RCEP किस तरह किसानों के लिए है नुकसानदायक, जिसका भारत में हर कोई कर रहा है विरोध

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों थाईलैंड के दौरे पर हैं. जहां आज वो बैंकाक में आसियान और क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के सम्मेलन में भाग लेंगे. जिसको लेकर भारत में इसका विरोध हो रहा है. आखिर ये RCEP क्या है जिसको लेकर किसान भाई से लेकर कई व्यापारी संगठन भी इसका विरोध कर रहे हैं.

RCEP क्या है.

RCEP क्या है.

RCEP एक 16 देशों के बीच मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने के लिए गठित किया गया संगठन है. जिसका सीधा मतलब ये है कि इस संगठन से जुड़े सदस्य देश आपस में बिना किसी बाधा के व्यापार कर सकते हैं. इस संगठन में एसोसिएशन आफ साउथ एसिया नेशन (ASEAN) के 10 देशों के साथ साथ भारत, जापान, चीन, ऑस्ट्रेलिया, साउथ कोरिया और न्यूजीलैंड जैसे 6 और देश शामिल है. RCEP में शामिल सभी सदस्य देशों की आबादी 3.4 अरब है. और इन देशों की कुल जीडीपी 49.5 ट्रिलियन डॉलर की है जो विश्व की कुल जी.डी.पी. का 39 फीसदी हिस्सा है, जो काफी ज्यादा है.

भारत में इसका विरोध क्यों हो रहा है.

भारत में RCEP के विरोध की मुख्य वजह कर मुक्त व्यापार का समझौता हैं. दरअसल आज यानी 4 नवम्बर को इसकी बैठक हो रही हैं. जिसमें इसमें शामिल सभी 16 देश एक मुक्त व्यापार पर हस्ताक्षर करने वाले हैं. जिसको लेकर भारत में विरोध जताया जा रहा है. इस समझौते के होने से ये सभी सदस्य देश एक दूसरे के साथ बिना किसी आयात शुल्क का या बहुत ही कम आयात शुल्क के आधार पर बाधा मुक्त व्यापार कर सकेंगे. जिसका सीधा असर भारत के व्यापार घाटे पर पड़ेगा.

व्यापार घाटा वो होता है जो किसी देश के आयात और निर्यात की स्थिति पर निर्भर करता है. यानी सीधे शब्दों में कहे तो अगर हम चीन से 100 रूपये की चीज़ का आयात करते हैं और उसे 60 रूपये की चीज़ बेचते हैं तो यहाँ हमारा व्यापार घाटा 40 रूपये है. वर्तमान में RCEP में शामिल 16 में से 11 देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा चल रहा है. जिसमें चीन के साथ सबसे ज्यादा है. इन सभी 15 देशों के साथ भारत का आयात 34 फीसदी है और निर्यात 21 फीसदी है. ऐसे में भारत के द्वारा RCEP पर हस्ताक्षर करने से भारत का ये व्यापार घाटा और बढ़ सकता हैं.

RCEP पर हस्ताक्षर करने के संभावित नुक्सान

RCEP पर हस्ताक्षर करने का सीधा असर किसानों और व्यापारियों पर सबसे ज्यादा देखने को मिलेगा. इसके लागू होने से सरकार द्वारा किसानों की आय को दोगुना करने की मंशा पर सवाल खड़ा हो रहा है.

किसानों के लिए

  1. इसके लागू होने से बाजार में किसानों की फसलों के दाम कम हो जायेंगे. जिससे किसान भाई अपने उत्पादों को कम दाम पर बेचने को मजबूर होगा. दरअसल व्यापार शुल्क कम हो जाने की वजह से फसल के निर्यात पर व्यापारियों को कम दाम मिलेंगे. जिससे वो बाजार से सस्ते दामों पर फसल खरीदेंगे.
  2. दूसरा इसका असर डेयरी व्यवसाय पर भी देखने को मिलेगा. क्योंकि वर्तमान में भारत में लगभग सभी किसान भाई डेयरी व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. आज हर किसान पशुपालन पर काफी हद तक निर्भर है. जिससे वो अपने रोजमर्रा का खर्च चलाता है. जबकि RCEP पर हस्ताक्षर करने के बाद डेयरी प्रोडक्ट्स के दाम कम हो जायेंगे. दरअसल ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड दूध के बड़े उत्पादक देश हैं. जहां दूध का व्यापार बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है. जबकि भारत में अभी डेयरी व्यवसाय को एक बड़े उद्योग का रूप नही मिला है. ऐसे में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड अपने दूध प्रोडक्ट (दूध पाउडर, पनीर और घी) को आसानी से कम रेट पर बाजार में उतार देगा. जिससे बाजार में इसके दाम कम हो जाने की वजह से दूध के दाम भी कम हो जायेंगे. जबकि भारत के किसानों की रोज़ाना की आय दूध पर टिकी है. ऐसे में दूध के दाम कमजोर होने से किसानों को काफी नुक्सान पहुँच सकता हैं.

व्यापारियों के लिए

  1. व्यापारियों पर इसके असर के बारें में बात करें तो छोटे व्यापारियों की मडीयों में दुकानें बहुत अधिक है. ऐसे में इस समझौते के होने पर उन्हें घाटा होने की स्थिति में अपनी दुकानें बंद करनी पड़ सकती है.

इन सभी कारणों को देखते हुए इसका कृषि से जुड़े सभी कृषि संगठन विरोध कर रहे हैं. इन संगठनों का कहना है की अगर इसपर हस्ताक्षर हो जाते हैं तो किसानों की आय दोगुनी तो छोड़े किसान बर्बाद हो जाएगा.

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