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बायो फर्टिलाइजर ( जैव उर्वरक ) क्या होते है? इसके प्रकार, उपयोग और लाभ

2019-09-30T09:50:23+05:30Updated on 2019-09-30 2019-09-30T09:50:23+05:30 by bishamber 3 Comments

बायोफर्टिलाइजर को जैविक खाद, जीवाणु खाद, जैव उर्वरक और सूक्ष्मजीव उर्वरक जैसे कई नामों से जाना जाता है. भारत में जैव उर्वरकों का निर्माण 1956 में व्यापारिक उद्देश्य से किया गया था. जिसका प्रचार सरकार द्वारा 9वीं पंचवर्षीय योजना में विभिन्न योजनाओं के माध्यम से किया गया. बायोफर्टिलाइजर को प्रकृति में पाए जाने वाले कार्बनिक और अपशिष्ट पदार्थ के माध्यम से तैयार किया जाता है. जो हर तरह से लाभदायक होता है. जैव उर्वरक आज कई तरह से बनाया जाता है. जिसमें केंचुआ खाद, कम्पोस्ट खाद, नाडेप खाद ये सभी इनको बनाने के तरीके और विधियाँ हैं. जिनके इस्तेमाल से बायोफर्टिलाइजर तैयार किये जाते हैं.

Table of Contents

  • जैव उर्वरक (बायोफर्टिलाइजर) क्या होता है?
  • जैव उर्वरक में पाए जाने वाले तत्व की क्रिया विधि
  • बायोफर्टिलाइजर के प्रकार
    • नाइट्रोजन यौगिकीकरण करने वाले
      • राइजोबियम
      • एजोला
      • एजोटोबैक्टर
      • एजोस्पाइरिलम
      • नील हरित शैवाल
    • फॉस्फोरस घुलनशीलता के लिए
    • पोटाश व आयरन घुलनशीलता के लिए
    • प्लांट ग्रोथ प्रमोटिंग राईजोबैक्टिरिया
    • माइकोराइजा कवक
  • बायोफर्टिलाइजर के उपयोग
    • कंद उपचार विधि
    • जड़ उपचार विधि
    • मिट्टी उपचार विधि
    • बीज उपचार विधि
  • बायोफर्टिलाइजर के लाभ
जैव उर्वरक (बायोफर्टिलाइजर)

वर्तमान में खेती के लिए किसानों की जैव उर्वरकों पर निर्भरता बढती जा रही है. क्योंकि जैव उर्वरकों के इस्तेमाल से किसान भाई भूमि से कम खर्च में अधिक उत्पादन प्राप्त कर रहे हैं. और साथ में खेत की मिट्टी की उर्वरक क्षमता में भी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. इसके अलावा ये वातावरण के लिए भी उपयोगी होते है. एक ग्राम मिट्टी में को उपजाऊ बने रहने के लिए लगभग दो से तीन अरब सूक्ष्म जीवाणुओं की जरूरत होती है. जिनकी मात्रा रासायनिक खाद से ज्यादा जैव उर्वरकों में पाई जाती है.

जैव उर्वरक (बायोफर्टिलाइजर) क्या होता है?

जैव उर्वरक कृषि से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा जैविक चीजों में पाए जाने वाले कृषि योग्य प्राकृतिक जीवाणुओं के इस्तेमाल से तैयार किया गया उर्वरक है. जो पूर्ण रूप से पर्यावरण के अनुकूल होता है. या फिर फिर दूसरी परिभाषा में “राइजोबियम कल्चर से तैयार किये गए माइक्रोब्स को पाउडर का रूप देने के बाद उसे खास तरह की मिट्टी (लिग्नाइट या पिट) में मिलाकर तैयार किये गए मिश्रण को जैव उर्वरक कहा जाता है.”

जैव उर्वरक में पाए जाने वाले तत्व की क्रिया विधि

जैव उर्वरक पूरी तरह से प्रकृति के अनुकूल होता है, जो एक प्रकार का जीव होता है. इसके अंदर कई तरह के तत्व और सूक्ष्म जीव मौजूद होते हैं, जो इसकी गुणवत्ता के साथ साथ मिट्टी की गुणवत्ता को भी बढ़ाते हैं. बायोफर्टिलाइजर कवक, सायनोबैक्टीरिया और जीवाणु के मुख्य स्रोत के रूप में काम करता है. जिनका सम्बन्ध द्विबीजपत्री पादपों ( दलहन और फली वाले पादप ) की जड़ों की ग्रंथियों में मौजूद राइजोबियम से होता है. जो वायुमंडल की नाइट्रोजन को कार्बनिक रूप में परिवर्तित कर पौधों को पोषक तत्व प्रदान करता है.

जैव उर्वरक में ग्लोमस जीनस के सदस्य जीवाणु पाए जाते हैं जो माइकोराइजा का निर्माण करते हैं. माइकोराइजा पौधों के साथ सहजीवी सम्बन्ध बनाता है. जो भूमि में से फोस्फोरस को ग्रहण कर पौधों तक पहुँचता है. इनके अलावा सायनोबैक्टीरिया जैसे और भी कई सूक्ष्म जीव पाए जाते हैं. इनके अलावा एजोस्पाइरिलम तथा एजोटोबैक्टर भी इसमें मुक्त अवस्था में रहते हैं. जिनका कार्य भी भूमि में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर करने का है. जिस कारण मिट्टी में नाइट्रोजन के तत्व बढ़ जाते हैं.

बायोफर्टिलाइजर के प्रकार

बायोफर्टिलाइजर कई प्रकार का होता है. जिसे उसमें पाए जाने वाले तत्वों के आधार पर तैयार किया जाता है.

नाइट्रोजन यौगिकीकरण करने वाले

नाइट्रोजन यौगिकीकरण की क्रिया में वायुमंडल की नाइट्रोजन को जीवाणुओं द्वारा जैविक प्रक्रिया के माध्यम से पौधों और जीवों के लिए लाभदायक अणुओं में परिवर्तित किया जाता है. इसमें एजोस्पाइरिलम, एज़ोटोबैक्टर, राइजोबियम और एजोला जैसे जीवाणु आते हैं.

राइजोबियम

राइजोबियम मुख्य रूप से तिलहनी और दलहनी फसलों की जड़ों में सहजीवी के रूप में रहकर नाइट्रोजन की आपूर्ति करता है. राइजोबियम को बीजों के साथ मिलाकर बोया जाता है. जिससे ये पौधों की जड़ों में जल्द ही प्रवेश कर जाता है. जिससे जड़ों में छोटी छोटी गांठे बन जाती है. इन गाठों में सूक्ष्म जीवाणु बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं. जो पौधों को वायुमंडल की नाइट्रोजन प्रदान करते हैं.

एजोला

एजोला पानी की सतह पर पाई जाने वाली फर्न है. जो शैवाल की तरह दिखाई देती है. इसका इस्तेमाल धान की खेती में अधिक किया जाता है. जो पौधों में हरे खाद के रूप में कार्य करती है. एजोला की पंखुड़ियो में एनाबिना नामक एक सूक्ष्म जीव पाया जाता है, जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण कर पौधों में नाइट्रोजन की आपूर्ति करता है. इसका इस्तेमाल जैव उर्वरक के स्रोत के रूप में मुख्य रूप से होता है.

एजोटोबैक्टर

एजोटोबैक्टर स्वतंत्र रूप से रहने वाला सूक्ष्म जीवाणु हैं. जो पौधों की जड़ों में स्वतंत्र रूप से रहकर वायुमंडल की नाइट्रोजन को पोषक तत्वों के रूप में पौधों को प्रदान करता हैं. इसके अलावा ये पौधों की वृद्धि में सहायक हार्मोन (इण्डोल एसिटिक एसिड और जिब्रेलिक अम्ल ) के निर्माण के साथ साथ एंटीबायोटिक्स का भी निर्माण करता है. जो पौधों को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करती हैं.

एजोस्पाइरिलम

एजोस्पाइरिलम वायुमंडल में पाई जाने वाली नाइट्रोजन को स्थिरीकरण करने वाला सूक्ष्म जीवाणु है. जो अनाज वाली फसलों के लिए नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर पौधों को पोषक तत्व के रूप में प्रदान करता है. जिससे पौधों की उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है.

नील हरित शैवाल

नील हरित शैवाल एक जैविक खाद है. जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण कर पौधों में नाइट्रोजन की आपूर्ति करती है. नील हरित शैवाल को किसान भाई आसानी से उत्पन्न कर सकते हैं. यह सामान्य रूप से धान के लिए बहुत उपयोगी होती है. क्योंकि ये धान की फसल में 25 से 30 नाइट्रोजन की पूर्ति करती है. और मिट्टी की पी.एच. मान को नियंत्रित करती है.

फॉस्फोरस घुलनशीलता के लिए

पी.एस.बी. भूमि में पाई जाने वाली अघुलनशील फॉस्फोरस को पोषक तत्व के रूप में परिवर्तित कर उसे पौधों को घुलाशील फॉस्फोरस के रूप में प्रदान करता है. जिससे पौधों में फॉस्फोरस की आपूर्ति होती है. इसमें मिट्टी में पाई जाने वाली अघुलनशील फॉस्फोरस के परिवर्तन का काम बैसिलस, स्यूडोमोनास, पेनिसिलियम और एसपरजिलस जीवाणु करते हैं.

पोटाश व आयरन घुलनशीलता के लिए

एसीटोबैक्टर, फ्रैच्युरिया और बैस्लिस जैसे सूक्ष्म जीवाणु मिट्टी में पाए जाने वाले अघुलनशील पोटाश और आयरन तत्वों को घुलनशील रूप में परिवर्तन कर पौधों को पोषक तत्वों के रूप में प्रदान करते हैं. जिससे पौधों के विकास में वृद्धि देखने को मिलती है. और पैदावार भी अधिक प्राप्त होती है.

प्लांट ग्रोथ प्रमोटिंग राईजोबैक्टिरिया

प्लांट ग्रोथ प्रमोटिंग राईजोबैक्टिरिया तत्व वाले उर्वरक पौधों को विकास करने में सहायता प्रदान करते है. और पौधों को लगने वाले रोगों से बचाते हैं. प्लांट ग्रोथ प्रमोटिंग राईजोबैक्टिरिया के रूप में फ्रलोरिसैंट, फ्रलैवोबैक्टिरिया, स्यूडोमोनास और राईजोबिया नामक जीवाणु कार्य करते हैं.

माइकोराइजा कवक

माइकोराइजा कवक पौधों को फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और सूक्ष्म पोषक तत्वों को ग्रहण करने की क्षमता प्रदान करता हैं. यह पौधों की जड़ों में सहजीवी का काम करता है. जिसका काम मिट्टी में पाए जाने वाले पोषक तत्वों को पौधों तक पहुँचाना हैं.

बायोफर्टिलाइजर के उपयोग

बायोफर्टिलाइजर यानी जैव उर्वरक का उपयोग बीज और मिट्टी को उपचारित करने के लिए किया जाता है. बीज उपचार के रूप में इसका इस्तेमाल अलग अलग तरह से किया जाता है.

कंद उपचार विधि

कंद उपचार विधि का इस्तेमाल कंद के रूप में उगाई जाने वाली फसलों में किया जाता है. इस विधि में एजोटोबैक्टर और पीएसबी जैव उर्वरक की एक-एक किलो मात्रा को 25 से 30 लीटर पानी में डालकर घोल तैयार किया जाता है. उसके बाद घोल में कंदों को रोपाई से पहले 10 से 15 मिनट तक डुबोकर रखा जाता है.

जड़ उपचार विधि

जड़ उपचार विधि में फास्फोरस विलायक जीवाणु और एज़ोटोबैक्टर की एक-एक किलो मात्रा को पाँव भर गुड के साथ 6 लीटर के आसपास पानी में डालकर घोल तैयार कर लिया जाता है. जिसमें जड़ के माध्यम से लगाई जाने वाली फसलों के पौधों को खेत में लगाने से पहले उपचारित किया जाता है.

मिट्टी उपचार विधि

मिट्टी को उपचारित करने के लिए आवश्यक जैव उर्वरक की उचित मात्रा का छिडकाव खेत की जुताई के वक्त कर दें. इससे जैव उर्वरक भूमि की उपजाऊ क्षमता को बढ़ा देते हैं.

बीज उपचार विधि

इसके लिए उचित जैव उर्वरक को 100 ग्राम गुड के साथ एक लीटर पानी में डालकर मिश्रण तैयार कर लें. इस मिश्रण को लगभग 20 किलो बीज में छिड़कर मिला दें. उसके बाद बीज को सुखाकर खेत में रोपाई कर दें.

बायोफर्टिलाइजर के लाभ

बायोफर्टिलाइजर के खेती में कई लाभ देखने को मिलते हैं.

  1. बायोफर्टिलाइजर जमीन की उर्वरक क्षमता को बढ़ा देते हैं.
  2. इनके उपयोग से पौधों का विकास अच्छे से होता है. और पौधों में अधिक मात्रा में शाखाएं निकलती हैं.
  3. पौधों में रासायनिक खाद की आपूर्ति करते हैं. जिससे रासयनिक खादों की जरूरत नही पड़ती.
  4. इनके उपयोग से फसल का उत्पादन अधिक मिलता है.
  5. भूमि के पी.एच. मान में परिवर्तन आता है. जिससे भूमि अधिक उपजाऊ बनती है.

Filed Under: उर्वरक, जैविक खेती

Comments

  1. pandit singh says

    August 10, 2020 at 6:34 pm

    chai ki kheti

    Reply
  2. pandit singh says

    August 10, 2020 at 6:35 pm

    Chinese lagne wali bimari

    Reply
  3. Anand Kumar says

    March 20, 2021 at 1:52 am

    marcha ki kheti kaise hoti hai

    Reply
  4. keshavrjput says

    March 31, 2022 at 7:25 am

    keshavrana ji ki jai r nat rev mol 5

    Reply

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