नीम तेल एक वनस्पति तेल है. जिसका निर्माण नीम के पेड़ से प्राप्त होने वाली पत्तियों और फलों से किया जाता है. नीम का पौधा उष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा होता है. जिसकी उम्र काफी साल की होती है. इसका पौधा समपूर्ण रूप से उपयोगी होता है. नीम का इस्तेमाल वर्तमान में साबुन, टूथपेस्ट और सौंदर्य प्रसाधन की चीजों को बनाने में भी किया जाने लगा है.
Table of Contents
इसकी पत्तियों और फलों से बनाया गया नीम का तेल बहुत उपयोगी होता है. जिसका इस्तेमाल कई तरह से किया जाता हैं. फसलों में इसका इस्तेमाल रोग प्रतिरोधक के रूप में किया जाता है. वर्तमान में नीम तेल के इस्तेमाल से बने कई कीटनाशक बाज़ार में उपलब्ध हैं. फसलों के अलावा नीम तेल का इस्तेमाल शारीरिक परेशानियों को दूर करने के लिए औषधि के रूप में भी किया जाता है.
आज हम आपको नीम का तेल बनाने की विधियों और इसके इस्तेमाल के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
नीम तेल बनाने की विधियाँ
नीम तेल तीन तरीके से बनाया जा सकता है. जिसका इस्तेमाल किसान भाई अपनी फसलों में कीट प्रबंधन के लिए कर सकता है.
कोल्ड कंप्रेस विधि
इस विधि से तेल बनाने में एक महीने के आसपास का वक्त लगता है. इस विधि से तेल बनाने के लिए पहले नीम की पत्तियों को तोड़कर उनसे डंठलों को लग कर लें. उसके बाद पत्तियों को अच्छे से पानी में धोकर साफ कर लें. पत्तियों को धोने के बाद उन पर किसी भी तरह की धूल या गंदगी नही जमने दें. उसके बाद पत्तियों को छायादार जगह में सुखा दें. जब पत्तियां अच्छे से सूख जाएँ तब उन्हें एक काँच के जार में भरकर एकत्रित कर लें.
पत्तियों को एकत्रित करने के बाद जार में नारियल का तेल डालकर जार को भर दें. तेल की मात्रा इतनी रखे की जार में मौजूद सभी पत्तियां अच्छे से तेल में डूब जाएँ. जब पत्तियां अच्छे से तेल में डूब जाएँ तब उन्हें ढककर दो से तीन सप्ताह तक कमरे के तापमान पर रख दें. इस दौरान ध्यान रखे की जार पर सूर्य की सीधी धूप नही पड़नी चाहिए.
दो से तीन सप्ताह बाद जार में मौजूद तेल को छलनी के माध्यम से छानकर अलग कर लें. अगर तेल की गुणवत्ता में और भी ज्यादा वृद्धि करना चाहते हैं तो पहले बताई विधि को फिर से प्राप्त तेल के साथ दोहराए. इससे तेल की गुणवत्ता काफी ज्यादा बढ़ जाती है.
गर्म सेक विधि
इस विधि का इस्तेमाल तुरंत तेल बनाने के लिए किया जाता है. इस विधि से तेल दो से तीन घंटे में ही बनकर तैयार हो जाता है. इस विधि से तेल बनाने के लिए नीम की पत्ती और फल दोनों का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके लिए नीम के पौधे की पत्तियों और फल दोनों को अच्छे से पानी में धो लें. दोनों को धोने के दौरान उन पर किसी भी तरह की धूल या गंदगी नही होनी चाहिए.
पत्ती और फलों को अच्छे से धोने के बाद उन्हें कूटकर एक मिश्रण तैयार कर लें. दोनों को कूटने के लिए मिक्सी या घर में मसाला कूटने वाली ओखली का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. मिश्रण तैयार होने के बाद उसे किसी अलग बर्तन में एकत्रित कर लेते हैं. उसके बाद नारियल के तेल को अच्छे से साफ़ की हुई कढाई में डालकर गर्म करते हैं. जब तेल अच्छे से गर्म हो जाएँ तब उसमें तैयार किये गए मिश्रण को डाल देते हैं. उसके बाद मिश्रण को कुछ देर और कम तापमान पर पकाते हैं.
उसके बाद उसे गैस पर से उतारकर किसी बड़ी छलनी में छानकर हल्का ठंडा कर लेते हैं. जब तेल का तापमान सामान्य रह जाता है तब उसे काँच की बोतल में भरकर स्टोर कर लें. जिसका इस्तेमाल किसान भाई तीन से चार महीने के अंतराल में कर सकते है.
आर्क विधि
आर्क विधि को मुख्य रूप से कृषि के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इस विधि से तैयार तेल को नीम का काढा भी बोला जाता है. इसके लिए नीम की पत्ती और फल दोनों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसकी पत्तियों को साफ़ पानी में धोने के बाद एक साफ़ पानी से भरे बर्तन में डालकर रख लेते हैं. उसके बाद उसे तेज़ आग पर अच्छे से गर्म करते हैं.
जब पानी अच्छे से उबलने लगे तब उस पर एक ढक्कन रख दें. और पानी को पांच से सात मिनट तक और उबालें. उसके बाद आग को बंद कर दें और आर्क को ठंडा होने दें. आर्क के ठंडा होने के बाद उसमें मौजूद पत्तियों को को हाथ से निचोड़कर उनसे पानी की मात्रा को निकाल लें.
हाथ से निचोड़ने के अलावा पत्तियों को मिक्सी में पीसकर मिश्रण बना लें. उसके बाद मिश्रण को किसी कपड़े में डालकर उसका पानी निकाल लें. इस तरह प्राप्त आर्क को उचित मात्रा में पानी में डालकर पौधों पर किसी भी कीटनाशक छिडकने वाले यंत्र से पौधों पर छिड़क दें.
नीम तेल के प्रमुख गुण
नीम के अंदर एजाडिरेक्टिन नामक रसायन पाया जाता है. जिसका इस्तेमाल कवकनाशी और कीटनाशी के रूप में किया जाता है. इस रसायन के इस्तेमाल से ही बाज़ार में कई तरह की कीटनाशक दवाइयां बनाई जाती है. जिनमें टैनिन- 6.00 प्रतिशत, निम्बान- 0.04 प्रतिशत, निम्न- 0.001 प्रतिशत, एजाडिरेक्टिन- 0.4 प्रतिशत, निम्बोसिटे रोल- 0.03 प्रतिशत और उड़नशील तेल- 0.02 प्रतिशत जैसे कई प्रोडक्ट बाज़ार में उपलब्ध हैं.
नीम तेल का का स्वाद कड़वा होता है. इसका इस्तेमाल खाद तेल के रूप में नही किया जा सकता. नीम तेल में लगभग 45 प्रतिशत तेल सामग्री पाई जाती है.
नीम तेल में लिनोलेइक एसिड और ओलिक एसिड पाए जाते हैं. जिनकी मात्रा क्रमशः 15 प्रतिशत और 50 प्रतिशत पाई जाती है. जो फसल में कई तरह के रोगों की रोकथाम के लिए उपयोगी होते है.
नीम तेल का उपयोग
नीम तेल का इस्तेमाल दो तरीके से किया जाता है. जिसमें इसका औषधि और कीटनाशक के रूप में इस्तेमाल किया जाता हैं.
औषधि रूप में
औषधि रूप में इसका इस्तेमाल त्वचा संबंधित बिमारियों की रोकथाम के लिए किया जाता है. जिनमें इसका इस्तेमाल मुंहासे हटाने, एक्जिमा को दूर करने, फंगल संक्रमण उपचार, पिगमेंटेशन, रूसी को हटाने, बालों बढ़ाने और मच्छर भगाने जैसे रोगों में लिया जाता है.
फसलों में कीटनाशक के रूप में
नीम के तेल का मुख्य उपयोग जैविक कीटनाशक के रूप में किया जाता है. इसके तेल और आर्क (काढ़ा) का इस्तेमाल फसलों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया जाता है.
- नीम के तेल की 0.5 प्रतिशत मात्रा को पानी में मिलाकर कद्दूवर्गीय फसलों में 10 से 15 दिन के अंतराल में छिडकने से कीट जनित रोग नही लगते. इसके अलावा इसकी 2 प्रतिशत मात्रा के घोल का छिडकाव पौधों पर करने से वायरस जनित पाउडरी मिल्ड्यू जैसे रोगों से भी छुटकारा मिलता है.
- नीम की पत्तियों को पानी में 1:2 के अनुपात में मिलाकर मिश्रण बना लें. उसके बाद मिश्रण को 10 प्रतिशत पानी बचने तक उबालकर उसका आर्क तैयार कर लें. इस आर्क को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ धान पर छिड़कने से धान में गंधी कीट, भूरा फुदका, रस चूसने वाले कीटों और हरा फुदका जैसे रोग नही लगते.
- इसके अलावा उक्त मिश्रण को सब्जी फसलों पर छिड़कने से कई तरह के कीट रोग (तना छेदक और फल छेदक) नही लगते. और इसके आर्क से दलहनी, कपास और सब्जी फसलों के बीजों से उपचारित करने से शुरुआती बीज और मिट्टी जनित रोग नही लगते.
- लगातार अधिक बारिश होने की वजह से खेत में कई तरह के मच्छर उत्पन्न हो जाते हैं. जिसे नियंत्रित करने के लिए नीम के तेल में छाछ और शेम्पू जो उचित मात्रा में मिलकर घोल तैयार कर लें. और इस घोल को पानी में मिलकर पौधों पर छिडकने से मच्छरों को नियंत्रित किया जा सकता है. मिश्रण के रूप में हर पम्प (कीटनाशक छिड़कने का सामान्य यंत्र) के लिए आधा लीटर छाछ में 35 ग्राम नीम के तेल की आवश्यकता होती है.
- सामान्य रूप से फसलों में कीट नियंत्रण के लिए एक लीटर नीम का तेल और 100 ग्राम कपड़े धोने वाले पाउडर को 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना लाभकारी होता है.
- नीम का तेल बनाने के बाद शेष बची खली को खेत में जुताई के वक्त छिड़कर मिट्टी को मृदा जनित कीट रोगों से बचाया जा सकता है.
- फसलों में फूल पूड़ी रोग से बचाव के लिए एक किलो तंबाकू को 5 लीटर पानी में डालकर उसे 4 दिन सडाने के बाद छान लें. उसके बाद उसमें 500 ग्राम नीम का तेल और 25 ग्राम कपड़े धोने का पाउडर मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें. उक्त मिश्रण को 750 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकने से लाभ मिलता है.
- खरीफ की फसलों में लगने वाले कमलिया कीट रोग की रोकथाम के लिए एक किलो तंबाकू को 5 लीटर पानी में डालकर 3 दिन सडाने के बाद छान लें. उसके बाद उसमें 400 ग्राम नीम का तेल और 25 ग्राम कपड़े धोने का पाउडर मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें. उक्त मिश्रण को 800 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर प्रति एकड़ 5 दिन के अन्तराल में छिडकने से लाभ मिलता है.
- एजाडिरेक्टिन (नीम का तेल) 0.15 प्रतिशत की 2.5 लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से किसी भी तरह की अनाज फसल में 10 से 15 दिन के अंतराल में छिड़कना चाहिए. इसके छिडकाव से फसलों में लगने वाले माहू, सफेद मक्खी, की सुंडी और फल बेधक जैसे कीट रोगों को नियंत्रित किया जा सकता है.
नीम के तेल, पत्तियों और इसके फलों से अलग अलग प्रकार का आर्क बनाकर फसलों में लगने वाले और भी कई तरह के कीट और वायरस जनित रोगों से उन्हें बचाया जा सकता है.