सौंफ की उन्नत खेती कैसे करें – पूरी जानकारी!

सौंफ की खेती मसाला फसल के रूप में की जाती है. सौंफ का दाना हरा और छोटे आकार का होता है. सौंफ का इस्तेमाल मनुष्य के बहुत उपयोगी है. इसका इस्तेमाल आचार और सब्जी में खुशबू और स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है. इसके अलावा सौंफ का इस्तेमाल खाना खाने के बाद मीठे के साथ खाने को जल्दी पचाने के लिए भी किया जाता है.

सौंफ की पैदावार

सौंफ के खाने से पेट संबंधित कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है. वर्तमान में सौंफ का इस्तेमाल माउथ फ्रेशनर के रूप में भी किया जा रहा है. सौंफ के बीज में एक विशेष प्रकार का सुगन्धित तेल पाया जाता है. जिसका इस्तेमाल व्यापारिक रूप से साबुन और शेम्पू के निर्माण में किया जाता है.

सौंफ का पौधा लगभग तीन फिट की ऊंचाई का होता है. जिस पर पत्तियां छोटे आकर की होती हैं. सौंफ का पौधा समशीतोष्ण जलवायु में अच्छे से विकास करता है. इसके पौधे की सर्दी और गर्मी दोनों की आवश्यकता होती है.  इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान सामान्य रहना चाहिए. भारत में इसकी खेती राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और पंजाब में अधिक मात्रा में की जाती है.

अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

सौंफ की खेती के लिए उचित जीवाश्म युक्त दोमट मिट्टी को अच्छा माना जाता है. जबकि अधिक रेतीली भूमि में इसकी खेती नही की जा सकती. और इसकी खेती के लिए भूमि में जलभराव नही होना चाहिए. क्योंकि जलभराव की वजह से पौधा जल्द खराब हो जाता है. इसकी खेती के लिए जमीन का पी.एच. मान 6.5 से 8 तक होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

सौंफ की खेती के लिए शुष्क और ठंडी जलवायु की जरूरत होती है. भारत में इसकी खेती रबी की फसलों के साथ सर्दी में मौसम में की जाती है. लेकिन सर्दियों में पड़ने वाली अधिक तेज़ सर्दी और पाला इसकी खेती के लिए हानिकारक होता है. सौंफ की खेती भले ही सर्दियों में की जाती हो लेकिन इसके दानो को पकने के लिए गर्मी की जरूरत होती है. सौंफ के पौधों को अधिक बारिश की आवश्यकता नही होती.

सौंफ की खेती के लिए शुरुआत में बीजों के अंकुरण के समय सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है. बीजों के अंकुरण के बाद पौधों को विकास करने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की आवश्यकता होती है. और उसके बाद फसल के पकने के दौरान पौधों को 25 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है.

उन्नत किस्में

सौंफ की कई उन्नत किस्में हैं. जिनको उनकी उपज के आधार पर अलग अलग जगह पर उगाया जाता है.

आर एफ 105

इस किस्म का निर्माण श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर, जयपुर द्वारा किया गया है. इस किस्म का पौधा बीज रोपाई के लगभग 150 दिन के आसपास पैदावार देना शुरू कर देता है. इस किस्म का पौधा आकार में बड़ा, सीधा और मजबूत होता है. जिस पर लगने वाले पुष्प छत्रक बड़े और मोटे दानो वाले होते हैं. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 15 क्विंटल के आसपास पाई जाती है.

आर एफ 125

इस किस्म का निर्माण भी श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर, जयपुर द्वारा ही किया गया है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के 110 से 130 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म को कम समय में अधिक अधिक पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म के पौधे आकार में छोटे होते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 17 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

को 11

उन्नत किस्म का पौधा

इस किस्म का निर्माण तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयम्बटूर द्वारा किया गया है. सौंफ की ये किस्म मिश्रित खेत के लिए अधिक उपयोगी है. इस किस्म के पौधों पर शाखाएं अधिक मात्रा में बनती है. जिन पर लगने वाले पुष्प छत्रक छोटे आकार के होते हैं. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 6 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इसके पौधे बीज रोपाई के बाद लगभग 200 दिन बाद कटाई के लिए तैयार होते हैं.

गुजरात सौंफ 1

सौंफ की इस किस्म का निर्माण मसाला अनुसंधान केन्द्र जगुदन, गुजरात द्वारा किया गया है. इस किस्म को शुष्क जगहों पर उगाने के लिए तैयार किया गया है. इस किस्म का पौधा झाड़ीनुमा दिखाई देता है. जो बीज रोपाई के लगभग 200 दिन बाद पककर कटाई के लिए तैयार होते हैं. इस किस्म के पौधे पर बनने वाले पुष्प छत्रक का आकार सामान्य होता है. और इसके दाने लम्बे, मोटे और गहरे हरे रंग के होते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 16 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

हिसार स्वरूप

सौंफ की इस किस्म का उत्पादन हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किया गया है. इस किस्म के पौधे सामान्य आकार वाले होते हैं. जिन पर लगने वाले पुष्प छत्रक बड़े आकार के होते हैं. जिनको पककर तैयार होने में लगभग 200 दिन का टाइम लगता है. इस किस्म के दाने लम्बे और मोटे होते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 से 20 क्विंटल तक पाया जाता है.

पी एफ 35

इस किस्म का निर्माण मसाला अनुसंधान केन्द्र जगुदन, गुजरात द्वारा किया गया है. इस किस्म के पौधे अधिक फैले हुए और लम्बे होते हैं. जिन पर लगने वाले पुष्प छत्रक का आकार बड़ा होता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 210 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके दानो का रंग धारीदार हल्का हरा होता है. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 17 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर झुलसा रोग नही लगता.

एन. आर. सी. एस. एस. ए. एफ 1

सौंफ की इस किस्म का निर्माण नेशनल रिसर्च सेन्टर आन सीड स्पाइसेज तबीजी, राजस्थान द्वारा किया गया है. इस किस्म के बीजों की रोपाई अगेती फसल के रूप में की जाती है. इसके पुष्प छत्रक आकार में बड़े होते हैं. जिन पर बनने वाले दाने मध्यम लम्बाई लिये हुए मोटे दिखाई देते हैं. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 क्विंटल के आसपास पाया जाता है.

इनके अलावा और भी कई किस्में हैं. जिनको अलग अलग जगह पर उगाया जाता है. जिनमें गुजरात सौंफ-2, राजेन्द्र सौरभ, एस. 79, उदयपुर एफ 31 और 32 जैसी बहुत सारी किस्में शामिल हैं.

खेत की तैयारी

सौंफ की खेती के लिए खेत की मिट्टी भुरभुरी और साफ़ होनी चाहिए. ताकि इसकी रोपाई करते वक्त किसी परेशानी का सामना ना करना पड़े. इसके लिए खेत की जुताई से पहले खेत में मौजूद पुरानी फसलों के सभी तरह के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए. उसके बाद पलाऊ चलाकर खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए. पलाऊ लगाने के बाद खेत को कुछ दिन खुला छोड़ देना चाहिए. उसके बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद डालकर उसकी कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई करनी चाहिए. ताकि खाद अच्छे से मिट्टी में मिला जाएँ. उसके बाद रोटावेटर चलाकर मिट्टी में मौजूद सभी ढेलों को ख़तम कर पाटा लगा देना चाहिए. जिससे खेत समतल दिखाई देने लगता हैं.

पौध तैयार करना

सौंफ की खेती ज्यादातर बीज के माध्यम से ही की जाती है. लेकिन कुछ किसान भाई इसे पौधे के माध्यम से भी उगाते हैं. इसके लिए बीज को नर्सरी में प्रो-ट्रे में लगभग दो महीने पहले उगाया जाता है. इसके बीजों को नर्सरी में जुलाई महीने में उगा दिया जाता है. उसके बाद जब पौधा अच्छी तरह अंकुरित हो जाता है, तब उसे खेत में लगाया जाता है. लेकिन ये विधि बहुत मेहनत वाली होती है. इस कारण किसान भाई इसके बीजों को सीधा खेतों में ही उगाते हैं.

बीज रोपण का तरीका और टाइम

सौंफ के बीजों की रोपाई मेड और समतल दोनों जगहों पर की जाती है. समतल में इसकी रोपाई करने के लिए पहले 3 गुना 5 फिट की क्यारी तैयार की जाती है. उसके बाद किसान भाई बीजों को खेत में छिड़क कर उसे हाथ या दंताली से मिट्टी में मिला देते हैं. जिससे बीज मिट्टी में एक से दो सेंटीमीटर नीचे चला जाता है. जबकि मेड पर इसकी रोपाई के दौरान इसके बीजों को मेड पर दोनों तरफ लगाया जाता है. मेड पर रोपाई करने के लिए मेड से मेड की दूरी लगभग दो फिट के आसपास होनी चाहिए. जिस पर पौधे को आपस में 10 से 15 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाता है. मेड पर सामान स्थिति में इसके पौधे लगाए जाते हैं.

सौंफ की खेती

सौंफ की खेती रबी की फसलों के साथ की जाती है. इसकी खेती के लिए इसके बीजों की रोपाई सितम्बर माह के लास्ट और अक्तूबर माह के प्रथम सप्ताह में कर दी जानी चाहिए. जिससे पौधे को पककर तैयार होने के पूरा समय मिल जाता है.

इसके बीजों को खेत में लगाने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए. बीज को उपचारित करने के लिए गोमूत्र या बाविस्टीन का इस्तेमाल करना चाहिए. एक हेक्टेयर में बीज रोपाई के लिए 8 से 10 किलो बीज की जरूरत होती है. जबकि नर्सरी में पौध लगाने के लिए लगभग 5 किलो के आसपास बीज की जरूरत होती है.

खेत की सिंचाई

सौंफ के बीज की रोपाई सूखी जमीन में की जाती है. इसलिए बीज या पौध रोपाई के तुरंत बाद खेत में पानी दे देना चाहिए. सौंफ के पौधे को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती है. इसके पौधे को पककर तैयार होने के लिए लगभग 10 सिंचाई की जरूरत होती है. इसके पौधों को पहली सिंचाई पानी के धीमे बहाव में करनी चाहिए. क्योंकि तेज़ बहाव में सिंचाई करने पर बीज बहकर किनारों पर चला जाता है. पहली सिंचाई के बाद बाकी की सिंचाई 10 से 12 दिन के अंतराल में की जानी चाहिए. लेकिन पौधे पर फूल और दाने बनने के दौरान पानी की कमी ना होने दें. क्योंकि पानी उचित मात्रा में देने पर दाने अच्छे और अधिक मात्रा में बनते हैं. जिससे पैदावार भी अधिक प्राप्त होती है.

उर्वरक की मात्रा

सौंफ की खेती के लिए उर्वरक की जरूरत बाकी मसाला फसलों की तरह ही होती है. इसकी खेती के लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त 12 से 15 गाडी पुरानी गोबर की खाद को जुताई के साथ खेत में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें. उसके बाद खेत की आखिरी जुताई के वक्त एक बोरा डी.ए.पी. प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में छिड़क दें. इससे अलावा पौधों की सिंचाई के वक्त जब पौधा विकास करने लगता है तब 20 से 25 किलो यूरिया की मात्रा को तीसरी या चौथी सिंचाई के वक्त पौधों में देना चाहिए. और जब पौधे पर फूल खिलने लगे तब फिर से यूरिया की इसी मात्रा का छिड़काव सिंचाई के साथ पौधों में करना चाहिए. जिससे पौधे पर बनने वाले दाने अच्छे से बनते हैं.

खरपतवार नियंत्रण

सौंफ की खेती में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीकों से किया जा सकता है. इसकी खेती में रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए बीज रोपाई के तुरंत बाद पेन्डिमेथालिन की उचित मात्रा को पानी में मिलकर मिट्टी में छिडक देना चाहिए. जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण पौधों की नीलाई गुड़ाई कर की जाती है. इसके पौधों की पहली गुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 20 दिन बाद कर देनी चाहिए. पहली गुड़ाई हल्के रूप में करनी चाहिए. उसके बाद बाकी की सभी गुड़ाई, पहली गुड़ाई के बाद 15 दिन के अंतराल में करनी चाहिए. सौंफ के पौधों की 3 से 4 गुड़ाई करना अच्छा होता है.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

सौंफ के पौधों में कम ही रोग लगते हैं. लेकिन कुछ कीट और वायरस जनित रोग होते हैं जो पौधे को अधिक नुक्सान पहुँचाते हैं.

कॉलर रॉट

सौंफ के पौधे पर कॉलर रॉट रोग का प्रभाव पानी भराव की वजह से देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधों का जमीन के पास का हिस्सा सड़ने लगता हैं. जिससे पौधे की पतीयों का रंग पीला दिखाई देने लगता है. इस रोग का प्रभाव बढ़ने पर पौधे सम्पूर्ण रूप से नष्ट होकर गिर जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए खेत में जलभराव ना होने दे. इसके अलावा पौधे पर रोग दिखाई देने पर जड़ों में 1.0 प्रतिशत बोर्डो मिश्रण का छिडकाव करना चाहिए.

पाउडरी मिल्ड्यू

पाउडरी मिल्ड्यू को छाछ्या के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों का रंग भूरा दिखाई देने लगता है. इसका प्रभाव बढ़ने पर पौधों का विकास रुक जाता है जिसका असर पैदावार पर भी देखने को मिलता हैं. पौधों पर इस रोग का प्रभाव फरवरी और मार्च के महीने में देखने को मिलता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर गंधक की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

झुलसा

सौंफ के पौधों में इस रोग का प्रभाव रेमुलेरिया और ऑल्टरनेरिया कवक की वजह से देखने को मिलता हैं. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों पर भूरे रंग के छोटे धब्बे दिखाई देते हैं. जो धीरे धीरे काले रंग में बदल जाते हैं. पौधों पर इस रोग का प्रभाव बढ़ने के कारण पुष्प छत्रक में बीज नही बनते और अगर बीज बनता है तो बीज का आकार छोटा दिखाई देता है. जो बहुत कम मात्रा में बनते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मेंजोबेक का छिडकाव करना चाहिए.

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रोग लगा पौधा

सौंफ के पौधे पर लगने वाला ये एक कीट रोग है. जो मौसम परिवर्तन के दौरान देखने को मिलता है. इस रोग के कीट पौधे पर एक समूह में दिखाई देते हैं. जिनका रंग हरा, पीला और काला दिखाई देता है. इनका आकार बहुत छोटा होता है. ये किट पौधे का रस चूसकर पौधे को नुक्सान पहुँचाते हैं. जिससे पौधे पर बनने वाले दानो की मात्रा कम हो जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम का तेल, इमिडाक्लोप्रिड या थाइमेथाक्साम की उचित मात्रा का छिडकाव 10 दिन के अंतराल में दो से तीन बार करना चाहिए.

पौधों की कटाई और गहाई

सौंफ की अलग अलग किस्मों के पौधे बीज रोपाई के लगभग 150 से 200 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसके पौधे पर जब पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगे और बीज हल्का कठोर दिखाई दे तब उसके पुष्प छत्रक को काट लेना चाहिए.

इसके पुष्प छत्रक को काटकर तेज़ धूप में इसे सूखाना चाहिए. जिससे इसके दाने सूखकर कठोर हो जाते हैं. और उनका रंग हल्का हरा पीला दिखाई देने लगता है. उसके बाद पुष्प छत्रक से इसके बीजों को अलग कर लिया जाता है. इसके बीजों को अलग करने के लिए वर्तमान में कई तरह की मशीने उपलब्ध हैं.

पैदावार और लाभ

सौंफ की अलग अलग किस्मों की औसतन पैदावार 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पाई जाती है. जिसका बाज़ार भाव 5 हज़ार रूपये प्रति क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इस हिसाब से किसान भाई एक बार में एक हेक्टेयर से एक लाख तक की कमाई आसानी से कर लेता है.

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