सेब की खेती ज्यादातर ठंडे प्रदेशों में की जाती है. भारत में सेब की सबसे ज्यादा पैदावार हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर में की जाती है. लेकिन वर्तमान में कई ऐसी किस्मों को इजाद कर लिया गया है जिन्हें अब मैदानी भागों में भी उगाया जा रहा है. सेब का उपयोग खाने में कई तरह से होता है. जिनमें इसे सीधा खाने और जूस बनाने में सबसे ज्यादा होता है. सेब का इस्तेमाल कई तरह की बीमारीयों में भी उपयोगी होता है.
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सेब का पौधा शुरुआत में झाड़ीनुमा दिखाई देता है. पौधे पर सेब गुच्छों के रूप में लगते हैं. सेब लाल, हरे और पीले रंग में पाया जाता है. सेब की खेती के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. सेब के पौधे को समुद्र तल से 1500 से 2700 मीटर ऊचाई वाले स्थानों पर उगाया जाता है.
अगर आप भी सेब की खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसके बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
सेब की खेती के लिए गहरी उपजाऊ दोमट मिट्टी की जरूरत होती है. इसकी खेती के लिए मिट्टी में जलभराव की स्थिति नही होनी चाहिए. क्योंकि जलभराव ज्यादा टाइम तक होने से पौधे में कई तरह के रोग होने की संभावना बढ़ जाती है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 5 से 6.5 तक होना चाहिए. जमीन में कम से कम डेढ़ से दो मीटर की गहराई में चट्टानी मिट्टी नही होनी चाहिए. इससे पौधे का विकास रुक जाता है.
जलवायु और तापमान
सेब की खेती के लिए ठंडी जलवायु वाले प्रदेश सबसे उपयुक्त होते हैं. इसके पौधों को फल लगने के दौरान अधिक ठंड की जरूरत होती है. सर्दियों के टाइम में इसके फलों को अच्छे से विकास करने के लिए लगभग 200 घंटे सूर्य की धूप की जरूरत होती है. लेकिन फूल आने के दौरान सर्दियों में पड़ने वाला पाला या बारिश दोनों की इसके लिए नुकसानदायक होते हैं. इसके पौधे को बारिश की ज्यादा जरूरत नही होती. फूल आने के दौरान पाला पड़ने और बारिश होने की वजह से इसके फूल और बनने वाले फल नष्ट हो जाते हैं, और उन पर फफूंदी जनित रोग लग जाते हैं.
सेब की पैदावार ठंडे प्रदेशों में की जाती है. इस कारण इसके पौधे को विकास करने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. और फलों के पकने के दौरान इसके फलों को अच्छे से विकास करने के लिए 800 से 1200 घंटे 7 डिग्री तापमान की जरूरत होती है.
उन्नत किस्में
सेब की वर्तमान में कई तरह की किस्में मौजूद हैं. जिन्हें अलग अलग वक्त और जगहों पर उगाने के लिए तैयार किया गया है.
सन फ्यूजी
इस किस्म के फलों का रंग काफी अच्छा दिखाई देता है. जो धारीदार गुलाबी लाल रंग का होता है. इस किस्म के फल का गूदा स्वाद में बहुत मीठा, ठोस और थोड़ा कुरकुरा होता है. इस किस्म को उन स्थानों के लिए तैयार किया गया है जहां फसल देरी से पकती है और फल का रंग अच्छा दिखाई नही देता.
रैड चीफ
इस किस्म के पौधों का आकार बौना होता है. इस किस्म के पौधों को जमीन में 5 फिट की दूरी पर लगाया जाता है. इस किस्म के फलों का रंग गहरा लाल होता है जिस पर सफेद रंग के बारीक धब्बे दिखाई देते हैं. इस किस्म को जल्दी फल देने के लिए तैयार किया गया है.
आरिगन स्पर
इस किस्म के फलों का रंग भी लाल होता है. लेकिन इन फलों पर धारियां बनी हुई नजर आती है. अगर फलों का रंग ज्यादा गहरा लाल बनता है तो ये धारियां ख़तम हो जाती है. इस किस्म के फल रैड चीफ किस्म के साथ पककर तैयार हो जाते हैं.
रॉयल डिलीशियस
इस किस्म के फल आकर में गोल दिखाई देते हैं. इनका रंग भी लाल होता है. लेकिन डंठल के पास से इनका रंग कुछ हरा होता है. इस किस्म के फल पकने में ज्यादा दिन लेते हैं. इसकी पैदावार काफी ज्यादा होती है. इस किस्म के पौधों पर फल गुच्छों में लगते हैं.
हाइब्रिड 11-1/12
सेब की ये एक संकर किस्म है. इस किस्म के फल अगस्त के मध्य तक बाज़ार में आ जाते हैं. इस किस्म के फलों को का रंग लाल धारीदार होता है. इस किस्म के फलों का भण्डारण अधिक टाइम तक किया जा सकता है. इस किस्म के पौधों को कम वक्त तक सर्दी पड़ने वाली जगहों पर भी उगाया जा सकता है. इस किस्म को रेड डिलिशियस और विंटर बनाना के संकरण से तैयार किया गया है.
इनके अलावा टाप रेड, रेड स्पर डेलिशियस, रेड जून, रेड गाला, रॉयल गाला, रीगल गाला, अर्ली शानबेरी, फैनी, विनौनी, चौबटिया प्रिन्सेज, ड फ्यूजी, ग्रैनी स्मिथ,ब्राइट-एन-अर्ली, गोल्डन स्पर, वैल स्पर, स्टार्क स्पर, एजटेक, राइमर जैसी और भी कई किस्में हैं. जिनको अलग अलग जगहों पर उगाया जाता है.
खेत की तैयारी
सेब की खेती के लिए शुरुआत में खेत की दो से तीन गहरी जुताई कर दें. उसके बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरी और समतल बना दें. उसके बाद जमीन में 10 से 15 फिट के आसपास दूरी रखते हुए गड्डे तैयार कर लें. गड्डे तैयार करते वक्त ध्यान रखे की गड्डों का आकार दो फिट चौड़ा और एक फिट गहरा होना चाहिए. और सभी गड्डों को एक पंक्ति में तैयार करें. और प्रत्येक पंक्ति के बीच लगभग 10 फिट की दूरी होनी चाहिए.
गड्डों को खोदने के बाद उनमें उचित मात्रा में गोबर की खाद और रासायनिक खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. उसके बाद गड्डों की हलकी सिंचाई कर दे. जिससे मिट्टी कठोर होकर नीचे बैठ जाए. इन गड्डों को पौध लगाने से दो महीने पहले तैयार किया जाता है.
पौध तैयार करना
सेब के बीजों को सीधा गड्डों में नही लगाया जाता. इसके लिए पहले पौध बनाकर तैयार किया जाता है. इन पौध को बीज और कलम के माध्यम से तैयार किया जाता है. इसके अलावा कई रजिस्टर्ड नर्सरी हैं जहां से इन्हें खरीद सकते हैं. कलम के माध्यम से इसके पौधे पुराने पेड़ो की शाखाओं से तैयार किये जाते हैं. जिन्हें ग्राफ्टिंग और गूटी विधि से तैयार किया जाता है.
ग्राफ्टिंग विधि
इस विधि में बीज से तैयार पौधे या पुराने पौधे की शाखाओं को v आकार में काटकर उन्हें किसी जंगली पौधे के साथ डबल वी ( << ) आकार में आपस में जोड़कर बहार से पॉलीथिन से बांध देते हैं. और कुछ दिनों बाद पौधा अच्छे से विकास करने लगता है.
गूटी विधि
इस विधि से पौध तैयार करने के लिए किसी शाखा या पौधे को काटा नही जाता बल्कि इसकी कलम पौधे की शाखा पर ही तैयार की जाती है. इसके लिए पौधे की शाखाओं के ऊपर के आवरण को हटाकर अंदर का आवरण निकाल लेते हैं. और उस जगह दोनों तरफ गोल छल्ला बना देते हैं. इस गोल छल्ले पर गोबर मिली मिट्टी को लगाकर उसे पॉलीथिन से अच्छे से बांध देते हैं. इसके कुछ दिन बाद इसमें जड़ें बनने लग जाती है. जिसके बाद इसे अलग कर जमीन में उगा देते हैं.
पौध को रोपने का तरीका और टाइम
सेब के पौधों को खेत में उचित दूरी रखते हुए तैयार किये हुए गड्डों में लगाया जाता है. इन गड्डों में एक और छोटा गड्डा तैयार कर उसे गोमूत्र से उपचारित कर लेना चाहिए. उसके बाद पौधे की पॉलीथिन को हटाकर उसे छोटे गड्डों में लगा देना चाहिए. गड्डों को तैयार करते वक्त गड्डों में मिट्टी के साथ नारियल के छिलके भी डाल सकते हैं. जिससे पौधे की जड़ों में अधिक टाइम तक नमी बनी रहती है.
सेब के पौधों को नर्सरी में काफी टाइम पहले तैयार किया जाता है. जिसके बाद इन्हें जनवरी या फरवरी माह में खेत में लगाया जाता है. लेकिन जनवरी माह में इन्हें खेत में लगाना सबसे सही होता है. क्योंकि जनवरी में लगाने से पौधे को लगभग तीन महीने तक उचित वातावरण मिलता है. जिससे पौधे का अच्छे से विकास होता है.
पौधों की सिंचाई
सेब के पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत नही होती. लेकिन पौधे के लगाने के बाद पहली सिंचाई तुरंत कर देनी चाहिए. उसके बाद सर्दियों के वक्त महीने में दो से तीन सिंचाई करनी चाहिए. जबकि गर्मियों के टाइम में पौधे की सप्ताह में एक बार सिंचाई ज़रुर कर देनी चाहिए. बारिश के मौसम में इसके पौधों को पानी की जरूरत नही होती. लेकिन अगर बारिश वक्त पर ना हो तो पौधे में नमी बनाए रखने के लिए आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए.
उर्वरक की मात्रा
सेब के पौधों को उर्वरक की मात्रा मिट्टी के परीक्षण के बाद आवश्यकता के अनुसार देना चाहिए. वैसे सामान्य तौर पर इसके गड्डों को तैयार करते वक्त प्रत्येक गड्डों में 10 से 12 किलो गोबर की खाद और आधा किलो एन.पी.के. की मात्रा को मिट्टी में अच्छे से मिलकर भर दें. उर्वरक की ये मात्रा पौधों को हर साल देनी चाहिए. लेकिन पांच साल बाद इस मात्रा को बढ़ा देना चाहिए.
अगर मिट्टी में अम्लीय गुण थोड़ा ज्यादा हो तो प्रत्येक पौधे को तीन साल के अंतराल में 300 ग्राम चूना देना चाहिए. और अगर मिट्टी में बोरान अथवा जींक की कमी हो तो पौधों की जड़ों में सुहाग और जींक सल्फेट का छिडकाव करना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
सेब के पौधे में खरपतवार नियंत्रण नीलाई गुड़ाई के माध्यम से करना उचित रहता है. इसके पौधे में रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण सही नही होता. सेब के गड्डों की पहली नीलाई गुड़ाई पौध लगाने के दौरान करनी चाहिए. उसके बाद हर महीने इसके पौधों की नीलाई गुड़ाई करनी चाहिए. सेब के पौधों की नीलाई गुड़ाई कर उनकी सिंचाई करने की अवधि को भी बढ़ा सकते हैं.
अतिरिक्त कमाई
सेब के पौधे रोपाई के तीन से चार साल बाद फल देना शुरू करते हैं. इस दौरान किसान भाई बाकी बची भूमि में कम सिंचाई की जरूरत वाली कंदीय फसलों को उगा सकते हैं. इससे उन्हें आर्थिक परेशानियों का सामना भी नही करना पड़ेगा और उनकी अतिरिक्त कमाई भी हो जायेगी.
पौधों की कटाई छटाई
सेब के पौधों की कटाई छटाई करना आवश्यक है. क्योंकि पौधे की कटाई छटाई कर उसकी पैदावार को बढ़ाया जा सकता हैं. सेब के पौधे पर शुरुआत में तीन से चार फिट की ऊंचाई तक कोई शाखा ना बनने दें. जब पौधे पर फल लगने शुरू हो जाए तब पौधे की हर शाखा को आगे से काट देना चाहिए. इससे पौधे से नई शाखाएं जन्म लेती हैं. जिससे पौधे पर लगने वाले फलों में वृद्धि होती है.
पौधों की कटाई छटाई ज्यादातर दिसम्बर माह में करनी चाहिए. इस दौरान पौधा सुषुप्त अवस्था में होता है. पौधे की कटाई के बाद कटी हुई शखाओं पर चौबटिया पोस्ट लगा देना चाहिए.
पौधों को लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
सेब के पौधे में कई तरह के रोग लगते हैं. जिस कारण इसकी पैदावार में फर्क देखने को मिलता हैं. इन सभी रोग की उचित समय रहते हुए रोकथाम कर फसल को होने वाले नुक्सान से बचाया जा सकता हैं.
सेब क्लियरविंग मोठ
पौधे पर ये रोग उसकी पूर्ण अवस्था में लगता है. इस रोग का लार्वा पौधे की छाल में छेद कर उसे नष्ट कर देता है. जिससे अन्य जीवों की वजह से पौधा संक्रमित हो जाता है. और जल्द हो पौधा पूरी तरह से नष्ट हो जाता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर क्लोरपीरिफॉस का छिडकाव 20 दिन के अंतराल में तीन बार करना चाहिए.
सफ़ेद रूईया कीट
पौधों पर ये रोग उनकी पतियों पर दिखाई देता हैं. शुरुआत में इस रोग के कीट खुद को एक सफ़ेद आवरण से ढककर रखते हैं. ये पौधे की पत्तियों से लगातार रस चूसते रहते हैं. जिससे पौधे की जड़ों में गाठें बनना शुरू हो जाती है. और रोग लगी पत्तियां सूखकर गिरने लगती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर इमिडाक्लोप्रिड या मिथाइल डेमेटान का छिडकाव करना चाहिए.
रूट बोरर
रूट बोरर रोग पौधों को सबसे ज्यादा नुक्सान पहुँचाता हैं. इस रोग की वजह से सम्पूर्ण पौधा नष्ट हो जाता हैं. शुरुआत में इस रोग का पता भी नही चलता. इस रोग का कीट पौधे की जड़ों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाता है. जिससे पौधा कमजोर होकर सूखने लगता हैं. इस रोग की रोकथाम डरमेट नामक केमिकल और ड्रेचिंग के माध्यम से की जा रही है. लेकिन हाल में बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के वैज्ञानिकों ने इसके लिए विशेष प्रकार की फंगस तैयार की है. जिस पर कार्य जारी है.
कोडलिंग मोठ
इस रोग का कीट अपने लार्वा को पौधे की पत्तियों या फलों पर जन्म देता है. जिससे ये लार्वा फलों में सुरंग बना अंदर चला जाता है. और दूसरी तरफ से बहार निकलता है. इस रोग की वजह से फल समय से पहले ही टूटकर गिर जाता है. और जल्द ही ख़राब हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर जून के महीने में फास्फोमिडान का छिडकाव करना चाहिए.
पाउडरी मिल्ड्यू
सेब के पौधे पर ये रोग ज्यादातर शुष्क मौसम वाली जगहों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद रंग का पाउडर दिखाई देता है. इसके प्रभाव की वजह से पौधे की पत्तियां मुड़ने लगती है. और धीरे धीरे सूखकर नष्ट हो जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर सल्फर या कार्बेन्डाजिम का छिडकाव उचित मात्रा में करना चाहिए.
सेब पपड़ी
सेब पपड़ी का रोग फलों को सबसे ज्यादा नुक्सान पहुँचाता हैं. इस रोग के लगने पर फलों पर धब्बे दिखाई देने लगते हैं. इसके अलावा फल फटा हुआ भी दिखाई देने लगता हैं. फलों के साथ ये रोग पत्तियों पर भी दिखाई देता है. इस रोग की वजह से पत्तियों का आकार टेढ़ा मेढ़ा दिखाई देता है. और पत्तियां समय से पहले ही गिरने लग जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर बाविस्टिन या मैंकोजेब का छिडकाव उचित मात्रा में करना चाहिए.
फलों की तुड़ाई और छटाई
सेब के फल, फूल आने के बाद तुड़ाई के लिए 130 से 140 दिनों में पककर तैयार हो जाते हैं. जब फलों का रंग किस्म के आधार पर आकर्षक दिखाई देने लगे और फल का आकार पूरी तरह से तैयार हो जाए तब इसकी तुड़ाई करनी चाहिए. फलों की तुड़ाई नोक के पास से कुछ दूरी रखते हुए करनी चाहिए. इससे फल अधिक दिनों तक खराब नही होते और दिखने में भी अच्छे लगते हैं.
फलों को तोड़ने के बाद उनकी छटाई की जाती है. छटाई के दौरान इन्हें आकार और चमक के आधार पर अलग कर लेना चाहिए. फलों की छटाई के बाद इन्हें बाज़ार में बेच देना चाहिए.
पैदावर और लाभ
सेब के पौधे तीन से चार साल बाद फल देना शुरू करते हैं. जब चार साल बाद पौधे पर फल आने लगते है तो शुरुआत में कम फल आते हैं. लेकिन तीसरे साल में पौधे अपनी उपज का 80 प्रतिशत फल देना शुरू कर देते हैं. पौधे की रोपाई के लगभग 6 साल बाद पौधा पूर्ण रूप से फल देना शुरू कर देता है. इस दौरान एक पौधा एक बार में 100 किलो के आसपास फल देता हैं. फलों की ये मात्रा पौधे की उम्र के साथ बढ़ती जाती हैं. पौधा लगाने के लगभग 5 साल बाद किसान भाई एक पौधे से सालाना 3 हज़ार के आसपास कमाई कर लेता है. जबकि एक एकड़ में लगभग 400 पौधे लगाए जा सकते हैं. जिनसे किसान भाई की अच्छी खासी कमाई हो जाती है.
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