सहफसली खेती क्या होती है, और इसके फायदे

भारत एक कृषि प्रधान देश हैं. देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का एक बहुत बड़ा योगदान हैं. लेकिन फिर भी देश का किसान काफी पिछड़ा हुआ है. आज देश के किसान की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि वो आत्महत्या करने लगा है. जिसका आंकड़ा साल दर साल बढ़ रहा है. जिनको रोकने के लिए सरकार द्वारा भी काफी योजना की लाई गई हैं ताकि किसान भाइयों की आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सके.

सहफसली खेती

लेकिन किसानों की आर्थिक स्थिति खराब होने का मुख्य कारण पुराने तरीके से एक ही तरह की खेती करना है. अगर किसान भाई उन्नत तरीके से खेती करे तो वो अपनी स्थिति खुद बेहतर कर सकता है. आज हम आपको खेती की एक ऐसी तकनीकी ( जिसे सहफसली खेती के नाम से जानते है )के बारें में बताने वाले हैं. जिसके माध्यम से किसान भाई अपनी आर्थिक स्थिति को खुद और भी बेहतर बना सकता है.

सहफसली खेती क्या हैं.

सहफसली खेती एक ऐसी तकनीकी खेती हैं जिसमें एक मुख्य फसल के साथ अन्य तरह की और भी कई फसलों को किसान भाई उगा सकते हैं. इस तकनीकी से खेतों में दिए जाने वाले पोषक तत्वों का इस्तेमाल भी सभी के द्वारा सामान रूप से होता है. यानी मुख्य फसल के लिए आवश्यक पोषक तत्वों से ही सहफसल के पौधे अपने लिए आपूर्ति कर लेते हैं.

सहफसली खेती में फसलों का चयन

सहफसली खेती के लिए फसलों का चयन करना काफी अहम होता है. क्योंकि अगर फसलों का चयन अच्छे से नही किया जाए तो इस खेती से नुक्सान भी उठाना पड़ सकता है.

अनाज वाली फसलों में

अनाज वाली फसलों में सहफसल की खेती के रूप में तिलहन और सब्जी फसल को उगा सकते हैं. अनाज की सहफसल खरती में इन फसलों को एक ख़ास अनुपात में उगाया जाता है. जैसे गेहूँ की फसल के साथ हम सरसों या राई को सह फसल के रूप में उगा सकते हैं. इसके लिए इन दोनों फसलों के का अनुपात 9:1 होना चाहिए. यानी 9 गेहूँ की लाइन के बाद एक राई या सरसों की लाइन होनी चाहिए. बात करें मक्का की फसल के बारें में तो मक्का के साथ पत्ता गोभी को लगा सकते हैं. इन दोनों को खेत में 1:1 के अनुपात में लगाते हैं.

बागवानी फसलों में

बागवानी फसल तो सहफसल का सबसे बड़ा उदाहरण है. बागवानी फसलों के साथ कई तरह की सह फसलों को आसानी से उगाया जा सकता है. बागवानी के रूप में उगाई जाने वाली ज्यादातर फसल शुरुआत में तीन साल के बाद पैदावार देना शुरू करती हैं. इस दौरान खेत में बाकी बची भूमि में किसान भाई किसी भी तरह की सब्जी या अनाज फसल को उगा सकते हैं. इसके अलावा पपीता जैसी कम समय वाली फसल को भी उगा सकते हैं.

सब्जी फसलों में

सब्जी फसलों में भी सहफसल खेती की जा सकती है. जैसे लता वाली सब्जी फसल को अगर किसान भाई समतल भूमि में धोरेनुमा क्यारी बनाकर उगाते हैं तो उन क्यारियों के बीचोंबीच बैंगन और टमाटर जैसी फसल को उगा सकते हैं. इसके अलावा गेहूँ और सरसों की फसल के साथ आलू की फसल को किसान भाई उगा सकते हैं. सरसों की खेती में 3:1 के अनुपात में किसान भाई आलू को उगा सकते हैं.

व्यापारिक फसल में

भारत में व्यापारिक फसल के रूप में उन फसलों की खेती की जाती है जिन्हें अधिक समय तक भंडारित नही किया जा सकता. जिनमें गन्ना, सब्जियां और कई तरह को औषधीय फसलें शामिल हैं. जिन्हें सहफसल के रूपं में उगाकर किसान भाई अच्छी कमाई कर सकते हैं. जैसे गन्ने के साथ किसान भाई मटर और आलू जैसी सब्जी फसल उगा सकते हैं. इसके अलावा और भी कई कम समय वाली सब्जी और मसाला फसलों को गन्ने के साथ उगा सकते हैं.

मसाला फसलों में

मसाला फसलों में भी सहफसल खेती की जा सकती है. जैसे आलू के साथ लहसुन को उगाया जा सकता है. इसके अलावा प्याज के साथ लहसुन और गन्ने के साथ धनिया को उगाया जा सकता है.

दलहनी फसलों में

सहफसल की खेती में दलहनी वाली फसल सबसे ज्यादा फायदेंमंद होती है. दलहनी फसलों को सहफसल के रूप में उगाने से पौधों को उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन मिलती है. जिस कारण दलहनी फसलों को लगभग सभी फसलों के साथ उगाना लाभदायक होता है.

सहफसल खेती के लिए फसलों के चयन में ध्यान रखने योग्य बातें

सहफसल खेती करने के लिए फसलों के चयन में कई तरह की सावधानियों की जरूरत होती हैं. जिनका पालन अगर किसान भाई नही करता है तो सहफसल खेती से नुक्सान भी हो सकता है.

  1. दोनों फसलें एक ही प्रजाति की नही होनी चाहिए.
  2. भूमि से पोषक तत्व ग्रहण करने का स्तर अलग अलग होना चाहिए.
  3. फसल के पकने का समय अलग अलग होना चाहिए.
  4. दोनों फसलों को सूर्य का प्रकाश मिलता रहे ऐसी वयवस्था होनी चाहिए.
  5. अगर हो सके तो एक दलहनी फसल को साथ में जरुर लें.

सहफसली खेती के लाभ

सहफसली खेती का मुख्य लाभ ये है की किसान भाई को अगर एक फसल से फायदा ना हो दूसरी फसल उसके नुक्सान की भरपाई कर देती है. जिससे किसान भाई को आर्थिक परेशानी का सामना नही करना पड़ता. इसके अलावा एक ही उर्वरक की मात्रा में दो फसल मिल जाती है. जिससे खेती से कम खर्च में अधिक उत्पादन मिलता है.

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