केंचुआ खाद को वर्मीकम्पोस्ट के नाम से भी जाना जाता है. केंचुआ खाद जल्द तैयार होने वाली एक उत्तम पोषक तत्व वाली खाद है. वर्मीकम्पोस्ट केंचुओं के द्वारा वनस्पति एवं भोजन के बचे हुए कचरे के विघटन से तैयार की जाती है. इसके अंदर नाइट्रोजन, सल्फर और पोटाश जैसे तत्व ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं. केंचुआ खाद की एक ख़ास विशेषता ये है की इसमें बदबू नही आती है. जिस कारण वातावरण प्रदूषित नही होता है.
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केंचुआ खाद कैसे बनती है?
वर्मीकम्पोस्ट केंचुआ के द्वारा जैविक पदार्थों को खाने के बाद उसके मल के रूप में बनती है. केंचुआ के द्वारा खाए गए जैविक पदार्थ केंचुआ के पाचन तंत्र से रासायनिक क्रिया और सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रिया के बाद अपशिष्ट के रूप में बाहर निकलते हैं. जिसे वर्मीकम्पोस्ट या केंचुआ खाद बोलते हैं. केंचुआ खाद दानेदार होती है. जिसका रंग काला दिखाई देता है. ये खाद डेढ़ से दो महीने में बनकर तैयार हो जाती है.
खाद बनाने के लिए आवश्यक तत्व
- केंचुआ : केंचुआ खाद बनाने के लिए सबसे जरूरी तत्व केंचुआ ही है. जो जैविक पदार्थों को खाकर वर्मीकम्पोस्ट को तैयार करता हैं. केंचुआ की मुख्य रूप से दो प्रजातियाँ पाई जाती है.
- डेट्रीटीव्होरस – इस प्रजाति का केंचुआ जमीन की ऊपरी सतह पर पाया जाता हैं. इसका इस्तेमाल खाद बनाने में किया जाता है. इनका रंग लाल दिखाई देता है.
- जीओफेगस – इस प्रजाति का केंचुआ जमीन के अंदर पाया जाता है. जो जमीन को खोखला बनता है. इस प्रजाति के केंचुए रंगहीन होते हैं.
- वर्मीबैड : वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने के लिए वर्मीबैड की जरूरत होती है. जो ईट और चुने से बना होता है. इसके अलावा वर्तमान में प्लास्टिक के कट्टों के बने वर्मीबैड भी बाज़ार में उपलब्ध हैं. जिसकी ऊंचाई तीन से चार फिट और लम्बाई, चौड़ाई का क्षेत्रफल 100 वर्ग फिट होता है.
- जैविक पदार्थ : जैविक पदार्थ के रूप में गोबर, सुखा हरा घर तथा खेती से निकला कचरा और सूखे हुए कार्बनिक जैविक पदार्थ का इस्तेमाल होता हैं. गोबर के रूप में कभी भी ताज़े गोबर का इस्तेमाल नही करना चाहिए. इन सभी को वर्मीबैड में भरने से पहले इनमें मौजूद किसी भी तरह के काँच, पत्थर या पॉलीथीन को निकालकर अलग कर दें
- पानी : वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने के लिए पानी की अहम जरूरत होती है. जिसका इस्तेमाल केंचुआ खाद बनाने के लिए उपयोग में आने वाले जैविक पदार्थों में नमी देने के लिए किया जाता है.
- वातावरण : जैविक खाद बनाने में वातावरण का भी खास योगदान होता है. इसके लिए वर्मीबैड को छायादार जगह में रखना चाहिए. क्योंकि तेज़ धूप की वजह से केंचुए मर सकते हैं.
केंचुआ खाद बनाने के लिए वर्मीबैड भरने का तरीका
केंचुआ खाद केंचुओं के द्वारा जैविक पदार्थों के विघटन से बनाई जाती है. लेकिन इन जैविक पदार्थों को वर्मीबैड में एक सही तरीके से भरने के बाद ही उच्च गुणवत्ता की वर्मीकम्पोस्ट बनकर तैयार होती है. इसके लिए वर्मीबैड को एक चरणबद्ध तरीके से भरा जाता है.
- सबसे पहले बड़े कार्बनिक या जैविक पदार्थों को तोड़कर छोटे छोटे टुकडे बना लें. इसके अलावा सुखी हुई घास, पत्ती और अन्य जैविक कचरे के टुकड़ों को काटकर उनका आकार तीन से चार सेंटीमीटर का कर लें.
- उसके बाद वर्मीबैड में एक इंच मोटी बालू रेत की परत बना दे.
- बालू रेत भरने के बाद उसमें 3 से 4 इंच मोटी सूखी और हरी जैविक कार्बनिक चीजों की परत बना दें.
- इसके बाद वर्मीबैड में 18 से 20 इंच तक सड़ी हुई पुरानी गोबर को भर दें.
- गोबर भरने के बाद वर्मीबैड में पानी का छिडकाव कर दें ताकि वर्मीबैड का तापमान सामान्य हो जाये . इसके लिए उसे पुलाव से ढककर या किसी छायादार जगह में दो से तीन दिन के लिए रख दें.
- जब वर्मीबैड में भरे कार्बनिक और जैविक पदार्थों का तापमान सामान्य हो जाए, तब उसमें आधा किलो या 5 हज़ार केंचुओं को छोड़ दें.
- केंचुओं को छोड़ने के बाद वर्मीबैड पर बारीक कटे हुए जैविक पदार्थों से की दो इंच मोटाई की एक परत बना दें.
केंचुआ खाद को तैयार करना
वर्मीबैड भरने के लगभग एक महीने बाद केंचुए खाद बनाना शुरू कर देते हैं. 25 से 30 दिन बाद केंचुओं के द्वारा तैयार की हुई खाद को जब केंचुए नीचे चले जाएँ तब निकालकर अलग कर लें. खाद को हाथ से ही निकालें ताकि केंचुओं को किसी तरह का नुक्सान ना पहुंचे. एक बार खाद निकालने के लगभग 5 से 7 दिन बाद फिर से वर्मीबैड की सतह पर खाद बनकर तैयार हो जाती है. इस तरह हर बार तैयार खाद को अलग करते रहते हैं. जब सम्पूर्ण वर्मीबैड में भरे जैविक अपशिष्ट खाद में परिवर्तित हो जाते हैं तब एकत्रित की हुई खाद को सुखा दें. और जब उसमें नमी की मात्रा 30 प्रतिशत के आसपास हो जाए तब उसे जालीदार झरने से छानकर एकत्रित कर पैकिंग बना लें.
वर्मीकम्पोस्ट में पाए जाने वाले तत्व
तत्व का नाम | तत्व की मात्रा |
नाइट्रोजन | 2.5-3.0 प्रतिशत |
फास्फोरस | 1.5-2.0 प्रतिशत |
पोटाश | 1.5-2.0 प्रतिशत |
सूक्ष्म जीवाणु | काफी ज्यादा मात्रा में |
कैल्शियम | 0.44 प्रतिशत |
मैग्नीशियम | 0.15 प्रतिशत |
वर्मीकम्पोस्ट बनाते समय रखी जाने वाली सावधानियां
केंचुआ खाद को तैयार करते वक्त कई तरह की सावधानियां रखी जाती है. जिनका पालन नही करने पर खाद की गुणवत्ता पर तो फर्क देखने को मिलता ही है. साथ में केंचुओं के मरने की संभावना भी बढ़ जाती है.
- वर्मीबैड को हमेशा छायादार जगह में ऊँचे स्थान पर बनाए.
- वर्मीबैड में नीचे की सतह में छिद्र बना दें ताकि खाद में से पानी आसानी से निकलता रहे.
- ताजे गोबर को कभी भी वर्मीबैड में ना डाले इससे केंचुए मर जाते हैं.
- खाद में नमी की मात्रा 60 प्रतिशत लगातार बनी रहे इसके लिए उसमें नमी कम होने पर पानी का छिडकाव करते रहे.
- खाद में किसी भी तरह के प्लास्टिक या कांच, पत्थर नही होने चाहिए. इससे केंचुओं के शरीर को नुक्सान पहुँचता है.
- वर्मीबैड में भरे मिश्रण का तापमान सामान्य बना रहना चाहिए.
वर्मीकम्पोस्ट के लाभ
केंचुआ खाद हर तरह से लाभदायक होता है. खेतों में इसके लाभ कई रूपों में देखने को मिलते हैं.
भूमि के लिए
- वर्मीकम्पोस्ट खाद के इस्तेमाल से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है.
- केचुआ खाद खेत में डालने से मिट्टी की जल धारण क्षमता बढती है. जिससे पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत नही पड़ती.
- भूमि का तापक्रम नियंत्रित रहता है. जिससे जल का वाष्पीकरण कम मात्रा में होता है.
- वर्मीकम्पोस्ट के इस्तेमाल से भूमि में जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि देखने को मिलती है.
- रासायनिक खादों के इस्तेमाल से प्रदूषित हो रही भूमि प्रदूषित होना बंद हो जाती है.
पर्यावरण के लिए
- वर्मीकम्पोस्ट के इस्तेमाल से वातावरण प्रदूषित नही होता है.
- सभी तरह के जैविक कचरों के खाद बनाने में इस्तेमाल होने के कारण आस पास प्रदूषण नही होता. जिससे बीमारियाँ होने की कम हो जाती है.
- इसके इस्तेमाल से गीरते भू-जल स्तर में रुकावट देखने को मिलती है. जिससे प्रकृतिक में बन रहे जल के असंतुलन में भी कमी होती है.
- वर्मीकम्पोस्ट के इस्तेमाल से भूमि और वायु प्रदूषण दोनों में कमी देखने को मिलती है.
किसानों के लिए
- केंचुआ खाद के इस्तेमाल से किसान भाइयों का रासायनिक उर्वरकों पर होने वाला उनका खर्च कम हो जाएगा. जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत बनेगी.
- वर्मीकम्पोस्ट के इस्तेमाल से भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ने से फसल का उत्पादन अच्छा होता है. जिससे अधिक लाभ मिलता है.
- रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम होगी.
- वर्मीकम्पोस्ट में मौजूद नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और अन्य सूक्ष्म द्रव्य पौधों को जल्द और भरपूर मात्रा में मिलेंगे. जिससे पौधा जल्दी विकास करता है.
- जल के कम वाष्पीकरण होने से किसानों को फसल की सिंचाई कम करनी पड़ती है.
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