मुलेठी की खेती औषधीय फसल के रूप में की जाती है. जिसे अलग अलग जगहों पर अतिमधुरम, इरत्तिमधुरम, यष्टिमधु और मुलहठी के नाम से भी जाना जाता है. मुलेठी का उत्पति स्थान अरब देशों के अलावा ईरान, तुर्किस्तान और अफगानिस्तान को माना जाता है. इसका पौधा झाड़ीनुमा होता है. जिसकी लम्बाई 2 मीटर तक पाई जाती है. मुलेठी के पौधे में बीज भूमि की सतह से ऊपर लगते हैं. लेकिन ज्यादा उपयोगी इसकी जड़ें होती है. जिसका इस्तेमाल औषधियों के निर्माण में किया जाता है.
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मुलेठी की जड़ें उदरशूल क्षयरोग, खांसी, श्वासनली की सूजन, गले की खराश, मिरगी और शरीर की अंदरूनी चोट जैसी और भी कई तरह की बिमारियों में बहुत लाभकारी होती है. मुलेठी की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक चिकित्सा में सबसे ज्यादा किया जाता है. इसका स्वाद मीठा और हल्का अम्लीय होता है. इसकी जड़ों का इस्तेमाल ताज़ा और सुखाकर किया जाता है.
मुलेठी की खेती के लिए हल्की क्षारीय भूमि उपयुक्त होती है. मुलेठी की खेती ज्यादातर ऊँचे प्रदेशों में की जाती है. इसकी खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु को उपयुक्त माना गया है. भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से देहरादून, जम्मू-कश्मीर, सहारनपुर और मसूरी में की जाती है. इसकी खेती के लिए सामान्य बारिश की जरूरत होती है.
अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
मुलेठी की खेती के लिए उपजाऊ और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर रेतीली दोमट मिट्टी की जरूरत होती है. मुलेठी की खेती के लिए भूमि में जल निकासी की सुविधा अच्छी होनी चाहिए. क्योंकि जल भराव की वजह से पौधों में रोग लग जाते हैं. इसकी खेती हलकी क्षारीय भूमि में भी की जा सकती हैं. इसकी खेती के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 6 से 8.2 के बीच होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
मुलेठी की खेती के लिए उष्ण और समशीतोष्ण दोनों जलवायु उपयुक्त होती है. मुलेठी के पौधे गर्मियों के मौसम में अच्छे से विकास करते हैं. जबकि सर्दी का मौसम इसकी खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त नही होता. मुलेठी की खेती के लिए 50 से 100 सेंटीमीटर वर्षा वाले भाग उपयुक्त होते हैं. मुलेठी के पौधों को विकास करने के लिए सूर्य की सीधी धूप की जरूरत होती है. इसलिए इसे छायादार जगहों में नही उगाना चाहिए.
मुलेठी की खेती के लिए तापमान भी काफी अहम होता है. शुरुआत में इसके बीजों के अंकुरण के वक्त 18 से 20 डिग्री तापमान की जरूरत होती हैं. पौधों के अंकुरण के बाद विकास करने के लिए आदर्श तापमान सबसे उपयुक्त होता है. इसके पौधे सर्दियों में न्यूनतम 5 डिग्री और गर्मियों में अधिकतम 27 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. इससे कम या ज्यादा तापमान होने पर पौधों के विकास पर प्रभाव पड़ता हैं.
उन्नत किस्में
मुलेठी की भारत में काफी कम उन्नत किस्में हैं. मुलेठी को ज्यादातर भारत में आयात किया जाता है. लेकिन हाल में कृषि वैज्ञानिकों मुलेठी के उत्पादन पर जोर दे रहे हैं. और जल्द ही इसकी काफी किस्में प्रचलन में आने वाली हैं.
हरियाणा मुलेठी न.1
मुलेठी की इस किस्म को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार ने तैयार किया है. यह भारत की पहली विकसित की गई किस्म हैं. जिसकों सम्पूर्ण भारत में उगाया जाता है. इसके पौधे तीन साल के आसपास पैदावार देना शुरू कर देते हैं. जिनका उत्पादन और गुणवत्ता काफी अच्छी होती है. इस किस्म के पौधों पर लम्बी, चौड़ी और गहरे हरे रंग की पत्तियां पाई जाती हैं. इसकी जड़ों की लम्बाई अधिक होती है. जिनमें ग्लिसराइजिक एसिड की मात्रा भी काफी ज्यादा पाई जाती है.
G. glabra
मुलेठी की ये एक विदेशी किस्म है. जिसे ईराक, ईरान, चीन और मध्य एशिया में उगाया जाता है. इसका पौधा सामान्य ऊंचाई का होता है. जो ढाई साल बाद पैदावार देता हैं. भारत में इस किस्म की जड़ों को आयात किया जाता है. मुलेठी की इस किस्म को अब उत्तर भारत के पर्वतीय भागों में भी उगाया जाने लगा है.
खेत की तैयारी
मुलेठी की खेती गन्ने की फसल की तरह की जाती है. इसकी खेती के लिए पहले खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को हटाकर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दें. खेत की जुताई करने के बाद खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें. ताकि सूर्य की तेज़ धूप से मिट्टी में पाए जाने वाले हानिकारक कीट नष्ट हो जाएँ. उसके बाद खेत में जैविक खाद के रूप में पुरानी गोबर की खाद को डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर दें.
जुताई के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेव कर दें. पलेव करने के बाद जब जमीन की ऊपरी सतह हलकी सुखी हुई दिखाई दें तब खेत की फिर से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल बना दें. ताकि बारिश के मौसम में खेत में जल भराव की समस्या का सामन ना करना पड़े. और पैदावार को भी नुकसान ना पहुंचे.
बीज की मात्रा और उपचार
मुलेठी की खेती के लिए बीज के रूप में इसकी जड़ों का इस्तेमाल किया जाता हैं. एक एकड़ भूमि में मुलेठी की रोपाई के लिए 100 से 125 किलो जड़ की जरूरत होती है. इसकी जड़ों का चयन करते समय जड़ों की लम्बाई 7 से 9 इंच के बीच होनी चाहिए. इसके बीजों को खेत में रोपाई से पहले उन्हें गोमूत्र से उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि बीजों के अंकुरण के वक्त किसी भी तरह का कोई रोग दिखाई दे.
बीज रोपाई का तरीका और टाइम
मुलेठी के पौधे एक बार रोपाई करने के बाद ढाई से तीन साल के आसपास पैदावार देते हैं. इसके कंदों की रोपाई गर्मी और बरसात के मौसम में की जाती है. गर्मियों के मौसम में जहाँ पानी की उचित व्यवस्था हो वहां इसे मध्य फरवरी से मार्च के महीने तक उगा सकते हैं. लेकिन जहां पानी की उचित व्यवस्था ना हो वहां इसे बारिश के मौसम में जुलाई महीने में उगाना अच्छा होता है.
मुलेठी की जड़ों की रोपाई गन्ने के कंदों की तरह ही की जाती है. इसके कंदों की रोपाई समतल भूमि में और मेड बनाकर की जाती है. समतल भूमि में इसकी रोपाई के दौरान इसे पंक्तियों में लगाया जाता है. इस दौरान प्रत्येक पंक्तियों के बीच तीन फिट के आसपास दूरी रखी जानी चाहिए. और पंक्ति में पौधों के बीच दो फिट के आसपास दूरी होनी चाहिए.
मेड पर इसके कंदों की रोपाई के दौरान मेड़ों के बीच ढाई से तीन फिट के बीच दूरी होनी चाहिए. और मेड़ों पर लगाए गए प्रत्येक पौधों के बीच डेढ़ से दो फिट की दूरी उपयुक्त होती है. मुलेठी के कंदों को दोनों तरह से रोपाई के दौरान 5 से 7 सेंटीमीटर की गहराई में उगाना चाहिए. ताकि उनका अंकुरण प्रभावित ना हो पायें.
पौधों की सिंचाई
मुलेठी के कंदों की रोपाई के तुरंत बाद उनकी हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए. उसके बाद पौधों के अंकुरित होने तक उन्हें हल्का पानी देते रहना चाहिए. पौधों के अंकुरित होने के बाद सर्दियों के मौसम में उनकी महीने में एक बार सिंचाई करनी चाहिए.
गर्मियों के मौसम में पौधों की पानी की थोड़ी ज्यादा जरूरत होती है. इस दौरान पौधों की 10 से 15 दिन के अंतराल में सिंचाई करते रहना चाहिए. बरसात के मौसम में पौधों को सिंचाई की जरूरत काफी कम होती है. इस दौरान पौधों की सिंचाई आवश्यकता के अनुसार ही करनी चाहिए.
उर्वरक की मात्रा
मुलेठी की खेती में उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है. इसकी खेती के लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त प्रति हेक्टेयर 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को जैविक खाद के रूप में मिट्टी में छिडककर अच्छे से मिट्टी में मिला दें. मुलेठी की खेती औषधीय पौधे के रूप में की जाती है. इसलिए इसमें हो सके तो सिर्फ जैविक खाद का ही इस्तेमाल करना चाहिए. लेकिन जो किसान भाई रासायनिक खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं. वो प्रति हेक्टेयर एक बोरा एन.पी.के. को खेत में आखिरी जुताई के वकत छिडककर मिट्टी में मिला दें.
खरपतवार नियंत्रण
मुलेठी की खेती लगभग तीन साल तक की जाती है. इस दौरान इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से ही किया जाना चाहिए. इसके लिए शुरुआत में पौधों की रोपाई के लगभग एक महीने बाद पौधों की हलकी गुड़ाई कर खरपतवार निकाल देनी चाहिए. उसके बाद पहले साल में दो से तीन महीने के अंतराल में चार से पांच गुड़ाई कर दें. और दूसरे साल में पौधों की दो से तीन गुड़ाई काफी होता है. दूसरे साल में पौधों की गुड़ाई मार्च महीने में करनी चाहिए. क्योंकि सर्दियों में इसके पौधे की पत्तियां गिर जाती है. जिनका इस्तेमाल पौधों को पोषक तत्व देने के रूप में किया जा सकता हैं. जबकि तीसरे साल में इसके पौधे खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसलिए नीलाई की जरूरत काफी कम होती है.
पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
मुलेठी के पौधों में काफी कम ही रोग देखने को मिलते हैं. लेकिन कुछ कीट जनित रोग होते हैं जो पौधों की काफी नुक्सान पहुँचाते हैं. जिनकी रोकथाम रोग लगने पर तुरंत कर देनी चाहिए. कीटों की रोकथाम के लिए रासायनिक कीटनाशक की जगह जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल करना अच्छा होता हैं.
सफ़ेद धब्बा रोग
मुलेठी के पौधों में सफ़ेद धब्बा का रोग जीवाणु जनित रोग है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग बढ़ने पर धब्बों का आकार बढ़ने लगता हैं. जिससे पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देते हैं. और पौधों का विकास रुक जाता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के काढ़े का छिडकाव करना चाहिए. लेकिन अगर रोग अधिक बढ़ जाए तो पोटाशियम बाइकार्बोनेट का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
हरी सुंडी
मुलेठी के पौधों में लगने वाला ये एक कीट जनित रोग हैं. इस रोग का प्रभाव पौधे की पत्तियों और कोमल भागों पर देखने को मिलता है. इस रोग की सुंडी पौधे के कोमल भागों को खाकर और उनका रस चूसकर पौधों को नुक्सान पहुँचाती हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल का छिडकाव 10 दिन के अंतराल में दो बार करना चाहिए.
जड़ गलन
मुलेठी के पौधों में जल गलन का रोग अधिक समय तक खेत में पानी भरे रहने की वजह से लगता है. इस रोग के लगने पर पौधे जल्द खराब हो जाते हैं. और पैदावार को काफी नुक्सान पहुँचाता है. इसकी रोकथाम के लिए खेत में जलभराव की स्थिति ना बनने दें.
पौधों की खुदाई
मुलेठी का पौधा रोपाई के लगभग तीन साल के आसपास खुदाई के लिए तैयार हो जाता है. इस दौरान इसके पौधों की खुदाई कर लेनी चाहिए. मुलेठी के पौधों की खुदाई से पहले पौधों में पानी छोड़ देना चाहिए. ताकि खुदाई आसानी से की जा सकते. पौधों की खुदाई के दौरान उन्हें दो से ढाई फिट की गहराई तक खोदना चाहिए.
मुलेठी के पौधों की खुदाई के लिए किसान भाई विशेष हलों का इस्तेमाल करते हैं. ताकि मुलेठी की खुदाई में अधिक कठिनाई ना हो. मुलेठी की खुदाई के बाद खेत में कुछ गाठें बच जाती है. जो फिर से उग आती है. जिन्हें किसान भाई फिर से खेती के रूप में इस्तेमाल कर सकता हैं. मुलेठी की खुदाई के बाद प्राप्त गांठों को अच्छे से धोकर साफ़ कर लेना चाहिए. गाठों को साफ़ करने के बाद उन्हें तेज़ धूम में कुछ दिन सूखा देना चाहिए. और जब गाठों में 10 प्रतिशत पानी शेष बचे तब उन्हें बाज़ार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए.
पैदावार और लाभ
मुलेठी की विभिन्न किस्मों का प्रति एकड़ औसतन उत्पादन 30 से 35 किवंटल के आसपास पाया जाता है. जिसका बाज़ार भाव 130 से 180 रूपये प्रति किलो के बीच पाया जाता है. इस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक एकड़ से ढाई से तीन साल में चार लाख के आसपास कमाई कर लेता है.