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चौलाई की खेती कैसे करें

2019-09-16T18:35:44+05:30Updated on 2019-09-16 2019-09-16T18:35:44+05:30 by bishamber 2 Comments

चौलाई की खेती किसान भाई नगदी फसल के रूप में करता है. चौलाई को भारत में कई जगहों पर राजगिरी और रामदाना के नाम से भी जाना जाता हैं. इसके पौधों का मुख्य रूप से इस्तेमाल सब्जी इसके दानो के रूप में किया जाता है. इसके पौधे सामान्य रूप से एक से दो मीटर तक की ऊंचाई के पाए जाते हैं. जिन पर पर्पल और लाल रंग के फूल दिखाई देते हैं.

Table of Contents

  • उपयुक्त मिट्टी
  • जलवायु और तापमान
  • उन्नत किस्में
    • कपिलासा
    • आर एम ए 4
    • छोटी चौलाई
    • बड़ी चौलाई
    • अन्नपूर्णा
    • सुवर्णा
    • पूसा लाल
    • गुजरती अमरेन्थ 2
  • खेत की तैयारी
  • बीज की मात्रा और उपचार
  • बीज रोपाई का तरीका और टाइम
  • पौधों की सिंचाई
  • उर्वरक की मात्रा
  • खरपतवार नियंत्रण
  • पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
    • पर्ण जालक
    • ग्रासहोपर
    • कैटरपिलर
    • जड़ गलन
    • पाउडरी मिल्ड्यू
  • फसल की कटाई
  • पैदावार और लाभ
चौलाई की खेती

चौलाई एकमात्र ऐसा पौधा हैं जिसके अंदर सोने की मात्रा पाई जाती हैं. जिस कारण इसका इस्तेमाल कई प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियों में किया जाता है. इसके पौधे के सभी भाग (जड़, तना, पत्ती, डंठल) उपयोगी होते हैं. चौलाई में प्रोटीन, खनिज, विटामिन ए और सी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं. चौलाई के इस्तेमाल से पेट संबंधित बीमारियों से छुटकारा मिलता है.

चौलाई की खेती के लिए अर्ध शुष्क वातावरण को उपयोगी माना जाता हैं. भारत में चौलाई की खेती लगभग सभी जगह पर की जा सकती हैं. इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती हैं. चौलाई को गर्मी और बरसात दोनों मौसम में उगाया जा सकता हैं. लेकिन अधिक उपज लेने के लिए इसे शुष्क मौसम में उगाना अच्छा होता है.

अगर आप भी चौलाई की खेती के माध्यम से अच्छी कमाई करना चाहते हैं तो आज हम आपको चौलाई की खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

चौलाई की खेती कार्बनिक पदार्थों से भरपूर उचित जल निकासी वाली भूमि में की जा सकती हैं. जलभराव वाली भूमि में इसकी खेती नही की जा सकती. क्योंकि जलभराव वाली भूमि में इसके पौधे अच्छे से विकास नही कर पाते. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

चौलाई की खेती शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों तरह की जलवायु में की जा सकती हैं. सर्दी का मौसम चौलाई की खेती के लिए उपयुक्त नही माना जाता. चौलाई की अधिक उपज के लिए इसे गर्मी के मौसम में उगाना चाहिए. गर्मी के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं. और बारिश के मौसम में भी इसे आसानी से उगाया जा सकता हैं. लेकिन इस दौरान खेत में जलभराव ना होने दें. क्योंकि जल भराव होने से इसके पौधे रोगग्रस्त होकर बहुत जल्द खराब हो जाते हैं.

चौलाई के पौधों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री के बीच तापमान की जरूरत होती है. पौधों के अंकुरित होने के बाद उनके विकास के लिए 30 डिग्री के आसपास तापमान को उपयुक्त माना जाता हैं. गर्मियों में मौसम में चौलाई के पौधे अधिकतम 40 डिग्री तापमान पर भी विकास कर लेते हैं. लेकिन इस दौरान पौधों को सिंचाई की अधिक जरूरत होती हैं.

उन्नत किस्में

चौलाई की बाजार में कई सारी उन्नत किस्में मौजूद हैं. जिन्हें जल्दी और अधिक मात्रा में पैदावार लेने के लिए तैयार किया गया है.

कपिलासा

चौलाई की इस किस्म को जल्द पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों की लम्बाई लगभग दो मीटर के आसपास पाई जाती है. इस किस्म के पौधे हरी सब्जी के रूप में रोपाई के 30 से 40 दिन बाद ही पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

आर एम ए 4

चौलाई की इस किस्म को कृषि अनुसंधान केंद्र, मंडोर के द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे सामान्य रूप से एक से डेढ़ मीटर तक की ऊंचाई के पाए जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 12 से 15 क्विंटल के बीच पाया जाता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 120 से 130 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जबकि हरी पतियों की पैदावार के रूप में इस किस्म के पौधों की पहली कटाई किसान भाई बीज रोपाई के लगभग 30 से 40 दिन बाद कर सकते हैं.

छोटी चौलाई

चौलाई की इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के द्वारा तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधों की लम्बाई बाकी किस्मों से कम पाई जाती है. और इसकी पत्तियों का आकार भी छोटा पाया जाता है. इस किस्म के पौधों को बारिश के मौसम में उगाना अच्छा माना जाता है. इसकी पत्ती और तने दोनों का रंग हरा होता हैं.

बड़ी चौलाई

चौलाई की इस किस्म को भी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के द्वारा ही तैयार किया गया हैं. इस किस्म के पौधों के तने का आकार मोटा पाया जाता है. और इसकी पत्तियाँ बड़े आकार की होती है. इसके तने और पत्ती दोनों का रंग हरा पाया जाता हैं. इस किस्म के पौधे गर्मियों के मौसम में अधिक पैदावार देते हैं.

अन्नपूर्णा

उन्नत किस्म का पौधा

चौलाई की इस किस्म को अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधों की ऊंचाई दो मीटर के आसपास पाई जाती है. जो हरी फसल की कटाई के लिए उपयुक्त माने जाते है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के 30 से 35 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते जाते हैं. जबकि इसकी फसल पककर तैयार होने में 120 से 130 दिन का समय लेती है. जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 18 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

सुवर्णा

चौलाई की इस किस्म को उत्तर भारत में अधिक उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 80 से 90 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 से 20 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधे हरी फसल के रूप में कटाई के लिए रोपाई के एक महीने बाद ही तैयार हो जाते हैं.

पूसा लाल

चौलाई की इस किस्म के पौधे की पत्तियों का रंग लाल और डंठल का रंग हरा दिखाई देता है. इसकी पत्तियां आकार में काफी बड़ी पाई जाती है. इस किस्म के पौधों की रोपाई बरसात और गर्मी दोनों मौसम में की जा सकती है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 30 दिन बाद ही पहली कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

गुजरती अमरेन्थ 2

चौलाई की इस किस्म को कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया हैं. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग तीन महीने बाद ही कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 20 से 25 क्विंटल के बीच पाया जाता है. इस किस्म को गुजरात के बाहर राजस्थान महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी उगाया जाता हैं.

इनके अलावा और भी कई किस्में बाज़ार में मौजूद हैं जिन्हें काफी जगहों अलग मौसम के आधार पर उगाया जाता है. जिनमें पी आर ए 1, मोरपंखी, आर एम ए 7, पूसा किरण, आई सी 35407, पूसा कीर्ति और वी एल चुआ 44 जैसी कई किस्में शामिल हैं.

खेत की तैयारी

चौलाई की रोपाई के लिए भुरभुरी मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है. क्योंकि भुरभुरी मिट्टी में बीजों का अंकुरण अच्छे से होता है. इसके लिए शुरुआत में खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दें. उसके बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद या अन्य जैविक खादों को डालकर खेत की फिर से अच्छे से जुताई कर दें.

उसके बाद खेत में पानी चलाकर खेत का पलेव कर दें. पलेव करने के तीन से चार दिन बाद जब जमीन की ऊपरी सतह सुखी हुई दिखाई देने लगे तब खेत की फिर से जुताई कर दें. उसके बाद उसमें रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें. मिट्टी को भुरभुरा बनाने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल कर दे. ताकि बारिश के मौसम में खेत में किसी तरह का जल भराव ना हो पाए.

बीज की मात्रा और उपचार

चौलाई के बीज की मात्रा का निर्धारण उसकी रोपाई को विधि पर निर्भर करता हैं. छिडकाव विधि से रोपाई करने के दौरान दो से ढाई किलो बीज की जरूरत होती है. जबकि पंक्तियों में इसकी रोपाई के लिए सवा से डेढ़ किलो बीज़ काफी होता है. चौलाई के बीजों की रोपाई से पहले उन्हें गोमूत्र से उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि बीजों के अंकुरण और विकास के वक्त उन्हें शुरूआती बिमारियों का सामना ना करना पड़ें. चौलाई के बीज आकार में बहुत छोटे और काले दिखाई देते हैं. जिनकी रोपाई करने में किसान भाइयों को काफी परेशानी होती हैं. इसके लिए बीजों को रेतीली मिट्टी में मिलाकर उगाना अच्छा माना जाता हैं.

बीज रोपाई का तरीका और टाइम

रोपाई का तरीका

चौलाई की खेती बरसात और गर्मी दोनों मौसम में की जाती है. इसलिए इसकी रोपाई मौसम के अनुसार की जाती है. गर्मी के मौसम में इसकी पैदावार लेने के लिए किसान भाइयों को इसकी रोपाई फरवरी के लास्ट या मार्च के शुरुआत में कर देनी चाहिए. जबकि बारिश के वक्त पैदावार लेने के लिए इसकी रोपाई मई से लेकर जून माह के शुरुआत तक की जाती है. इसके अलावा जो किसान भाई रबी के दौरान कम समय की कंद वर्गीय सब्जी उगाना चाहता है. वो इसकी रोपाई अगस्त और सितम्बर माह में भी कर सकता है.

चौलाई के बीजों की रोपाई छिडकाव और ड्रिल के माध्यम से की जाती है. छिडकाव विधि से रोपाई के दौरान चौलाई के बीजों को समतल की हुई भूमि में छिड़क देते हैं. उसके बाद कल्टीवेटर के पीछे हल्का पाटा बांधकर खेत की एक बार हल्की जुताई कर देते हैं. इससे बीज अच्छे से मिट्टी में मिल जाता है.

जबकि ड्रिल के माध्यम से इसकी रोपाई कतारों में की जाती है. कतारों में रोपाई के दौरान प्रत्येक कतारों के बीच आधा फिट के आसपास दूरी होनी चाहिए. और कतारों में बीजों के बीच 5 से 10 सेंटीमीटर के बीच दूरी होनी चाहिए. दोनों तरीके से रोपाई के दौरान इसके बीजों को जमीन में लगभग दो से तीन सेंटीमीटर की गहराई में उगाना चाहिए.

पौधों की सिंचाई

चौलाई के बीजों की रोपाई नम भूमि में की जाए तो शुरुआत में बीजों की रोपाई के तुरंत बाद पानी नही देना चाहिए. लेकिन अगर इनकी रोपाई किसान भाई सुखी भूमि में करता है तो बीजों की रोपाई के तुरंत बाद पानी दे देना चाहिए. और अंकुरित होने तक खेत में नमी बनाकर रखनी चाहिए.

बीजों के अंकुरित होने के बाद इसके पौधों की पहली सिंचाई 20 से 25 दिन बाद करनी चाहिए. लेकिन हरी फसल के रूप में इसकी पत्तियों को बेचने के लिए इसके पौधों को गर्मियों के मौसम में सप्ताह में एक बार पानी जरुर देना चाहिए. इसके अलावा बारिश के मौसम में पौधों को आवश्यकता के अनुसार पानी देना चाहिए. चौलाई के पौधों पर बीज बनने के दौरान खेत में नमी बनाए रखने से पैदावार अधिक मिलती है.

उर्वरक की मात्रा

चौलाई के पौधों को उर्वरक की ज्यादा जरूरत तब होती है, जब इसी पैदावार हरी पत्तियों की कटाई के लिए की जाती है. इस दौरान पौधों को बार बार विकास करने के लिए पोषक तत्वों की जरूरत होती है. इसके लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त खेत में 15 से 17 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की जुताई के वक्त खेत में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें.

रासायनिक खाद के रूप में 30 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फोरस और 20 किलो पोटाश की मात्रा को बीज रोपाई से पहले खेत की आखिरी जुताई के वक्त मिट्टी में मिला देना चाहिए. इसके अलावा 20 यूरिया की मात्रा प्रत्येक हरी फसल की कटाई के बाद पौधों में देनी चाहिए. इससे पौधे जल्दी से विकास करने लगते हैं.

खरपतवार नियंत्रण

चौलाई के पौधों में खरपतवार नियंत्रण काफी जरूरी तब होता है, जब इसकी पैदावार हरी पत्तियों के लिए की जाती है. क्योंकि खरपतवारों में पाए जाने वाले कीट इसकी पत्तियों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं. जिससे उनकी गुणवत्ता और पैदावार दोनों कम हो जाती है. चौलाई के पौधों में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से किया जाता है.

प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसकी रोपाई के 10 से 12 दिन बाद जब खेत में खरपतवार नजर आने लगे तब खेत की हल्की गुड़ाई कर देनी चाहिए. हरी पत्तियों की कटाई के रूप में इसकी पैदावार के दौरान हर कटाई के बाद इसके पौधों की एक बार गुड़ाई करना अच्छा होता है. लेकिन इसकी पैदावार करने के दौरान इसके पौधों की दो गुड़ाई ही काफी होती है. इसके पौधों की दूसरी गुड़ाई बीज रोपाई के 40 दिन बाद करनी चाहिए. दोनों गुड़ाई के दौरान पौधों की जड़ों पर हल्की मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

चौलाई के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनकी अगर वक्त रहते देखभाल ना की जाए तो पौधे विकास करना बंद कर देते हैं. और पौधों में काफी ज्यादा नुक्सान भी देखने को मिलता है.

पर्ण जालक

चौलाई के पौधों में पर्ण जालक का रोग कीट की वजह से फैलता है. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचता है. इस रोग की सुंडी पौधे की पतियों को खाकर उन्हें जालीदार बना देती है. जिसके बाद उन पत्तियों को अपनी लार के माध्यम से आपस में जोड़ देती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर क्यूनालफास या डाई मिथेएट की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

ग्रासहोपर

ग्रासहोपर कीट

चौलाई के पौधों में लगने वाले ग्रासहोपर कीट को टिड्डी के नाम से भी जाना जाता है. जो पौधे की पत्तियों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाती है. इसके लगने से पैदावार सम्पूर्ण रूप से नष्ट हो सकती है. इसके कीट पौधे की पत्तियों और इसके तने दोनों को खाकर उन्हें नष्ट कर देते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए जब खेत में इसका प्रभाव नजर आने लगे तभी खेत में फोरेट का हल्का छिडकाव कर दें.

कैटरपिलर

चौलाई के पौधों पर लगने वाले इस रोग को इल्ली के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग की सुंडी पौधे के तने और पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुँचाती है. पत्तियों का रस चूसने की वजह से पत्ती पीली दिखाई देने लगती है. और कुछ दिन बाद ही सूखकर गिर जाती है. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल का छिडकाव करना चाहिए.

जड़ गलन

चौलाई के पौधों में लगने वाला जड़ गलन का रोग फफूंद की वजह से फैलता हैं. जो खेत में अधिक वक्त तक जल भराव या नमी बनी रहने की वजह से दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधा मुरझाने लगता और कुछ दिन बाद पूरी तरह सूखकर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में जलभराव ना होने दे. और रोग दिखाई देने पर पौधों की जड़ों में बोर्डो मिश्रण का छिडकाव करना चाहिए.

पाउडरी मिल्ड्यू

चौलाई के पौधों में लगने वाला ये रोग इसकी पैदावार को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाता हैं. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों की पत्तियों भूरे सफ़ेद रंग की चित्ती दिखाई देने लगती है. उसके बाद रोग बढ़ने की स्थिति में सम्पूर्ण पत्तियों पर सफ़ेद पाउडर दिखाई देने लगताहै. जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देता हैं. और उसका विकास रुक जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल या काढ़े का छिडकाव करना चाहिए.

फसल की कटाई

चौलाई के पौधों की कटाई हरी पत्ती और पैदावार के लिए दोंनो के लिए अलग लग वक्त पर की जाती है. हरी पत्तियों का इस्तेमाल सब्जी के रूप में होता है. इसके लिए इसके पौधों की कटाई बीज रोपाई के 30 से 40 दिन बाद ही कर ली जाती है. इसके पौधे एक बार रोपाई के बाद तीन से चार कटाई आसानी से दे सकते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 100 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. जबकि दानो के रूप में इसकी पैदावार बीज रोपाई के बाद 110 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाती है. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 15 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

पैदावार और लाभ

चौलाई के पौधों की अगेती रोपाई कर किसान भाई इसके पौधों की दो बार कटाई कर सकता हैं. उसके बाद इसके पौधों से उपज भी ले सकता हैं. जिससे किसान भाई को एक फसल से डबल मुनाफा मिल जाता है. लेकिन साधारण रूप से इसकी पैदावार से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से अच्छीखासी कमाई कर सकता हैं.

Filed Under: सब्ज़ी

Comments

  1. Brijesh Kumar katiyar says

    May 24, 2020 at 2:47 pm

    Nice how many profitable makka between chaulai

    Reply
  2. अनिल सिंह says

    March 5, 2021 at 5:18 pm

    श्री मान जी आप आपकी राय अच्छी रही लेकिनचौराई का प्रति कुंटल क्या रेट है इसे बताने का कष्ट करें आपकी अति कृपा होगी या उसका विक्रय कहां पर किया जाएगा

    Reply

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