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गुड़मार की खेती कैसे करें

2019-11-06T16:02:35+05:30Updated on 2019-11-06 2019-11-06T16:02:35+05:30 by bishamber Leave a Comment

गुड़मार की खेती औषधीय पौधे के रूप में की जाती है. इसके पौधे लता के रूप में फैलते हैं. जिसके पत्तों पर रोयें पाए जाते हैं. इसका पौधा रोपाई के लगभग एक से दो साल बाद पैदावार देना शुरू करता हैं. इसके पौधे की पत्तियों के खाने के बाद कोई भी मीठी चीज खाने पर फीकी लगती है. उसमें मिठास की मात्रा का अनुभव नही होता है. इस कारण इसके पौधे को मधुनाशिनी और शुगर डिस्ट्रॉयर के नाम से जाना जाता है. पूरी दुनिया में औषधीय पौधे के रूप में इसकी खेती सबसे ज्यादा की जाती है.

Table of Contents

  • उपयुक्त भूमि
  • जलवायु और तापमान
  • खेत की तैयारी
  • पौध तैयार करना
  • पौध की रोपाई का तरीका और टाइम
  • पौधों को सहारा देना
  • पौधों की सिंचाई
  • उर्वरक की मात्रा
  • खरपतवार नियंत्रण
  • पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
    • कीट रोग
    • पीली पत्ती रोग
    • जड़ गलन
  • फसल की कटाई
  • पैदावार और लाभ
गुड़मार की खेती

औषधीय रूप में इसका इस्तेमाल मधुमेह, पीलिया, अल्सर, दमा, वजन कम करने और पाचन शक्ति बढ़ाने के रूप में किया जाता है. इसके पौधे की जड़ और पत्तियां दोनों का इस्तेमाल किया जाता हैं. इसके पौधे को एक बार लगाने के बाद कई सालों तक पैदावार देता है. इसके पौधे पर पीले रंग के गुच्‍छेदार फूल अगस्‍त से सितम्‍बर माह तक खिलते हैं. इसके फल 2 इंच लम्‍बे और कठोर पाए जाते हैं.

इसके पौधे विपरीत मौसम में भी आसानी से विकास करते है. लेकिन बर्फीले प्रदेशों में इसकी खेती नही की जा सकती. क्योंकि अधिक समय तक बर्फ पड़ने की वजह से इसके पौधों का विकास रुक जाता है. इसकी खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है. इसकी खेती किसानों के लिए कम खर्च में अधिक उत्पादन देने वाली मानी जाती है. क्योंकि इसका बाजार भाव काफी अच्छा मिलता है.

अगर आप भी गुड़मार की खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त भूमि

गुड़मार की खेती के लिए किसी ख़ास तरह की भूमि की जरूरत नही होती. इसकी खेती बर्फीले क्षेत्रों को छोड़कर लगभग सभी जगहों पर आसानी से की जा सकती है. इसकी खेती के मिट्टी में जलभराव नही होना चाहिए. क्योंकि जलभराव होने से इसकी पैदावार खराब हो जाती है. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान सामान्य के आसपास होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

गुड़मार के पौधों की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय जलवायु को उपयुक्त माना जाता है. इसके पौधे अधिक गर्मी और सर्दी दोनों मौसम में आसानी से विकास कर लेते हैं. लेकिन सर्दी के मौसम में अधिक समय तक पड़ने वाला तेज़ पाला इसकी फसल के लिए नुकसानदायक माना जाता है. भारत में इसकी खेती ज्यादातर मध्य और दक्षिण भारत में बड़े पैमाने पर की जाती है.

इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है. लेकिन इसके पौधे सर्दियों में न्यूनतम 10 और गर्मियों में अधिकतम 35 डिग्री के आसपास के तापमान पर भी अच्छे से विकास कर लेते हैं.

खेत की तैयारी

गुड़मार की खेती के लिए खेत की मिट्टी भुरभुरी होनी चाहिए. इसकी खेती के लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के दौरान खेत की सफाई कर उसमें मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को निकाल दें. उसके बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर उसे कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें. ताकि मिट्टी में मौजूद हानिकारक जीवाणु कीट नष्ट हो जायें. खेत को खुला छोड़ने के कुछ बाद उसकी दो से तीन तिरछी जुताई कर दें. खेत की जुताई करने के बाद खेत में पाटा चलाकर मिट्टी को समतल बना दे. ताकि बारिश के मौसम में जलभराव जैसी समस्याओं का सामना ना करना पड़े.

खेत को समतल बनाने के बाद उसमें एक मीटर के आसपास दूरी बनाते हुए धोरेनुमा क्यारी बनाकर उसमें उचित मात्रा में जैविक और रासायनिक खाद डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. लेकिन जो किसान भाई टपक सिंचाई से इसकी खेती करना चाहते हैं वो खेत में उचित दूरी छोड़ते हुए गड्डे तैयार कर लें. इन गड्डों को पौध रोपाई  से 10 से 12 दिन पहले तैयार किया जाता है.

पौध तैयार करना

गुड़मार की पौध बीज और कलम दोनों के माध्यम से तैयार की जाती है. बीज के माध्यम से पौध तैयार करने के दौरान इसके बीजों की रोपाई नर्सरी में मार्च के बाद की जाती है. इसके बीजो की रोपाई से पहले उन्हें डायथेन एम 4.5 या बोवेस्‍टीन की उचित मात्रा से उपचारित कर लेना चाहिए. इसके बीजों को नर्सरी में लगाने के दौरान पॉलीथीन या प्रो-ट्रे में लगाना चाहिए. इसके बीजों को नर्सरी में लगाने के लगभग तीन से चार महीने बाद इसके पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

कलम के माध्यम से पौध तैयार करने के लिए इसके पुराने पौधे की शाखाओं का इस्तेमाल किया जाता है. कलम के माध्यम से इसकी पौध नर्सरी में फरवरी माह के आखिर में तैयार करनी चाहिए. इस दौरान इसकी शाखओं की रोपाई उर्वरक मिलाकर तैयार की गई मिट्टी को पॉलीथीन में भरकर उनमें कर देनी चाहिए. उसके बाद इसके पौधे जुलाई के आसपास रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसकी पौध कलम दाब विधि से तैयार करना अच्छा होता है.

पौध की रोपाई का तरीका और टाइम

नर्सरी में तैयार पौधा

इसके पौधों की रोपाई खेत में गड्डे और धोरेनुमा नाली तैयार कर की जाती है. गड्पौडों में पौधों की रोपाई के लिए इसके गड्डों को पंक्तियों में तैयार किया जाता है. गड्डों को सामान्य हल्के रूप में तैयार किया जाता है. गड्डों को तैयार करने के दौरान प्रत्येक गड्डों के बीच एक मीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए. और पंक्तियों के बीच भी एक मीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए.

इसके पौधों की रोपाई जुलाई और अगस्त माह में बारिश के शुरू होने के बाद की जाती है. इस दौरान रोपाई करने से पौधों का विकास अच्छे से होता है. क्योंकि इस दौरान रोपाई करने पर पौधों को विकास करने के लिए उचित वातावरण मिलता है.

पौधों को सहारा देना

गुड़मार के पौधे एक बार लगाने के बाद कई साल तक पैदावार देते हैं. इसके पौधे से व्यापारिक तौर पर पत्तियों का उत्पादन प्राप्त होता है. इस कारण पौधे से अधिक और उचित उत्पादन लेने के लिए इसके पौधों को सहारे की जरूरत होती है. सहारे के रूप में पौधों के पास बाँस की रोपाई कर उन पर रस्सियों का जाल बना दिया जाता है. जिसके सहारे इसके पौधे लता के रूप में बढ़कर अपना विकास करते हैं. और उनकी पत्तियां भी खराब नही होती. सहारा देने के लिए बाँस की जगह लोहे की एंगल और तारों का इस्तेमाल भी किसान भाई कर सकता है.

पौधों की सिंचाई

गुड़मार के पौधों को विकास करने के लिए अधिक सिंचाई की जरूरत नही होती. शुरुआत में सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को रोपाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद पानी देना चाहिए. और गर्मियों के मौसम में 10 से 12 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए. बारिश के मौसम में इसके पौधों की सिंचाई की आवश्यकता बहुत कम होती है. बारिश के मौसम में इसके पौधों की सिंचाई तभी करनी चाहिए, जब बारिश समय पर ना हो पौधे को पानी की ज्यादा जरूरत हो. वैसे गुड़मार के पौधों की सिंचाई टपक विधि से करना सबसे बेहतर होता है. क्योंकि इससे पौधों को लगातार उचित मात्रा में पानी मिलता है. जिससे पौधे अच्छे से विकास करते हैं.

उर्वरक की मात्रा

गुड़मार के पौधों को उर्वरक की ज्यादा जरूरत नही होती. इसकी खेती के लिए खेत की तैयारी के दौरान प्रत्येक गड्डों में पांच किलो के आसपास पुरानी गोबर की खाद को डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में 50 ग्राम एन.पी.के. की मात्रा को प्रत्येक पौधों को देना चाहिए.

जब पौधे अच्छे से विकास करने लगे तब पौधों को दी जाने वाली उर्वरक की इस मात्रा को बढ़ा देना चाहिए. जब पौधे चार से पांच साल के हो जाए तब उन्हें दी जाने वाली उर्वरक की इस मात्रा को दोगुना कर देना चाहिए. और इसी हिसाब से हर साल उर्वरक की मात्रा को बढ़ाते रहना चाहिए. पूर्ण विकसित एक पौधे को सालाना 15 किलो के आसपास जैविक और 250 ग्राम के आसपास रासायनिक खाद दो से तीन बार में देना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

गुड़मार के पौधों में खरपतवार नियत्रंण काफी अहम होता है. क्योंकि खरपतवार होने से पौधे की पैदावार पर फर्क देखने को मिलता है. इसके लिए पौधों की रोपाई के बाद खेत में खरपतवार को जन्म ना लेने दें. इसके लिए पौधों की रोपाई के लगभग 25 से 30 दिन बाद उनकी पहली हल्की गुड़ाई कर खेत में दिखाई देने वाली खरपतवारों को निकाल देना चाहिए. पहली गुड़ाई के बाद बाकी की गुड़ाई एक महीने के के अंतराल में कर देनी चाहिये. इसके पौधों को खरीफ और रबी दोनों मौसम में दो से तीन गुड़ाई की आवश्यकता होती है. गुड़मार के पौधे एक बार रोपाई करने के बाद कई सालों तक पैदावार देते हैं. इसलिए पौधों की दो से तीन गुड़ाई के बाद जब भी पौधों की जड़ों में खरपतवार दिखाई दे तब उनकी हल्की गुड़ाई कर देनी चाहिए.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

गुड़मार के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं. जिनकी रोकथाम करना जरुरी होता है.

कीट रोग

गुड़मार के पौधों में रोग काफी कम देखने को मिलते हैं लेकिन कुछ कीट रोग हैं जिनकी वजह से पैदावार को नुक्सान पहुँचता है. इनकी रोकथाम के लिए रोग दिखाई देने पर पौधों पर नीम के तेल या नीम के बीज से बने आर्क का छिडकाव पौधों पर कर देन चाहिए.

पीली पत्ती रोग

रोग लगा पौधा

गुड़मार के पौधों में पीली पत्ती रोग अधिक बारिश की वजह से दिखाई देता हैं. इस रोग के लगने से पौधे की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की रोपाई के समय 10 किलो फेरस सल्‍फेट का छिडकाव प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में कर देना चाहिए.

जड़ गलन

गुड़मार के पौधों में जड़ गलन रोग का प्रभाव खेत में अधिक समय तक जलभराव होने की वजह से दिखाई देता है. इस रोग के लगने की वजह से पौधों का विकास रुक जाता है. और पौधे मुरझाने लगते हैं. रोगग्रस्त पौधा कुछ दिनों बाद सूख जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में जलभराव ना होने दे. और रोग लगे पौधे को उखाड़कर नष्ट कर दें. रोग लगे पौधों की जड़ों में बोर्डों मिश्रण का छिडकाव करना चाहिए.

फसल की कटाई

गुड़मार के पौधों से फसल के रूप में इसके सम्पूर्ण पौधे का इस्तेमाल होता हैं. लेकिन जो किसान भाई इसे लम्बे समय के उगाता है. वो हर बार इसकी पत्तियों और फलियों की चुनाई करता है. इसके पौधे रोपाई के लगभग एक से डेढ़ साल बाद ही पैदावार देना शुरू कर देते है. शुरुआत में पौधों से पत्तियों की सामान्य पैदावार प्राप्त होती हैं. लेकिन जैसे जैसे पौधे विकास करते हैं, वैसे वैसे ही पौधों की पैदावार बढती जाती हैं.  पूर्ण रूप से तैयार पौधे से साल में दो बार तुड़ाई की जाती है. जिसमें इसकी पत्तियों की पहली बार तुड़ाई सितम्बर या अक्टूबर में और दूसरी बार अप्रैल या मई में की जाती है. पत्तियों के अलावा इसके पौधे की फलियों की भी तुड़ाई की जाती है. जिन्हें गर्मियों के मौसम में फलियों के फटने से पहले तोड़ लेना चाहिए. क्योंकि इसके दानो पर रुई लगी होती है, जो फलियों के चटकने पर बीज के साथ हवा में फैल जाती है. जिससे पैदावार को नुक्सान पहुँचता है.

पैदावार और लाभ

गुड़मार के पौधों को एक बार लगाने के बाद कई साल तक पैदावार देते हैं. और जब इसके पौधों को उखाड़ा जाता है, तो इसकी जड़ें भी बेची जाती हैं. जिनका बाजार भाव काफी अच्छा मिलता है. गुडलक के पौधों की साल में दो बार तुड़ाई की जाती है. और एक बार में एक पौधे से तीन से पांच किलो तक हरी पत्तियां प्राप्त हो जाती हैं. जबकि एक हेक्टेयर में 10000 के आसपास पौधे लगाए जाते हैं. जिनसे एक बार में लगभग 40000 किलो के आसपास अच्छी गुणवत्ता वाली पत्तियां आसानी से मिल जाती हैं.

पतियों को सुखाने के बाद उनसे सुखी पत्ती के रूप में कुल 5 किवंटल के आसपास पैदावार प्राप्त हो जाती हैं. जिनका बाजार भाव 70 रूपये प्रति किलो के आसपास पाया जाता है. इस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से 30 हजार से ज्यादा की कमाई कर सकता है. जबकि इस्सकी पत्तियों की साल में दो बार पैदावार मिलती है. पत्तियों के अलावा इसकी फलियों का बाज़ार भाव अच्छा मिलने पर किसान भाई की अच्छीखासी कमाई हो जाती है.

Filed Under: औषधि

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