मशरूम भारत के कई हिस्सों में कुकुरमुत्ता के नाम से जाना जाता है. यह एक कवकीय क्यूब है. जिसका उपयोग सब्जी, अचार, पकोड़े जैसी चीजों को बनाने में किया जाता है. मशरूम का इस्तेमाल औषधियों में भी किया जाता है. इसके अंदर कई उपयोगी तत्व पाए जाते हैं. जो मनुष्य के शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं.
मशरूम की अलग अलग किस्मों की खेती पूरे साल भर की जा सकती है. वर्तमान में भारत में इसकी खेती में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही हैं. कई किसान भाई अब इसकी खेती को अपना प्रमुख व्यवसाय बना चुके हैं. जिससे वो अच्छी कमाई कर रहे हैं.
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मशरूम की खेती के लिए किसी भूमि, बारिश और जलवायु जैसे कारकों की जरूरत नही होती. मशरूम की खेती बंद जगह में की जाती है. इसके लिए बंद कमरे में तापमान 18 डिग्री के आसपास होना चाहिए. और आद्रता 85 प्रतिशत तक होनी चाहिए. इसकी खेती दो महीने में तैयार हो जाती है. मशरूम को उगाने में ज्यादा मेहनत भी नही करनी पड़ती.
अगर आप भी मशरूम की खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं तो आपको बता दें कि इसकी खेती की शुरुआत करने से पहले इसके बारें में अच्छे से जानकारी हासिल कर और इसकी ट्रेनिंग लेकर ही इसकी शुरुआत करें. इसकी खेती की ट्रेनिंग खुम्ब अनुसंधान निदेशालय, चम्बाघाट, सोलन में दी जाती है. इसके अलावा भी और कई जगह हैं जहां इसकी ट्रेनिंग दी जाती हैं.
आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं. जिससे आपको इसकी खेती शुरू करने में काफी मदद मिलेगी.
उन्नत किस्में
मशरूम की कई किस्में हैं, लेकिन भारत में इसकी ज्यादातर तीन प्रजातियों को ही उगाया जाता हैं. जिनका उपयोग खाने के रूप में किया जाता है.
ढिंगरी मशरूम
ढिंगरी मशरूम की खेती के लिए भी सर्दियों का मौसम उपयुक्त होता है. सर्दियों के मौसम में इसकी खेती पूरे भारत में की जाती हैं. लेकिन समुद्र तटीय जगहों पर सर्दियों का टाइम सबसे उपयुक्त होता है. क्योंकि इस दौरान तटीय इलाकों की हवाओं में नमी की मात्रा 80 प्रतिशत के आसपास होती है. इस मशरूम का फसल चक्र 45 से 60 दिन का होता है.
दूधिया मशरूम
इस किस्म के मशरूम की खेती सिर्फ मैदानी इलाकों में ही की जाती है. इस किस्म के मशरूम के बीज फैलाव के वक्त 25 से 30 डिग्री तापमान होना चाहिए. जबकि फलन के वक्त 30 से 35 डिग्री तापमान की जरूरत होती है. इस किस्म के मशरूम के लिए हवा में नमी की मात्रा 80 प्रतिशत के आसपास होनी चाहिए.
श्वेत बटन मशरूम
श्वेत बटन मशरूम खाए जाने वाले मशरूमों में सबसे ज्यादा उगाया और खाया जाता है. इसकी खेती के लिए शुरुआत में 20 से 22 डिग्री तापमान की जरूरत होती है. उसके बाद इसके फलन के दौरान 14 से 18 डिग्री तापमान की जरूरत होती है. श्वेत बटन मशरूम की खेती सर्दियों के टाइम की जाती है. इस दौरान इसके क्यूब को 80 से 85 प्रतिशत नमी की जरूरत होती है. इसका क्यूब शुरुआत में अर्धगोलाकार होता है. जो बिलकुल सफ़ेद दिखाई देता है.
शिटाके मशरूम
इस तरह के मशरूम की खेती जापान में अधिक मात्रा में की जा रही है. शिटाके मशरूम का क्यूब अर्धगोलाकार और हलकी लालिमा लिए होता है. इस किस्म के मशरूम के बीज रोपण के दौरान 22 से 27 डिग्री तापमान की जरूरत होती है. जबकि क्यूब के विकास के लिए 15 से 20 डिग्री तापमान अच्छा होता है.
इनके अलावा और भी कई तरह की प्रजातियाँ पाई जाती है. दुनियाभर में मशरूम की 4 हज़ार किस्में पाई जाती हैं. लेकिन इनमें से खाने योग्य लगभग 300 किस्में ही हैं.
मशरूम की खेती के लिए आवश्यक तत्व
मशरूम की खेती बंद जगह पर की जाती है. इसके लिए काफी सामान की जरूरत पड़ती हैं, जिनके अंदर मशरूम तैयार होता है. मशरूम को खेती की शुरुआत के लिए उचित लम्बाई और उंचाई के आयताकार सांचों की जरूरत होती है. जो एक संदूक की तरह दिखाई दें. लकड़ी की जगह और भी तरह के सांचे वर्तमान में मिल रहे हैं. कुछ लोग पॉलीथिन का भी इस्तेमाल कर रहे हैं.
मशरूम को उगाने के लिए चावल की भूसी या अन्य फसलों के अवशेषों की जरूरत पड़ती है. जो बारिश में भीगा हुआ नही होना चाहिए. अगर भूसा कटा हुआ ना हो तो उसको काटने के लिए भूसा कटाई करने वाली मशीन की आवश्यकता होगी.
कटे हुए भूसे को उबालकर बीज उगाने के लिए तैयार किया जाता है. इसलिए भूसे को उबालने के लिए दो बड़े ड्राम की जरूरत होती है. उगले हुए भूसे को ठंडा करने के बाद उन्हें बोरो मे भारकर बीज लगाया जात है. उसके बाद इन बोरो को उपर से किसी रस्सी की सहायता से बाँधा जाता है. इसके लिए पॉलीथिन या टाट के बोरे और रस्सी की जरूरत होती है. इन सभी के अलावा एक स्प्रेयर और नमी बनाने के लिए बड़े कूलर की जरूरत होती है.
बीज उगाने के लिए आधार सामग्री बनाना
मशरूम की खेती के लिए कूड़ा खाद तैयार की जाती है. इसके लिए कृषि अपशिष्ट का इस्तेमाल किया जाता है. इन सभी कृषि अपशिष्टों को खाद बनाने के लिए उपयोग में लेते वक्त ध्यान रहे की ये बारिश में भीगे हुए ना हो. इन सभी अपशिष्टों की लम्बाई 8 सेंटीमीटर के आसपास होनी चाहिए. जिनको मशीन के माध्यम से काटकर तैयार किया जाता है.
मशरूम की खेती के लिए कूड़ा खाद बनाने के दौरान माइक्रोफ्लोरा का निर्माण होता है. मशरूम के लिए तैयार किये जाने वाले खाद में सेल्यूलोज, हेमीसेल्यूलोज और लिग्निन पाया जाता है. इन सभी तत्वों का इस्तेमाल मशरूम के कवक वर्धन के लिए होता है. गेहूं के भूसे की आपेक्षा चावल और मक्के का भूसा सबसे उपयुक्त होता है. क्योंकि इनका भूसा बहुत जल्दी तैयार होता है. और क्यूब अच्छे से तैयार होते हैं.
मशरूम की खेती बंद कमरे में की जाती है. लेकिन जब मशरूम के क्यूब निकल आते हैं तब उन्हें कम से कम 6 घंटे ताज़ा हवा की जरूरत होती है. इस कारण कमरों में एक जंगले और एक गेट का होना जरूरी है. जिससे हवा कमरे के आर पार हो सके.
भूसे का शुद्धिकरण
भूसे के शुद्धिकरण के लिए साधारण माध्यम और रासायनिक विधि का इस्तेमाल किया जाता है.
साधारण माध्यम विधि
साधारण माध्यम विधि के माध्यम से भूसे को किसी बोर में भरकर उसे पानी में डाल देते हैं. उसके बाद भूसे को फर्स पर फैलाकर उसमें उचित नमी बनाये रखते हुए पानी निकाल देते हैं. लेकिन वर्तमान में अब इसे नए तरीके से किया जा रहा है, इस तरीके में भूसे से भरे बोर को उबलते हुए पानी में डाला जाता है. उच्च ताप पर इसे 20 से 25 मिनट तक उबाला जाता है. उसके बाद भूसे को सुखाकर उससे पानी निकाल कर उसे ठंडा किया जाता है. भूसे को 50 प्रतिशत नमी होने तक सुखाते हैं.
रासायनिक विधि
रासायनिक विधि से भूसे का शुद्धिकरण करने के लिए डेढ़ लीटर फॉर्मेलिन और 150 ग्राम कार्बनडाजिम (बावस्टीन) को डेढ़ हज़ार लीटर पानी में डालकर अच्छे से मिला दें. उसके बाद इस तैयार किये गए मिश्रण में डेढ़ सो किलो भूसे को डालकर उसे अच्छे से पानी में मिक्स कर देते हैं. उसके बाद भूसे को लगभग 18 घंटे तक ढक कर रख देते हैं. भूसे को ढककर रखने से भूसे में मौजूद बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं. उसके बाद भूसे में मौजूद पानी को निकाल दिया जात है. पानी को निकालने के बाद भूसे को अलट पलट करते हैं. जिससे भूसे का तापमान 25 डिग्री के आसपास पहुँच जाता है. उसके बाद इसमें मशरूम के बीजों का रोपण करते हैं.
बीज रोपण का तरीका
भूसे में अलग अलग किस्म के बीजों का अलग अलग तरीके से रोपण किया जाता है. कुछ किस्में ऐसी हैं जिन्हें परत दर परत उगाया जाता है. जबकि कुछ ऐसी किस्में हैं जिनके बीजों को सीधा भूसे में छिड़ककर उन्हें उन्हें बोरो में भर देते हैं.
आवरण मिट्टी
आवरण मिट्टी का इस्तेमाल मिल्की मशरूम में किया जाता है. आवरण मिट्टी बनाने के लिए गोबर की खाद और कॉकोपिट को 8:2 के अनुपात में मिलाकर तैयार किया जाता है. उसके बाद मिट्टी को फॉर्मेलिन से उपचारित किया जाता है. मिट्टी को उपचारित करने के बाद उसे तीन दिन तक ढक कर रख देते हैं. तीन दिन बाद मिट्टी को भूसे से भरी बीज लगी पोलीथिन को खोलकर उसकी उपरी सतह पर हलके हाथों से फैला देते हैं. ये क्रिया बीज लगाने के लगभग 20 दिन बाद की जाती है. उसके बाद इस मिट्टी को फंवारे की सहायता से हल्का पानी रोज़ देते है, जिससे मिट्टी लगातार गीली बनी रहे.
मशरूम को लगने वाले रोग
मशरूम की खेती में वैसे तो काफी कम ही रोग देखने को मिलते हैं. लेकिन उचित देखभाल ना की जाए तो मशरूम को कई तरह के रोगों से नुकसान पहुँचता है. जिनकी रोकथाम करना जरूरी होता है.
हरी फफूंद
मशरूम पर लगने वाला हरी फफूंद का रोग इसकी पैदावार और कीमत दोनों को कम करता है. इस रोग के लगने पर मशरूम के क्युबों पर हरा रंग दिखाई देने लगता है. इस रोग की रोकथाम के लिए क्युबों को फॉर्मेलिन के घोल में कपड़ा भिगोकर उससे पूछना चाहिए. और अगर रोग अधिक फैल जाए तो पूरे क्यूब को उखाड़कर दूर फेंक देना चाहिए.
मक्खियों का आक्रमण
मक्खियों का आक्रमण क्यूब की किसी भी अवस्था में हो सकता है. लेकिन इसका आक्रमण ज्यादातर बीज लगाने के वक्त ही देखने को मिलता है. मक्खियां बीज रोपण के साथ बीजों पर अपने लार्वा को जन्म देती है. जिससे क्यूब अंकुरित ही नही होता है. इनकी रोकथाम के लिए दरवाजों और खाली जगहों पर जाली लगा देनी चाहिए.
कोपरीनस सैप
कोपरीनस सैप को मशरूम की खरपतवार के नाम से जाना जाता है. यह फसल तैयार होने से पहले क्युबों पर तैयार होता है. जो बाद में काली काई में बदल जाता है. इसकी रोकथाम शारीरिक तौर पर की जाती है. इसे लगने के बाद क्यूब पर से हटा देते हैं.
शम्बूक, घोंघा
शम्बूक और घोंघा इसके क्यूब को सबसे ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं. ये दोनों इसके क्यूब को पूरी तरह खाकर नष्ट कर देते हैं. जिससे पैदावार पर ज्यादा असर देखने को मिलता है. इस रोग की रोकथाम के लिए इनके कीटों को हटाकर बहार दूर फेंक आयें या उन्हें नष्ट कर दें. और जगह को साफ़ स्वच्छ रखे.
मशरूम की तुड़ाई
बीज रोपण के लगभग 30 से 40 दिन बाद मशरूम तैयार हो जाती है. जिसके बाद उसकी तुड़ाई कर ली जाती है. मशरूम की तुड़ाई के लिए उसे जमीन के पास डंठल वाले भाग से हल्का घुमाकर तोड़ा जाता है. मशरूम को तोड़ने के बाद उसे बाज़ार में बेच दिया जाता है. जबकि कुछ मशरूम ऐसी भी होती हैं जिन्हें सुखाकर और पाउडर बनाकर बेचा जा सकता है.
पैदावार और लाभ
मशरूम का एक क्यूब ( कवक ) 9 सेंटीमीटर की ऊचाई तक जा सकता है. एक किलो मशरूम का बाज़ार में 200 से 300 रूपये किलो मिलता है. इस लिए किसान भाई बड़ी जगह में मशरूम को लगाकर अच्छी खासी कमाई कम समय में कर सकते हैं. कुछ मशरूम को सुखाकर उनका पाउडर बनाया जाता है. जिसका इस्तेमाल औषधियों में किया जाता है. मशरूम को सुखाने पर उसका वजन 10 गुना तक कम हो जाता है. लेकिन सुखाने के बाद बनाया गया पाउडर बहुत महंगा बिकता है.