खेती के साथ साथ कई तरह के काम हैं जिन्हें मनुष्य सामान्य तौर पर कई सालों से करता आ रहा है. लेकिन तकनीकी के इस दौर में मनुष्य ने सामान्य रूप से खेती के साथ होने वाले इन कामों को व्यवसाय का रूप दे दिया है. आज पशु पालन के रूप में लोग गाय, भैंस, बकरी जैसे जीवों का पालन कर अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं. इसके अलावा मुर्गी पालन का काम भी काफी तेज़ी से बढ़ रहा हैं. इन सभी के अलावा भेड़ पालन का काम भी एक बहुत ही तेज़ी से विकास करने वाला व्यवसाय बन चुका है. आज भेद पालन से भारत से भारत की काफी जनता जुड़ी हुई है. आज हम आपको भेड़ पालन से संबंधित हर प्रकार की जानकारी देने वाले हैं.
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भेड़ पालन का काम काफी पुराना है. दुनियाभर के लगभग सभी देशों में भेड़ पालन का काम किया जाता हैं. जिनमें से भारत तीसरे नंबर पर सबसे ज्यादा भेड़ों का पालन करने वाला देश हैं. भारत के कई राज्यों में भेड़ों के पालन का काम किया जाता है. भेड़ हर तरह से उपयोगी होती हैं. भेड़ का पालन मुख्य रूप से माँस और उन के लिए किया जाता हैं. भेड़ हर परिस्थिति में रह सकती हैं. यही वजह है की भेड़ पालन का काम भारत में तेज़ सर्दी पड़ने वाले जम्मू कश्मीर से लेकर तेज़ चिलचिलाती धूप वाली तेज़ गर्मी के प्रदेश राजस्थान में आसानी से किया जाता है. लेकिन अधिक गर्मी और सर्दी में इनकी मृत्यु दर बढ़ जाती है.
भेड़ पालन का व्यवसाय दिनों दिन बढ़ता जा रहा है. आज उन्नत तरीकों को अपना कर भेड़ पालन किया जा रहा हैं. जिससे लोगों की कमाई अच्छी हो रही हैं. आज किसान भाई भी भेड़ पालन का काम खेती के साथ साथ कर सकता हैं. क्योंकि भेड़ ज्यादातर जंगली घास या खरपतवार खाकर ही अपना विकास करती हैं. जिस कारण इनके पालन और देखभाल के लिए अधिक खर्च की जरूरत नही होती. लेकिन भेड़ पालन के लिए कई तरह की सावधानियां रखनी पड़ती हैं. जिससे भेड़ पालन का कारोबार सुचारू रूप से चल पाता है.
भेड़ पालन कैसे शुरू करें?
भेड़ पालन शुरू करने से पहले कई तरह की सावधानियां रखनी जरूरी होती हैं. भेड़ पालन शुरू करने के लिए पहले भेड़ पालन संबंधित हर प्रकार की जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए. ताकि व्यवसाय को शुरू करने में किसी तरह की परेशानी का सामना ना करना पड़े. भेड़ पालन शुरू करने से पहले सरकारी योजनाओं के बारें में भी पता कर लें क्यों आज काफी ऐसे व्यवसाय है जिनको शुरू करने के लिए सरकार की तरफ से कई सारी मूलभूत सुविधा दी जाती हैं. ऐसे में अगर आप इस व्यवसाय को शुरू करना चाहते हैं तो आपको व्यवसाय को शुरू करने में सहायता मिल जाती है.
भेड़ पालन का व्यवसाय दो या तीन जानवरों के साथ भी किया जा सकता हैं. लेकिन अधिक मुनाफा कमाने के लिए भेड़ पालन का व्यवसाय बड़े पैमाने पर करना चाहिए. जिसमें लगभग 50 से 60 भेड़ें शामिल होनी चाहिए. लेकिन इससे भी बड़े पैमाने पर करने के लिए भेड़ों को संख्या का निर्धारण नही किया जा सकता. इन्हें आप अपनी राशि और क्षमता के आधार पर रख सकते हैं.
भेड़ पालन हेतु आवश्यक चीजें
किसी भी व्यवसाय की शुरुआत के लिए कई चीजों की जरूरत होती है. जिनके बिना व्यवसाय को शुरू नही किया जा सकता. उसी तरह भेड़ पालन के लिए भी कुछ मूलभूत चीजों की जरूरत होती हैं.
जमीन
किसी भी व्यवसाय को शुरू करने के लिए जमीन की जरूरत सबसे पहले होती है. भेड़ पालन के दौरान छोटे स्तर पर किसान भाई इसे अपने घर पर ही आसानी से कर सकते हैं. लेकिन बड़े पैमाने पर करने के लिए अलग से जमीन की जरूरत होती है. बड़े पैमाने पर करने के लिए पशुओं के रहने, खाने और पानी जैसे सभी मूलभूत सुविधाओं की जरूरत होती है. बड़े स्तर पर भेड़ पालन के दौरान पशुओं को खुले स्थान की भी जरूरत होती है. भेड़ पालन के दौरान एक भेड़ के विकास के लिए अधिकतम दस वर्ग फिट की आवश्यकता होती है. इसलिए भेड़ों की संख्या के आधार पर जमीन का चयन करना चाहिए.
चारागाहों का विकास करना
अगर आप पूर्ण रूप से एक स्थान पर जीवों को रखकर उनका पालन करना चाहते हैं तो इसके लिए आपको पशुओं के खाने के लिए चरागाहों की स्थापना करनी चाहिए. जिसमें जिसमे हरे चारे के रूप में कई तरह की फसलों को उगाया जाता है. जिससे पशुओं को चारा आसानी से मिल जाता है. चारागाहों के निर्माण के दौरान उनके चारों तरफ कंटीले तारों को लगा देना चाहिए. ताकि पशु चारागाह से बाहर ना जा सके और बाहर का जीव अंदर ना आ सके.
पशुओं के रहने का स्थान
भेड़ पालन के दौरान सभी पशुओं को एक साथ रखा जा सकता हैं. क्योंकि इन जीवों में आपस में लड़ने की प्रवृति नही पाई जाती है. ये सभी जीव आपस में मिलकर रह सकते हैं. इनके रहने के लिए लिए एक बाड़े की जरूरत होती हैं. लेकिन नर पशु और गर्भित भेड़ को अलग से रखने की व्यवस्था की जाती हैं. सामान्य रूप से बाड़े का निर्माण करने के दौरान उसका निर्माण मौसम के आधार पर किया जाता है.
गर्मियों के मौसम बाड़ा चारों तरह से खुला होना चाहिए. इसके बाड़े का निर्माण करते वक्त गर्मियों में बाड़े की छत कच्ची घासफूस और कागज के गत्तों से बनी होनी चाहिए. क्योंकि कच्ची छत के नीचे पशुओं को गर्मियों में तेज़ धूप का अनुभव नही होता. और पशु आसानी से रहा सकते हैं. जबकि सर्दी के मौसम में पशुओं को रात्रि में रहने के लिए बंद कमरे की आवश्यकता होती है. सर्दी के मौसम में भेड़ों में मृत्यु दर ज्यादा पाई जाती है. इसके लिए सर्दियों में भेड़ों को बंद कमरे में उचित तापमान पर रखना चाहिए. तापमान नियंत्रित करने के लिए बिजली चालित हीटर को अलग से से लगा दें.
नर पशु के रहने का स्थान
भेड़ के नर पशु को अलग से रखा जाता हैं. ताकि उसे उचित मात्रा में खाना दिया जा सके इसके अलावा उसकी अच्छे से देखभाल की जा सके. क्योंकि 30 मादा पशु पर केवल एक ही नर पशु रखा जाता हैं. जिसको पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व दिया जाना जरूरी होता हैं. इसके अलावा नर पशु में हल्की हिंसक प्रवर्ती भी पाई जाती है. नर पशु के रहने के लिए अधिकतम 15 वर्गफीट की जगह काफी होती हैं.
गर्भित पशु के लिए
गर्भित पशु के अलग से रहने की जगह का होना जरूरी होता है. क्योंकि गर्भावस्था में पशु को किसी भी कारण चोट लगने की वजह से नुक्सान उठाना पड़ सकता है. एक जगह पर तीन से चार गर्भित भेड़ों को आसानी से रखा जा सकता हैं. जिनके लिए अधिकतम 25 से 30 वर्गफीट की दूरी की जरूरत होती हैं. जिसमें गर्भित अवस्था में भेड़ अच्छे से घूम सके. भेड़ों में गर्भधारण की समयावधि 5 महीने के आसपास पाई जाती है. इसलिए उन गर्भित भेड़ों को ही अलग से रखना चाहिए, जो तीन या चार महीने से ज्यादा वक्त की हो जाती हैं.
पशुओं के लिए खाना
पशुओं के उचित विकास के लिए उन्हें खाने की उचित मात्रा की जरूरत होती है. वैसे तो भेड़ों को सामान्य रूप से चराहों में या खुले स्थान पर चराया जाता है. जिसके लिए पशुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेकर घूमना होता है. भेड़ों को चराहों में सुबह और शाम के वक्त ही चराना चाहिए. और दोपहर के वक्त आराम करना चाहिए. गर्मियों के मौसम में पशुओं को चराने के वक्त सुबह सात से दस बजे तक खुले में चराना चाहिए. उसके बाद शाम के वक्त तीन बजे के बाद चराना चाहिए.
वहीं बात करें सर्दियों के मौसम की तो सर्दियों के मौसम में पशुओं को खुले में चराने के दौरान मौसम में अधिक ठंड नही होना चाहिए. सर्दियों के मौसम में पशुओं को धूप के मौसम में ही खुलें के चराना चाहिए. जबकि जिन पशुओं को बाहर खुलें में नही चराया जाता उन्हें घर पर रखकर ही उचित भोजन दिया जाना चाहिए. जिसमें चारे के अलावा पशुओं को उचित मात्रा में दाना भी दिया जाता हैं. जिनमें प्रत्येक गर्भित और नर पशु को रोज़ाना 300 ग्राम से ज्यादा दाना देना चाहिए.
पशु पालन हेतु श्रमिक
भेड़ों के पालन के दौरान उनकी देखभाल के लिए श्रमिकों की जरूरत होती है. छोटे पैमाने पर इनका पालन करने के दौरान श्रमिकों की आवश्यकता नही होती. लेकिन बड़े पैमाने पर इनका पालन करने के दौरान लगभग 100 पशुओं पर दो श्रमिकों का रहना जरूरी होता है. जो पशुओं को बाहर चराहों में चारा खिलाने और उनकी देखभाल का काम करता है. ग्रामीण एरिया में श्रमिक कम खर्च पर आसानी से मिल जाते हैं. अगर हो सके तो ऐसे श्रमिक का इंतज़ाम करे जो पहले से इस व्यवसाय की जानकारी रखता हो. इससे भेड़ों के पालन में उसके अनुभव की काफी सहायता मिलेगी.
भेड़ पालन हेतु सरकारी सहायता
भेड़ पालन या किसी व्यवसाय को शुरू करने के लिए सबसे ज्यादा जरूरत धन राशि की होती हैं. जो बैंक या सरकार द्वारा प्राप्त सहायता के माध्यम से पालक लेता है. भेड़ पालन के लिए सरकार की तरफ से भी सहायता प्रदान की जाती है, जो अधिकतम एक लाख रूपये पर ही दी जाती है. जिसमें 90 प्रतिशत राशि किसान को ऋण के रूप में दी जाती है. जबकि बाकी की 10 प्रतिशत राशि खुद किसान को वहन करनी होती है. ऋण के रूप में दी जाने वाली 90 प्रतिशत राशि में से कुल राशि राशि के 50 प्रतिशत पर किसान को ब्याज नही देना होता है. यह राशि ऋण मुक्त होती है. जबकि बाकी बची 40 प्रतिशत राशि पर पालक को बैंक की तात्कालिक ब्याज दर पर ब्याज भुगतान करना होता है. ऋण मिलने के बाद ऋण की भुगतान की अवधि कुल 9 वर्ष रखी गई है. एक लाख से अधिक ऋण लेने पर 50 हजार राशि पर कृषक को ऋण नही देना होता. जबकि बाकी की राशि पर उसे बैंक की ब्याज दर के आधार पर ब्याज देना होता है.
भेड़ की उन्नत नस्लें
भेड़ की नस्लों का निर्धारण भेड़ों से प्राप्त होने वाली उन और माँस के आधार पर किया जाता हैं. जबकि कुछ ऐसे भी नस्लें हैं जो उन और माँस के साथ साथ दूध उत्पादन में भी सहायक होती हैं.
गद्दी
गद्दी नस्ल की भेड़ का पालन उन की प्राप्ति के लिए किया जाता है. इस नस्ल की भेड़ का पालन ज्यादातर उत्तर भारत के पर्वतीय प्रदेशों में किया जाता है. इस नस्ल के जीव सफ़ेद, भूरे लाल और भूरे काले रूप में पाए जाते हैं. जिनके शरीर से एक बार के एक से डेढ़ किलो तक बाल प्राप्त होते हैं. इस नस्ल के जीवों से साल में तीन बार बाल प्राप्त किये जा सकते हैं. इस नस्ल की मादाओं के सिरों पर सिंग बहुत कम पाए जाते हैं.
मगरा
इस नस्ल की भेड़ों का पालन उन और माँस दोनों के लिए किया जाता है. इस नस्ल की भेड़ पूरी तरह सफ़ेद रंग की पाई जाती हैं. जबकि इनकी आँख के चारों और हलके भूरे रंग की पट्टी पाई जाती हैं. यह आँख की पट्टी ही इस नसल की ख़ास पहचान है. इस नस्ल की ज्यादातर भेड़ें राजस्थान में मिलती हैं. इनसे मध्यम गुणवत्ता की सफ़ेद उन का निर्माण होता है. जो बहुत ज्यादा सफ़ेद और चमकीली पाई जाती है.
मालपुरा
मालपुरा भेड़ों का पालन मोटे रेशों की उन की प्राप्ति के लिए किया जाता हैं. इसके बालों का आकार मोटा पाया जाता हैं. इस नस्ल की भेड़ें राजस्थान के जयपुर, सवाई माधोपुर, भीलवाड़ा, अजमेर, टोंक और बूंदी जिले में ज्यादा पाली जाती हैं. इस नस्ल के पशु सामान्य ऊंचाई के होते हैं. जिनका चेहरा हल्का भूरा, लम्बी टाँगे और कानों का आकार छोटा दिखाई देता है.
कश्मीर मेरीनो
कश्मीर मेरीनो का निर्माण कई देशी प्रजातियों के संकरण से हुआ है. इस नस्ल की भेड़ से उन और माँस दोनों पर्याप्त मात्रा में मिलता हैं. इस नस्ल की एक भेड़ से सालाना तीन किलो या इससे ज्यादा उन प्राप्त की जा सकती है. इस नस्ल के पूर्ण रूप से तैयार एक पशु में 40 किलो के आसपास माँस पाया जाता है.
मारवाड़ी
मारवाड़ी नस्ल की भेड़ों को माँस उत्पादन के लिए अधिक पाला जाता है. इस नस्ल की भेड़ों का पालन ज्यादातर दक्षिण राजस्थान और गुजरात में किया जाता है. इस नस्ल के पशु सामान्य आकार के पाए जाते हैं. जिनका चेहरा काला और बाकी शरीर भूरा दिखाई देता हैं. इस नस्ल के पशुओं से उन कम मात्रा में प्राप्त होती हैं. जबकि मांस के रूप में इसके पशु लगभग एक साल बाद ही तैयार हो जाते हैं.
तिब्बतन
तिब्बतन नस्ल की भेड़ों का पालन उन और माँस दोनों के उत्पादन के लिए किया जाता है. इस नस्ल की भेड़ों का पूरा शरीर सफ़ेद पाया जाता है. जबकि कुछ पशुओं का मुख काला, भूरा दिखाई देता है. इस नस्ल के पशुओं का आकार सामान्य पाया जाता हैं. इस नस्ल की भेड़ों के सिर पर सिंग नही पाए जाते. इस नस्ल के पशु के कान छोटे, चौड़े और लटके हुए होते हैं. जिनके पेट पर बाल की मात्रा नही पाई जाती.
चोकला
चोकला नस्ल की भेड़ें ज्यादातर उत्तरी राजस्थान के जिलों में पाई जाती हैं. इस नस्ल के पशुओं का आकार छोटा और सामान्य पाया जाता है. इस नस्ल के पशुओं के चेहरे पर उन नही पाई जाती. जबकि शरीर पर उन की मात्रा काफी ज्यादा पाई जाती हैं. इस नस्ल के पशुओं का का मुख गर्दन तक काला पाया जाता हैं. इस नस्ल के पशु के शरीर पर बाल अधिक और पतले पाए जाते है. इसके पशु की पूंछ की लम्बाई सामान्य पाई जाती है, और पशु के सिर पर सिंग नही पाए जाते.
नाली शाबाबाद
नाली शाबाबाद नस्ल की भेड़ों का पालन मुख्य रूप से तो माँस के उत्पादन के लिए ही किया जाता हैं. लेकिन इसके पशुओं से उन की मात्रा भी अच्छी खासी प्राप्त होती हैं. इन नस्ल के पशुओ का पालन राजस्थान के साथ साथ हरियाणा के भी कुछ जिलों में होता है. इस नस्ल के पशुओं का आकार सामान्य पाया जाता है. इसके शरीर की चमड़ी गुलाबी रंग की होती है. और पूरा शरीर उन से ढका होता है.
केंगूरी
इस नस्ल की भेड़ कर्नाटक के रायचूर जिले में पाई जाती है. इस नस्ल की भेड़ों के शरीर का रंग गहरा भूरा और हलके लाल काले रंग का होता है. इस नस्ल के नर के सिर पर सींग पाए जाते हैं. जबकि मादा के सीर पर सिंग नही पाए जाते. इस नस्ल के पशुओं से उन की मात्रा कम प्राप्त होती हैं.
पशुओं की देखरेख
पशुओं की देखरेख के अंतर्गत कई तरह के काम किये जाते हैं. जिसमें पशुओं को के लिए खाना पानी और उनके रहने संबंधी सभी तरह की सावधानियां रखनी होती हैं.
- भेड़ के बच्चे लगभग एक से डेढ़ साल बाद पूर्ण रूप से तैयार हो जाते हैं. इस दौरान मेमनों को प्रजनन के लिए तैयार कर लेना चाहिए. प्रजनन के लिए तैयार करने के दौरान पशुओं को उचित मात्रा में पौष्टिक भोजन देना चाहिए. इस दौरान उचित मात्रा में भोजन देने से मादा में जुड़ाव बच्चे देने की क्षमता बढ़ जाती हैं.
- मेमनों के जन्म होने के तुरंत बाद उनके मुख में पाए जाने वाले चिकने म्यूक्स को निकाल देना चाहिए. और उसकी नाभि के तन्तुं को धागे से बांधकर काट देना चाहिए. जिसके कुछ देर बाद नवजात को माँ दूध तुरंत पीला देना चाहिए.
- मेमन के पैदा होने के बाद उसकी देखभाल करना जरूरी है. इसके लिए मेमन को उचित समय पर आवश्यक टीके लगवा देना चाहिए. भेड़ अपने बच्चों को लगभग तीन महीने तक दूध पिलाती है. इस दौरान हर माह मेमन का कृमिनाशन करवाना चाहिए. ताकि बच्चा स्वस्थ रहे.
- जब मेमन की उम्र लगभग एक साल के आसपास हो जाए तब अच्छे से दिखाई देने वाले मादा और नर को अलग लेना चाहिए. और उनकी अच्छे से देखभाल करनी चाहिए. लगभग 30 मादा भेड़ों के बीच एक स्वस्थ्य और मजबूत नर भेड़ को रखना चाहिए. बाकी नर को बधिया करवाकर बड़ा करना चाहिए. नर मेमनों का बधियाकरण लगभग तीन से चार महीने की उम्र में ही करवाना बेहतर होता है.
- मादा भेड़ लगभग 9 साल तक प्रजनन क्षमता रखती है. इसलिए मादा भेड़ को पोषक उचित मात्रा में देना चाहिए. जिससे पशु अच्छे से विकास कर सके.
- जब मेंढे को बाड़े में प्रजनन के लिए छोड़ते हैं तब वो स्वस्थ और ताकतवर होना चाहिए. इसके लिए मेंढे को लगभग दो महीने पहले से पोष्टिक भोजन उचित मात्रा में देना चाहिए. और उसकी अच्छी देखभाल करनी चाहिए.
- मेंढे को प्रजनन के लिए छोड़ने से लगभग दो से तीन सप्ताह पहले उसके बालों की कटाई कर देनी चाहिए. अगर भेड़ों की संख्या अधिक हो और दो या तीन मेढ़ों को एक साथ झुण्ड में छोड़ा जाए तो प्रत्येक मेड़ों पर विशेष निशान लगा दें. ताकि बाद में खराब नस्ल के बच्चे पैदा होने वाले नर हो आसानी से हटाया जा सके.
- भेड़ों की देखभाल के दौरान हर बार मानसून के शुरू होने से पहले टीकाकरण जरुर करवा लें और बाड़े की साफ़ सफाई रखे. और साथ ही बाड़े के अंदर की मिट्टी सुखी हुई रखनी चाहिए. ताकि पशुओं में किसी तरह का रोग ना लग पाए. क्योंकि भेड़ों में बारिश के मौसम में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं जिनकी वजह से पशुओं की मृत्यु भी हो जाती हैं.
- भेड़ों के पालने पर होने वाले खर्च से बचने के लिए हर साल कमजोर पशुओं की छटनी कर देनी चाहिए. छटनी के वक्त भेड़ों की उम्र लगभग डेढ़ वर्ष होनी चाहिए.
- नए रूप में भेड़ को खरीदने के दौरान हमेशा एक साल की उम्र के मेमने को ही खरीदना चाहिए. क्योंकि एक साल का मेमन लगभग एक साल बाद नए बच्चे को जन्म दे देता है.
- पशु में किसी भी तरह का संक्रमित रोग दिखाई देने पर उसे बाड़े से अलग कर बाकी पशुओं से दूर रखना चाहिए. और बाड़े की सफाई समय समय पर करते रहना चाहिए.
भेड़ों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
भेड़ पालन के दौरान पशुओं में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनके लगने पर कई बार पशुओं की मृत्यु तक हो जाती है. जिनकी रोकथाम के लिए पशु में रोग दिखाई देने के तुरंत बाद ही पशु चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए. और पशु के स्वस्थ होने तक उसका अच्छे से ध्यान रखना चाहिए.
उन की कतरान
भेड़ पालन मुख्य रूप से उन और माँस के लिए ही किया जाता हैं. इसलिए जब पशु पर उन की मात्रा पूर्ण रूप से तैयार हो जाए तो उसे काटकर अलग कर लेना चाहिए. उन को हटाने से पहले भेड़ को डिपिंग विलियन से निल्हाना चाहिए. जिससे उन पर लगी गंदगी और जीवाणु नष्ट हो जाते हैं. उसके बाद जब बाल सुख जाएँ तब उनकी कतरन करनी चाहिए.
भेड़ की कतरन हमेशा धूप के मौसम में ही करनी चाहिए. जिसके लिए सबसे उपयुक्त टाइम फरवरी और मार्च का महीना होता है. इस दौरान कतरन करने से पशु को गर्मियों में अधिक धूप नहीं लगती और सर्दियों का मौसम चला जाता है तो सर्दी लगने का भी डर नही होता.
उन की कतरन करने के बाद उनकी गाठें बनाकर रख लेनी चाहिए. जिनका भंडारण उचित नमी के तापमान पर करना चाहिए. उन की कतरन के बाद जिन पशुओं को माँस के लिए तैयार किया जाता हैं. उन्हें नज़दीकी मंडी या दुकनों पर बेच देना चाहिए.
आय व्यय का लेखा जोखा
भेड़ पालन के दौरान एक भेड़ साल में दो बार प्रजनन की क्षमता रखती हैं. और अगर अच्छे से देखभाल की जाए तो प्रत्येक मादा भेड़ों से दो बच्चे एक बार में प्राप्त किये जा सकते हैं. अगर किसान भाई एक बार में लगभग 15 मादा भेड़ों के साथ व्यापार शुरू करता है तो उसके पास एक साल में ही 50 के आसपास भेड़ें हो जाती हैं.
एक भेड़ की कीमत लगभग 7 हजार भी लगाकर चलें तो सभी भेड़ों की कुल कीमत लगभग साढे तीन लाख हो जाती हैं. जिसमें अगर सभी भेड़ों पर उनकी खरीद से लेकर उनके खाने और सभी तरह का खर्च लगभग ढाई लाख हो तो एक लाख किसान के पास एक साल में आसानी से बचता है.
इसके अलावा भेड़ पालन के दौरान उनके अपशिष्ट का इस्तेमाल किसान भाई जैव उर्वरक के रूप में कर सकता हैं. जिससे फसल की पैदावार भी अच्छी मिलती है. साथ ही भेड़ पालन के दौरान भेड़ की उन और उसके दूध की अतिरिक्त कमाई भी किसान भाई के पास पूर्ण रूप से बचती है. जैसे जैसे भेड़ें बढती जाती हैं किसान भाई की कमाई भी बढती जाती हैं. इस तरह भेड़ पालन का व्यवसाय खेती के साथ साथ एक अच्छी कमाई कराने वाला व्यवसाय है.
Our intent was technology enabled agriculture. Was there a way, to reach out to more farmers help them? More importantly, is there a way we could play a small role in taking the science of agriculture to our farmers through technology? This thought kept lingering in my mind, and then in one of my ERP implementations while implementing a batch tracking process for one of the largest FMCG in the world, my eureka moment arrived. Everything we consume has a bar code, except crop produce. We insist on tracing whatever we use and consume but not our food! Sometimes the obvious is not the obvious, and when I dug deeper, I realized that 90% of us don’t know where our veggies comes from and we are ok with it! Researcher in me then got inquisitive and on exploring a little more I was startled to know that food traceability while being one of the biggest issues, is the least addressed. A quick scan made me realize that several agtech startups as well as large corporations have already begun working on it and that’s when I decided that tantra gyan has to meet Kheti gyan and my journey to launch an agtech platform commenced.
divela
gaon thakur pura post hanumapur jila barabanki tehsil ramnaga