्न की ये एक एकल संकर किस्म हैं. इस किस्म के पौधे लम्बे और मजबूत होते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 20 क्विंटल से ज्यादा पाया जाता है. जबकि इसके पौधों से 200 से 300 क्विंटल तक हरा चारा प्राप्त होता है. इस किस्म के पौधे अनुकूल मौसम में लगभग दो महीने बाद ही पैदावार देना शुरू कर देते हैं.

गंगा 11

गंगा 11 को पछेती किस्म के रूप में उगाया जाता हैं. इस किस्म को आचार्य एन जी रंगा कृषि विश्वविद्यालय, हैदराबाद द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म का उत्पादन ज्यादातर दक्षिणी भारत में किया जाता है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 20 से 25 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे सामान्य लम्बाई के और मजबूत पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग दो से ढाई महीने में पैदावार देना शुरू कर देते हैं.

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उन्नत किस्म

बेबी कॉर्न की इस किस्म की खेती सभी मौसम में कर सकते है. इस किस्म के पौधों की लम्बाई सामान्य पाई जाती हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 से 70 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 20 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. जबकि इसके पौधों से 200 से 250 क्विंटल तक हरा चारा पशुओं को प्राप्त होता हैं.

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बेबी कॉर्न की ये जल्द तैयार होने वाली किस्म हैं. जिसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 50 से 60 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 18 क्विंटल के आसपास पाया जाता हैं. इस किस्म के पौधों को उत्तर भारत में अधिक मात्रा में उगाया जाता हैं.

खेत की तैयारी

बेबी कॉर्न की खेती के लिए खेतों की तैयारी बीज रोपाई से लगभग 25 से 30 दिन पहले की जाती हैं. इस दौरान शुरुआत में खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दें. उसके बाद खेत में उचित मात्रा में जैविक खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन बार तिरछी जुताई कर दें.

जैविक खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी चलाकर खेत का पलेव कर दें. पलेव करने के तीन से चार दिन बाद जब मिट्टी हल्की सूखने लगे तब खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना ले. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बना दें, बेबी कॉर्न की खेती किसान भाई समतल भूमि में कर सकते हैं. लेकिन अच्छी पैदावार लेने के लिए इसकी खेती मेड के माध्यम से करनी चाहिए.

बीज की मात्रा और उपचार

समतल भूमि में प्रति हेक्टेयर बेबी कॉर्न की खेती के लिए लगभग 30 किलो बीज की मात्रा काफी होती है. जबकि मेड पर उगाने के लिए 20 से 25 किलो के आसपास बीज की जरूरत होती हैं. इसके बीजों को खेतों में उगाने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि बीजों के अंकुरण के वक्त उन्हें किसी तरह के रोग का सामना ना करना पड़ें. बीज को उपचारित करने के लिए बाविस्टीन या कैप्टन कीटनाशक की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए. बीज को उपचारित करने के बाद उन्हें छायादार जगहों में सूखा देना चाहिए. और जब बीज अच्छे से सूख जाए तब उन्हें खेत में लगा देना चाहिए.

बीज रोपाई का तरीका और टाइम

बेबी कॉर्न की खेती में इसके बीजों की रोपाई समतल और मेड दोनों पर करते वक्त उन्हें दो से तीन इंच की गहराई में उचित दूरी रखते हुए उगाना चाहिए. समतल भूमि में इसके बीजों की रोपाई ड्रिल के माध्यम से की जाती हैं. ड्रिल के माध्यम से इसके बीजों की रोपाई पंक्तियों में की जाती हैं. इस दौरान इन पंक्तियों के बीच लगभग दो फिट के आसपास दूरी होनी चाहिए. और पंक्तियों में पौधों के बीच आधा फिट के आसपास दूरी होनी चाहिए.

रोपाई का तरीका

मेड पर इनकी रोपाई के दौरान मेड से मेड के बीच दो से ढाई फिट की दूरी रखते हुए उगाते हैं. जबकि मेड पर प्रत्येक पौधों के बीच 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी बनाकर रखते हैं. मेड पर इनकी रोपाई ज्यादातर दक्षिण भारत के राज्यों में की जाती हैं.

बेबी कॉर्न की वर्तमान में काफी किस्में बाज़ार में मौजूद हैं. जिनको किसान भाई सभी मौसम में आसानी से उगा सकते हैं. दक्षिण भारत में इसके बीजों की रोपाई साल में किसी भी समय पर कर सकते हैं. जबकि उत्तर भारत में इसकी रोपाई दिसम्बर और जनवरी माह को छोड़कर बाकी सभी माह में की जा सकती हैं. लेकिन अच्छे उत्पादन के लिए इसके पौधों की रोपाई गर्मियों के दौरान फरवरी माह में की जानी चाहिए.

पौधों की सिंचाई

बेबी कॉर्न की खेती के लिए इसके बीजों की रोपाई नम भूमि में की जाती है. इसके पौधों को सिंचाई की जरूरत मौसम के आधार पर होती हैं. अन्य सभी मौसम की अपेक्षा गर्मियों में इसके पौधों को अधिक पानी की जरूरत होती हैं. गर्मियों के मौसम में इसके पौधों की सप्ताह में एक बार सिंचाई जरुर कर देनी चाहिए. जबकि सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. सर्दियों के मौसम में पाला पड़ने के दौरान पौधों की हल्की सिंचाई करने से पाले का प्रभाव कम हो जाता है. बारिश के मौसम में इसके पौधों को आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए.

उर्वरक की मात्रा

बेबी कॉर्न की अच्छी पैदावार के लिए इसके पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व मिट्टी की जांच करवाकर ही देना चाहिए. इससे पौधे भी अच्छे से विकास करते हैं और पैदावार भी अच्छी प्राप्त होती हैं. जबकि सामान्य रूप से उर्वरक के इस्तेमाल के लिए खेत की तैयारी के वक्त लगभग 15 से 17 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें.

रासायनिक खाद के रूप में खेत की आखिरी जुताई के वक्त लगभग 60 किलो नाइट्रोजन, 25 किलो फास्फोरस और 25 किलो पोटाश की मात्रा का छिडकाव खेत में कर देना चाहिए. इसके अलावा लगभग 10 किलो जींक का छिडकाव खेत की आखिरी जुताई के वक्त कर दें. इससे पौधे तेज़ी से विकास करते हैं. इन सभी के अलावा लगभग 25 किलो यूरिया की मात्रा का छिडकाव पौधों के विकास और भुट्टा बनने के दौरान करना चाहिए. इससे अधिक मात्रा में पैदावार प्राप्त होती हैं.

खरपतवार नियंत्रण

बेबी कॉर्न की खेती में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक तरीके से किया जाता है. रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए बीजों की रोपाई के तुरंत बाद खेत में एट्राजिन की उचित मात्रा का छिडकाव कर देना चाहिए. इससे जन्म लेने वाली खरपतवार अंकुरित होने के साथ ही नष्ट हो जाती है.

जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई के माध्यम से किया जाता हैं. खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके पौधों की पहली नीलाई गुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 20 से 22 दिन बाद कर देनी चाहिए. बेबी कॉर्न के पौधों की दो से तीन गुड़ाई काफी होती हैं. पहली गुड़ाई के बाद बाकी की गुड़ाई 15 से 20 दिन के अंतराल में कर देनी चाहिए.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

बेबी कॉर्न के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं, जो इसके पौधों को नुक्सान पहुँचाकर इसकी पैदावार को प्रभावित करते हैं. इन रोगों के प्रति उचित देखभाल कर पौधों को रोग ग्रस्त होने से बचाया जा सकता हैं.

पर्ण अंगमारी

बेबी कॉर्न के पौधों में लगने वाला पर्ण अंगमारी का रोग जीवाणु जनित रोग हैं. इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों पर छोटे गोल या अंडाकार आकृति के धब्बे बन जाते हैं. जिनका रंग भूरा कत्थई जैसा दिखाई देता हैं. रोग के प्रभाव बढ़ने से पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर ज़िनेम की उचित मात्रा का छिडकाव 10 दिन के अंतराल में करना चाहिए.

डाउनी मिल्डयू

डाउनी मिल्डयू रोग लगा पौधा

बेबी कॉर्न के पौधों में डाउनी मिल्डयू का रोग पौधों के विकसित होने के बाद दिखाई देता हैं. इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियां पर पीले रंग की धारियां दिखाई देती हैं. जो धीरे धीरे भूरे रंग की हो जाती हैं. इस रोग के लगने पर पौधे को भोजन ना मिल पाने के कारण वो विकास करना बंद कर देता है. जिसका असर पैदावार पर देखने को मिलता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एप्रोन 35 डब्ल्यू. एस. का छिडकाव करना चाहिए.

तना छेदक

बेबी कॉर्न के पौधों में ताना छेदक का प्रभाव अधिक देखने को मिलता हैं. इस रोग के कीट पौधों की पत्तियों के साथ साथ उसके तने को खाकर पौधे को नुकसान पहुँचाते हैं. जिससे पौधे को भोजन की मात्रा पूर्ण रूप से नही मिल पाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए कार्बोफ्यूरान या क्लोरोपाइरीफास की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

भूरी चित्ती

भूरी चित्ती का रोग पौधों में पोटाश की कमी की वजह से देखने को मिलता हैं. इस रोग के लगने से पौधों पर हल्के पीले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. जो रोग बढ़ने पर बढ़ जाते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डाइथेन एम 45 की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

फसल की तुड़ाई

बेबी कॉर्न की तुड़ाई भुट्टा (गुल्ली) निकलने के तुरंत बाद एक से तीन दिन में बीज बनने से पहले तोड़ लेना चाहिए. इसके भुट्टे को तोड़ने के बाद उसकी पत्तियों को नही हटाना चाहिए. इससे पैदावार जल्दी खराब हो जाती हैं. इसलिए इसको बाज़ार में बेचने के वक्त ही उतारना चाहिए. इसके पौधों की दो से तीन बार तुड़ाई की जाती हैं.

पैदावार और लाभ

बेबी कॉर्न की खेती किसानों के लिए बहुत ही लाभदायक बनती जा रही हैं. क्योंकि इसकी खेती से किसान कम लागत में अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं. इसकी विभिन्न किस्मों की औसतन पैदावार 18 से 20 क्विंटल तक पाई जाती हैं. जिसका बाज़ार भाव 5 हज़ार रूपये प्रति क्विंटल से भी ज्यादा पाया जाता हैं. इसकी खेती से औसतन 250 क्विंटल हरा चारा भी प्राप्त होता हैं. जिसका बाज़ार भाव 200 से 300 क्विंटल तक पाया जाता हैं. इस हिसाब से किसान भाई एक बार में बेबी कॉर्न की एक हेक्टेयर खेती से एक से दो लाख तक की कमाई आसानी से कर सकते हैं.

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