फसल चक्र को सस्य चक्र या क्रॉप रोटेशन के नाम से भी जाना जाता है. “किसी निश्चित भूमि में निश्चित समय वाली फसलों को लगातार अदल बदलकर बोना ही फसल चक्र कहलाता है”. फसल चक्र का मुख्य उद्देश्य किसी भी तरह के पौधों के लिए भूमि में मौजूद पोषक तत्वों के सदुपयोग से भूमि की भौतिक और जैविक स्थिति में संतुलन बनाए रखना हैं. लगातार फसल चक्र अपनाने से किसान भाई को फसल में आने वाली कई तरह की परेशानियों से छुटकारा मिलता है. फसल चक्र का इस्तेमाल कर किसान भाई अपनी भूमि से लगातार अच्छी फसल ले सकते हैं. और इसके अपनाने से खेत की उर्वरक क्षमता भी बनी रहती है.
जबकि एक ही फसल को लगातार उगाने से किसान भाइयों को फसल की कम उपज मिलती है. और एक ही फसल को खेत में लगातार लगाने से मिट्टी में बीज जनित और मृदा जनित रोग भी बढ़ जाते हैं, जिसके कारण भूमि में विषैले गुण आ जाते है. भूमि के अंदर विषैले गुण उत्पन्न हो जाने पर भूमि में पाए जाने वाली छोटे उपयोगी मित्र किट नष्ट हो जाते हैं. और भूमि धीरे धीरे बंजर रूप धारण करने लगती है.
फसल चक्र के फायदे
किसी भी खेत में फसल चक्र अपनाने से भूमि और फसल में कई तरह के फायदे देखने को मिलते हैं.
- फसल चक्र के अपनाने से भूमि की उर्वरक शक्ति बनी रहती है.
- फसल चक्र के अपनाने से भूमि में अम्लीय और क्षारीय गुण, पौषक तत्व और जैविक पदार्थों की मात्रा संतुलित रहती है.
- फसल चक्र के अपनाने से फसल में कई तरह के किट और बीज जनित रोग नही लगते.
- इसके अपनाने से फसलों से पैदावार अधिक मात्रा में प्राप्त होती है. जिनकी गुणवत्ता भी अच्छी पाई जाती है.
- भूमि में फसल चक्र अपनाने से रासायनिक उर्वरक कम मात्रा में इस्तेमाल किये जाते हैं. जिससे मिट्टी प्रदूषित होने से बचती है.
- फसल चक्र अपनाने से फसलों में रोग भी काफी कम ही देखने को मिलते है. जिसकी वजह से किसान भाइयों के द्वारा रासायनिक दवाइयों पर किया जाने वाला खर्च भी कम हो जाता है.
- फसल चक्र के दौरान फली वाली फसलों के बोने पर खेत में नाइट्रोजन की पूर्ति रहती है.
- फसल चक्र अपनाने से खेत में खरपतवार में कमी देखने को मिलती है. क्योंकि फसल चक्र के दौरान अधिक गुड़ाई वाली फसलों के बोने पर खेत में खरपतवार नष्ट हो जाती है.
फसल चक्र अपनाने का तरीका
फसल चक्र में सामान्य रूप से फसलों को अदल बदलकर बोया जाता है. इन्हें बोने के दौरान फसल चक्र निर्धारित करने के कुछ मूल सिद्धान्त हैं. जिन्हें किसान भाइयों को अपनाने चाहिए.
- अधिक पौषक तत्व ग्रहण करने वाली फसलों की खेती के बाद खेत को एक बार खाली छोड़ देना चाहिए.
- किसी भी विशेष रोग के लगने पर उस फसल को लगातार खेत में नही उगाना चाहिए.
- जिन फसलों की जड़ें अधिक गहराई में जाती हैं उन फसलों के बाद जिन फसलों की जड़ें कम गहराई में जाती हैं, उन्हें उगाना चाहिए.
- अनाज फसलों को उगाने के बाद दो से तीन साल में एक बार दलहनी फसल को जरुर उगाना चाहिए.
- अधिक गुड़ाई वाली फसलों के बाद कम गुड़ाई की जरूरत वाली फसलों को उगाना चाहिए.
- अधिक सिंचाई वाली धान जैसी फसलों के बाद कम सिंचाई की जरूरत वाली फसलों को उगाना चाहिए.
- अधिक उर्वरक लेने वाली फसलों के बाद जिन फसलों के लिए उर्वरक की काफी कम आवश्यकता होती है उन्हें उगाना चाहिए.
फसल चक्र के प्रकार
फसलों की श्रेणी के आधार पर फसल चक्र के कई प्रकार हैं.
फसल चक्र के प्रकार | फसल चक्र के तरीके | |
1 | परती पर आधारित | परती-गेहूँ, परती-सरसों, परती-आलू, धान-परती |
2 | हरी खाद आधारित | हरी खाद – गेहूँ, हरी खाद-केला, हरी खाद-आलू, हरी खाद-धान, हरी खाद-गन्ना |
3 | दलहनी फसल आधारित | मूंग-गेहूं, मूंगफली-अरहर, धान-चना, बाजरा-चना, मूंग-गेहूँ, धान-चना, कपास-मटर-गेहूं, ज्वार-चना, बाजरा-चना,ज्वार-चना, कपास-मटर-गेहूँ,धान-मटर, धान-मटर-गन्ना, मूंगफली-अरहर-गन्ना, मसूर-मेंथा, मटर-मेंथा |
4 | अनाज आधारित | मक्का-गेहूं, धान-गेहूँ, गन्ना-गेहूँ, चना-गेहूं,धान-गन्ना-पेड़ी, मक्का-जौ, ज्वार-गेहूँ, बाजरा-गेहूँ, धान-बरसीम, मक्का-उर्द-गेहूँ |
5 | सब्जी फसल आधारित | टिंडा-आलू-मूली, शलजम-भिंडी-गाजर, भिण्डी-मटर, पालक-टमाटर, फूलगोभी-मूली, धान-आलू-टमाटर, बन्दगोभी-मूली, बैंगन-लौकी,धान-लहसुन-मिर्च, धान-आलू-लौकी |
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