गन्ना की खेती कैसे करें – Sugarcane Cultivation

गन्ना उत्पादक देशों में भारत दुनिया भर में दूसरा स्थान रखता है. भारत गन्ने का जितना बड़ा उत्पादक देश है, उतना ही बड़ा उपभोक्ता देश भी है. भारत में गन्ना की खेती नगदी फसल के रूप में की जाती है. गन्ने का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता है. गन्ने के रस का इस्तेमाल जूस के रूप में किया जाता है. और इसी रस को गर्म कर इससे चीनी, गुड़, शक्कर और शराब का भी निर्माण किया जाता है.

गन्ना की पैदावार

गन्ने की खेती आज भी किसान भाई परम्परागत तरीके से करते आ रहे हैं. लेकिन वर्तमान में काफी नई किस्में और विधियाँ इजाद कर ली गई हैं. जिनके माध्यम से अधिक पैदावार प्राप्त की जा रही है. गन्ने की खेती आद्र शुष्क जलवायु में अधिक पैदावार देती है. भारत में इसकी पैदावार उत्तर और मध्य भारत में ज्यादा की जाती है. इसके पौधे पर विषम परिस्थितियों का कोई ख़ास असर नही पड़ता. यही वजह है की गन्ना की खेती एक सुरक्षित और लाभ देने वाली फसल मानी जाती है.

अगर आप भी गन्ना की खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

गन्ने की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ गहरी दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. जलभराव वाली जमीन में इसकी खेती नही की जा सकती. क्योंकि जल भराव की वजह से गन्ने के पौधे खराब हो जाते हैं. इसकी खेती के लिए सामान्य पी.एच. वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है.

जलवायु और तापमान

गन्ने की खेती के लिए शुष्क आद्र जलवायु उपयुक्त होती है.  इसकी पैदावार का टाइम एक से डेढ़ साल का होता है, इस दौरान उत्पन्न होने वाली विषम परिस्थितियों में भी इसका पौधा आसानी से विकास कर लेता है. इसके पौधे को अधिक बारिश की जरूरत नही होती. इसकी खेती के लिए साल भर में 75 से 120 सेंटीमीटर बारिश काफी होती है.

इसके बीजों को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. जबकि 21 से 27 डिग्री तापमान पर गन्ने के पौधे अच्छे से विकास करते हैं. जिससे अच्छी पैदावार प्राप्त होती हैं. लेकिन 35 डिग्री से ज्यादा तापमान होने पर इसकी पैदावार पर फर्क पड़ता है.

उन्नत किस्में

गन्ने की काफी उन्नत किस्में है. जिनको उनकी उत्पादन क्षमता और पकने के वक्त के आधार पर तैयार किया गया है. इन सभी किस्मों को दो श्रेणियों में बाँटा गया है.

जल्दी पकने वाली किस्में

इस श्रेणी की किस्में एक साल से भी कम समय में पककर तैयार हो जाती है, और उत्पादन भी अधिक प्राप्त होता है.

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उन्नत किस्म का गन्ना

इस किस्म को मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा उगाया जाता है. इस किस्म का प्रति एकड़ उत्पादन 350 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इसके पौधे से प्राप्त होने वाले रस में 21 प्रतिशत शक्कर की मात्रा पाई जाती है. इस कारण ये किस्म गुड बनाने के लिए उपयुक्त मानी जाती है. गन्ने की इस किस्म पर कई तरह के कीटों का प्रभाव देखने को नही मिलता.

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गन्ने की इस किस्म के पौधे 10 से 12 महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इनसे प्राप्त होने वाले रस में 22 प्रतिशत शक्कर की मात्रा पाई जाती है. इस कारण इस किस्म का सबसे ज्यादा इस्तेमाल गुड बनाने में किया जाता है. इस किस्म का प्रति एकड़ उत्पादन 340 से 360 क्विंटल तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर रेडराट का रोग नही लगता है.

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इस किस्म के पौधे पर लाल सड़न और कई तरह के कीटों का प्रकोप देखने को नही मिलता. इस किस्म को कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म से गन्नों की प्रति एकड़ पैदावार 400 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. इसके पौधों से निकलने वाले रस में शक्कर की मात्रा 20 प्रतिशत तक पाई जाती है.

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इस किस्म का पौधा बीज रोपाई के 10 से 12 माह बाद कटाई के लिए तैयार हो जाता है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 100 टन से ज्यादा पाया जाता है. इस किस्म के पौधों से प्राप्त होने वाले रस में लगभग 23 प्रतिशत शक्कर की मात्रा पाई जाती है. इस किस्म के पौधों पर उकठा और लाल सड़न जैसे रोग नही लगते.

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इस किस्म के पौधे भी 10 से 12 माह बाद कटाई के लिए तैयार हो जाता है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 100 से 110 टन तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधे से प्राप्त होने वाले रस में शक्कर की मात्रा 20 प्रतिशत तक पाई जाती है. इसके पौधों में लाल सडन का रोग नही लगता.

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इस किस्म को कम समय में ज्यादा पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 100 टन के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों से प्राप्त होने वाले रस में शक्कर की मात्रा 18 से 20 प्रतिशत पाई जाती है. इस किस्म के पौधों पर उकठा और कंडवा रोग नही लगता.

मध्यम देरी से पकने वाली किस्में

इस श्रेणी की किस्में जल्दी पकने वाली किस्मों से अधिक उत्पाद देने के लिए जानी जाती है.

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गन्ने की इस किस्म की पैदावार लगभग 600 क्विंटल प्रति एकड़ पाई जाती है. इस किस्म के पौधों के रस में शक्कर की मात्रा 20 प्रतिशत तक पाई जाती है. इस किस्म के पौधों पर रेडराट और कडुवा रोग नही लगता. इस किस्म के पौधे 14 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

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उन्नत किस्म का गन्ना

इस किस्म का उपयोग शराब बनाने में किये जाता है. इस किस्म के पौधों में शक्कर की मात्रा 18 प्रतिशत पाई जाती है. इस किस्म के पौधे नरम पाए जाते हैं. जिनका प्रति एकड़ उत्पादन 400 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

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इस किस्म का प्रति एकड़ उत्पादन 500 से 600 क्विंटल तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधे पेड़ी और शक्कर बनाने के लिए उपयोगी होते है. इसके पौधों के रस में शक्कर की मात्रा 23 प्रतिशत के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के पौधों पर किट का प्रकोप काफी कम देखने को मिलता है.

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इस किस्म के पौधों पर भी कीटों का आक्रमण देखने को नही मिलता. इसके पौधों की ऊंचाई अधिक पाई जाती है. जिनका प्रति एकड़ उत्पादन 600 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में शक्कर की मात्रा 20 प्रतिशत तक पाई जाती है.

खेत की तैयारी

गन्ने की खेती के लिए शुरुआत में खेत की गहरी जुताई कर खेत को 8 से 10 दिन तक खुला छोड़ दें. उसके बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद को उचित मात्रा में डालकर उसे मिट्टी में अच्छे से मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में नमी की मात्रा कम हो तो खेत का पलेव कर दे. पलेव करने के कुछ दिन बाद खेत में खरपतवार निकल आती है. खरपतवार के निकल आने के बाद खेत की एक बार फिर तिरछी जुताई कर खुला छोड़ दें. उसके बाद रिजर चलाकर गन्ने के बीज (पेड़ी, डंडी, पोरी ) की रोपाई के लिए खेत को तैयार कर लें.

बीज रोपण का तरीका और टाइम

गन्ने की रोपाई साल में दो बार की जाती है. शरद कालीन रोपाई अक्टूबर से नवम्बर माह तक की जाती है. जबकि बसंत कालीन रोपाई के लिए फरवरी और मार्च का माह उपयुक्त होता है. शरद काल में की गई गन्ने की रोपाई बसंत काल में की गई गन्ने की रोपाई से ज्यादा पैदावार देती है. क्योंकि बसंत काल में गन्ने की रोपाई के बाद बारिश का मौसम आ जाता है. जिससे गन्ना अच्छे से वृद्धि नही करता है. जबकि शरद काल के गन्ने को वृद्धि करने का ज्यादा वक्त मिलता है. इस कारण शरद काल में इसकी रोपाई करना अच्छा होता है.

गन्ने की रोपाई उनकी डंडियों यानी की गन्ने की काटी हुई पोरियों से की जाती है. इन डंडियों को खेत में लगाने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि डंडियों को अंकुरित होते वक्त किसी तरह के रोग का सामना ना करना पड़े. उपचारित करने पर डंडियों में अंकुरण की क्षमता भी बढ़ जाती है. गन्ने के बीज को उपचारित करने के लिए उसे लगभग 20 मिनट तक कार्बेन्डाजिम या क्लोरोपायरीफॉस के घोल में डुबोकर छोड़ दें. एक हेक्टेयर में गन्ने की रोपाई के लिए दो से तीन आँखों वाले लगभग 60 से 70 क्विंटल बीज ( गन्ने की डंडियों ) की आवश्यकता होती है.

गन्ने की रोपाई कई तरीकों से की जाती है. लेकिन ज्यादातर किसान भाई आज भी परम्परागत तरीके से ही इसकी रोपाई करते हैं.

रिज या फरो विधि

रिज या फरो विधि

इस विधि से गन्ने की रोपाई करने से जल संरक्षण में मदद मिलती है. और खेत में पानी भराव जैसी समस्या भी नही होती. इस विधि से गन्ने की रोपाई नालियों में की जाती है. इस विधि से रोपाई करने पर दो नालियों के बीच लगभग दो से ढाई फिट की दूरी बन जाती है. जिसके दोनों छोर पर आड़ी रोपाई कर जल को रोक दिया जाता है. जिस कारण कम बारिश होने पर पानी खेत में भरा रहता है. और ज्यादा होने पर एक छोर को खोल देने पर पानी बहार निकल जाता है.

समतल विधि

समतल विधि से गन्ने की रोपाई के लिए पहले खेत में लगभग दो से ढाई फिट की दूरी रखते हुए नाली तैयार की जाती है. उसके बाद इन नालियों में कम से कम तीन आँख वाले गन्ने के टुकड़े ( बीज ) को एक दूसरे से सटाकर डाल दिया जाता है. एक मीटर की दूरी में लगभग 12 आँखों का होना जरूरी है. गन्ने की रोपाई के बाद खेत में पाटा लगाकर उसे समतल बना देते हैं. यह एक परम्परागत विधि है. जिसका इस्तेमाल आज भी किसान भाई बड़ी मात्रा में कर रहे हैं.

ट्रेंच विधि

ट्रेंच विधि

ट्रेंच विधि से गन्ने की रोपाई से पहले मशीन या हाथों से ट्रेंच का निर्माण किया जाता है. ट्रेंच का निर्माण करते वक्त दो ट्रेन्चों के बीच लगभग 4 फिट की दूरी होनी चाहिए. और प्रत्येक ट्रेंच एक फिट चौड़ा और 25 सेंटीमीटर गहरा होना चाहिए. क्योंकि ट्रेंच विधि में गन्ने की रोपाई ज्यादा गहरी होती है. इस विधि से इसकी रोपाई के दौरान ट्रेंच में नीचे की जमीन कठोर नही होनी चाहिए. इसलिए रोपाई से पहले ट्रेंच की खुदाई कर नीचे की जमीन भुरभुरी बना लें. उसके बाद गन्ने की डंडियाँ जो बीज के लिए तैयार की गई हैं, उन्हें ट्रेंच में आडा लगभग 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी छोड़ते हुए लगाएं. प्रत्येक डंडी में तीन से चार आँखें होनी चाहिए.

प्रत्येक विधि में गन्ने की रोपाई के बाद उस पर लगभग पांच से सात सेंटीमीटर मिट्टी ही चढ़ाएं. क्योंकि ज्यादा मिट्टी चढ़ाने पर अंकुरण प्रभावित होता है. गन्नो की रोपाई हमेशा पूर्व से पश्चिम दिशा की तरफ आर-पार करनी करनी चाहिए. इससे खेत में जलभराव नही होता और हवा भी आसानी से खेत के बीचोंबीच पार हो जाती है.

पौधों की सिंचाई

गन्ने की रोपाई आद्रता युक्त भूमि में की जाती है. इस कारण इसके पौधों को अंकुरित होने के लिए तुरंत पानी की जरूरत नही होती. जबकि गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को सप्ताह में एक बार पानी देना चाहिए. और सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. अगर पानी की कमी हो तो उसके लिए खेत में गन्ने की पत्तियों का गहरा बिछाव कर दें. बारिश के मौसम में इसके पौधों को पानी की जरूरत नही होती.

उर्वरक की मात्रा

गन्ने की रोपाई से पहले खेत में लगभग 15 गाडी पुरानी गोबर की खाद को प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. उसके बाद खेत में गन्ने की रोपाई से पहले खेत में लगभग 250 किलो एन.पी.के. ( 12  32  16 ) का छिडकाव कर मिट्टी में मिला दें. एन.पी.के. की इस मात्रा के बाद किसी अन्य खाद की आवश्यकता नही होती. लेकिन जब गन्ना डेढ़ से दो महीने का हो जाए तब उन पर सल्फर WDG की तीन किलो मात्रा को 100 किलो पानी में मिलाकर उन पर छिड़क दें.

खेत की नीलाई गुड़ाई

गन्ने की खेती के लिए शुरुआत में चार से पांच महीने तक खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता होती है. गन्ने की खेती में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक को परम्परागत तरीके से किया जाता है. परम्परागत तरीके से करने के लिए गन्ने की हर महीने एक बार गुड़ाई की जाती है. जिससे खेत में जन्म लेने वाली खरपतवार को गुड़ाई के माध्यम से निकाल दिया जाता है. जबकि रासायनिक तरीके से इसकी रोकथाम के लिए खेत में गन्ने की रोपाई के तुरंत बाद एट्राजिन की उचित मात्रा का छिडकाव खेत में कर देना चाहिए. इसके अलावा गन्ने के अंकुरण के बाद जन्म लेने वाली खरपतवार के लिए खेत में 2-4 डी सोडियम साल्ट का छिडकाव करना चाहिए. 2-4 डी सोडियम साल्ट के छिडकाव के दौरान खेत में नमी बनी रहनी चाहिए. अन्यथा इसका प्रभाव फसल पर भी देखने को मिल सकता है. इस कारण इसका छिडकाव बारिश के वक्त ही करना चाहिए.

उपरी कमाई

गन्ने की खेती एक साल के लिए की जाती है. और शुरुआत में तीन से चार महीने तक इसके पौधों के बीच काफी दूरी बची हुई होती है. जिसमें कम समय वाली आलू, प्याज, टमाटर, और लहसुन जैसी फसलों को उगा सकते हैं. जिससे किसान भाइयों को शुरुआत में इनकी पैदावार से अच्छा लाभ भी मिल जाता है.

मिट्टी चढ़ाना

गन्ने के पौधों को बड़ा होने के बाद गिरने से बचाने के लिए उनकी जड़ों पर मिट्टी चढाई जाती है. मिट्टी चढ़ाने की प्रक्रिया साल में दो बार की जाती है. पहली बार मिट्टी चढ़ाने का कार्य फसल रोपाई के तीन से चार महीने बाद और दूसरी बार मिट्टी चढ़ाने का काम पहली बार मिट्टी चढ़ाने के एक से डेढ़ महीने बाद किया जाता है. इससे पौधों की जड़ों को मजबूती तो मिलती ही है और पैदावार भी अच्छी प्राप्त होती है.

पत्तियों का बंधाव और बिछाव

जब गन्ने का पौधा लगभग दो से ढाई मीटर लम्बा हो जाए तब उनकी बंधाई की जाती है. इनकी बंधाई सुखी हुई पत्तियों से करते है. ताकि बारिश के मौसम में पौधे गिरे नही. क्योंकि पौधों के गिर जाने से उनमें रस की मात्रा कम हो जाती है. गन्ने की खेती में पौधों की बंधाई दो बार की जाती है. गन्ने की दूसरी बंधाई, पहली बंधाई के एक महीने बाद करनी चाहिए. गन्नो को बांधते वक्त ध्यान रखे की उपर की सभी पत्तियां एक जगह एकत्रित ना हो, इससे पत्तियां प्रकाश संश्लेषण की क्रिया नही कर पाएंगी. और पौधों का विकास रुक जाएगा.

गन्ने की खेती में सुखी हुई पत्तियों को खेत में नीचे डाल दिया जाता है. जिससे खेत में नमी बनी रहती है. और सिंचाई की भी ज्यादा जरूरत नही होती. और बाद में इन पत्तियों पर विघटित करने वाले पदार्थों को डालकर जैविक खाद के रूप में उपयोग में लिए जाता है.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

गन्ने के पौधे पर कई तरह के रोग पाए जाते हैं जो इसकी पैदावार को नुक्सान पहुँचाते हैं. जिससे किसान भाइयों को काफी नुक्सान का भी सामना करना पड़ता है.

 

लाल सडन रोग

लाल सडन रोग

गन्ने के पौधे में अब लाल सडन का रोग काफी कम देखने को मिलता है. क्योंकि वर्तमान में काफी ऐसी किस्मों का इजाद कर लिया गया है, जिन पर इस रोग का प्रभाव दिखाई नही देता. इस रोग के लगने पर शीर्ष की तीन से चार पत्तियों के बाद की पत्तियों के किनारे पीले पड़ जाते हैं और पत्तियां नीचे की तरफ झुक जाती हैं. इसके अलावा गन्ने के तने को फाड़कर देखने पर उसमें लाल और सफ़ेद रंग की लाइनें दिखाई देने लगती है. इस रोग की रोकथाम के लिए बीज को कार्बेन्डाजिम से उपचारित कर बोना चाहिए. और रोग प्रतिरोधी किस्म को उगाना चाहिए.

कंडुआ रोग

पौधों पर ये रोग सालभर में कभी भी दिखाई दे सकता है. इस रोग के लगने पर पौधा लम्बा और पतला दिखाई देने लगता है. इसके अलावा पौधे का शीर्ष भाग काले रंग का दिखाई देता है. इसके अलावा पौधे की पहली आँख समय से पहले अंकुरित होने लगती है. और इसकी गांठ से नुकीली पत्तियां अलग अलग दिशाओं में निकलने लगती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर कार्बेन्डाजिम या कार्बोक्सिन का छिडकाव करना चाहिए.

उकठा रोग

गन्ने के पौधों में उकठा रोग फसल कटाई से पहले देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे की बढावा रुक जाती है, और पौधा सूखने लगता है. पौधे के तने को लम्बवत चीरने पर उसमें सफ़ेद फफूंद दिखाई देती है. और तना अंदर से खोखला दिखाई देने लगता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में कार्बेन्डाजिम का छिडकाव करना चाहिए.

ग्रासी सूट

गन्ने के पौधों में ये रोग किसी भी वक्त लग सकता है. इस रोग के लगने पर पौधा पतला और झाड़ीनुमा दिखाई देने लगता है. इसके अलावा पत्तियां हलकी पीली और सफ़ेद दिखाई देती है. और खड़े गन्ने की आँखों से अंकुर निकलने लगते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए गन्ने के बीज को उपचारित कर उगाना चाहिए. इसके अलावा रोग प्रतिरोधी किस्म का चुनाव करना चाहिए.

सफ़ेद मक्खी

इस रोग के लगने पर पैदावार में कमी देखने को मिलती है. सफ़ेद मक्खी रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों पर देखने को मिलता है. इसके कीट पत्तियों के नीचे की सतह पर रहकर पत्तियों का रस चूसते हैं. इस कारण पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एसिटामिप्रिड या इमिडाक्लोप्रिड की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

पाईरिल्ला

गाने के पौधों पर पाईरिल्ला का आक्रमण ज्यादातर बारिश के बाद देखने को मिलता है. इस रोग के किट पौधों की पत्तियों का रस चूसकर उन पर चिपचिपा पदार्थ छोड़ देते हैं. जिसकी वजह से पत्तियों का रंग काला दिखाई देने लगता है. इस रोग के लगने से पैदावार को काफी ज्यादा नुकसान पहुँचता है. इसकी रोकथाम के लिए पौधों पर क्विनालफॉस 25 ई. सी. या मैलाथियान 50 ई. सी. की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

अग्र तना छेदक

तना छेदक

अग्र तना छेदक रोग पौधों पर शुरूआती दिनों में ज्यादा देखने को मिलता है इस रोग का लार्वा जमीन के अंदर से पौधे के नर्म भाग को खाता हुआ उपर की तरफ बढ़ता है. जिससे गन्ने की पोरियां सूखने लगती है. इस रोग की रोकथाम के लिए कार्बोफ्यूरान 3 जी या फोरेट की उचित मात्रा का छिडकाव खेत में करना चाहिए.

फसल की कटाई

गन्ने की अगेती फसल 10 से 12 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है. जबकि पछेती किस्म 14 महीने से ज्यादा का टाइम लेती है. इसके पौधों की कटाई जमीन के पास से करनी चाहिए. इससे पौधे में फिर से अधिक मात्रा में कल्लें निकलते हैं.

पेड़ी तैयार करना

गन्ने की कटाई के बाद उसकी पेड़ी बनाने के लिए कटी हुई ठूंठों को सूखी पत्तियों से ढक दें. जिससे फसल कटी हुई जगह से ठूंठ खराब ना हो पाए. इसके अलावा गन्ने के काटे जाने के बाद ठूंठों को बचने के लिए उन पर कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव कर दें. फसल काटने के बाद उसमें कुछ दिन पानी ना दें. जब इन पेड़ियों से कल्लें निकल आयें तब पेड़ियों को बचाते हुए खेत को जुतवा दें. उसके बाद खेत में खाली जगहों पर नई पौध को लगा दें. और उसके 20 दिन बाद खेत में पानी छोड़ दें. जिससे पौधे फिर नई फसल देने के लिए तैयार हो जाते हैं.

पैदावार और लाभ

गन्ने की खेती नगदी फसल है. इसकी खेती से किसान भाइयों की अच्छी खासी कमाई हो जाती है. सामान्य रूप से किसान भाई एक एकड़ से 300 क्विंटल के आसपास पैदावार ले सकता है. लेकिन अच्छी देखभाल कर किसान भाई 1000 क्विंटल से ज्यादा की पैदावार भी कर सकता है. गन्ने का बाज़ार में थोक भाव 275 रूपये प्रति क्विंटल के आसपास पाया जाता है. जिससे किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से डेढ़ से दो लाख तक की कमाई आसानी से कर सकता हैं.

1 thought on “गन्ना की खेती कैसे करें – Sugarcane Cultivation”

  1. रोग व कीट लगने का समय, तथा दबा की मात्रा भी लिख देते सर।
    जानकारी देने के लिए
    धन्यवाद

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