मूंगफली के प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम 

मूंगफली खरीफ के मौसम में बोई जाने वाली प्रमुख तिलहनी फसल है. मूंगफली की खेती से अधिक उत्पादन लेने के लिए इसके पौधों की उचित देखभाल करना काफी अहम होता है. क्योंकि मूंगफली की फलियाँ मिट्टी के अंदर रहकर विकास करती है. जिन पर मौसम का प्रभाव भी देखने को मिलता है. क्योंकि बारिश के दौरान खेत में जल भराव होने की वजह से इसके पौधे और फलियों में कई तरह के कवक जनित रोग लग जाते हैं.

मूंगफली के पौधों में लगने वाले रोग

इसके अलावा मूंगफली की उचित देखभाल ना होने पर इसकी गाठों में और भी कई तरह के कीट और मृदा जनित रोग लग जाते हैं. जिसका सीधा असर पौधों की पैदावार पर देखने को मिलता है. मूंगफली उत्पादन करने में भारत का पहला स्थान है. लेकिन इसकी प्रति हेक्टेयर उपज की दर काफी कम है. जिसकी मुख्य वजह फसल में लगने वाले प्रमुख रोग हैं.

आज हम आपको मूंगफली के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के बारें में बताने वाले हैं.

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टिक्का रोग

मूंगफली के पौधों में लगने वाला टिक्का रोग कवक के माध्यम से फैलता है. पौधों पर ये रोग पौधे के विकास के दौरान दिखाई देता है. इस रोग के लगने से पौधों की पत्तियों पर छोटे छोटे छिद्र बन जाते हैं. जिनके चारों तरफ पीले रंग का घेरा दिखाई देता है. रोग के बढ़ने पर धब्बों की संख्या और आकार बढ़ जाता है. जिससे पौधे की पत्तियां खराब होकर गिर जाती हैं. और पौधों की जड़ों में फलियाँ काफी छोटी और कम मात्रा में बनती है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए बीजों को कैप्टन या थिरम दवा की उचित मात्रा से उपचारित कर खेत में लगाना चाहिए.
  2. खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों में मेन्कोजेब या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर 15 दिन के अन्तराल में दो बार छिडकाव करना चाहिए.

सफेद लट

मूंगफली के पौधों में इस रोग का प्रभाव किसी भी वक्त दिखाई दे सकता है. इस रोग के कीट की सुंडी भूमि के अंदर रहकर इसकी जड़ों पर आक्रमण कर पौधे को नष्ट कर देती हैं. इस रोग के लगने से पौधे शुरुआत में मुरझाने लगते हैं. रोग बढ़ने के कुछ दिन बाद पौधे पूरी तरह से सूखकर नष्ट हो जाते हैं. पौधों पर इस रोग का प्रभाव बारिश के दौरान अधिक देखने को मिलता है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत की तैयारी के दौरान खेत की गहरी जुताई कर उसे धूप लगने के लिए खूला छोड़ दें.
  2. बीजों को खेत में लगाने से पहले कार्बेन्डाजिम, कैप्टन या थिरम दवा की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए.
  3. खेत की जुताई के वक्त खेत में 6 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से फोरेट का छिडकाव कर मिट्टी में मिला देना चाहिए.

एन्थ्रेक्नोज

मूंगफली के पौधों में ये रोग फफूंद की वजह से फैलता है. जिसको श्याम वर्ण के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग का प्रभाव पौधों की पत्तियों पर अधिक देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर अनियमित आकार के हल्के भूरे लाल धब्बे दिखाई देते हैं. रोग बढ़ने पर प्रभावित पत्तियां नष्ट होकर गिर जाती हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में खेत की गहरी जुताई कर उसे धूप लगने के लिए खुला छोड़ देना चाहिए.
  2. प्रमाणित बीजों का चयन कर उगाना चाहिए. और फसल चक्र अपनाकर खेती करनी चाहिए.
  3. पौधों में रोग दिखाई देने पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड, मेन्कोजेब या कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

बालदार सुंडी

बालदार सुंडी मूंगफली के पौधों में लगने वाला कीट रोग है, जो पौधों के विकास के दौरान दिखाई देता है. इस रोग के कीट की सुंडी पौधों की पत्तियों को खाकर पौधों को नुक्सान पहुँचाती है. इस रोग का प्रभाव बढ़ने पर पौधे पत्तियों रहित हो जाते हैं. जिससे उनका विकास रुक जाता है. और जड़ों में फलियों की संख्या और आकर दोनों पर प्रभाव पड़ता है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर रोग दिखाई देने पर क्विनॉलफॉस की एक लीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए.
  2. जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए पौधों पर नीम आर्क या नीम के तेल का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए. इसके अलावा सर्फ के घोल का इस्तेमाल करना भी लाभदायक होता है.

गेरुई रोग

मूंगफली के पौधों में गेरुई रोग मुख्य रूप से फफूंद की वजह से फैलता है. पौधों पर इस रोग का प्रभाव उसकी पत्तियों पर दिखाई देता हैं. इस रोग के लगने से पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर छोटे आकार के बहुत सारे मटियाले लाल रंग के धब्बे दिखाई देने लगते है. रोग के बढ़ने पर धब्बे फट जाते हैं. जिसका प्रभाव पौधे की पत्तियों पर बहार की तरफ दिखाई देता है. और पत्तियां जलकर नष्ट हो जाती है. जिससे पौधे का विकास रुक जाता है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए इसके बीजों को थीरम या कैप्टन दवा से उपचारित कर उगाना चाहिए.
  2. खड़ी फसल में रोग दिखाई देने पर पौधों पर कार्बेन्डाजिम या बाविस्टीन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

गुच्छ रोग

मूंगफली में लगने वाला ये एक विषाणु जनित रोग है. जिसे रोजेट रोग के नाम से भी जानते हैं. इस रोग का प्रभाव पौधे की पत्तियों पर ही देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधों का आकार छोटा दिखाई देता है. और इसकी पत्तियां हल्की पीली दिखाई देने लगती हैं. रोग बढ़ने पर पत्तियां पूरी तरह पीली पड़कर गिर जाती हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए प्रमाणित और रोगरोधी किस्म के बीजों को ही उगाना चाहिए.
  2. पौधों पर रोग दिखाई देने पर मेटासिस्टाक्स या मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए.

माहू

मूंगफली के पौधों में माहू रोग का प्रभाव कीट की वजह से फैलता है. इस रोग के कीट छोटे आकर के पाए जाते हैं. जो एक समूह में पौधों के कोमल भागों का रस चूसते हैं. जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं. रस चूसने के बाद इसके पौधे चिपचिपे पदार्थ का उत्सर्जन करते हैं. जिससे पौधों पर फफूंद जनित रोग एन्थ्रेक्नोज का प्रभाव बढ़ जाता है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड की एक मिलीलीटर मात्रा को प्रति लीटर की दर से पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए.
  2. जैविक तरीके से नियंत्रण के लिए पौधों पर नीम आर्क या नीम के तेल का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

जड़ सडन

मूंगफली के पौधों में जड़ सडन रोग का प्रकोप मृदा जनित फफूंद की वजह से फैलता हैं. पौधों पर इस रोग का प्रकोप खेत में बारिश के मौसम में अधिक समय तक जलभराव और नमी के बने रहने पर दिखाई देता है. इस रोग के लगने से पौधे की जड़ें काली पड़कर सड़ने लगती हैं. जिससे पौधा शुरुआत में मुरझाया  हुआ दिखाई देता है. जिसके कुछ समय बाद पौधा सूख जाता है.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए शुरुआत में खेत की गहरी जुताई कर धूप लगने के लिए खुला छोड़ देना चाहिए.
  2. बीज की रोपाई से पहले थायरम या कार्बेन्डाजिम दवा की 3 ग्राम मात्रा को प्रति किलो की दर से बीज में मिलाकर उपचारित कर लेना चाहिए.
  3. जिस खेत में रोग लग जाए उस खेत में फसल चक्र अपनाते हुए फसल को दूसरी बार तीन से चार साल बाद उगाना चाहिए.

लीफ माइनर

मूंगफली की खेती में लगने वाला ये रोग कीट की वजह से फैलता है. जिसका प्रभाव पौधों की पत्तियों पर अधिक देखने को मिलता है. इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों के हरे भाग को खा जाते हैं. जिससे पौधों की पत्तियों पर सफ़ेद भूरे रंग की लाईने दिखाई देने लगती है. रोग बढ़ने पर लाइनों की संख्या बढ़ जाती हैं जिससे पूरी पत्तियां पारदर्शी दिखाई देने लगती है. और कुछ दिनों बाद टूटकर गिर जाती हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर एमिडाक्लोरपिड की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

बीज सडन

मूंगफली के पौधों में बीज सडन रोग कवक के माध्यम से फैलता है. इस रोग के लगने पर मूंगफली के दाने अंकुरित होने से पहले ही भूमि में सड़ जाते हैं. और जो दाने अंकुरित हो जाते हैं, उनमें इस रोग के लगने से पौधे के तने पर गोल आकार के हल्के भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं. जिसके प्रभाव से पौधे जल्द ही मुरझाकर सुखने लगते हैं. रोग का प्रकोप बढ़ने पर सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती हैं.

रोकथाम

  1. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत की तैयारी के दौरान खेत की गहरी जुताई कर उसे धूप लगने के लिए खूला छोड़ दें.
  2. फसल चक्र अपनाकर खेती करें. प्रमाणित बीज और रोगरोधी किस्म का चयन कर उन्हें खेत में उगाना चाहिए.
  3. बीजों की रोपाई से पहले उन्हें कार्बेन्डाजिम, कैप्टन या थिरम दवा की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए.

तो ये मूंगफली में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग है. जो ज्यादातर जगहों पर दिखाई देते हैं. इनके प्रभाव के कारण पौधों की पैदावार 30 से 40 प्रतिशत तक कम प्राप्त होती है. लेकिन इनकी उचित टाइम पर रोकथाम कर किसान भाई अच्छी पैदावार ले सकता है.

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