कैर की खेती किसान भाई व्यापारिक तौर पर नगदी फसल के रूप में करते हैं. जिसे कैर, करीर, केरिया, कैरिया और टिंट आदि कई नामों से जाना जाता है. टिंट का इस्तेमाल ज्यादातर अचार बनाने में किया जाता है. इसके अलावा इसका इस्तेमाल औषधीय रूप में किया जाता है. टिंट पेट संबंधित बीमारियों के लिए काफी उपयोगी होती है. टिंट का पौधा सामान्य रूप से दो से तीन मीटर की ऊंचाई का पाया जाता है. जो झाड़ी के रूप में फैला हुआ होता है. काफी जगह हिन्दू समाज में इसको पूजा जाता है. टींट के फल देशी बेर की तरह दिखाई देते हैं. जिनका कच्चे रूप में इस्तेमाल सब्जी में भी किया जाता है. और पकने के बाद इन्हें सीधा खाया जाता हैं. पकने के बाद इसके फल लाल दिखाई देते हैं.
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टिंट का पौधा मुख्य रूप से शुष्क जलवायु में लगया जाता है. जिसको विकास करने के लिए शुष्क मौसम की जरूरत होती है. इसका पौधा सर्दी के मौसम में पड़ने वाले तेज पाले की वजह से अच्छे से विकास नही कर पाता है. इसके पौधे पर पत्तियां नही पाई जाती. इसके पौधे को अधिक पानी की जरूरत नही होती. क्योंकि इसकी जड़ें भूमि में अधिक गहराई तक जाती हैं. टिंट की खेती कम खर्च में अच्छा लाभ देती है, और इसका बाजार भाव भी काफी अच्छा मिलता हैं. इसलिए जिस जगह पानी की कमी हों वहां इसका इसकी खेती किसानों के लिए अधिक लाभदायक साबित हो सकती है.
अगर आप भी टिंट की खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
टिंट की खेती अधिक जलभराव वाली भूमि को छोड़कर बाकी लगभग सभी तरह की भूमि में आसानी से की जा सकती है. टिंट का पौधा रेतीली और बंजर दोनों तरह की भूमि में आसानी से विकास कर लेता हैं. राजस्थान के मरुस्थल में इसका पौधा जंगली रूप में पाया जाता हैं. इसकी खेती के लिए भूमि का पी. एच. सामान्य के आसपास होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
टिंट की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु वाली जगह सबसे उपयुक्त होती हैं. इसकी खेती के लिए सर्दी और गर्मी दोनों मौसम को उपयुक्त माना जाता है. कैर का पौधा अधिक सर्दी और गर्मी दोनों को आसानी से सहन कर सकता हैं. इसकी खेती के लिए 500 मिलीमीटर बारिश को सबसे उपयुक्त माना जाता है. इसके पौधों पर फलन साल में दो बार होता है.
टिंट के पौधों को शुरुआत में विकास करने के लिए सामान्य तापमान को उपयुक्त माना जाता है. शुरुआत में इसके पौधों को तापमान को लेकर देखभाल की जरूरत पड़ती है. लेकिन बड़े होने पर इसके पौधे सर्दियों में न्यूनतम 0 और गर्मियों में अधिकतम 50 डिग्री के आसपास के तापमान पर भी जीवित रह लेते हैं. सामान्य रूप से 30 से 35 डिग्री के आसपास का तापमान इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है.
उन्नत किस्में
टिंट के पौधों की अभी कोई उन्नत या प्रचलित किस्में उपलब्ध नही है. प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले पौधों से ही इसकी पौध और बीज तैयार कर उन्हें नए पेड के रूप में लगाते हैं. लेकिन वर्तमान में इसकी बढ़ती मांग की वजह से अब वैज्ञानिकों का ध्यान इस पर गया है. जिस कारण अब कई जगहों पर इसकी उन्नत किस्मों के निर्माण पर काम किया जा रहा है. और जल्द ही इसकी कई उन्नत किस्में देखने को मिल सकती हैं.
पौध तैयारी करना
टिंट के पौधे पुराने पौधों से कलम और बीज के माध्यम से तैयार किये जाते हैं. बीज के माध्यम से पौध तैयार करने पर इसके पौधे कई साल बाद पैदावार देने लगते हैं. जबकि कलम के माध्यम से पौधा तैयार करने पर इसके पौधे रोपाई के लगभग तीन से चार साल बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं.
बीज के माध्यम से पौधा तैयार करने के दौरान नर्सरी में इसके बीजों की रोपाई सर्दी के मौसम को छोड़कर कभी भी कर सकते हैं. लेकिन जुलाई का महीना पौध रोपाई के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है. इस दौरान उचित उर्वरक मिलाकर तैयार की गई मिट्टी को पॉलीथीन में भरकर उसमें इसके बीजों की रोपाई कर देनी चाहिए. इसके बीज रोपाई के लगभग 10 से 15 दिन बाद ही अंकुरित हो जाते हैं. जिसके बाद इसकी पौध लगभग एक साल बाद खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है.
कलम के माध्यम से पौधा तैयार करने के दौरान ग्राफ्टिंग और कलम दाब विधि को उपयुक्त माना जाता है. इन दोनों विधि से पौध बारिश के मौसम में तैयार की जाती हैं. लेकिन बीज के माध्यम से पौध तैयार करना सबसे आसान होता हैं.
खेत की तैयारी
टिंट के पौधों की रोपाई से पहले खेत की तैयारी के दौरान खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर दें. उसके बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से दो से तीन गहरी जुताई कर खेत को खुला छोड़ दें. उसके बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद उसमें पाटा चलाकर खेत को समतल बना दें. खेत को समतल बनाने के बाद खेत में उचित दूरी बनाते हुए पंक्तियों में गड्डे खोदकर तैयार कर लें. गड्डों की खुदाई के दौरान उनका आकार डेढ़ से दो फिट चौड़ा और डेढ़ फिट के आसपास गहरा रखना चाहिए. गड्डों को पंक्ति में तीन मीटर के आसपास दूरी छोड़ते हुए तैयार करते हैं. और प्रत्येक पंक्तियों के बीच भी 8 से 10 फिट की दूरी होनी चाहिए.
गड्डों के तैयार होने के बाद उनमें उचित मात्रा में गोबर की खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. गोबर की खाद के अलावा कुछ रासायनिक खाद भी उचित मात्रा में मिला दें. दोनों तरह की खाद को मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भर दें. उसके बाद गड्डों की सिंचाई कर उन्हें ढक दें. इससे गड्डों की मिट्टी अच्छे से अपघटित हो जाती है.
रोपाई का तरीका और टाइम
कैर के पौधे सामान्य रूप से मरुस्थलीय भूमि में जंगली पौधे के रूप में खेतों में स्वयं उग आते हैं. लेकिन उन्नत तरीके से इसकी खेती करने के लिए इसके पौधों की रोपाई खेत में एक उचित तरीके से की जाती हैं. जिसमें इसके पौधों की रोपाई पंक्तियों के रूप में की जाती है. पंक्तियों के रूप में इसके पौधों की रोपाई के दौरान इसके पौधों को खेत में तैयार किया गए गड्डों में लगाया जाता है. गड्डों में पौध रोपाई से पहले गड्डों के बीच में एक और छोटे आकार का गड्डा तैयार कर उसमें पौधे को लगा दें. पौधों को गड्डों में लगाने के बाद उनके चारों तरफ जड़ से दो सेंटीमीटर की ऊचाई तक मिट्टी डालकर ढक देना चाहिए.
कैर के पौधों की रोपाई के दौरान इनको सर्दी के मौसम को छोड़कर कभी भी लगा सकते हैं. जबकि व्यापारिक रूप से पैदावार लेने के लिए इसके पौधों की रोपाई बारिश के मौसम में करनी चाहिए. क्योंकि इस दौरान रोपाई करने पर इसके पौधे को उचित वातावरण मिलता है. जिससे पौधे अच्छे से विकास करते है. इसके अलावा मार्च और अप्रैल का महीना भी रोपाई के लिए उपयुक्त होता है.
पौधों की सिंचाई
कैर की खेत शुष्क मरुस्थलीय भूमि में की जा सकती है. एक कहावत के मुताबिक कैर के पौधों में फल अकाल पड़ने के दौरान अधिक आता है. इसलिए इसके पूर्ण विकसित पौधे को सिंचाई की अधिक जरूरत नही होती. इसका पौधा अकाल पड़ने पर भी विकास कर लेता हैं. क्योंकि इसके पौधे की जड़ें भूमि में अधिक गहराई में जाकर खुद के लिए पानी की पूर्ति कर लेती हैं.
शुरुआत में इसके पौधे की रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए. इसके पौधों की पहली सिंचाई के बाद गर्मियों के मौसम में 20 से 30 दिन दिन बाद पानी देना चाहिए. और सर्दियों के मौसम में डेढ़ से दो महीने बाद इसके पौधों की सिंचाई करनी चाहिये. जबकि बारिश के मौसम में इसके पौधों की सिंचाई की जरूरत नही होती. कैर के पूर्ण रूप से विकसित पौधों की साल में तीन से चार बार ही सिंचाई की जरूरत होती है.
उर्वरक की मात्रा
कैर के पौधों को उर्वरक की ज्यादा जरूरत नही होती. लेकिन व्यापारिक तौर पर खेती करने के दौरान शुरुआत में इसके गड्डों की तैयारी के वक्त प्रत्येक गड्डों में 10 से 15 किलो पुरानी गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाकर गड्डों में भर देना चाहिए. जैविक खाद के अलावा जो किसान भाई रासायनिक खाद देना चाहता है वो प्रत्येक गड्डों में लगभग 200 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा डालकर मिट्टी में मिला दें.
उर्वरक की ये मात्रा सभी गड्डों में सामान्य रूप से पौध लगाने के एक महीने दी जाती है. क्योंकि एक महीने गड्डों की भराई करने से मिट्टी में खाद के पोषक तत्व अच्छे से मिल जाते हैं. और मिट्टी अच्छे से अपघटित हो जाती है. उर्वरक की ये मात्रा पौधों को तीन से चार साल तक देनी चाहिए. उसके बाद पौधों के विकास के साथ साथ उर्वरक की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए. पूर्ण विकसित पौधे को लगभग 25 किलो के आसपास जैविक और आधा किलो के आसपास रासायनिक खाद देनी चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण की ज्यादा जरूरत नही होती. इसकी खेती में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से किया जाता है. इसके लिए शुरुआत में इसके पौधों की रोपाई के लगभग एक महीने बाद पौधे की जड़ों के पास दिखाई देने वाली खरपतवार को निकाल दें. और पौधों की हल्की गुड़ाई कर दें. उसके बाद जब भी कोई खरपतवार जड़ों के पास दिखाई दे तो उसे निकाल देना चाहिए. और तीन से चार महीने के अंतराल में हल्की गुड़ाई कर देनी चाहिए.
पूर्ण विकसित पौधों को गुड़ाई की अधिक जरूरत नही होती. पूर्ण विकसित पौधे की साल में दो बार गुड़ाई काफी होती है. इसके अलावा खेत में खाली बची जमीन पर अगर किसी तरह की खेती ना की गई हो तो बारिश के मौसम के बाद जब खेत में खरपतवार दिखाई देने लगे तब उसकी जुताई कर देनी चाहिए.
पौधों को देखभाल
कैर का पौधा झाड़ी के रूप में विकास करता हैं. लेकिन इसके पौधों की उचित तरीके से देखभाल कर कटाई छटाई की जाए तो इसका पौधा आसानी से एक छोटे पौधे का रूप ले सकता है. जिससे पौधे का आकार भी अच्छा दिखाई देता है. कैर के पौधे पर जब फल बनने शुरू होते हैं तब उन्हें देखभाल की जरूरत ज्यादा होती है. क्योंकि आवारा पशु इसके फल और महीन शाखाओं को खा जाते हैं. जिस कारण उनसे पौधों को बचाने के लिए इसके खेत की तारबंदी कर देनी चाहिए. इसके अलावा फल तोड़ने के के बाद पौधों पर दिखाई देने वाली खराब शाखाओं की भी कटाई छटाई करते रहना चाहिए.
अतिरिक्त कमाई
कैर की खेती के दौरान इसके पौधे रोपाई के लगभग तीन से चार साल बाद पैदावार देने लगते हैं. इस दौरान किसान भाई इसके पौधों के बीच कम पानी की जरूरत वाली बागवानी या औषधीय फसलों को आसानी से उगा सकता है. जिससे उसे उसके खेत से उचित मात्रा में पैदावार मिलती रहती है. और आर्थिक परेशानियों का भी सामना नही करना पड़ता.
पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
टिंट के पौधों में अभी तक किसी भी तरह के कीट या जीवाणु जनित किसी भी तरह के रोग देखने को नही मिले हैं. लेकिन जल भराव की वजह से पौधों में जड़ गलन का रोग ज़रुर लग जाता है. इसके लिए खेत में जल भराव की समस्या उत्पन्न ना होने दें.
फलों की तुड़ाई
कैर के पौधों पर फल साल में दो बार लगते हैं. जिनमें पहली बार इसके पौधों पर फल मई के आसपास आते हैं. और दूसरी बार फल अक्टूबर और नवम्बर में बनते हैं. फरवरी और मार्च में फूल आने के दौरान बनने वाले फलों की गुणवत्ता और पैदावार दोनों अधिक पाई जाती है. जबकि जुलाई, अगस्त में फूल खिलने के दौरान बनने वाले फलों की पैदावार और गुणवत्ता दोनों कम पाई जाती हैं.
इसके पौधों पर फूल आने और फल पकने के दौरान दूर से देखने पर पौधों का रंग हल्का नारंगी लाल दिखाई देता है. इसके फल फूल लगने के लगभग चार महीने बाद पककर तैयार हो जाते हैं. लेकिन आचार और सब्जी के रूप में इसके कच्चे फलों का इस्तेमाल किया जाता है. जिन्हें पकने से पहले हरे रूप में ही तोड़ लिया जाता है. जबकि पूर्ण रूप से पके फलों का रंग लाल दिखाई देता हैं. जिनका इस्तेमाल भी खाने में किया जाता हैं.
पैदावार और लाभ
कैर के प्रति पेड़ का औसतन उत्पादन 15 किलो के आसपास पाया जाता है. और एक हेक्टेयर में लगभग 500 के आसपास पौधे आसानी से लगाए जा सकते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 7500 किलो के आसपास पाया जाता हैं. इसके कच्चे फलों का बाजार भाव 50 रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता है. जबकि वहीँ इनको सुखाने पर इनका दाम 15 गुना तक बढ़ जाता है. सूखे हुए फलों का बाजार भाव 700 से 1200 रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता है. कच्चे फलों के रूप में प्रति हेक्टेयर किसान भाई सालाना तीन से चार लाख तक की कमाई किसान भाई आसानी से कर सकता हैं.
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