सागवान का पौधा लगभग 200 साल से भी ज्यादा टाइम तक जीवित रह सकता है. इसके पौधों की ऊंचाई 100 फिट तक पाई जाती है. सागवान का पौधा व्यापारिक रूप से काफी अहम होता है. लेकिन इसकी खेती सरकार से अनुमति मिलने के बाद ही की जा सकती है. इसकी लकड़ी में कई तरह की खासियत पाई जाती है. सागवान की लकड़ी को दीमक नही लगती. इसकी लकड़ी हलकी और अधिक टाइम तक चलने वाली होती है. वर्तमान में इसकी पैदावार बढ़ने लगी है.
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लोग सागवान की खेती कॉन्ट्रेक्ट के माध्यम से कर रहे हैं. सागवान की लकड़ी का इस्तेमाल जहाज़ और रेल के डिब्बे बनाने में भी किया जाता है. इसकी लकड़ियों से बहुमूल्य फर्नीचर बनाए जाते है. जिनकी मांग ऑफ़िस और घरों में लगातार बढ़ रही है. इसकी खेती में अधिक मेहनत की भी जरूरत नही पड़ती और कमाई भी अच्छी खासी हो जाती है.
सागवान की खेती भारत के बर्फीले प्रदेशों को छोड़कर कहीं भी की जा सकती है. इसकी खेती के लिए उचित जल निकासी वाली जमीन की जरूरत होती है. इसके पौधे को वृद्धि करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए.
अगर आप भी सागवान की खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
सागवान के पौधे दोमट मिट्टी मेंअच्छे से वृद्धि करते हैं. दोमट मिट्टी के अलावा अच्छी देखरेख कर इसकी खेती और भी कई तरह की मिट्टी में की जा रही है. लेकिन इसकी खेती के लिए जल भराव वाली जमीन उपयुक्त नही होती. क्योंकि जल भराव वाली जमीन में इसके पौधों पर रोग लगने की सम्भावना बढ़ जाती है. और पौधे के नष्ट होने की संभावना भी बनी रहती है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
सागवान का पौधा उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में ज्यादा अच्छे से वृद्धि करता है. इसकी खेती के लिए शुष्क और आद्र मौसम सबसे उपयुक्त होता है. इसके पौधों को साल भर में 50 इंच से अधिक वर्षा की जरूरत होती है. समुद्र तल से तीन हज़ार फिट की ऊचाई वाली जगहों पर इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं. इसके पौधे के लिए ज्यादा ठंड उपयुक्त नही होती.
सागवान के पौधे को वृद्धि के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. सामान्य तापमान इनके विकास में सहायक होता है. जबकि इसके पौधे को उगाने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. उगने के बाद ये अधिकतम 40 डिग्री तापमान को भी सहन कर लेता है.
उन्नत किस्में
सागवान की कई किस्में हैं, जिन्हें लोग लगाकर अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं. इन सभी किस्मों की पैदावार लगभग समान पाई जाती है. इन सभी को सिर्फ अलग अलग वातावरण के हिसाब से किस्मों में वर्गीकृत किया गया है. सागवान की प्रमुख किस्मों में नीलांबर (मालाबार) सागवान, दक्षिणी और मध्य अमेरिका सागवान, पश्चिमी अफ्रीकी सागवान, अदिलाबाद सागवान, गोदावरी सागवान और कोन्नी सागवान प्रमुख हैं. इन सभी किस्मों के सागवान की लम्बाई अलग अलग पाई जाती है.
खेत तैयार करना
सागवान की खेती के लिए शुरुआत में खेत की अच्छी गहरी जुताई कर खेत को समतल बना लें. उसके बाद खेत में तीन मीटर की दूरी पर दो फिट व्यास वाले एक से डेढ़ फिट गहरे गड्डे तैयार कर लें. गड्डों के अलावा सागवान को समतल से उंचाई पर भी उगाया जा सकता है. इसके लिए समतल से एक फिट उंचाई और तीन से चार फिट चौड़ाई की मेड बना लें. इन गड्डों और मेड पर पुरानी गोबर की खाद डालकर उन्हें मिट्टी में मिला दें. मिट्टी में मिलाने के बाद इन पर पानी का छिडकाव कर दें. इससे मिट्टी बैठकर कठोर हो जाती है. गड्डों और मेड को पौधे के लगाने से एक महीने पहले तैयार कर ले.
पौध तैयार करना
सागवान के बीज सीधे खेतों में नही उगाये जाते. इसके लिए पहले नर्सरी में पौध तैयार की जाती है. इसकी खेती के लिए किसान भाई पौध बाज़ार से भी खरीद सकते हैं. क्योंकि नर्सरी में पौध तैयार होने में दो साल का वक्त लेती हैं. इसका पौधा 40 रूपये के आसपास नर्सरी में मिलता है.
नर्सरी से पौध को खरीदते वक्त ध्यान रखे की पौध हरा भरा और अच्छे से विकास कर रहा हैं. और पौधे पर किसी तरह का रोग ना लगा हो. इसके अलावा आज कई कंपनियां है जो कॉन्ट्रेक्ट के माध्यम से इसकी खेती करवा रही हैं. आप उनसे भी इसकी पौध खरीद सकते हैं. जिससे आपको इनको बेचने में भी ज्यादा परेशानी का सामना करना नही पड़ेगा.
पौध की रोपाई का तरीका और समय
सागवान के पौधे की रोपाई करते वक्त ध्यान रखे की हर पौधा दो साल पुराना होना चाहिए. क्योंकि दो साल पुराना पौधा अच्छे से विकास करता है. गड्डों में इसकी रोपाई एक और छोटा गड्डा बनाकर उसमें करनी चाहिए. पौधे को गड्डे में लगाने से पहले गोमूत्र से उपचारित कर लेना चाहिए. पौधे को गड्डे में लगाने के बाद उसे चारों तरफ से अच्छे तरीके से मिट्टी से दबा देना चाहिए. मेड पर पौधों लगते वक्त पौधों को लगभग 10 फिट की दूरी पर लगाना चाहिए. पौधे की रोपाई के तुरंत बाद उसकी सिंचाई कर देनी चाहिए.
सागवान के पौधे की रोपाई सर्दियों के मौसम से पहले करनी चाहिए. इसकी रोपाई मार्च से अक्टूबर माह तक कभी भी कर सकते हैं. लेकिन मई और जून का शुरूआती सप्ताह इसकी रोपाई के लिए सबसे उपयुक्त होते है. क्योंकि जून महीने के लास्ट तक बारिश का मौसम शुरू हो जाता है. और तब तक पौधा अच्छे से विकास करना शुरू कर देता है. और बारिश के मौसम में अधिक बारिश के होने पर भी पौधा अच्छे से विकास करता है.
पौधे की सिंचाई
सागवान के पौधे को खेत में लगाने के बाद इसके पौधे को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है. पौधे की रोपाई के बाद एक महीने तक रोज़ इसे हल्की मात्रा में पानी देना चाहिए. रोपाई के बाद बारिश के मौसम में इसे ख़ास पानी की जरूरत नही पड़ती. लेकिन बारिश टाइम पर ना हो और पौधा सूखने लगे तो पौधे की सिंचाई कर देनी चाहिए.
बारिश के मौसम के अलावा गर्मियों के वक्त इसके पौधे को सप्ताह में दो बार पानी की जरूरत होती है. और सर्दियों के मौसम में इसे 10 से 12 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए.
उर्वरक की मात्रा
इसके पौधों को उर्वरक की ज्यादा जरूरत होती हैं. सागवान के पौधे की रोपाई से लगभग एक महीने पहले 15 किलो के आसपास पुरानी गोबर की खाद और आधा किलों एन.पी.के. की मात्रा को मिट्टी में मिलकर छोड़ दें. सागवान के पौधों को कैल्सियम, फोस्फोरस, पोटैशियम और नाइट्रोजन की अधिक आवश्यकता होती है.
मिट्टी में फोस्फोरस, पोटैशियम और नाइट्रोजन की पूर्ति तो एन.पी.के. से हो जाती है. जबकि कैल्सियम की आपूर्ति के लिए मिट्टी में आवश्यक तत्व डालने चाहिए. क्योंकि कैल्सियम सागवान के पौधे की वृद्धि में सबसे बड़ा योगदान देता है. कैल्सियम की आपूर्ति के कम्पोस्ट खाद का इस्तेमाल सबसे अच्छा होता है. रोपाई के बाद हर साल पौधे को दिये जाने वाले उर्वरक की मात्रा को भी बढ़ा देना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
सागवान के पौधों में खरपतवार नियंत्रण अच्छा होता है. सागवान के पौधों में नीलाई गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रण करना अच्छा होता. जबकि रासायनिक तरीके से इसमें खरपतवार नियंत्रण नही करना चाहिए. क्योंकि नीलाई गुड़ाई द्वारा खरपतवार नियंत्रण करने से पौधों की जड़ों में अच्छे से हवा जाती है और मिट्टी भी कठोर नही होती है. जिससे पौधा तेज़ी से विकास करता हैं.
पौधे में लगने वाले रोग
सागवान के पौधे में काफी कम रोग लगते हैं. लेकिन कुछ रोग हैं जो इन्हें सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं.
कीट के द्वारा रोग
सागवान के पौधों पर कीट के द्वारा होने वाले काली सुंडी और पत्तों की भुंडी रोग अधिक मात्रा में पाए जाते है. इन रोग की सुंडी पौधों की पत्तियों को नुक्सान पहुँचाती हैं. इस रोग की वजह से पौधे के पत्ते जगह जगह से कटे हुए दिखाई देते हैं. जो इस रोग की सुंडी के खाने की वजह से दिखाई देते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर क्विनलफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
जड़ गलन रोग
सागवान के पौधों में जड़ गलन रोग मुख्य रूप से शुरुआत में देखने को मिलता है. जो अधिक जल भराव की वजह से होता है. इस रोग के लगने पर पौधा जल्द ही नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में वीर एम-45 का घोल डालना चाहिए.
सफ़ेद धब्बा और गुलाबी बीमारी
सागवान के पौधों पर सफ़ेद धब्बा और गुलाबी बीमारी का प्रकोप फफूंद की वजह से देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर जमा हो जाता है. जिससे पौधा सूर्य का प्रकाश अच्छे से ग्रहण नही कर पाता. और पौधे का विकास रुक जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर एम-45 की 400 ग्राम मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
पौधों की कटाई
सागवान की खेती के लिए सरकार की अनुमति लेनी होती है. बिना सरकार की अनुमति के इसकी खेती नही की जा सकती. और इसके पौधों की कटाई भी सरकार की अनुमति के बाद ही की जाती है. सागवान के पौधे 12 साल बाद कटाई के लिए तैयार होते हैं. इसके अलावा 10 साल में जब इनका तना 3 फिट व्यास का हो जाता है तब भी इसे काट सकते है.
कटाई से पहले इसके पौधों को चिन्हित कर उनकी कटाई करनी चाहिए. क्योंकि इसके लाने और ले जाने पर प्रतिबंध है. केवल सरकार की अनुमति प्राप्त पौधों का ही व्यापार किया जा सकता है.
पैदावार और लाभ
सागवान के एक पौधे से 10 से 12 क्यूबिक फिट लकड़ी आसानी से प्राप्त हो जाती है. बाज़ार में सागवान के एक क्यूबिक फिट की कीमत लगभग 2500 रूपये होती है. इस हिसाब से एक पौधे की कीमत लगभग 30000 के आसपास पाई जाती है. जबकि एक एकड़ में लगभग 400 से 500 पौधे आसानी से लगाए जा सकते हैं. जिससे किसान भाई लगभग 10 से 12 साल में एक से सवा करोड़ तक की कमाई कर सकता है.
Nice mehnat to h kimat or jayda honachah ye