ग्लेडियोलस की खेती नगदी फसल के रूप में की जाती हैं. ग्लेडियोलस सबसे ज्यादा पसंद किये जाने वाला प्रमुख कट फ्लावर हैं. इसके पौधे 2 से 8 फिट की लम्बाई के होते हैं. इसके पौधे पर फूल उसकी डंडी में आते हैं. इसके फूलों का आकार सितारों की तरह होता है. इसके फूल लगभग एक सप्ताह तक खराब नही होते. जिस कारण इनका उपयोग बढ़ता जा रहा है.
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ग्लेडियोलस की डाली पर खिलने वाले फूलों का रंग लाल, नीला, गुलाबी, हरा और पीला पाया जाता हैं. जिस कारण लोग इसे अपने घर और बाग़ बगीचों की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए लगाते हैं. इसके पौधों की कई प्रजातियाँ पाई जाती है. इसके पौधे के फूल और गांठे दोनों बिकती है. जिस कारण इसकी खेती किसान भाई के लिए मुनाफे की खेती बन रही है.
ग्लेडियोलस की खेती भारत के लगभग सभी स्थानों पर की जा सकती है. इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. इसकी खेती के लिए छायादार जगह उपयुक्त नही होती. क्योंकि छायादार जगहों में इसकी खेती करने से इसके फूल खराब हो जाते हैं और पौधे विकास नही करते. इसकी खेती के लिए सुहाना मौसम सबसे उपयुक्त होता है.
अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
उपयुक्त मिट्टी
ग्लेडियोलस की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि की जरूरत होती हैं. जबकि अधिक उत्पादन लेने के लिए इसे बलुई दोमट मिट्टी में उपयुक्त समय पर उगाना अच्छा होता है. इसकी खेती के लिए भूमि का पी. एच. मान 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए.
जलवायु और तापमान
ग्लेडियोलस की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त होती हैं. ग्लेडियोलस की खेती सर्दी और गर्मी दोनों मौसम में की जा सकती है. लेकिन सर्दियों के मौसम में अधिक सर्दी पड़ने से फूलों पर पानी जमा होने की स्थिति में फूल खराब हो जाते हैं. इसके पौधों पर फूल खिलने के दौरान बारिश का होना नुकसानदायक होता है. क्योंकि फूल खिलने के दौरान बारिश होने पर फूल खराब हो जाते हैं. ग्लेडियोलस के पौधों को विकास करने के लिए सूर्य की सीधी धूप उचित होती है.
ग्लेडियोलस के पौधों को शुरुआत में अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. अंकुरित होने के बाद इसके पौधों को विकास करने के लिए न्यूनतम 16 डिग्री और अधिकतम 25 डिग्री तापमान की जरूरत होती है. इसके अलावा गर्मियों के मौसम में इसके पौधे अधिकतम 40 डिग्री तक के तापमान पर जीवित रह सकते हैं. जबकि 30 डिग्री से अधिक तापमान होने से फूलों की गुणवत्ता में कमी देखने को मिलती है.
उन्नत किस्में
ग्लेडियोलस की वर्तमान में लगभग 260 से ज्यादा प्रजातियाँ मौजूदा है. जिनको पौधों की डंडियों की लम्बाई और फूलों के रंगों के आधार पर तैयार किया गया है.
संस्कार
ग्लेडियोलस की इस किस्म के पौधों की डाली की लम्बाई ढाई फिट के आसपास पाई जाती है. इसका हर पौधा लगभग 80 से 90 गाठें तैयार करता हैं. इसकी एक डंडी पर 15 से 17 छोटे आकार के फूल पाए जाते हैं. जिनका रंग सफ़ेद होता है. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 120 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं.
अमेरिकन ब्यूटी
ग्लेडियोलस की इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग तीन महीने बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इसके एक पौधे की डंडी में 10 से 12 फूल पाए जाते हैं, जिनका रंग लाल दिखाई देता है. इसके फूल कई दिनों तक खराब नही होते. इसकी डाली की लम्बाई 3 फिट के आसपास पाई जाती है.
सफेद समृद्धि
इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 110 से 120 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. जिनका रंग सफ़ेद होता है. इसकी एक डाली पर 17 छोटे छोटे फूल गुच्छे में पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधों की डालीयों की लम्बाई ढाई फिट के आसपास पाई जाती है.
हर मेजेस्टी
इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 100 से 115 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते है. इसके पौधों को डंडियाँ ढाई फिट के आसपास पाई जाती है. जिन पर खिलने वाले फूल बैंगनी रंग के होते हैं. इसकी एक डाली में 15 से 17 फूल गुच्छों में पाए जाते हैं.
सिल्विया
इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 110 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इसकी एक डंडी में 12 से 15 फूल पाए जाते हैं. जिनका रंग सुनहरी पीला दिखाई देता है. इसके एक पौधे में 15 गांठे पाई जाती है. इसकी गाठों पर बनने वाले फूल गुच्छे में पाए जाते हैं.
पंजाब पिंक
ग्लेडियोलस की ये एक जल्द पककर तैयार होने वाली किस्म है. इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 85 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इसकी डंडियाँ लम्बे आकार की होती है. जिन पर 10 के आसपास हल्के गुलाबी फूल पाए जाते हैं. इसका एक पौधा लगभग 35 से 40 गांठे तैयार करता है.
गोल्डन मेलोडी
ग्लेडियोलस की इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 100 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इसके एक पौधे में लगभग 65 से 70 तक गांठे पाई जाती है. इसकी डंडी पर हल्के पीले रंग के फूल गुच्छों में पाए जाते हैं. इसकी एक डंडी पर औसतन 15 फूल पाए जाते हैं. और इसकी डंडी की लम्बाई लगभग तीन फिट की होती है.
पंजाब फ्लेम
पंजाब फ्लेम किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 110 दिन में पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इस किस्म का मुख्य रूप से सजावट में इस्तेमाल होता है. इस किस्म के फूलों का रंग हल्का गुलाबी और बीच से लाल दिखाई देता है. इसके एक पौधे से 55 से 60 छोटे आकर की गांठे तैयार हो जाती है.
रोज सुप्रीम ग्लेडियोलस
ग्लेडियोलस की इस किस्म के फूलों का रंग नारंगी दिखाई देता है. जिनकी लम्बाई तीन से चार फिट तक पाई जाती है. इसके फूल लगभग दो सप्ताह तक ताजे बने रहते हैं. जिनका इस्तेमाल सजावट के रूप में किया जा सकता है.
पिंक फ्रेंडशिप
इस किस्म के फूल पीले रंग के दिखाई देते हैं. इसके पौधों तीन से चार फिट की लम्बाई के होते हैं. इसके पौधे में काफी ज्यादा गाठें पाई जाती है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 110 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इसके फूल डंडियों पर गुच्छे में लगते हैं. एक डंडी में 12 से 15 फूल पाए जाते हैं.
इनके अलावा और भी कई किस्में हैं जिन्हें अलग लग रंग के फूल लेने के लिए उगाया जाता है. जिनमें व्हाइट फ्रेंडशिप,नजराना, स्नो व्हाइट, ऑस्कर, टीएस-14, रेड ब्यूटी, व्हाइट प्रोस्पेरिटी, सपना, ह्वाइट प्रोस्पेरिटी और मीरा जैसी कई किस्में शामिल हैं.
खेत की तैयारी
ग्लेडियोलस की खेती के लिए शुरुआत में खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें. खुला छोड़ने के कुछ दिन बाद उसमें पुरानी गोबर की खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर दें.
ग्लेडियोलस के कंदों की रोपाई नम भूमि में की जाती है. इसके लिए खेत में पानी चलाकर खेत का पलेव कर दें. पलेव करने के बाद जब भूमि ऊपर से सूखी दिखाई देने लगे तब खेत में रोटावेटर चलाकर खेत की जुताई कर दें. इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है. उसके बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल बना दें. ताकि खेत में बारिश के मौसम में जल भराव जैसी समस्याओं का सामना ना करना पड़ें.
बीज की मात्रा और उपचार
ग्लेडियोलस की खेती के लिए बीज के रूप में कंदों का इस्तेमाल किया जाता है. ग्लेडियोलस की एक एकड़ खेत में लगभग 65000 हज़ार के आसपास कंदों की जरूरत होती है. इन कंदों को खेत लगाने से पहले इन्हें बाविस्टिन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए. इससे कंदों में लगने वाले शुरूआती रोगों का प्रभाव पौधों पर नही पड़ता और बीज अच्छे से अंकुरित होते हैं.
बीज रोपाई का तरीका और टाइम
ग्लेडियोलस के कंदों की रोपाई समतल भूमि में मेड बनाकर की जाती है. इसके लिए खेत में एक फिट की दूरी रखते हुए मेड तैयार कर लेते हैं. मेड पर ग्लेडियोलस के कंदों की रोपाई लगभग 20 सेंटीमीटर के आसपास दूरी रखते हुए करते हैं. इसके कंदों की रोपाई के दौरान उन्हें जमीन में 5 से 7 सेंटीमीटर की गहराई में उगाना चाहिए. इससे कंदों का अंकुरण अच्छे से होता हैं.
अलग अलग मौसम के आधार पर ग्लेडियोलस के कंडों की रोपाई सम्पूर्ण भारत में अलग अलग समय पर की जाती है. उत्तर भारत में मैदानी भागों में इसकी खेती रबी की फसलों से पहले की जाती है. इस दौरान इसके कंदों की रोपाई सितम्बर माह में कर देनी चाहिए. जबकि पर्वतीय भागों में इसकी रोपाई जून माह तक की जा सकती हैं. जिससे पर्वतीय भागों में इसकी पैदावार अधिक समय तक प्राप्त होती है.
पौधों की सिंचाई
ग्लेडियोलस के पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है. इसकी अच्छी पैदावार लेने के लिए खेत में नमी की मात्रा बनी रहनी चाहिए. इसके कंडों को खेत में लगाने के बाद जब सभी कंद जमीन से बाहर निकल आयें तब उनकी पहली सिंचाई करनी चाहिए. सर्दी के मौसम में इसके पौधों को 10 से 12 दिन में सिंचाई करनी चाहिए. और गर्मी के मौसम में इसके पौधों को 5 दिन के अंतराल में पानी देना अच्छा होता है. जब पौधे से पुष्प तोड़ने की प्रक्रिया पूरी हो जाये और पत्तियां पीली दिखाई देने लगे तब पौधों को पानी देना बंद कर देना चाहिए.
उर्वरक की मात्रा
ग्लेडियोलस की खेती के उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है. शुरुआत में खेत की जुताई के वक्त लगभग 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में नाइट्रोजन की 100 किलो, फास्फोरस 100 किलो और पोटाश 200 किलो की मात्रा को आपस में मिलाकर खेत में प्रति हेक्टेयर की दर से आखिरी जुताई के वक्त खेत में छिड़क दें.
इनके अलावा रासायनिक खाद के रूप में ही 25 किलो के आसपास प्रति हेक्टेयर की दर से जब पौधों पर तीन या चार पत्ती बन जाये तब छिडकना चाहिए. और उसके लगभग एक महीने बाद फिर से सामान उर्वरक की मात्रा का छिडकाव पौधों की सिंचाई के दौरान करना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
ग्लेडियोलस की खेती में खरपतवार नियंत्रण काफी अहम होता है. इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक तरीके से किया जाता है. रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए शुरुआत में कंदों की रोपाई से लगभग 15 दिन पहले खेत में ग्लाइफोसेट की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.
प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके कंदों की रोपाई के लगभग 20 दिन बाद पौधों की हल्की गुड़ाई कर देनी चाहिए. ग्लेडियोलस के पौधों में पूरी तरह से खरपतवार नियंत्रण के लिए चार से पांच गुड़ाई की जरूरत होती है. पौधों की पहली गुड़ाई के बाद बाकी की गुड़ाई 12 से 15 दिन के अंतराल में कर देनी चाहिए.
पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
ग्लेडियोलस के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनकी वक्त रहते रोकथाम ना की जाए तो पौधे बहुत जल्द खराब हो जाते हैं.
चेपा
ग्लेडियोलस के पौधों में चेपा का रोग इसकी पैदावार को काफी ज्यादा प्रभावित करता है. इस रोग के कीट पौधे की कोमल भागों पर एक समूह में एकत्रित होकर पौधे का रस चूसते हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए डायमोथेएट रोगोर या मैलाथिओन की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
थ्रिप्स
ग्लेडियोलस के पौधों में लगने वाला यह एक कीट जनित रोग है. इस रोग के कीट शुरुआत में हल्के पीले दिखाई देते हैं. जो पौधे की पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं. इस रोग के लगने पर पौधे विकास करना बंद कर देते हैं. जिससे पौधों पर खिल रहे फूल अच्छे से नही खिल पाते. इस रोग की रोकथाम के लिए मैलाथिओन या नीम के तेल की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.
विल्ट
ग्लेडियोलस के पौधों में विल्ट रोग का प्रभाव गर्मियों के मौसम में पौधों के विकास के दौरान देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधों का विकास रुक जाता है. और पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती है. जिसके कुछ दिन बाद पौधा पूरी तरह सूखकर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में ट्राइकोडर्मा विरडी का छिडकाव उचित मात्रा में करना चाहिए.
गाठों में कालापन
ग्लेडियोलस के पौधों में इस रोग का प्रभाव पौधे की गाठों पर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे की गाठों में गहरे भूरे काले रंग के धब्बे बन जाते हैं. जिसका असर पौधों की पैदावार पर देखने को मिलता है. इस रोग की रोकथाम के लिए गठों को थायोफिनेट मिथाइल की उचित मात्रा के घोल में डुबोकर उपचारित कर लें.
फसल की कटाई
ग्लेडियोलस के पौधे 100 दिन के आसपास पैदावार देना शुरू कर देते हैं. जब इसके पौधों की डंडियों पर फूल अच्छे से खिल जाए तब उन्हें किसी धारदार हथियार से काटकर अलग कर लें. डंडियों की कटाई हमेशा सुबह जल्द करनी चाहिए. और कटाई करने के बाद उन्हें पानी से भरे बर्तन में रखना चाहिए. उसके बाद उन्हें बेचने के लिए बाज़ार भेज देना चाहिए.
इसके पौधों से फूलों की कटाई के लगभग 70 से 80 दिन बाद उनकी गाठों की तुड़ाई की जाती है. इसके लिए गाठों को उखाड़ने के बाद उसके पत्ते हटाकर उनकी सफाई कर लें. उसके बाद गाठों को बाविस्टिन के घोल में साफ़ करने के बाद उन्हें कुछ दिन छायादार जगह में सुखा देते हैं. और जब गाठें सूख जाती हैं तब उन्हें किसी बोरे में भरकर बाज़ार में बेचने के लिए भेज सकते हैं. या उचित तापमान पर भंडारित कर सकते हैं.
पैदावार और लाभ
ग्लेडियोलस की खेती में इसके फूल और गांठ दोनों उपज के रूप में प्राप्त होते हैं. जिसमें प्रति हेक्टेयर तीन लाख के आसपास फूल और तीन लाख के आसपास ही गाठें प्राप्त होती है. जिनको किसान भाई बाज़ार में बेचकर अच्छी खासी कमाई कर सकता है.
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