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अजवाइन की खेती कैसे करें

2019-11-01T12:15:23+05:30Updated on 2019-11-01 2019-11-01T12:15:23+05:30 by bishamber Leave a Comment

अजवाइन की खेती मसाला फसल के साथ साथ औषधीय फसल के रूप में भी की जाती है. अजवाय का पौधा झाड़ीनुमा दिखाई देता है. इसका पौधा धनिया कुल की प्रजाति का पौधा है. जिसकी लम्बाई एक मीटर के आसपास पाई जाती हैं. अजवाइन के दानो में कई तरह के खनिज तत्वों का मिश्रण पाया जाता है. जिसका इस्तेमाल मनुष्य के लिए काफी लाभकारी होता हैं. इसके दानो से तेल निकाला जाता है. जिसका इस्तेमाल औषधियों के रूप में किया जाता है. इसके अलावा इसके दानो को पीसकर उसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक चिकित्सा के रूप में किया जाता है.

Table of Contents

  • उपयुक्त मिट्टी
  • जलवायु और तापमान
  • उन्नत किस्में
    • लाभ सलेक्शन 1
    • लाभ सलेक्शन 2
    • ऐ ऐ 1
    • ऐ ऐ 2
    • आर ए 1-80
    • गुजरात अजवाइन 1
    • आर ए 19-80
  • खेत की तैयारी
  • पौध तैयार करना
  • पौध रोपाई का तरीका और टाइम
    • छिडकाव विधि
    • कतारों में रोपाई
  • पौधों की सिंचाई
  • उर्वरक की मात्रा
  • खरपतवार नियंत्रण
  • पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
    • माहू
    • झुलसा रोग
    • चूर्णिल आसिता
  • फसल की कटाई
  • पैदावार और लाभ
अजवाइन की खेती

अजवाइन की खेती रबी की फसल के वक्त की जाती है. इसके पौधों को विकास करने के लिए सर्दी के मौसम की जरूरत होती है. इसकी खेती के लिए अधिक बारिश की आवश्यकता नही होती. इसके पौधे कुछ हद तक सर्दियों में पड़ने वाले पाले को भी सहन कर सकते हैं. इसका बाजार भाव काफी अच्छा मिलता है. इस कारण इसकी खेती किसानों के लिए लाभ देने वाली मानी जाती है.

अगर आप भी अजवाइन की खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

अजवाइन की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ जमीन की जरूरत होती है. इसके अलावा अधिक उत्पादन लेने के लिए इसे हल्की बलुई दोमट मिट्टी में उगाया जाता है. अजवाइन की खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 6.5 से 8 के बीच होना चाहिए. इसकी खेती अधिक नमी या जलभराव वाली भूमि में नही करनी चाहिए.

जलवायु और तापमान

अजवाइन का पौधा उष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा है. जिसको विकास करने के लिए ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है. जबकि इसके दानों को पकने के दौरान अधिक गर्मी की जरूरत होती है. इसके पौधों के विकास के दौरान पौधों को खुली धूप की आवश्यकता होती है. भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में की जाती है.

अजवाइन के पौधों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की जरूरत होती है. उसके बाद इसके पौधे सर्दियों के मौसम में न्यूनतम 10 डिग्री के आसपास तापमान पर भी अच्छे से विकास कर लेते हैं. जबकि इसके दानो के पकने के वक्त पौधों को 30 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है.

उन्नत किस्में

अजवाइन की काफी किस्में हैं, जिन्हें किसान भाई अलग अलग जगहों पर उन्नत पैदावार लेने के लिए उगाता है. इन सभी किस्मों को उनके पककर तैयार होने और उनके उत्पादन के आधार पर तैयार किया गया है.

लाभ सलेक्शन 1

अजवाइन की इस किस्म को जल्दी पैदावार देने के लिए तैयार किये गया है. इसका उत्पादन ज्यादातर राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों में किया जाता है. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 130 से 140 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. इसके पौधों की ऊंचाई लगभग तीन फिट के आसपास पाई जाती हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 8 से 9 क्विंटल के बीच पाया जाता है.

लाभ सलेक्शन 2

अजवाइन की इस किस्म को  सिंचित और असिंचित दोनों भूमि में कम समय में अधिक उत्पादन देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 135 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका आकार झाड़ीनुमा दिखाई देता हैं. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 क्विंटल से ज्यादा पाया जाता है.

ऐ ऐ 1

उन्नत किस्म का पौधा

अजवाइन की इस किस्म को नेशनल रिसर्च फॉर सीड स्पाइस, तबीजी, अजमेर द्वारा देरी से पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधों की ऊंचाई तीन से चार फिट के बीच पाई जाती है. इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 15 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म को हर तरह की मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 170 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं.

ऐ ऐ 2

अजवाइन की ये एक जल्द पैदावार देने वाली किस्म है. जिसको नेशनल रिसर्च फॉर सीड स्पाइस, तबीजी, अजमेर द्वारा तैयार किया गाया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 145 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 13 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म को सिंचित और कम पानी वाली दोनों तरह की भूमि में उगाया जा सकता है. इस किस्म के पौधों पर चूर्णिल आसिता रोग का प्रभाव काफी कम देखने को मिलता है.

आर ए 1-80

अजवाइन की ये एक देरी से पैदावार देने वाली किस्म है. जिसके पौधे रोपाई के लगभग 170 से 180 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 क्विंटल से ज्यादा पाया जाता है. इसके दाने आकार में छोटे और अधिक सुगन्धित पाए जाते हैं.

गुजरात अजवाइन 1

अजवाइन की इस किस्म के पौधे देरी से पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 170 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 8 से 12 क्विंटल के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधे तीन फिट के आसपास लम्बाई के पाए जाते हैं.

आर ए 19-80

अजवाइन की इस किस्म को सामान्य समय में पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 160 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 क्विंटल के आसपास पाया जाता हैं.

इनके अलावा और भी कुछ क्षेत्रिय किस्में हैं, जिन्हें अलग अलग जगहों पर अधिक उत्पादन लेने के लिए किसान भाई उगाते हैं.

खेत की तैयारी

अजवाइन की खेती के लिए मिट्टी भुरभुरी और साफ-सुथरी होनी चाहिए. इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के दौरान खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर दें. उसके बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें. ताकि मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीट सूर्य की तेज़ धूप से नष्ट हो जाएँ.

उसके बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद को डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर दें. उसके बाद खेत में पानी चलाकर खेत का पलेव कर दें. पलेव करने के तीन से चार दिन बाद जब भूमि जुताई के लिए तैयार हो जाए तब खेत की जुताई कर दें. उसके बाद खेत में उचित मात्रा में रासायनिक खाद को छिड़ककर खेत में रोटावेटर चला दें. ताकि खेत की मिट्टी भुरभुरी दिखाई देने लगे. उसके बाद खेत को समतल कर एक तरफ ढाल बना दें.

पौध तैयार करना

अजवाइन के पौधों की रोपाई बीज और पौध दोनों माध्यम से की जाती है. इसलिए पौध के माध्यम से रोपाई के लिए लगभग एक महीने पहले इसकी पौध नर्सरी में तैयार की जाती है. नर्सरी में इसकी पौध क्यारियों में या प्रो-ट्रे में की जाती है. इसकी पौध तैयार करने के दौरान इसके बीजों को क्यारियों में चार सेंटीमीटर के आसपास दूरी रखते हुए पंक्तियों में लगा दें. बीजों की रोपाई से पहले उन्हें बाविस्टीन की उचित मात्रा से उपचारीत कर लेना चाहिए. इसके बीज रोपाई के लगभग 25 से 30 दिन बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

पौध रोपाई का तरीका और टाइम

अजवाइन के पौधों की रोपाई बीज और नर्सरी में तैयार की गई पौध दोनों के माध्यम से की जाती है. लेकिन पौध के रूप में इसकी खेती करना ज्यादा बेहतर होता है.

छिडकाव विधि

बीज के माध्यम से रोपाई के दौरान इसके पौधों की रोपाई छिडकाव विधि के माध्यम से की जाती है. छिडकाव विधि से रोपाई करने के दौरान लगभग तीन से चार किलो बीज की जरूरत होती है. इसके बीजों की रोपाई से पहले उनसे उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि बीजों के अंकुरण के वक्त किसी भी तरह की परेशानी का सामना ना करना पड़े.

इसके बीजों की रोपाई के लिए पहले खेत में उचित आकार की क्यारियाँ बनाकर उनमें इसके बीजों को छिडक दिया जाता है. उसके बाद दंताली या हाथों से इसके बीजों को मिट्टी में एक सेंटीमीटर की गहराई में मिला देते हैं. ज्यादा गहराई में लगाने से इसके दानो का अंकुरण प्रभावित होता है.

कतारों में रोपाई

पौध के रूप में इसके पौधों की रोपाई खेत में उचित दूरी पर मेड बनाकर की जाती है. मेड बनाने के दौरान प्रत्येक मेड़ों के बीच एक से सवा फिट की दूरी रखनी चाहिए. और मेड पर पौधों की रोपाई के वक्त प्रत्येक पौधों के बीच 25 सेंटीमीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए.

दोनों विधि से रोपाई के दौरान इसके पौधों की रोपाई अगेती और पछेती किस्मों के आधार पर की जाती हैं. अगेती किस्मों की रोपाई सितम्बर में आखिर से मध्य अक्टूबर तक कर देनी चाहिए. जबकि सामान्य और देरी से रोपाई करने के लिए इसकी पौधों की रोपाई मध्य नवम्बर तक कर देनी चाहिए.

पौधों की सिंचाई

दोनों विधि से इसकी रोपाई के दौरान इसकी रोपाई सुखी या नम भूमि में की जाती है. इसलिए दोनों विधि से रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए. लेकिन क्यारियों में सिंचाई के दौरान ध्यान रखे कि पानी का भाव धीमा ही रखे. क्योंकि तेज़ भाव में सिंचाई करने पर इसका बीज बहकर किनारों पर चला जाता है. अजवाइन के पौधों को सिंचाई की सामान्य जरूरत होती है. पौधों के अंकुरण के बाद उनके विकास के दौरान पौधों को आवश्यकता के अनुसार 10 से 15 दिन बाद पानी देना चाहिए.

उर्वरक की मात्रा

अजवाइन की खेती के लिए उर्वरक की सामान्य जरूरत होती हैं. इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त खेत में 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में लगभग 80 किलो एन.पी.के. की मात्रा को खेत की आखिरी जुताई के वक्त खेत में छिड़क देना चाहिए. इसके अलावा पौधों के विकास के दौरान 25 किलो के आसपास यूरिया खाद का छिडकाव पौधों पर फूल बनने से कुछ दिन पहले कर देना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

अजवाइन के पौधों को खरपतवार नियंत्रण की जरूरत बाकी सामान्य फसलों की तरह ही होती है. इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से किया जाता है. प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके पौधों की रोपाई के लगभग 25 से 30 दिन बाद इसके पौधों की पहली गुड़ाई कर खेत में मौजूद खरपतवार को निकाल देना चाहिए. इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण के दौरान छिडकाव विधि से रोपाई के दौरान अधिक नजदीक दिखाई देने वाले पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए. अजवाइन के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए दो गुड़ाई काफी होती हैं. इसके पौधों की दूसरी गुड़ाई रोपाई के डेढ़ से दो महीने बाद कर देनी चाहिए.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

अजवायन के पौधों में कई तरह के कीट और जीवाणु जनित रोग देखने को मिलते हैं. जिनकी उचित समय रहते देखभाल ना की जाए तो इसकी पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता हैं.

माहू

अजवाइन के पौधों में माहू रोग का प्रभाव मौसम में परिवर्तन के दौरान दिखाई देता हैं. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों और कोमल भागों पर एकत्रित होकर उनका रस चूसते हैं. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है. इनका प्रभाव अधिक बढ़ने पर पौधे नष्ट भी हो जाते हैं. इसके कीट काफी छोटे हरे, लाल, पीले रंग के होते हैं. इसकी रोकथाम के लिए डाइमिथोएट, मैलाथियान या मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिडकाव रोग दिखाई देने के तुरंत बाद पौधों में कर देना चाहिए. इसके अलावा फसल की रोपाई उचित टाइम पर की जानी चाहिए.

झुलसा रोग

अजवाइन के पौधों में झुलसा रोग फफूंद की वजह से फैलता है. पौधों पर यह रोग मौसम में नमी के बने रहने की वजह से दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग बढ़ने पर पौधे की पत्तियां सूखकर नष्ट हो जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैंकोजेब की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

चूर्णिल आसिता

अजवाइन के पौधों में इस रोग का प्रभाव कवक के माध्यम से फैलता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर सफेद रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग बढ़ने पर धब्बों का आकार बढ़ जाता है. जिससे पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर जमा हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर घुलनशील गंधक की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

फसल की कटाई

अजवाइन के पौधे रोपाई के लगभग 140 से 160 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके बीजों के गुच्छे पकने के बाद भूरे दिखाई देने लगते हैं. तब उसके पौधों की कटाई कर उन्हें खेत में एकत्रित कर सूखा लेना चाहिए. और जब उसके दाने अच्छे से रुख जाएँ तब गुच्छों को लकड़ी की डंडी से पीटकर दानो को अलग कर लेना चाहिए.

पैदावार और लाभ

अजवाइन की विभिन्न किस्मों के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. जिसका बाजार भाव 12 हजार से लेकर 20 हजार रूपये प्रति क्विंटल तक पाया जाता है. इस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर सवा लाख से दो लाख तक की कमाई आसानी से कर सकता हैं.

Filed Under: मसाले

Comments

  1. Manoj Vishwkarma says

    February 9, 2021 at 10:13 am

    manoj vishwkrma

    Reply
  2. sujaram says

    July 11, 2021 at 6:41 pm

    9509194454

    Reply

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