जरबेरा फूल की खेती किसान भाई नगदी फसल के रूप में करते हैं. जरबेरा फूल एक बहुवर्षीय फूल हैं. जिसकी उत्पत्ति अफ्रीका में हुई थी. इसकी लगभग 70 अलग अलग प्रजातियाँ मौजूद हैं. जरबेरा फूल अपनी सुंदरता की वजह से काफी पसंद किया जाता है. इसके फूल तना रहित होते हैं. जो कई रंगों में पाए जाते हैं. इसके फूल कई दिनों तक ताज़ा दिखाई देते हैं. जिस कारण इनका इस्तेमाल सजावट के रूप में अधिक किया जाता है. जरबेरा फूल कई तरह के रंगों में पाया जाता है. और इसके पौधे गर्मियों के मौसम में आसानी से उगाये जा सकते हैं. इसलिए आम इंसान इसे गर्मियों में अपने घर, आँगन और बगीचों में लगाकर उन्हें रंगीन और मनमोहक बना सकते हैं.
Table of Contents
जरबेरा की खेती के लिए समशीतोष्ण और उष्ण जलवायु को सबसे उपयुक्त माना जाता हैं. इसकी खेती के लिए लिए सर्दी के मौसम को उपयुक्त नही माना जाता. क्योंकि सर्दी के मौसम में पड़ने वाले पाले और तेज़ सर्दी की वजह से इसके पौधे अच्छे से विकास नही कर पाते हैं. इसकी खेती हल्की क्षारीय मिट्टी में भी की जा सकती हैं. वर्तमान में इसके फूलों की मांग बढती जा रही है. भारत में इसकी खेती पश्चिम बंगाल, उत्तरांचल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और अरुणाचल प्रदेश में अधिक की जाती है.
अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
जरबेरा की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है. लेकिन अधिक उत्पादन लेने के लिए इसे कार्बनिक पदार्थों से भरपूर बलुई दोमट मिट्टी में उगाना चाहिए. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 5 से 8 के बीच होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
जरबेरा की खेती के लिए उष्ण और समशीतोष्ण जलवायु को उपयुक्त माना जाता है. जरबेरा की खेती के लिए सर्दियों का मौसम उपयुक्त नही होता. सर्दियों में इसका पौधा अच्छे से विकास नही कर पाता. जबकि गर्मी और बरसात के मौसम में इसके पौधे आसानी से विकास कर लेते हैं. अधिक तेज़ गर्मियों के मौसम में इसके पौधे को हल्की छायादार जगह और अधिक सिंचाई की जरूरत होती हैं.
जरबेरा के बीजों को अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. बीजों के अंकुरित होने के बाद इसके पौधे गर्मियों में अधिकतम 35 डिग्री तापमान पर आसानी से विकास कर सकते हैं. इसके अलावा सर्दियों में इसको उन जगहों पर उगाया जा सकता हैं जहां रात में तापमान 10 डिग्री के आसपास रहता हो. इसकी खेती के लिए दिन में 25 डिग्री और रात में 15 डिग्री तापमान को सबसे उपयुक्त माना जाता है.
उन्नत किस्में
जरबेरा की कई उन्नत किस्म बाज़ार में उपलब्ध हैं. इन किस्मों को फूलों के रंग और उनकी पैदावार के आधार पर तैयार किया गया हैं.
लाल फूल वाली किस्में – फ्रेडोरेल्ला, रुबीरेड, वेस्टा, तमारा, साल्वाडोर और रेड इम्पल्स
पीले फूल – फ्रेडकिंग, सुपरनोवा, मेमूट, नाडजा, फूलमून, डोनी, यूरेनस, तलासा और पनामा
नारंगी फूल – कोजक, कैरेरा, मारा सोल, ऑरेंज क्लासिक और गोलियथ
गुलाबी फूल – पिंक एलिगेंस, टेरा क्वीन, वेलेंटाइन, मारा, रोसलिन और सल्वाडोर
क्रीमी और सफ़ेद फूल – डालमा, फरीदा, विंटर क्वीन, डेल्फी, स्नोफ्लेक और व्हाइट मारिया
जामुनी फूल – ट्रीजर और ब्लैक जैक
खेत की तैयारी
जरबेरा की खेती के लिए मिट्टी का भुरभुरा और साफ़ होना जरूरी है. इसके लिए शुरुआत में खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर दे. पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट करने के बाद खेत में पलाऊ लगाकर खेत की गहरी जुताई कर दें और उसके बाद खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें. खेत को खुला छोड़ने की वजह मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीट नष्ट हो जाते हैं. उसके बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद या वर्मी कापोस्ट खाद को उचित मात्रा में डालकर उसे मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेती की दो से तीन तिरछी जुताई कर दें.
जुताई करने के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेव कर दें. पलेव करने के तीन से चार दिन बाद जब भूमि की ऊपरी सतह सूखने लगे तब खेत में रासायनिक खाद की उचित मात्रा का छिडकाव कर खेत की फिर से जुताई कर दें. जिससे मिट्टी भुरभुरी दिखाई देने लगती हैं. मिट्टी भुरभुरी होने के बाद खेत में पाटा चलाकर उसे समतल बना दें.
जरबेरा की खेती बीज और पौध रोपण के माध्यम से की जाती है. इसकी खेती समतल भूमि में मेड बनाकर की जाती है. इसके लिए खेत में पाटा लगाने के बाद उचित आकार की मेड का निर्माण कर लें. इन मेड़ो के बीच लगभग दो फिट के आसपास दूरी होनी चाहिए.
पौध तैयार करना
जरबेरा की पौध का निर्माण बीज, कलम्प और उत्तक संवर्धन के माध्यम से तैयार किया जाता है.
बीज के माध्यम से
बीज के माध्यम से पौध नर्सरी में की जाती है. बीज के माध्यम से पौध बनाने के लिए इसके बीज को फूल से निकालने के तुरंत बाद अंकुरण के लिए नर्सरी में तैयार की गई क्यारियों में लगा देना चाहिए. इसका बीज 5 से 7 सप्ताह में अंकुरित हो जाता हैं. लेकिन बीज के माध्यम से तैयार पौधा पैदावार देने में समय अधिक लगाता है. जिस कारण इसके पौधों को बीज से उगाना अच्छा नही होता.
कलम्प विभाजन
इस विधि का इस्तेमाल ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों में किया जाता है. इस विधि के इस्तेमाल से पौधों को उखाड़ने के बाद उनकी कलम्प बनाकर उन्हें पॉलीथीन में लगाकर नर्सरी में रख देते हैं. इस विधि से तैयार पौधे बहुत जल्दी अंकुरित हो जाते हैं. और पौधों में फूल भी काफी जल्दी खिलकर तैयार हो जाते हैं. कल्म्प लगाने के दौरान उसके बीच का भाग मिट्टी में नही दबना चाहिए.
उत्तक संवर्धन
उत्तक संवर्धन जरबेरा के पौधों के निर्माण की सबसे अच्छी विधि मानी जाती है. इस विधि के माध्यम से पौधों की कली, फूल और अग्र भाग के उत्तकों के उत्तक संवर्धन द्वारा नई पौध तैयार की जाती है. इस तरह पौध प्रयोगशाला में तैयार की जाती है.
पौध रोपण का तरीका और टाइम
जरबेरा के पौधों की रोपाई किसान भाई पूरे साल में सर्दियों के मौसम को छोड़कर किसी भी मौसम में कर सकता हैं. लेकिन अच्छी और उत्तम पैदावार लेने के लिए इसे जून से लेकर अगस्त माह के आखिर तक उगाना चाहिए. इसके अलावा फरवरी और मार्च का महीना भी इसके पौधों को उगाने के लिए उपयुक्त होता है.
जरबेरा के पौधों की रोपाई खेत में तैयार की गई मेड़ों पर की जाती है. मेड़ो पर रोपाई के दौरान नर्सरी में तैयार की गई इसकी पौधों को मेड पर एक फिट की दूरी रखते हुए लगाते हैं. इसकी पौध को खेत में लगाने के दौरान इसकी जड़ों को पूर्ण रूप से मिट्टी में दबा दें. जबकि नई बनने वाली किसी भी पत्ती जो मिट्टी में ना दबाएँ. इसकी पौधों की रोपाई शाम के वक्त करनी चाहिए. इससे पौधों का अंकुरण अच्छे से होता है.
पौधों की सिंचाई
जरबेरा के पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती हैं. इसके पौधों को खेत में लगाने के तुरंत बाद पानी दे देना चाहिए. उसके बाद पौधों के अच्छे से अंकुरित होने तक हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए. और जब तक पौधे अच्छे से विकास करने लगे तब उन्हें उचित मात्रा में पानी देना चाहिए.
गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को सप्ताह में दो बार पानी देना चाहिए. और सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी देना अच्छा होता है. बारिश के मौसम में इसके पौधों को पानी जरूरत नही होती. लेकिन बारिश वक्त पर ना हो तो पौधों को आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए.
उर्वरक की मात्रा
जरबेरा के पौधों को जल्दी और अच्छे से विकास करने के लिए उर्वरक की आवश्यकता होती है. इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त 15 से 20 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप मे नाइट्रोजन 30 किलो, फास्फोरस 40किलो और पोटाश 40 किलो की मात्रा को खेत की आखिरी जुताई के वक्त खेत में डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें.
खरपतवार नियंत्रण
जरबेरा के पौधों में खरपतवार नियंत्रण काफी अहम होता है. क्योंकि इसके पौधे अधिक लम्बाई के नही होते. ऐसे में खरपतवार नियंत्रण नही करने की वजह से पौधों में कई तरह के कीट रोग लग जाते हैं. जिसका असर पौधों की पैदावार पर भी देखने को मिलता हैं.
इसकी खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से किया जाना चाहिए. प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए पौधों को दो से तीन गुड़ाई की जाती है. इसके पौधों की पहली गुड़ाई रोपाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद बाकी की गुड़ाई पहली गुड़ाई के बाद 15 से 20 दिन के अंतराल में कर देनी चाहिए.
पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
जरबेरा के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जरबेरा के पौधों में लगने वाले ये रोग कीट और जीवाणु जनित हैं. जिनकी उचित टाइम रहते देखभाल ना की जाए तो पौधे विकास करना बंद कर देते हैं. जिसका असर पैदावार पर देखने को मिलता है.
माहू
जरबेरा के पौधों पर लगने वाला माहू एक कीट जनित रोग हैं. इसके कीट पौधे के कोमल भागों पर समूह में पाए जाते हैं. जो आकार में बहुत छोटे दिखाई देते हैं. इन कीटों का रंग हरा, पीला और काला दिखाई देता है. ये कीट पौधे की पत्ती, फूल और तने का रस चूसकर उन्हें नष्ट कर देते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर मेलाथियान की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
सफ़ेद मक्खी
जरबेरा के पौधों में सफेद मक्खी का रोग का प्रभाव पौधे की पत्तियों पर देखने को मिलता हैं. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों की निचली सतह पर रहकर पौधों को नुक्सान पहुँचाते हैं. इसके कीट पौधे की पत्तियों का रस चुस्ती है. जिससे पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर रोगर दवा की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
लीफ माइनर
जरबेरा के पौधों में लीफ माइनर का प्रभाव पौधे की पत्तियों पर सबसे ज्यादा देखने को मिलता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों में सफ़ेद भूरे रंग की पारदर्शी नालीनुमा धारियां बन जाती है. जिस कारण पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व नही मिल पाता हैं. और पौधा विकास करना बंद कर देता है. जिसकी वजह से पैदावार भी कम प्राप्त होती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर क्लोरोडेन या टोक्साफेन दवा की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
जड़ गलन
जरबेरा के पौधों में लगने वाला जड़ गलन रोग एक फफूंदी जनित रोग है. जो पौधों में जल भराव या खेत में अधिक मात्रा में नमी की वजह लगता है. इस रोग के लगने से पौधे विकास करना बंद कर देते हैं. और पौधे की पत्तियां पीली होकर गिरने लग जाती है. जिस कारण कुछ समय बाद सम्पूर्ण पौधा भी नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में कॉपर ऑक्सिक्लोराइड दवा की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा खेत में जल भराव ना होने दें.
पर्ण दाग
जरबेरा के पौधों में पर्ण दाग का रोग फाइलोस्टिकटा जरबेरी और अल्टरनेरिया स्पेसिज नामक फफूंद की वजह से फैलता है. इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों पर भूरे काले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग बढ़ने पर धब्बों का आकार बढ़ जाता है. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर बाविस्टिन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
फूलों की कटाई और छटाई
जरबेरा के पौधे खेत में रोपाई के लगभग 5 से 6 महीने बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. जब इसके फूल पूर्ण रूप से खिल जायें तब उनकी कटाई का लेनी चाहिए. फूलों को काटने के तुरंत बाद उन्हें पानी से भरे पात्र में रख देना चाहिए. इसके फूलों की शुरुआत में दो दिन में कटाई करनी चाहिए. लेकिन जब फूल अधिक खिलने लगे तब रोज़ाना कटाई करनी चाहिए.
इसे फूलों की कटाई के बाद सामान आकार की डंडियों वाले अच्छे फूलों को एकत्रित कर लेना चाहिए. फिर लगभग 12 से 15 डालियों का एक बंडल बना लें. जिसके बाद उन्हें उपयुक्त पात्र में भरकर बाज़ार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए.
पैदावार और लाभ
जरबेरा के पौधों को उचित वातावरण मिलने पर एक वर्ग मीटर क्षेत्रफल से प्रतिवर्ष 200 से 250 के बीच फूल प्राप्त होते हैं. जबकि खुले वातावरण में इसकी खेती करने पर 150 के आसपास ही फूल प्राप्त होते हैं. जिनको बाज़ार में बेचने पर किसान भाइयों की अच्छी खासी कमाई हो जाती है.