ब्राह्मी की खेती कैसे करें

ब्राह्मी की खेती औषधीय पौधे के रूप में की जाती है. इसके पौधे के सभी भागों का इस्तेमाल किया जाता है. ब्राह्मी का इस्तेमाल कैंसर, मिरगी, मूत्र वर्धक, दमा, रसौली, नीमिया और पेट संबंधित बीमारियों में किया जाता हैं. आयुर्वेद चिकित्सा में इसका इस्तेमाल काफी अधिक किया जाता है. इसका पौधा दो से तीन फिट की ऊंचाई का पाया जाता है. इसके पौधे भूमि की सतह पर फैलकर अपना विकास करते हैं. इसका तना और पत्ती दोनों मुलायम और गुदेदार होते हैं. जिन पर सफ़ेद रंग का फूल खिलता हैं. इसकी पत्तियों का स्वाद फीका होता है. और तासीर ठंडी होती हैं.

ब्राह्मी की खेती

ब्राह्मी की खेती उष्णकटिबंधीय जलवायु में आसानी से की जा सकती ह. इसके पौधे सामान्य गर्म और आद्र मौसम में अच्छे से विकास करते हैं. इसकी खेती के लिए सामान्य तापमान सबसे उपयुक्त होता है. भारत में इसकी खेती लगभग सभी जगह की जा सकती है. इसकी खेती कम खर्च में अधिक उत्पादन देने वाली है. इस कारण किसान भाई इसकी खेती से अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.

अगर आप भी इसकी खेती के माध्यम से अच्छा उत्पादन लेना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

ब्राह्मी की खेती सामान्य तौर पर किसी भी तरह की उपजाऊ भूमि में की जा सकती है. इसकी खेती जलभराव और अधिक तेजाबी गुण रखने वाली भूमि में भी की जा सकती है. इसकी खेती के लिए दलदली भूमि सबसे उपयुक्त होती है. इसका पौधा जंगली रूप में नहर, तालाब और नदियों के किनारे उग आते हैं. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 5 से 7 के बीच होनी चाहिए.

जलवायु और तापमान

ब्राह्मी की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु को उपयुक्त माना जाता है. इसके पौधे आद्र मौसम में अच्छे से विकास करते हैं. इसकी खेती खरीफ की फसलों के साथ की जाती है. इसके पौधे सामान्य गर्मी और सर्दी दोनों मौसम में अच्छे से विकास करते हैं. लेकिन अधिक तेज़ गर्मी और और सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसके पौधों को प्रभावित करता है. बारिश के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं. लेकिन इसके पौधों को सामान्य बारिश की ही आवश्यकता होती है.

इसकी खेती के लिए सामान्य तापमान सबसे उपयुक्त होता है. सामान्य तापमान पर इसके पौधे बहुत ही अच्छे से विकास करते हैं. लेकिन गर्मी के मौसम में इसके पौधे अधिकतम 40 डिग्री और सर्दियों में न्यूनतम 10 डिग्री के आसपास तापमान को ही सहन कर पाते हैं. इससे अधिक और कम तापमान होने पर इसकी पैदावार में फर्क देखने को मिलता है.

उन्नत किस्में

ब्राह्मी का पौधा भारत में जंगली रूप में काफी ज्यादा पाया जाता हैं. अभी तक इसकी कुछ ही उन्नत किस्में तैयार की गई हैं. जिन्हें किसान भाई अच्छी पैदावार लेने के लिए उगाते हैं.

प्रज्ञा शक्ति

ब्राह्मी की इस किस्म को केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ ने तैयार किया है. जिसको स्थानीय क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधों में 1.8 से 2 प्रतिशत तक बैकोसाइड पाया जाता है.

सुबोधक

उन्नत किस्म का पौधा

ब्राह्मी की इस किस्म को भी केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधों को स्थानीय और बाहर के क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता हैं.

खेत की तैयारी

ब्राह्मी की खेती के लिए मिट्टी का समतल और भुरभुरा होना जरूरी है. इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर उसे कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें. उसके बाद खेत में उचित मात्रा में पुरानी गोबर की खाद डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की दो से तीन बार कल्टीवेटर के माध्यम से गहरी जुताई कर दें.

खेत की जुताई के बाद खेत में पानी चलाकर खेत का पलेव कर दें. पलेव करने के बाद जब मिट्टी हल्की सुखी हुई दिखाई दे तब खेत की फिर से कल्टीवेटर के माध्यम से जुताई कर उसमें रोटावेटर चला दें. इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी दिखाई देने लगती है. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत को समतल बना लें. खेत को समतल बनाने के बाद पौधों की रोपाई के हिसाब से खेत में क्यारी और मेड़ों का निर्माण किया जाता है. मेड निर्माण के दौरान इसकी मेड सरसों की रोपाई के बाद दिखाई देने वाली मेड़ों की तरह बनाई जाती है.

पौध तैयार करना

ब्राह्मी की खेती बीज और पौध दोनों के माध्यम से की जाती है. लेकिन इसके पौधों को पौध के रूप में लगाना अधिक बेहतर होता है. इसकी पौध नर्सरी में रोपाई से पहले तैयार की जाती है. इसकी पौध तैयार करने के लिए नर्सरी में उचित आकार की क्यारियों को बनाकर उसमें उचित मात्रा में उर्वरक डालकर मिट्टी में मिला देते हैं. उसके बाद इसके बीजों की रोपाई क्यारियों में की जाती है.

क्यारियों में जब इनके बीजों से पौधे बन जाते हैं. तब उनकी कटिंग को प्रो-ट्रे में लगाकर पौध बनाई जाती है. जिन्हें बाद में खेत में लगाया जाता हैं. इसकी पौध बनाने के बजाय इसकी कटिंग को सीधा खेतों में भी लगा सकते हैं. लेकिन इस तरह पौध लगाने पर उन्हें देखभाल की काफी ज्यादा जरूरत होती है. और पौधों की अंकुरण क्षमता भी प्रभावित होती हैं. इस कारण इसकी कटिंग से पौध तैयार करके ही लगाना अच्छा होता है.

एक एकड़ में खेती करने के लिए लगभग 25 हजार कटिंग की आवश्यकता होती है. इसकी कटिंग को प्रो-ट्रे में लगाने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए. इसकी कटिंग को उपचारित करने के लिए कटिंग को कैप्टान दवा की उचित मात्रा में डुबोकर रखा जाता है. इसके पौधे की कटिंग बनाते वक्त ध्यान रखे की प्रत्येक कटिंग की लम्बाई तीन से चार सेंटीमीटर के आसपास होनी चाहिए.

पौध की रोपाई का तरीका और टाइम

ब्राह्मी के पौधों की रोपाई समतल और मेड दोनों पर की जाती है. समतल में रोपाई करने के दौरान खेत में उचित आकार की क्यारी तैयार की जाती है. जिसमे इसके पौधों की रोपाई की जाती है. क्यारियों में इसके पौधों की रोपाई लाइन में की जाती है. लाइनों में रोपाई के दौरान प्रत्येक पौधों के बीच 20 सेंटीमीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए. और प्रत्येक लाइनों के बीच भी लगभग 20 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए. और मेड पर रोपाई के दौरान इसके पौधों की रोपाई मेड पर लगभग आधा फिट की दूरी पर की जाती है. और प्रत्येक मेड़ों के बीच लगभग 25 से 30 सेंटीमीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए.

इसकी खेती वैसे तो एक बार लगाने के बाद पूरे साल भर की जाती है. इसके लिए इसके पौधों की रोपाई उचित टाइम पर की जानी चाहिए. इसके पौधों की रोपाई का सबसे उपयुक्त टाइम बारिश का मौसम होता है. इस क्योंकि इस दौरान रोपाई करने पर इसके पौधों को विकास करें के लिए उचित वातावरण मिलता है. बारिश के मौसम में इसके पौधों की रोपाई जून के महीने में की जाती है. लेकिन जिन किसान भाइयों के पास सिंचाई की उचित व्यवस्था हो वो इसकी रोपाई मई माह के शुरुआत में भी कर सकते हैं.

पौधों की सिंचाई

ब्राह्मी के पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है. क्योंकि इसके पौधे गीली मिट्टी में अच्छे से विकास करते हैं. लेकिन शुरुआत में पौधों को विकास करने के लिए सामान्य आद्रता की ही जरूरत होती है. इसके पौधों की रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए. उसके बाद इसके पौधों के अच्छे से विकसित होने तक मिट्टी में उचित नमी बनाए रखे. इसके पौधों को विकास करने के लिए नमी की अधिक जरूरत होती है. इसलिए जब इसके पौधे अच्छे से विकास करने लगे तब पौधों को पानी अधिक मात्रा में देना चाहिए.

पौधों के विकास के दौरान पौधों में पानी की कमी ना रहने दें. इसके पौधे दलदल भूमि और जल भराव की स्थिति में अच्छे से विकास करते हैं. अधिक गर्मी के मौसम में इसके पौधों को पानी की ज्यादा जरूरत होती है. इसलिए गर्मी में मौसम में इसके पौधों की हर तीन से चार दिन बाद गहरी सिंचाई करनी चाहिए. जबकि सदियों के मौसम में इसके पौधों की 10 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए.

उर्वरक की मात्रा

ब्राह्मी की खेती में उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है. इसकी खेती के के दौरान जैविक उर्वरक के रूप में खेत की तैयारी के वक्त खेत में 12 गाड़ी प्रति हेक्टेयर की दर से पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. इसकी खेती औषधीय पौधों के रूप में की जाती है. इसलिए इसकी खेती में रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल नही करना चाहिए.

लेकिन जो किसान भाई रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं वो रासायनिक खाद के रूप में लगभग 50 किलो एन.पी.के. की मात्रा को प्रति एकड़ की दर से खेत की आखिरी जुताई के वक्त खेत में डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा पौधों के विकास के दौरान प्रत्येक पौधों को उर्वरक की आवश्यकता होती है. इसके लिए पौधों की रोपाई के लगभग 40 दिन बाद 10 किलो यूरिया की मात्रा का छिडकाव खेत में करना चाहिए. और समान मात्रा का दूसरा छिडकाव रोपाई के लगभग 90 दिन बाद करना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

ब्राह्मी की खेती औषधीय पौधों के रूप में की जाती है. इसलिए इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक तरीके से नही किया जाता है. इसकी खेती में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई के माध्यम से प्राकृतिक तरीके से किया जाता है. प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के दौरान इसके पौधों की रोपाई के लगभग 25 से 30 दिन बाद खेत में दिखाई देने वाली खरपतवार को हाथ से निकाल दें. इसके पौधों की गुड़ाई नही करनी चाहिए. क्योंकि इसकी जड़ें अधिक गहराई में नही जाती. जिससे गुड़ाई के दौरान पौधों की जड़ों में नुक्सान पहुँच सकता है. पहली बार खरपतवार को उखाड़ने के बाद दूसरी बार खरपतवार नियंत्रण लगभग एक महीने बाद करना चाहिए.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

ब्राह्मी के पौधों में सामान्य रूप से काफी कम ही रोग दिखाई देते हैं. लेकिन इसके पौधों पर कीट रोगों का प्रभाव जरुर देखने को मिलता है. जिनमें टिड्डी का आक्रमण इसके पौधों पर प्रमुख रूप से दिखाई देता है. कीट रोग इसकी पत्तियों पर आक्रमण कर उन्हें खा जाते हैं. जिससे पौधे का विकास प्रभावित होता है. और पैदावार भी काफी कम प्राप्त होती है. जबकि टिड्डियों का आक्रमण अधिक होने से सम्पूर्ण फसल ख़राब हो जाती है. जिसकी रोकथाम के लिए पौधों पर नुवोक्रोन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा नीम के आर्क या नीम के तेल का छिडकाव पौधों पर रोग दिखाई देने के तुरंत बाद करने से इनकी रोकथाम की जा सकती हैं.

पौधों की कटाई

ब्राह्मी के पौधों की एक बार रोपाई करने के बाद दो से तीन कटाई देते हैं. इसके पौध रोपाई के लगभग पांच महीने बाद पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनकी बार बार कटाई के माध्यम से पैदावार लेने के लिए इसके पौधों की कटिंग जड़ों के पास चार से पांच सेंटीमीटर की ऊंचाई से करनी चाहिए. इसके पौधों की साल में दो से तीन कटाई की जा सकती हैं.

पौधों की कटाई करने के बाद प्राप्त होने वाले उत्पाद को साफ़ पानी से होकर उसे छायादार जगहों में सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है. इसके पौधों के सूखने के दौरान काफी ध्यान रखा जाता है. क्योंकि सूखने के दौरान अगर पौधे एक ही जगह पड़े रहते हैं तो उनमें सडन पैदा हो जाती है. इसके लिए पौधों को हर रोज़ टहलाते रहना चाहिए. पौधों को सूखने के दौरान उन्हें हवा उचित मात्रा में मिलनी चाहिए. जिससे पौधे जल्दी सुख जाते हैं. जब इसकी पत्तियां अच्छे से सूख जाती हैं तब उन्हें बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता हैं.

पैदावार और लाभ

ब्राह्मी के पौधों की तीन से चार कटाई करने के बाद इसकी पत्तियों से काफी अच्छा उत्पादन मिलता है. जिसे किसान भाई बाजार में बेचकर अच्छीखासी कमाई कर सकता है. इसके अलावा अपनी फसल से अधिक उत्पादन लेने के लिए किसान भाई इसकी पत्तियों का पाउडर बनाकर भी बेच सकता है. जिससे किसान भाई को और भी ज्यादा लाभ प्राप्त होता है.

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