धान ( चावल ) की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम

धान भारत की मुख्य खाद फसल हैं. भारत में अनाज फसलों में इसका उत्पादन सबसे ज्यादा किया जाता है. धान की पैदावार पहाड़ी और मरुस्थलीय क्षेत्रों को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में की जाती है. इसकी खेती के लिए पानी की ज्यादा जरूरत होती है. इसकी खेती बहुत ही मेहनत वाली मानी जाती है. धान की फसल में काफी ऐसे रोग पाए जाते हैं जो इसकी फसल को पूरी तरह ख़राब कर देते हैं. इसकी फसल को रोग लगने से बचाने पर काफी अच्छी पैदावार मिलती हैं. धान की खेती में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं जिनकी रोकथाम करना जरूरी होता है. आज हम आपको धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के बारें में बताने वाले हैं.

धान की फसल में प्रमुख रोग

भूरी चित्ती

धान की खेती में भूरी चित्ती का रोग ज्यादातर दक्षिण-पूर्वी राज्यों में देखने को मिलता हैं. धान के पौधों पर इस रोग का प्रभाव उसके कोमल भागों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों पर गोल, छोटे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. धीरे धीरे ये धब्बे आपस में मिलकर बड़ा आकार धारण कर लेते हैं. जिससे पौधे की पत्तियां सुखाने लगती है. और पौधा विकास करना बंद कर देता है. इस रोग के लगने से पौधे में बालियाँ काफी कम मात्रा में आती है. जिसका असर पौधों की पैदावार पर देखने को मिलता है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में धन के पौधों को रोपाई से पहले थिरम या कार्बनडाईजिम की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए.
  2. खड़ी फसल में प्रभाव दिखाई देने पर मैंकोजेब की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर 10 से 12 दिन के अंतराल में करना चाहिए.
  3. इसके अलावा इणडोफिल एम 45 की ढाई किलो मात्रा को एक हज़ार लीटर पानी में मिलाकर छिड़कने से भी लाभ मिलता है.

पत्ती अंगमारी

धान के पौधों में लगने वाले पत्ती अंगमारी रोग को सीथ, पत्ती झुलसा और बैण्डेड ब्लास्ट के नाम से भी जाना जाता है. धान के पौधों में ये रोग फफूंद की वजह से जन्म लेता है. धान के पौधों पर इस रोग का प्रभाव उसकी पत्तियों पर देखने को मिलता हैं. जो पत्तियों पर सिरे से आरम्भ होकर नीचे की और बढ़ता है. जिससे पत्तियों का रंग भूरा हल्का पीला दिखाई देने लगता है. रोग बढ़ने पर इसका प्रभाव सम्पूर्ण पौधे पर फैल जाता है. जिससे पौधे झुलसे हुए दिखाई देते हैं.

रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए बाविस्टीन या इणडोफिल एम 45 की ढाई किलो मात्रा को एक हज़ार लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए.

खैरा

चावल की खेती में लगने वाला ये रोग भूमि में उर्वरक की कमी की वजह से देखने को मिलता है. इस रोग के लगने से शुरुआत में पौधे की निचली पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता है. और पत्तियों पर कत्थई रंग के धब्बे बनना शुरू हो जाते हैं. रोग के अधिक उग्र होने की स्थिति में पौधे की पत्तियां सुखकर गिरने लगती है. पौधों में ये रोग जस्ता की कमी की वजह से दिखाई देता है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में जिंक सल्फेट का छिडकाव आखिरी जुताई के वक्त करना चाहिए. या फिर रोग दिखाई देने पर लगभग 5 किलो जिंक सल्फेट का छिडकाव पौधों पर 10 दिन के अंतराल में दो बार करना चाहिए.
  2. इसके अलावा ढाई किलो बुझे हुए चूने को प्रति हेक्टेयर की दर से 900 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए.

टुंग्रो

धान के पौधों में लगने वाला ये रोग कीट की वजह से फैलता है. पौधों पर इस रोग का प्रभाव शुरूआती अवस्था में देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों का रंग संतरे की तरह पीला दिखाई देने लगता है. और इस रोग के लगने से पौधों का आकार बौना दिखाई देने लगता है. रोगग्रस्त पौधे में बालियाँ भी देरी से बनती है. जिनका आकार बहुत छोटा दिखाई देता है. जिनमें दाने बहुत कम और हल्की मात्रा में पड़ते हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में पौध रोपाई के वक्त इसके पौधों को क्लोरोपायरीफॉस की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए.
  2. खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर मोनोक्रोटोफास 36 ई.सी., कार्बेरिल 50 डब्ल्यू. पी. या फोस्फेमिडोन 85 डब्ल्यू. एस.सी. की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

पत्ती मरोडक

धान की खेती में लगने वाले इस रोग को पत्ती लपेटक के नाम से भी जानते हैं. धान के पौधों में पट्टी मरोडक रोग का प्रभाव पौधे की पत्तियों पर दिखाई देता है. इस रोग की सुंडी पौधे की पत्तियों को लपेटकर सुरंग बना लेती है. और उसके अंदर रहकर पत्तियों का रस चुस्ती हैं. जिससे पौधे की पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता हैं. रोग के अधिक बढ़ने से पत्तियां जाली के रूप में दिखाई देने लगती हैं.

रोकथाम

  1. पौधों की समय से रोपाई कर उसमें खरपतवार पैदा ना होने दें.
  2. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर कार्बोफ्यूरान 3 जी या कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
  3. इनके अलावा क्लोरपाइरीफास, क्यूनालफास, ट्राएजोफास या मोनोक्रोटोफास का छिडकाव भी रोग की रोकथाम के लिए अच्छा होता है.
  4. जैविक तरीके से रोग नियंत्रण करने के लिए रोगग्रस्त पत्तियों को तोड़कर उन्हें जला देना चाहिए.

झोंका रोग

धान की फसल में लगने वाला झोंका रोग फसल की रोपाई के लगभग 30 से 40 दिन बाद शुरू हो जाता हैं. इस रोग की मुख्य वजह मौसम में होने वाला परिवर्तन को माना जाता हैं. इस रोग की शुरुआत में पौधों के पर्णच्छद और पत्तियों मटमैले धब्बे बन जाते हैं. जिनका आकार रोग बढ़ने पर बढ़ जाता हैं. जिससे पौधे बहुत कमजोर हो जाते हैं. और टूटकर गिरने लगते हैं.

रोकथाम – इस रोग की रोकथाम के लिए कई तरह के उपाय किये जाते हैं.

  1. शुरुआत में बीजों की रोपाई से पहले उन्हें थीरम या कार्बेन्डाजिम की दो से ढाई ग्राम मात्रा को प्रति किलो की दर से बीजों में मिलाकर उपचारित कर लेना चाहिए.
  2. खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू.पी. या एडीफेनफास 50 प्रतिशत ई.सी. की आधा लीटर मात्रा को 500 से 700 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकाव करना चाहिए.
  3. इनके अलावा हेक्साकोनाजोल, मैंकोजेब या जिनेब की उचित मात्रा का पौधों पर छिडकाव करना भी रोग की रोकथाम के लिए उपयोगी होता है.

हिस्पा

धान की फसल में लगने वाला ये एक कीट रोग हैं. इस रोग के बीटल (कीड़े) पौधे की पत्तियों के अर्द्ध चर्म को खा जाते हैं. जिससे पौधे की पत्तियों पर सफ़ेद रंग के धब्बे दिखाई देने लगते है इस रोग के बढ़ने से पौधों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचता हैं.

रोकथाम

  1. इसकी रोकथाम के लिए धान की रोपाई समय पर करनी चाहिए.
  2. खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी की 18 से 20 किलो मात्रा को 500 से 700 लीटर पानी में मिलकर पौधों पर छिडकना चाहिए.
  3. इसके अलावा ट्राएजोफास, मोनोक्रोटोफास, क्लोरपाइरीफास या क्यूनालफास की उचित मात्रा का छिडकाव भी किसान भाई पौधों पर कर सकते हैं.

तना छेदक

धान के पौधों में तना छेदक रोग का प्रभाव कीटों की वजह से फैलता हैं. इस कीट के रोग पौधे पर अपने लार्वा को जन्म देते हैं. जो पौधे के तने में छेद कर उसे अंदर से खोखला कर देता हैं. जिससे पौधे को पोषक तत्व मिलने बंद हो जाते हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. और तने के खोखले हो जाने की वजह से पौधे जल्द ही टूटकर गिरने लगते हैं.

रोकथाम

  1. गर्मी में खेतों की गहरी जुताई करनी चाहिए. और खेतों के चोरों तरफ फसल रोपाई के वक्त फूल वाले पौधों की रोपाई करनी चाहिए.
  2. खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों पर क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई.सी. या क्यूनालफास 25 प्रतिशत ई.सी.की डेढ़ लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिड़कना चाहिए.
  3. इनके अलावा मोनोक्रोटोफास, कार्बोफ्यूरान या ट्रायजोफास की उचित मात्रा का छिडकाव भी फसल में लाभ पहुँचाता हैं.

धान का फुदका

धान का फुदका रोग फसल के तैयार होने के वक्त देखने को मिलता है. धान की फसल में तीन तरह के फुदका रोग पाए जाते हैं जिन्हें एक सामान रूप से उपचारित किया जाता है. जिन्हें कीट की अवस्था के आधार पर हरा, भूरा और सफ़ेद पीठ वाला फुदका के नाम से जानते हैं. रोग की शुरूआती अवस्था में इसके कीटों का रंग हरा दिखाई देता हैं. जो बाद में कीट के व्यस्क होने के साथ साथ बदलता हैं. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर और उन्हें खाकर पौधों को नुक्सान पहुँचाते हैं. रोग बढ़ने पर पौधे विकास करना बंद कर देते हैं.

रोकथाम

  1. शुरुआत में खेत की गहरी जुताई कर फसल को समय पर उगा देना चाहिए.
  2. खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर फेरोमोन ट्रैप की 5 से 7 ट्रैप को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में लगाना चाहिए.
  3. इसके अलावा फसल पर रोग दिखाई देने पर इमिडाक्लोप्रिड, फिप्रोनिल या कार्बोफ्यूरान की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

जीवाणु झुलसा रोग

पौधों में लगने वाला ये रोग एक वायरस जनित रोग हैं. जो पौधों पर उनके विकास के वक्त देखने को मिलता है. इस रोग का प्रभाव शुरुआत में पौधे की पत्तियों पर देखने को मिलता हैं. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर भूरे पीले रंग के बड़े आकार के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. जो रोग बढ़ने पर पूरे पौधे पर फैल जाते हैं. जिससे पौधा जल्द ही नष्ट हो जाता हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए बायोपेस्टीसाइड स्यूडोमोनास फ्लोरसेन्स 0.5 प्रतिशत डब्लू.पी. की ढाई किलो मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 100 किलो गोबर की खाद या 20 किलो बालू मिट्टी में मिलाकर खेत की जुताई से पहले खेत में छिड़क देना चाहिए.
  2. इसके अलावा बीज रोपाई के वक्त स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत और टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत की 16 ग्राम मात्रा से 100 किलो बीज को उपचारित कर लगाना चाहिए.

धान की फसल से संबंधित किसी भी तरह की जानकारी या अन्य किसी रोग की रोकथाम के लिए आप अपनी राय हमारे साथ कमेंट बॉक्स में साझा कर सकते हैं.

 

0 thoughts on “धान ( चावल ) की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम”

Leave a Comment