लगातार बढ़ रहे हर्बल और आयुर्वेदिक चीजों के व्यापार की वजह से किसान भाई अब औषधीय फसलों की खेती करने लगे हैं. औषधीय फसलों की खेती से किसान भाइयों को कम खर्च पर अधिक लाभ मिलता हैं. औषधीय फसलों के रूप में अश्वगंधा, सर्पगंधा, आंवला, सफेद मूसली, अकरकारा, एलोवेरा, रतनजोत, स्टीविया, नींबू घास और शतावर जैसी और भी कई फसलों की खेती की जाती हैं. जिनका इस्तेमाल औषधियों के साथ साथ सौंदर्य प्रसाधन की चीजों को बनाने में भी किया जाता हैं.
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औषधिय फसलों की खेती में किसान भाइयों को पौधों की देखभाल अधिक करनी पड़ती हैं. जिस कारण इनकी खेती में ज्यादा मेहनत करने की आवश्यकता होती हैं. अगर सही समय पर औषधीय पौधों की देखभाल और सुरक्षा नही की जाए तो इनकी फसल बहुत जल्द ही रोग ग्रस्त हो जाती हैं. जिससे फसल की पैदावार को काफी नुक्सान पहुँचता हैं.
आज हम आपको औषधीय फसलों में लगने वाले कुछ सामान्य रोग और उनकी रोकथाम के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
आर्द्र पतन
औषधीय पौधों में आर्द्र पतन रोग का प्रभाव पौधों के अंकुरण के समय देखने को ज्यादा मिलता हैं. इस रोग के लगने की वजह जल भराव और गर्म मौसम होता है. गर्म मौसम में जलभराव की वजह से ये रोग अधिक पनपता हैं. इस रोग से प्रभावित बीजों का अंकुरण नही हो पाता. और अगर रोग अंकुरण के बाद लगता हैं तो अंकुरित हुआ पौधा मुरझाकर नष्ट हो जाता है. जिससे पौधे अंकुरित होने से पहले ही नष्ट हो जाते हैं.
रोकथाम – आर्द्र पतन रोग की रोकथाम के लिए बीज, पौधे और कंद को खेत में लगाने से पहले ट्राइकोडर्मा विरिडी या ब्युवेरिया बेसीयाना की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए. इसके अलावा खेत में अंकुरण के वक्त जल भराव नही होना चाहिए.
जड़ सड़न
औषधीय पौधों में ये रोग फफूंद की वजह से फैलता हैं. जड़ सड़न रोग को विल्ट रोग के नाम से भी जाना जाता हैं. औषधीय फसलों में ये रोग काफी ज्यादा देखने को मिलता हैं. फसलों में ये रोग खेत में अधिक समय तक जल भराव बने रहने की वजह से भी फैलता हैं. इस रोग के लगने से पौधा शुरुआत में मुरझाने लगता हैं. जिसके कुछ दिन बाद पौधा सूखकर पूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है. फसल में इस रोग का प्रभाव बढ़ने पर उसकी पैदावार काफी कम प्राप्त होती हैं.
रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में पौधों पर रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेंकोजेब और बाविस्टीनकी उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा फसल की रोपाई से पहले बोर्डो मिश्रण का इस्तेमाल किसान भाई खेत की जुताई के वक्त मिट्टी के शोधन के रूप में कर सकते हैं. जिससे इस रोग का प्रभाव कम हो जाता हैं.
उखटा
उख्टा रोग को म्लानि के नाम से भी जाना जाता हैं. औषधीय पौधों में लगने वाला यह एक मृदा जनित रोग हैं. जिसका प्रभाव पौधों पर किसी भी अवस्था में देखने को मिल सकता हैं. इस रोग के लगने से पौधे की जड़ों का रंग काला दिखाई देने लगता हैं. रोग बढ़ने की स्थिति में शुरुआत में पौधों की पत्तियां मुरझाने लगती हैं. जिसके कुछ दिनों बाद पत्तियां सूखकर नष्ट होने लगती हैं. फसल में रोग के बढ़ने का असर पौधों की पैदावार पर अधिक पड़ता हैं. इस रोग की वजह से कभी कभी सम्पूर्ण फसल भी नष्ट हो जाती हैं.
रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए फसल की रोपाई से पहले कई तरह के उपाय किये जाते हैं.
- फसल चक्र का इस्तेमाल कर फसलों को अदल बदल कर उगाना चाहिए.
- खेत की तैयारी के वक्त खेत की गहरी जुताई कर तेज़ धूप लगने के लिए खेत को खुला छोड़ दें.
- मुख्य फसल के साथ अंतवर्ती फसलों को उगाना चाहिए.
- बीजों को उपचारित कर खेत में लगाना चाहिए. इसके लिए बाविस्टीन या कैप्टान जैसी दावा का इस्तेमाल करना चाहिए.
- खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर बोर्डो मिश्रण का छिडकाव पौधों की जड़ों में करना चाहिए.
- खेत की जुताई के वक्त खेत में जैविक खाद के साथ नीम की खली का छिडकाव खेतों में करना चाहिए.
पत्रलांक्षण रोग
औषधीय पौधों में पत्रलांक्षण रोग काफी ज्यादा नुकसान पहुँचाता हैं. सफेद मूसली, तुलसी, सर्पगंधा और इसबगोल जैसी फसलों में ये रोग सबसे ज्यादा दिखाई देता हैं. इस रोग की शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर अलग अलग आकार के धब्बे बनने लगते हैं. उसके बाद रोग के बढ़ने की स्थिति में पौधों की पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं. जिससे पौधों का विकास रुक जाता हैं.
रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में बीजों के चुनाव के वक्त अच्छी गुणवत्ता वाले स्वस्थ बीज या कंदों का चयन करना चाहिए. और जब रोग खड़ी फसल में दिखाई दे तो इस स्थति में पौधों पर नीम के तेल या नीम के काढ़े की उचित मात्रा का छिडकाव रोग ग्रस्त पौधों पर दो से तीन बार 10 दिन के अंतराल में करना चाहिए.
चूर्णी फफूंद
औषधीय पौधों में चूर्णी फफूंद का रोग नीचे से ऊपर की तरफ बढ़ता हैं. पौधों पर ये रोग अंकुरित होने के बाद किसी भी अवस्था में दिखाई दे सकता हैं. इस रोग के लगने से पौधे की पत्ती और तने पर सफ़ेद रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. इन धब्बों का आकर छोटा और रोयेदार दिखाई देता हैं. रोग बढ़ने पर इन धब्बों का आकार बढ़ जाता है और रंग धूसर काला दिखाई देने लगता हैं.
रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम का तेल, ट्राईक्योर या नीम के काढ़े की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
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