शिमला मिर्च की खेती कैसे करें – Capsicum Farming

शिमला मिर्च का इस्तेमाल सब्जी में सबसे ज्यादा किया जाता है. शिमला मिर्च में विटामिन ए, सी और बीटा कैरोटीन सबसे ज्यादा मात्रा में पाया जाता है. जो मानव शरीर के लिए बहुत फ़ायदेमंद होते है. शिमला मिर्च का इस्तेमाल वजन को स्थिर बनाए रखने के लिए किया जाता है. इसके अलावा शिमला मिर्च का इस्तेमाल औषधियों के रूप में भी किया जाता है.

शिमला मिर्च की खेती करने में ज्यादा मेहनत और मजदूरी की जरूरत नही होती. जिस कारण इसकी खेती करने वाले किसानों की अच्छी खासी कमाई हो जाती है. शिमला मिर्च ज्यादातर लाल हरा, पीला, और गुलाबी रंगों में पाई जाती है. शिमला मिर्च की खेती भारत में बहुत कम जगहों पर ही की जा रही हैं.

शिमला मिर्च को आद्र जलवायु वाली जगहों पर आसानी से उगाया जा सकता हैं. इसके लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. शिमला मिर्च की खेती पूरे साल की जा सकती है. लेकिन सर्दियों के मौसम में पाला पड़ने की वजह से इसकी पैदावार पर फर्क देखने को मिलता है.

अगर आप इसकी खेती करना चाह रहे है तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

शिमला मिर्च की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली चिकनी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. लेकिन इसे और भी कई तरह की मिट्टी में उगा सकते हैं. जिसके लिए मिट्टी का पी.एच. मान 6 से आसपास होना चाहिए. अलग तरह की मिट्टी में इसको उगने के लिए देशी गोबर के खाद की ज्यादा मात्रा का उपयोग करना अच्छा होता है.

जलवायु और तापमान

शिमला मिर्च की खेती के लिए नर्म और आद्र जलवायु की जरूरत होती है. इसकी खेती के लिए ज्यादा सर्दी और गर्मी दोनों ही नुकसानदायक होती है. ज्यादा सर्दी और गर्मी होने पर इसकी पैदावार कम होती है.

शिमला मिर्च की खेती के लिए 10 से 40 डिग्री तापमान की जरूरत होती है. जबकि सामान्य तापमान पर इसकी पैदावार ज्यादा होती है. जहाँ सर्दियों में तापमान 10 डिग्री से नीचे और गर्मियों में 40 डिग्री के ऊपर नही जाता वहां इसकी खेती पूरे साल की जा सकती है. लेकिन इससे कम या ज्यादा तापमान होने की स्थिति में इसके फूल और फल दोनों ही झड़ने लगते हैं.

शिमला मिर्च की उन्नत किस्में

शिमला मिर्च की कई तरह की किस्में मौजूद हैं. जिनमें से कुछ किस्में हैं जो व्यापारिक महत्व से ज्यादा उगाई जाती है. आज हम आपको उन्ही किस्मों के बारें में बताने वाले हैं.

कैलिफोर्निया वन्डर

शिमला मिर्च की ये किस्म एक विदेशी किस्म है. इसका पौधा सामान्य ऊचाई वाला होता है. इसके फल का रंग हरा चमकीला होता है. इस किस्म के पौधों पर फल 75 दिन बाद ही लगने शुरू हो जाते हैं. एक हेक्टेयर में इसकी पैदावार 125 से 150 क्विंटल तक हो जाती है.

येलो वन्डर

इस किस्म का पौधा भी सामान्य ऊचाई वाला होता है. जबकि इसकी पत्तियां ज्यादा बड़ी होती हैं. इस पर लगने वाले फल का रंग गहरा हरा होता है. एक हेक्टेयर में इसकी पैदावार 150 क्विंटल तक हो जाती है. और इसका फल 60 दिन में ही पककर तैयार हो जाता है.

सोलन हाइब्रिड -1 और 2

ये दोनों ही शिमला मिर्च की संकर किस्म है. इन दोनों किस्म पर फल सड़न और जीवाणु से लगने वाले रोग नही लगते. इसके पौधे प्राय बड़े होते हैं. इन दोनों किस्मों के पौधों पर  लगने वाले फल का आकार आयताकार होता है. जो 60 से 65 दिनों में तैयार हो जाते हैं. एक हेक्टेयर में इनकी पैदावार 325 से 375 क्विंटल तक हो जाती है.

सोलन भरपूर

इस किस्म पर फल सड़न और जीवाणु जनित रोग नही लगता. इसके पौधे सामान्य आकर से बड़े होते हैं. इसकी पैदावार 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आसानी से हो जाती है. इस किस्म का पौधे के खेत में लगाने के 70 दिन बाद फल देना शुरू कर देता है.

पूसा दीप्ति

पूसा दीप्ति किस्म

शिमला मिर्च की इस किस्म की पैदावार 300 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. इसका पौधा 70 दिन बाद फल देना शुरू कर देता है. इसके पौधे का आकार झाड़ीनुमा होता है. इस पर लगने वाले फल शुरुआत में हरे रंग के होते हैं. लेकिन पकने के बाद इनका रंग लाल हो जाता है.

पौध तैयार करना

शिमला मिर्च के बीज को खेतों में सीधा नही लगाया जाता. इसको लगाने से पहले इसकी पौध तैयार की जाती है. जिन्हें नर्सरी या खेतों में तैयार किया जाता है. इसके लिए शुरुआत में खेत में 4 5 क्यारी बनाएं, जो समतल भाग से कुछ उठी हुई हों. इन सभी क्यारियों में पुरानी गोबर की खाद डालकर उसे अच्छे से मिला दें. जिसके बाद मिट्टी को उपचारित करने के लिए उसमें बाविस्टिन की उचित मात्रा डाल दें.

बीज को क्यारियों में डालने से पहले उसे थाइरम या कैप्टन से उपचारित कर लें. बीज को क्यारियों में डालने के बाद उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. एक हेक्टेयर में साधारण किस्म की पौध लगाने के लिए 750 से 900 ग्राम बीज की जरूरत होती है. जबकि संकर किस्म की पौध बनाने के लिए 250 ग्राम बीज काफी होता है.

बीज को क्यारियों में मिलाने के बाद उसमें पानी दे. पानी देने के बाद मिट्टी को कुछ दिन के लिए पुलाव से ढक दें. ऐसा करने से खरपतवार जन्म नही ले पाती हैं. जब मिर्च की पौध अंकुरित होने लगे तब पुलाव को हटा लें. जिसके बाद पौधों को उचित मात्रा में पानी देते रहे. पौध बनने में 30 से 40 दिन का वक्त लगता है. जिसके बाद जब पौध पूरी तरह से तैयार हो जाती है तो इन्हें खेत में लगा देना चाहिए.

खेत की जुताई

शिमला मिर्च की खेती करने के लिए खेत की अच्छे से जुताई कर उसमें पुरानी गोबर की खाद डाल दें. उसके बाद फिर से खेत की जुताई कर उसे मिट्टी में अच्छे से मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी छोड़ दें. पानी छोड़ने के बाद जब खेत में खरपतवार निकल आये तब खेत की फिर अच्छे से जुताई कर दें. और खेत में पाटा लगाकर जमीन को समतल बना दे. खेत को समतल बना देने के बाद उसमें 2 से 3 फिट की दूरी पर मेढ़ बना दे. जिनसे बाद में उसमें क्यारियां बना दें.

पौध को खेत में लगाने का टाइम और तरीका

रुपाई का तरीका

शिमला मिर्च की खेती के बारें में हमने पहले बताया कि इसकी खेती पूरे साल भर की जा सकती है. इस कारण खेतों में इसका रोपण तीन बार में हो सकता है. इसकी पहली फसल का रोपण जुलाई माह में कर देना चाहिए. जबकि इसका दूसरा रोपण सितम्बर माह के बाद करना चाहिए. और इसके तीसरे रोपण के लिए जनवरी का माह उपयुक्त होता है. शिमला मिर्च का पौधा बिना पॉलीहाउस के 6 महीने तक पैदावार दे सकता है. जिसके लिए पौधे की देखभाल अच्छे से की जानी चाहिए. पौधे के खेत में लगाने के लगभग दो महीने बाद ही फल लगने शुरू हो जाते हैं.

पौधों को खेत में लगाने के दौरान उन्हें मेढ़ों पर लगाए. दो मेढ़ों के बीच की दूरी लगभग तीन फिट होनी चाहिए. जबकि मेढ़ों पर पौधे को लगभग एक फिट की दूरी पर लगाए. पौधे के रोपण से पहले पौध तैयार की गई क्यारियों में पानी छोड़ दें ताकि उन्हें निकलने पर ज्यादा पौध खराब ना हों.

शिमला मिर्च की सिंचाई

पौध को खेत में लगाने के तुरंत बाद ही पहली सिंचाई कर देनी चाहिए. शिलमा मिर्च की सिंचाई ड्राप विधि से करनी चाहिए. क्योंकि इसकी फसल के लिए कम और ज्यादा पानी दोनों ही नुकसानदायक होते हैं. इस कारण ड्राप विधि से इसकी सिंचाई करना अच्छा होता है. ड्राप विधि से इसकी सिंचाई करने पर पौधों को पानी उचित मात्रा में मिलता है. इस विधि से पौधे को रोज़ 20 मिनट तक पानी देना चाहिए. जिससे पौधा अच्छे से विकास करता है. बारिश के टाइम पानी खेत में भर जाए तो उसे तुरंत निकाल दें. अगर पानी ज्यादा दिनों तक भरा रहता है तो पौधे में कई तरह के रोग लग जाते हैं.

उर्वरक की मात्रा

शिमला मिर्च की रुपाई करने से पहले खेत में 15 से 20 गाड़ी गोबर की खाद प्रति एकड़ के हिसाब से डालकर अच्छे से मिला दें. गोबर की खाद के अलावा कम्पोस्ट खाद भी उपयोग में ले सकते हैं. इसके अलावा एन.पी.के. की उचित मात्रा आखिरी जुताई के टाइम खेत में डालें. और अगर मिट्टी में सल्फर की कमी हो तो लगभग 60 किलो सल्फर प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालें.

मिर्च को खेत में लगाने से पहले खेत की मिट्टी की जांच ज़रुर करा लें. क्योंकि अगर मिट्टी में मूलभूत तत्व नही होंगे तो फसल का उत्पादन कम हो जाता है. जिससे किसान भाइयों को नुक्सान भी उठाना पड़ सकता है.

नीलाई गुड़ाई

शिमला मिर्च की नीलाई गुड़ाई अतिआवश्यक हैं. क्योंकि खरपतवार के जन्म लेने के बाद उनमें पनपने वाले कीटों से इसकी फसल को ज्यादा नुक्सान पहुँचता है. इसके लिए खेत में खरपतवार ना रहने दें. इसके खेत में लगाये जाने के 10 या 15 दिन बाद उसकी नीलाई गुड़ाई कर देनी चाहिए. शिमला मिर्च की फसल 6 महीने तक हो सकती है इस कारण अच्छी फसल लेने के लिए शिमला मिर्च की 5 से 6 गुड़ाई करनी जरूरी होती है.

पौधे को लगने वाले रोग

शिमला मिर्च के पौधे पर किट, कवक और फफूंदी का सबसे ज्यादा प्रभाव रहता है. इसके रोकथाम के लिए पौधे की अच्छे से देखभाल करने की जरूरत होती है.

कीटों द्वारा रोग

कीटों का प्रकोप

कीटों के द्वारा पौधे को थ्रिप्स, सफ़ेद मक्खी और माहो जैसे रोग हो जाते हैं. ये सभी रोग पौधे की पत्तियों को सबसे ज्यादा नुक्सान पहुँचाते है. जिससे पौधे का अच्छे से विकास नही हो पाता है. अगर ज्यादा टाइम तक इन कीटों से पौधे की देखभाल नही करते हैं तो पौधा जल्द ही खराब होकर नष्ट हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए डायमेथोएट, मिथाइल डेमेटान, मेलाथियान का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

पाउडर मिलोडी

पाउडर मिलोडी रोग की वजह से पौधे की पत्तियों पर छिद्र बनने लग जाते हैं. कुछ दिनों बाद पूरी पत्तियां जलकर खत्म हो जाती है. पौधों पर इस रोग के लक्षण पत्तियों के नीचे दिखाई देता है. पत्तियों के नीचे कुछ पाउडर जैसा पदार्थ दिखाई देता है. इसके रोकथाम के लिए एक लीटर पानी में 2 ग्राम सल्फर मिलकर छिडकाव करने से पौधे को फायदा मिलता है.

आद्र गलन रोग

पौधे पर ये रोग शुरूआती अवस्था में देखने को मिलता है. पौधे में ये रोग ज्यादा पानी की वजह से भी लग जाता है. इसके लग जाने पर पौधा काला पड़ने लग जाता है और जल्द ही जलकर नष्ट हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए बीज को खेत में लगाने से पहले उसे थाइरम या कैप्टन से उपचारित कर लेना चाहिए. अगर पौधे को खेत में लगाने के बाद इसके लक्षण दिखाई दें तो पौधों पर कॉपर आक्सीक्लोराइड या बोडों मिश्रण का छिडकाव करना चाहिए.

उकठा रोग

यह रोग ज्यादातर सब्जियों और औषधीय पौधों में लगता है. उकठा रोग पौधों की जड़ों पर लगता है. इसके लगने से पौधों की जड़ें गलकर नष्ट हो जाती है. यह रोग अक्सर बारिश के मौसम में ज्यादा देखने को मिलता है. इसके लगने पर पौधा मुरझाने लगता है. और कुछ दिनों बाद सुखकर नष्ट हो जाता है. इसकी रोकथाम के लिए शुरुआत में गहरी जुताई कर खेत को खुला छोड़ दें. ताकि मिट्टी में सूर्य की तेज़ धुप किरणें अंदर तक जा सके. जिससे इसके जीवाणु नष्ट हो जाते है. इसके अलावा पौधे को खेत में लगाने से पहले खेत की मिट्टी को ब्लीचिंग पाउडर से उपचारित कर लें.

मोजेक रोग

रोगग्रस्त पौधा

मोजेक रोग विषाणु के द्वारा पौधों में फैलता है. इसके लगाने पर पौधे की पत्तियां विकृत रूप लेने लगती है. नई आ रही पत्तियां भी सिकुड़कर छोटी होने लगती है. धीरे धीरे ये सभी पत्तियां कठोर होकर गोल आकर लेने लगती हैं. जिसके बाद पीली पड़कर नष्ट हो जाती है. इसके बचाव के लिए पौधे को खेत में लगाने से पहले कार्बोफ्यूरान 3 जी से मिट्टी को उपचारित कर लें. पौधे को लगाने के बाद इसके लक्षण दिखाई दें तो इमिडाक्लोप्रिड या डाइमिथोएट 30 ई सी की उचित मात्रा को पानी में मिलकर पौधों पर छिडकाव करें.

फल सडन रोग

फल सडन रोग मिट्टी में उर्वरकता की कमी की वजह से होता है. इसके अलावा पौधों में ये रोग अधिक आद्रता होने की वजह से भी होता है. इसके होने पर पत्तियों पर हलके हलके छिद्र बनने लगते हैं. और फल पर काले धब्बे दिखाई देने लगते हैं. पौधों में ये रोग नीचे से ऊपर की तरफ फैलता है. इस रोग के लगने पर पौधों पर कैल्शियम, मैग्नीशियम और बोरान का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा ब्लाइटॉक्स, डायफोल्टान का भी छिडकाव पौधों पर कर सकते हैं.

फसल की तुड़ाई

शिमला मिर्च के पौधे तुड़ाई के लिए 60 70 दिन का टाइम लेते हैं. जिसके बाद जब फल पूरी तरह से पक जाए तब इसकी तुड़ाई कर लेनी चाहिए. फल की तुड़ाई करने के बाद उसे किसी ठंडी जगह पर रख दें. शिमला मिर्च की तुड़ाई कई बार में होती है. इसलिए हर बार सिर्फ पके हुए फल ही तोड़ें.

पैदावार और लाभ

शिमला मिर्च की पैदावार पौधे की किस्म और देखभाल के अनुसार होती है. अलग अलग किस्मों के अनुसार इसकी उपज 150 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है. जिससे किसान भाई एक बार में 5 से 7 लाख तक कमाई कर पाते हैं.

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