Kheti Gyan

  • होम
  • मंडी भाव
  • मेरा गाँव
  • फल
  • फूल
  • सब्ज़ी
  • मसाले
  • योजना
  • अन्य
  • Social Groups

टमाटर की खेती कैसे करें – Tomato Farming Information

2019-06-21T11:36:12+05:30Updated on 2019-06-21 2019-06-21T11:36:12+05:30 by bishamber Leave a Comment

टमाटर पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा खाई जाने वाली सब्जी है. टमाटर का इस्तेमाल लगभग सभी तरह की सब्जियों में किया जाता है. सब्जी के अलावा टमाटर का उपयोग सलाद में भी बहुत ज्यादा किया जाता है. टमाटर की फसल पूरे साल भर किसी भी मौसम में की जा सकती है. टमाटर का इस्तेमाल मानव शरीर के लिए सबसे उपयुक्त होता है. टमाटर के अंदर प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन सी जैसे तत्व पाए जाते हैं.

Table of Contents

  • उपयुक्त मिट्टी
  • जलवायु और तापमान
  • टमाटर की उन्नत किस्में
    • स्वर्ण नवीन
    • स्वर्ण लालिमा
    • पूसा शीतल
    • पंजाब छुहारा
    • काशी अमन
    • स्वर्ण समृद्धि
    • स्वर्ण सम्पदा
    • काशी अभिमान
    • दिव्या
  • खेत की जुताई
  • पौध तैयार करना
  • पौध लगाने का टाइम और तरीका
  • उर्वरक की मात्रा
  • पौधे की सिंचाई
  • खरपतवार नियंत्रण
  • टमाटर के पौधों को लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
    • कीट की वजह से लगने वाले रोग
      • सफेद मक्खी
      • हरा तेला
      • तम्बाकू की इल्ली
    • फल छेदक
    • वायरस की वजह से लगने वाले रोग
      • आद्र गलन
      • अगेती झुलसा
      • पछेती झुलसा
      • बकाय रॉट
  • फलों की तुड़ाई
  • पैदावार और लाभ

टमाटर की खेतीटमाटर का व्यापारिक इस्तेमाल भी होता है. टमाटर से सोस, चटनी जैसी और भी कई तरह की चीजें बनाई जाती हैं. जिनका इस्तेमाल लोग खाने में करते हैं. टमाटर की खेती अगर उचित तरीके और टाइम पर की जाए तो इसकी खेती से किसान भाई अच्छी कमाई कर सकते हैं.
टमाटर की खेती के लिए दोमट मिट्टी की जरूरत होती है. टमाटर की खेती पूरे साल की जा सकती है. लेकिन सर्दियों में इसका ख़ास ध्यान रखना पड़ता है. क्योंकि सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसकी फसल को नुक्सान पहुँचता है. इसकी खेती के लिए आदर्श तापमान सबसे उपयुक्त होता है.

अगर आप भी टमाटर की खेती करना चाह रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

टमाटर की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है. दोमट मिट्टी के अलावा इसकी खेती और भी कई तरह की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है. इसके लिए मिट्टी के अंदर पौषक तत्व उचित मात्रा में होने चाहिए. और मिटटी का पी.एच. मान 6 से 7 तक होना चाहिए. जिस जमीन में पानी का भराव ज्यादा टाइम तक होता हो वहां इसकी खेती नही की जा सकती. क्योंकि ज्यादा जल भराव की वजह से पौधों में कई तरह के रोग लग जाते हैं. और इसके फल जमीन से लगे होते हैं जिससे फल भी पानी भराव की वजह से खराब हो जाते हैं.

जलवायु और तापमान

टमाटर की खेती किसी भी जगह पर की जा सकती है. इसके लिए किसी ख़ास जलवायु की जरूरत नही होती. जबकि सर्दी के मौसम में पड़ने वाला पाला इसकी फसल को ज्यादा नुक्सान पहुँचता है. आदर्श मौसम इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होता है.

टमाटर की खेती के लिए तापमान सबसे ज्यादा जरूरी होता है. टमाटर के पौधे को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. जिसके बाद टमाटर का पौधा 20 से 25 डिग्री तापमान पर अच्छे से विकास करता है.

जब टमाटर के पौधे में फूल खिलते हैं तब फूलों को पराग कण और निषेचन की क्रिया के लिए अधिकतम 30 डिग्री और न्यूनतम 18 डिग्री तापमान की जरूरत होती है. अगर तापमान 38 डिग्री से ज्यादा होने हो तो इसके फल और फूल दोनों ही गिर जाते हैं. टमाटर के फलों को लाल होने के लिए 21 से 24 डिग्री तापमान की जरूरत होती है.

टमाटर की उन्नत किस्में

टमाटर की आज कई तरह की किस्में बाज़ार में मौजूद हैं. जिन्हें अलग अलग जगहों के वातावरण के हिसाब से तैयार किया गया है. आज बाज़ार में अधिक पैदावार देने वाली कुछ संकर किस्में भी मौजूद हैं. जिनको किसान भाई अधिक पैदावार के लिए उगाते हैं.

स्वर्ण नवीन

उन्नत किस्म का टमाटर

टमाटर ये एक उन्नत किस्म है. जिसके फल पौधे को लगाने के 60 से 65 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के टमाटर अंडाकार और लाल रंग के होते हैं. टमाटर की इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 600 क्विंटल से भी ज्यादा होती है. इसके पौधे पर झुलसे का रोग नही लगता. इस किस्म को सर्दी और वर्षा के मौसम में आसानी से उगाया जा सकता है.

स्वर्ण लालिमा

टमाटर की इस किस्म की रोपाई सर्दी के मौसम में की जाती है. इसके टमाटर गहरे लाल और गोल आकार वाले होते हैं. टमाटर की इस किस्म की पैदावार 700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. इस किस्म के पौधों पर मुरझा रोग नही लगता.

पूसा शीतल

टमाटर की इस किस्म को ज्यादा ठंडे प्रदेशों के लिए तैयार किया गया है. इसके पौधे रात्रि में 8 डिग्री तापमान को भी सहन कर लेते हैं. इसकी खेती पर्वतीय भागों पर की जाती है. इसके फलों का आकार चपटा और रंग लाल होता है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 350 क्विंटल तक हो जाती है.

पंजाब छुहारा

टमाटर की इस किस्म को कृषि विश्वविद्यालय लूधियाना ने तैयार किया है. इस किस्म के फलों को तैयार होने में 90 दिन का टाइम लगता है. इसके फलों का आकार बहुत छोटा होता है. जो पीले और लाल रंग के होते है. इस किस्म को गर्मी के मौसम में उगाना सबसे अच्छा होता है.

काशी अमन

टमाटर की इस किस्म की पैदावार 500 से 600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पाई जाती है. इस किस्म को पर्ण कुंचन रोग नही लगता. इस किस्म के फल तैयार होने में 80 से 90 दिन का टाइम लेते हैं.

स्वर्ण समृद्धि

टमाटर की ये एक संकर किस्म है. जिसको बारिश और सर्दी के मौसम से पहले खेतों में उगाया जाता हैं. इसके पौधे खेत में लगाने के बाद 55 से 60 दिन में पैदावार देना शुरू कर देते हैं. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 1000 क्विंटल तक होती है. इस किस्म के फल ठोस और लाल रंग के होते हैं.

स्वर्ण सम्पदा

टमाटर की ये भी एक संकर किस्म है. जिसको सर्दी और बारिश के मौसम से पहले उगाया जाता है. इस किस्म के फल लाल, बड़े और गोल आकार के होते हैं. इस किस्म के पौधों को अंगमारी और झुलसा रोग नही लगता. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 1000 क्विंटल के आसपास होती है.

काशी अभिमान

टमाटर की ये एक संकर किस्म है जिसके फल पौध लगाने के 70 से 80 दिन बाद तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं. टमाटर की इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 800 क्विंटल तक होती है. टमाटर की इस किस्म पर भी विषाणु जनित रोग नही लगते.

दिव्या

टमाटर की इस किस्म के फल ज्यादा दिनों तक खराब नही होते. इस किस्म के पौधे को लगाने के 70 दिन बाद फल देना शुरू कर देता है. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 400 से 500 क्विंटल तक पाई जाती हैं. टमाटर की इस किस्म पर झुलसा और आँख सडन जैसे रोग नही लगते.

इनके अलावा और भी कई तरह की किस्में मौजूद हैं. जिन्हें अलग अलग जगहों और मौसम के आधार पर तैयार किया गया है. जिनमें पूसा-120,अर्का सौरभ, अर्का विकास, सोनाली,पूसा हाइब्रिड- 1,2,4, अविनाश-2, रश्मि, शक्तिमान, रेड गोल्ड, चमत्कार और यू.एस.440 जैसी और भी कई किस्में शामिल हैं.

खेत की जुताई

टमाटर की खेती के लिए खेत की अच्छे से जुताई करना जरूरी होता है. इसके लिए पहले से की हुई फसल के अवशेषों को नष्ट कर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दें. उसके बाद खेत को खुला छोड़ दें. और कुछ दिन बाद उसमें गोबर की खाद डालकर फिर अच्छे से जुताई कर उसे मिट्टी में मिला दें.

टमाटर की खेती के लिए भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है. इसके लिए खेत में पानी छोड़ दें. पानी छोड़ने के बाद खेत की कुछ दिन बाद अच्छे से जुताई कर उसमें पाटा लगा दें. जिससे मिट्टी में मौजूद सभी ढेले टूटकर भुरभुरी मिट्टी में बदल जाते हैं. उसके बाद खेत में उचित दूरी पर मेड बना दें.

पौध तैयार करना

टमाटर के बीजों को सीधा खेत में नही उगाया जाता, इसके लिए पहले नर्सरी में पौध तैयार की जाती है. साधारण किस्म की पौध बनाने के लिए 400 से 500 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगता है. और संकर क़िस्म के लिए 250 से 300 ग्राम बीज काफी होता है. बीजों को नर्सरी में उगाने से पहले उन्हें कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा से उपचारित कर लेना चाहिए.

बीज को उगाने से पहले उचित आकार वाली क्यारियाँ बना लें. उसके बाद उनमें 20 से 25 किलो गोबर की खाद डालकर उसे मिट्टी में अच्छे से मिला दें. और मिट्टी को कार्बोफ्यूरान की उचित मात्रा से उपचारित कर लें. बीज और जमीन को उपचारित कर पौध को रोगग्रस्त होने से बचाया जा सकता है.

उपचारित की हुई मिट्टी में बीज डालकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. उसके बाद क्यारियों की उचित टाइम पर लगातार सिंचाई करते रहे. टमाटर की पौध 25 से 30 दिन बाद खेत में लगाने के योग्य हो जाती हैं. जिसके बाद उन्हें खेत में लगाया जाता है.

पौध को खेत में लगाने से पहले क्यारियों में पानी देकर उन्हें गिला कर लेना चाहिए. जिससे पौध कम मात्रा में खराब होती हैं. पौध को खेत में लगाने से पहले उसे कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा के घोल में 20 से 25 मिनट तक उपचारित कर लें.

पौध लगाने का टाइम और तरीका

टमाटर की खेती मुख्य रूप से सर्दी और बारिश के मौसम में की जाती है. सर्दियों की फसल के लिए इसकी रोपाई अगस्त माह के बाद अक्टूबर माह के पहले सप्ताह तक कर देनी चाहिए. जबकि गर्मी और बारिश के मौसम वाली फसल के लिए इसकी रोपाई दिसम्बर या जनवरी में करनी चाहिए. टाइम पर पौधे की रोपाई करने से अच्छी फसल प्राप्त होती है.

टमाटर के पौधे से अच्छी पैदावार लेने के लिए उसे कभी भी समतल भूमि में नही लगाना चाहिए. इसके लिए पहले खेत में एक से डेढ़ फिट की दूरी पर मेड बनाकर उस पर पौधा उगाना चाहिए. इस दौरान दो पौधों के बीच एक फिट की दूरी रखनी चाहिए.

पौधे को खेत में लगाते टाइम हमेशा शाम के वक्त इसकी रोपाई करनी चाहिए. इससे पौधे के नष्ट होने के चांस सबसे कम होते हैं. पौधे को खेत में लगाने के साथ ही पानी दे देना चाहिए.

उर्वरक की मात्रा

टमाटर की खेती को पौषक तत्वों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. इस कारण ज्यादा पैदावार लेने के लिए खेत में उर्वरक की उचित मात्रा सही समय पर देना जरूरी होता है. टमाटर की खेती के लिए सबसे पहले खेत की जुताई के वक्त 20 से 25 गाडी पुरानी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 20 दिन पहले खेत में डालकर उसे मिट्टी में अच्छे से मिला दें.

गोबर की खाद के अलावा टमाटर के पौधे को रासायनिक खाद की भी जरूरत होती है. इसके लिए खेत में लास्ट जुताई के वक्त नाइट्रोजन 80 किलो, पोटाश 50 किलो और फास्फोरस 60 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में छिड़क दें. उसके बाद खेत में एक से सवा महीने बाद 20 किलो नाइट्रोजन पौधे को सिंचाई के साथ दें. और उसके एक महीने बाद फिर से 20 किलो नाइट्रोजन पौधे को सिंचाई के साथ दें.

पौधे की सिंचाई

टमाटर के पौधे की शुरूआती सिंचाई पौध के खेत में लगाने के साथ ही कर देनी चाहिए. उसके बाद जब तक पौधा अच्छे से अंकुरित ना हो जाए तब तक खेत में नमी की मात्रा बनाये रखे. और जब सभी पौधे पूरी तरह से अंकुरित हो जाएँ नष्ट हुए पौधों को बहार निकाल दें.
सर्दी के मौसम में खेत में नमी बनाये रखने के लिए सप्ताह में एक बार पानी देना चाहिए. जबकि गर्मी के मौसम में 3 से 4 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए. पौधे में फूल आने के वक्त पानी कम दे. ज्यादा पानी देने से फूल खराब हो जाते हैं. लेकिन जब पौधे में फल बनने लगे तब पानी की मात्रा को बढ़ा दे. इससे टमाटर के फल अच्छे से वृद्धि करते हैं.

खरपतवार नियंत्रण

टमाटर की खेती के लिए खरपतवार नियंत्रण करना बहुत जरूरी है. क्योंकि इसके पौधे की जड़ें ज्यादा गहराई में नही जाती है. इसलिए पौधे सभी पौषक तत्व मिट्टी की उपरी सतह से लेते हैं. ऐसे में अगर खेत में खरपतवार रहती हैं तो वो पौधे को उचित मात्रा में पौषक तत्व ग्रहण नही करने देती. इससे पौधे का विकास रुक जाता है. और पैदावार भी कम मात्रा में मिलती है. इसलिए टमाटर में खरपतवार ज्यादा नुक्सान पहुँचाती है.

टमाटर की खेती में खरपतवार नियंत्रण के लिए पौधों की उचित टाइम पर नीलाई गुड़ाई करना अच्छा होता है. नीलाई गुड़ाई करने की वजह से पौधों की जड़ों को वायु भी उचित मात्रा में मिल जाती है. जिससे पौधा अच्छे से विकास करता है.

टमाटर के पौधों की पहली नीलाई गुड़ाई पौध लगाने के 25 दिन बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद 15 दिन के अंतराल में 2 से 3 गुड़ाई कर देनी चाहिए. हर गुड़ाई के साथ पौधे की जड़ों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए. इससे जब पौधे पर टमाटर लगे तब उनके वजन की वजह से पौधा टूट ना सके.

टमाटर के पौधों को लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

टमाटर के पौधों को कई तरह के रोग लगते है. जो अलग अलग अवस्था में लगकर पौधे को ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं. पौधे पर ये रोग कीट और वायरस के माध्यम से फैलते हैं.

कीट की वजह से लगने वाले रोग

टमाटर पर किट की वजह से कई रोग लगते हैं. जो ज्यादातर पौधे के कोमल भागों को नुकसान पहुँचाते है.

सफेद मक्खी

सफ़ेद मक्खी रोग

इस रोग के कीट पौधे की पत्तियों का रस चूसकर उसे नुक्सान पहुँचाते हैं. इस मक्खी के पेशाब में शुगर की मात्रा ज्यादा पाई जाती है. ये मक्खी पत्ती पर जिस जगह पेशाब करती है. वहां से पत्तियां काली पड़ जाती है. जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण अच्छे से नही कर पता. इस रोग के लगने पर पौधों पर डाइमेथोएट 30 ई सी, मिथाइल डेमेटान 30 ई सी की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

हरा तेला

टमाटर के पौधों पर हरा तेला रोग किट की वजह से लगता हैं. ये कीट हरे रंग के होते है. इसके कीट पत्तियों की नीचे की सतह पर पाए जाते है. जो पौधे की पत्तियों का रस चूसकर उन्हें सुखा देते हैं. इन कीटों के रस चूसने की वजह से पत्तियां पहले सिकुड़ने लगती है. और उसके कुछ दिन बाद नष्ट हो जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर मोनोक्रोटोफास, कार्बेरिल और फॉस्फोमिडॉन की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

तम्बाकू की इल्ली

इस कीट का लार्वा पौधे के कोमल भागों की खाकर पौधे को नुक्सान पहुँचाता है. इसका प्रकोप बढ़ने पर पौधा पत्तियों रहित हो जाता है. उसके बाद इसका लार्व फलों पर भी आक्रमण करना शुरू कर देता है. जिससे पैदावार पर ज्यादा फर्क देखने को मिलता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर स्पाइनोसेड 45 एससी, डेल्टामेथ्रिन और नीम बीज अर्क में से किसी एक की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

फल छेदक

फल छेदक रोग

इस कीट की वजह से पैदावार पर सबसे ज्यादा फर्क पड़ता है. इस कीट की सुंडी सीधा फलों पर आक्रमण कर उनमें छेद कर देती है. जो फल के बाहर लटकती हुई दिखाई देती है. ये एक सुंडी कई फलों को नुक्सान पहुँचाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर डेल्टामेथ्रिन 2 या 5 ई सी, स्पाइनोसेड 45 एससी, एन पी वी 250 एल इ और नीम बीज अर्क में से किसी एक का छिडकाव रोग लगने पर करना चाहिए.

वायरस की वजह से लगने वाले रोग

वायरस की वजह से लगने वाले रोग पौधों को जल्दी नुक्सान पहुँचाते हैं.

आद्र गलन

पौधों पर आद्र गलन का रोग मिट्टी के अंदर पनपता है. इस रोग के लगने पर पौधा जमीन की सतह के पास से भूरा काला होकर गिर जाता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर कैप्टान या बाविस्टिन की उचित मात्रा का छिडकाव सप्ताह में दो बार करना चाहिए.

अगेती झुलसा

पौधे पर ये रोग ज्यादातर गर्मी के मौसम में देखने को मिलता है. इस रोग की वजह से पत्तियां पीली होकर झड़ने लगती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए डाइथेन जेड- 78 का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

पछेती झुलसा

पौधों पर ये रोग बारिश के मौसम में देखने को मिलता है. इससे पौधे की पत्तियां किनारे पर से भूरे काले रंग की हो जाती है. और फलों पर भूरे काले रंग के धब्बे बनने लग जाते हैं. इस रोग के लगने पर पौधों पर मेन्कोजेब या रेडोमिल एम जेड का छिडकाव सप्ताह में एक बार करना चाहिए.

बकाय रॉट

पौधों पर इस रोग के लक्षण फलों पर देखने को मिलता है. इसके लगने पर फलों पर भूरे काले रंग के छल्ले दिखाई देने लगते हैं. जिनका आकार अलग अलग होता है. इसके लगने पर फल जल्द सड़कर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे पर मेटाटाक्सिल या मेन्कोजेब का छिडकाव करना चाहिए.

फलों की तुड़ाई

टमाटर के फल पौध लगाने के लगभग 90 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इनकी तुड़ाई करते वक्त ज्यादा लाल फलों को नज़दीकी बाजार में बेचने के लिए अलग कर लें. जबकि कठोर और थोड़े कम लाल फलों को दूर के बाजार में भेज़ने के लिए तोड़ें. पहली तुड़ाई के दो या तीन दिन बाद आगे की तुड़ाई करें.

पैदावार और लाभ

टमाटर की अलग अलग किस्मों की औसत पैदावार 30 से 60 टन प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है. जबकि बाज़ार में इनका थोक भाव 5 से 10 रूपये किलो तक अलग अलग टाइम पर मिलता है. जिससे किसान भाई एक बार में 4 लाख से ज्यादा की कमाई आसानी से कर लेता है.

 

Filed Under: सब्ज़ी Tagged With: tamatar, tomato, टमाटर

Comments

  1. Vikram Khokhar says

    May 25, 2021 at 10:05 am

    tamatar ke highbrid beej Kahan par milage please Bataan bone Rajasthan sikar

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

  • भेड़ पालन कैसे शुरू करें 
  • प्रमुख तिलहनी फसलों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
  • बरसीम की खेती कैसे करें
  • बायोगैस क्या हैं? पशुओं के अपशिष्ट से बायोगैस बनाने की पूरी जानकारी
  • सूअर पालन कैसे शुरू करें? Pig Farming Information

Categories

  • All
  • अनाज
  • अन्य
  • उन्नत किस्में
  • उर्वरक
  • औषधि
  • जैविक खेती
  • पौधे
  • फल
  • फूल
  • मसाले
  • मेरा गाँव
  • योजना
  • रोग एवं रोकथाम
  • सब्ज़ी
  • स्माल बिज़नेस

Follow Us

facebookyoutube

About

खेती ज्ञान(www.khetigyan.in) के माध्यम से हमारा मुख्य उद्देश्य किसानों को खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारियां देना है. अगर आप खेती संबंधित कोई भी जानकारी देना या लेना चाहते है. तो आप इस ईमेल पर सम्पर्क कर सकते है.

Email – khetigyan4777[@]gmail.com

Important Links

  • About Us – हमारे बारे में!
  • Contact Us (सम्पर्क करें)
  • Disclaimer (अस्वीकरण)
  • Privacy Policy

Follow Us

facebookyoutube

All Rights Reserved © 2017-2022. Powered by Wordpress.