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सोयाबीन की उन्नत खेती कैसे करें – पूरी जानकारी!!

2019-06-19T17:45:07+05:30Updated on 2019-06-19 2019-06-19T17:45:07+05:30 by bishamber Leave a Comment

सोयाबीन की खेती भारत में खरीफ के मौसम में ज्यादा की जाती है. सोयाबीन को दलहन से ज्यादा तिलहन की फसल माना जाता है. क्योंकि सोयाबीन में तेल बड़ी मात्रा में पाया जाता है. जिसका इस्तेमाल खाने में और आयुर्वेदिक दवाइयों में किया जाता है. सोयाबीन की सब्जी भी बनाई जाती है. सोयाबीन को शाकाहारी मनुष्यों का मॉस कहा जाता है. क्योंकि सोयाबीन के अंदर प्रोटीन की मात्रा 36 प्रतिशत तक पाई जाती है.

Table of Contents

  • उपयुक्त मिट्टी
  • जलवायु और तापमान
  • सोयाबीन की उन्नत किस्में
    • जे.एस. 93-05
    • एन.आर.सी-7
    • एन.आर.सी-12
    • प्रतिष्ठा
    • जे.एस. 20-34
    • एन.आर.सी-86
  • खेत की जुताई
  • बीज बोने का टाइम और तरीका
  • खेत की सिंचाई
  • उर्वरक की मात्रा
  • खरपतवार नियंत्रण
  • सहायक फसल
  • सोयाबीन के पौधे को लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
    • पत्ती धब्बा
    • गेरूआ
    • चारकोल रोट
    • फली झुलसन
    • कामलिया कीट और तम्बाकू इल्ली
  • फसल की कटाई
  • पैदावार और लाभ

सोयाबीन का दवाइयों के रूप में भी इस्तेमाल होता है. सोयाबीन के अंदर सोया प्रोटीन पाया जाता है. जिससे मानव के रक्त में उपस्थित कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को नियंत्रित और कम किया जा सकता है. इसके अलावा इसके अंदर कई तरह के अम्ल पाए जाते हैं जो मानव शरीर के लिए लाभदायक होते हैं.

सोयाबीन की खेती को गर्म और नम जलवायु की जरूरत होती है. खरीफ की फसल होने के कारण गर्म मौसम में इसकी पैदावार अच्छी होती है. लेकिन ज्यादा गर्मी भी इसके लिए अच्छी नही होती. इसकी खेती के लिए चिकनी दोमट मिट्टी की जरूरत होती है. और इसकी फसल को ज्यादा पानी की भी जरूरत नही होती.

अगर आप भी सोयाबीन की खेती करना चाह रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

सोयाबीन की खेती के लिए चिकनी दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. इसके अलावा हल्की रेतीली मिट्टी को छोड़कर किसी भी तरह की मिट्टी में इसकी खेती की जा सकती हैं. सोयाबीन की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली जमीन होनी चाहिए. जिसका पी.एच. मान 7 के आसपास ही रहना चाहिए.

जलवायु और तापमान

सोयाबीन की खेती के लिए उष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त होती है. सोयाबीन की पैदावार गर्म और नम मौसम में अधिक होती है. सोयाबीन की खेती के लिए ज्यादा बारिश की जरूरत नही होती. इसकी खेती के लिए 600 से 850 मिलीमीटर वर्षा काफी होती है.

सोयाबीन की खेती के लिए सामान्य तापमान काफी होता है. सामान्य तापमान पर सोयाबीन के पौधे अधिक पैदावार देते हैं. सोयाबीन के बीज को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री तापमान की जरूरत होती है. जबकि इसके बीज के पकने के दौरान तापमान उच्च रहना अच्छा होता है. ज्यादा तापमान होने पर बीज अच्छे से पकते हैं और नमी की मात्रा भी बहुत कम रहती है.

सोयाबीन की उन्नत किस्में

उन्नत किस्म का सोयाबीन

सोयाबीन की खेती के लिए कई तरह की किस्में मौजूद हैं. जो अधिक पैदावार और जल्दी पकने के लिए जानी जाती हैं.

जे.एस. 93-05

सोयाबीन की ये एक अगेती किस्म है, जो बीज लगाने के 95 दिन बाद ही पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 20 से 25 क्विंटल तक पाया जाता है. इसके पौधे सामान्य लम्बाई वाले होते हैं. सोयाबीन की इस किस्म में पत्ती धब्बा और फलियाँ फटने का रोग बहुत कम मात्रा में पाया जाता है.

एन.आर.सी-7

सोयाबीन की इस किस्म को मध्यावधि किस्म माना जाता है. इसके पौधे बीज लगाने के 100 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं. इस किस्म की पैदावार सबसे ज्यादा पाई जाती है. एक हेक्टेयर में इसकी पैदावार 35 क्विंटल तक आसानी से हो जाती हैं. इस किस्म पर भी पत्ती धब्बा, तना मक्खी और फली फटने जैसे बीमारी नही होती.

एन.आर.सी-12

सोयाबीन की ये भी एक मध्यावधि किस्म है. जिसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 25 से 30 क्विंटल तक हो जाती है. सोयाबीन की इस किस्म पर पत्ती धब्बा, गर्डल बीटल और तना-मक्खी जैसे रोग का असर बहुत कम होता है. इस किस्म के बीज खेत में लगाने के 90 दिन बाद पककर तैयार हो जाते हैं.

प्रतिष्ठा

सोयाबीन की ये भी एक उन्नत किस्म है जो बीज लगाने के 100 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है. इसकी पैदावार 20 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पाई जाती है. इस किस्म के पौधे कम लम्बाई के होते है. जिन पर फलियाँ बड़ी मात्रा में आती हैं. सोयाबीन की ये एक मध्यावधि किस्म हैं.

जे.एस. 20-34

सोयाबीन की ये एक मध्यावधि किस्म है जो 85 से 88 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इस किस्म के बीज सामान्य आकार वाले होते हैं. इस किस्म की प्रति हेक्टेयर पैदावार 22 से 25 क्विंटल तक पाई जाती है.

एन.आर.सी-86

सोयाबीन की इस किस्म को भी रोग प्रतिरोधक बनाया गाय है. इस पर कई तरह के कीट जनित रोग नही लगते. इस किस्म की प्रति हेकटेयर पैदावार 25 क्विंटल के आस पास पाई जाती है. इस किस्म को तैयार होने में 95 दिन का वक्त लगता है.

खेत की जुताई

सोयाबीन की खेती के लिए अच्छी जुताई की हुई भूमि उपयुक्त होती है. क्योंकि अच्छी जुती हुई उपजाऊ भूमि में इसकी पैदावार अच्छी होती है. इसकी जुताई के वक्त पहले खेत में पलाऊ लगाकर जुताई करें. उसके बाद कल्टीवेटर के माध्यम से खेत की तीन से चार तिरछी जुताई करे और खेत को कुछ वकत के लिए खुला छोड़ दें.

पहली जुताई के बाद खेत में उचित मात्रा में पुराना गोबर का खाद डालकर फिर खेत की अच्छे से जुताई करें. सोयाबीन की बुवाई बारिश के मौसम से पहले या शुरुआत में की जाती है. इसलिए खेत में नमी बनाने के लिए खेत में पानी छोड़ देते है.

पानी छोड़ने के बाद खेत की फिर से कुछ दिन बाद जुताई कर दे. इस बार जुताई के दौरान खेत में पाटा लगा दें. जिससे खेत समतल हो जाता है. सोयाबीन की खेती के लिए मिट्टी का भुरभुरा और समतल होना अच्छा होता है.

बीज बोने का टाइम और तरीका

सोयाबीन की खेती के लिए बीज की रोपाई जून के लास्ट और जुलाई के शुरुआती सप्ताह में कर देनी चाहिए. अगर इसकी रोपाई जुलाई के पहले सप्ताह के बाद करते हैं तो बीज की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए. एक हेक्टेयर में सोयाबीन की रोपाई के लिए छोटे दाने 70 किलो, माध्यम आकर के 80 किलो और बड़े आकार के 100 किलो दाने की जरूरत होती है.

सोयाबीन की खेती

सोयाबीन की रोपाई समतल खेत में की जाती है. इसकी रोपाई के लिए विशेष प्रकार की मशीन का इस्तेमाल किया जाता है. सोयाबीन की रोपाई पंक्ति में की जाती है. प्रत्येक पंक्तियों के बीच 30 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए. बीज को खेत में लगाते वक्त उसे 2 से तीन सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए.

बीजों को खेत में लगाने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि बीजों के अंकुरण के टाइम लगने वाले रोग पौधे पर ना लग पायें. इसके लिए बीज को थीरम, केप्‍टान, कार्बेन्‍डाजिम या थायोफेनेट मिथीईल के उचित मिश्रण से उपचारित कर लेना चाहिए.

खेत की सिंचाई

सोयाबीन की रोपाई बारिश के मौसम की शुरुआत में की जाती है. इस कारण इसकी खेती को शुरूआती सिंचाई की जरूरत नही होती. लेकिन अगर बारिश वक्त पर ना हो और फसल में पानी की कमी दिखाई दे तो सिंचाई कर देनी चाहिए. वर्षा ऋतू के समाप्त हो जाने के बाद खेत में सप्ताह में एक बार सिंचाई कर देनी चाहिए.

जब पौधे पर फली आ रही होती हैं तब पौधे को नमी की जरूरत होती है. इसलिए इस दौरान नमी बनाये रखने के लिए पौधों को आवश्यकता के अनुसार पानी देते रहना चाहिए. इससे पैदावार पर ज्यादा मिलती है.

उर्वरक की मात्रा

सोयाबीन की खेती को उर्वरक की ज्यादा जरूरत होती है. इसके लिए खेत की जुताई के वक्त 20 से 25 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर डालनी चाहिए. गोबर की खाद के अंदर सबसे ज्यादा उपजाऊ तत्व पाए जाते हैं. जिनसे पौधे को पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में मिलते हैं. इसके अलावा आखिरी जुताई से पहले गंधक 20 किलो, पोटाश 40 किलो, फास्फोरस 60 किलो और नाइट्रोजन 20 किलो को मिलाकर खेत में छिडक देना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

सोयाबीन की फसल के लिए बीज लगाने के बाद शुरुआत में 40 दिन तक खरपतवार नियंत्रण करना जरूरी होता है. सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण खेत की नीलाई गुड़ाई कर किया जा सकता है. इसके लिए खेत की पहली नीलाई गुड़ाई 20 से 25 दिन बाद कर देनी चाहिए. उसके बाद 20 दिन के अंतराल में फिर से नीलाई गुड़ाई कर देनी चाहिए.

नीलाई गुड़ाई के अलावा सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक विधि से भी किया जा सकता है. इसके लिए इमेजेथापायर, मेटोलाक्‍लोर और क्‍यूजेलेफोप इथाइल का फसल लगाने के बाद उचित टाइम पर खेतों में छिडकाव करें. इसके अलावा फ्लुक्लोरोलिन या ड्राइफ्लोरालिन का छिडकाव खेत में बीज लगाने के पहले करें.

सहायक फसल

सोयाबीन की फसल के साथ साथ सहायक फसल को उगाकर भी किसान भाई अच्छी कमाई कर सकते हैं. सोयाबीन के साथ मक्‍का, तिल और अरहर जैसी फसलों को आसानी से उगाया जा सकता है. जिससे एक फसल के टाइम दो फसलों के होने से किसान भाई की अच्छी आमदनी भी हो सकती है.

सोयाबीन के पौधे को लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

सोयाबीन के पौधों को कई तरह के रोग लगते हैं. जिन्हें हम रासायनिक, जैविक और समेकित तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं. समेकित तरीके से नियंत्रण करने के लिए खेत की गर्मियों के टाइम में गहरी जुताई करनी चाहिए. इसके अलावा उचित जल प्रबंधन, उन्नत किस्म का बीज और रोग लगे पौधों को नष्ट कर नियंत्रण किया जा सकता है.

लेकिन आज ज्यादातर किसान भाई रासायनिक तरीके का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. इन रासायनिक दवाइयों को हमेशा नज़दीकी कृषि केंद्र से ही खरीदनी चाहिए. जिससे इन पर मिलने वाली सब्सिडी के कारण ये किसान भाइयों को सस्ते दाम में मिल जायेगी. अगर कृषि केंद्र ज्यादा दूर हो तो ग्राम सेवक से भी इन कीटनाशक दवाइयों को खरीद सकते है, या सलाह ले सकते हैं.

पत्ती धब्बा

पत्ती धब्बा रोग

पत्ती धब्बा रोग पौधे की नई और पुरानी दोनों तरह की पत्तियों पर देखने को मिलता है. इसके लगने से पत्तियों पर छोटे छोटे धब्बे दिखाई देने लगते है. पतियों का रंग पीला पड़ जाता है. और पत्तियां सूखकर गिरने लगती है. जिससे पैदावार पर असर देखने को मिलता है. इसकी रोकथाम के लिए इस रोग की प्रतिरोधी किस्म को उगाना चाहिए. इसके अलावा पौधों पर कार्बेन्डाजिम या थायोफिनेट मिथाइल का छिडकाव करना चाहिए.

गेरूआ

पौधों पर लगने वाला ये एक फफूंदी जनित रोग है. पौधे पर इस रोग का प्रभाव फूल आने के वक्त देखा जाता है. इस दौरान पौधे की पत्तियों के नीचे की सतह पर छोटे छोटे लाल भूरे रंग के धब्बे बनने लगते है. जो एक समूह में पाए जाते हैं. इन धब्बों के चारों और पीले रंग का आवरण दिखाई देता है. जब पौधे पर इस रोग के लक्षण दिखाई दें तो पौधे पर हेक्साकोनाजोल या प्रोपिकोनाजोल का छिडकाव करें. इसके अलावा इस रोग की प्रतिरोधी जे.एस. 20-29 और एन.आर. सी 86 जैसी किस्मों को खेत में उगाना चाहिए.

चारकोल रोट

पौधे पर इस रोग का प्रभाव जड़ों पर होता है. इस रोग के लगने पर पौधे की जड़ें सड़ने लगती है. जो कुछ टाइम बाद सुख जाती हैं. इस रोग के लगने पर मिट्टी के बाहर दिखाई देने वाला तने का रंग लाल भूरा दिखाई देने लगता है. कुछ टाइम बाद पौधा मुरझा जाता है. और पत्तियां पीली पड़कर गिर जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए थायरम और कार्बोक्सिन को 2:1 के अनुपात में मिलकर उसे पौधे पर छिड़कना चाहिए. इसके अलावा ट्रायकोडर्मा विर्डी का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.

फली झुलसन

फली झुलसन का रोग पौधों पर फूल से फल बनने के दौरान लगता है. जिसकी वजह से पैदावार पर सबसे ज्यादा असर देखने को मिलता है. इस रोग के लगने पर पौधे के तने, फूल और फलियों पर लाल भूरे रंग के अनियमित आकार के धब्बे दिखाई देने लगते है. जिसके कुछ दिन बाद पत्तियों की सिराओं का रंग पीला भूरा दिखाई देने लगता हो और पत्तियां मुड़कर झड़ने लग जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए अगर ये रोग शुरूआती अवस्था में हो तो पौधे पर जाइनेब या मेन्कोजेब का छिडकाव करना चाहिए. इसके अलावा बीज को खेत में लगाते वक्त उसे थायरम और कार्बोक्सिन की उचित मात्रा में मिलकर उपचारित कर लेना चाहिए. बीज को उपचारित करने के लिए केप्टान का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

कामलिया कीट और तम्बाकू इल्ली

पौधों पर ये दोनों रोग कीटों की वजह से लगते हैं. इस रोग का कीड़ा पौधे के कोमल भागों ( पत्तियों, नई शाखाओं और तने ) को खाकर पौधे को झाड़ीनुमा बना देते हैं. जिससे पैदावार पर असर देखने को मिलता है. पौधों पर जब इस रोग के लक्षण दिखाई दे तो प्रोपेनफास, इन्डोक्साकार्ब या रेनेक्सीपायर का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

फसल की कटाई

सोयाबीन की फसल 90 से 100 दिन बाद पककर तैयार हो जाती है. फसल के पूरी तरह पक जाने के बाद पौधे की पत्तियां पीली होकर गिरने लगती है. इसके अलावा पौधे की फलियों का रंग पीला भूरा दिखाई देने लगता है. इस दौरान फलियों को काटकर पौधे से अलग कर देनी चाहिए. जिसके बाद फलियों को खेत में ही 5 से 6 दिन तक सूखने के लिए छोड़ दे. फलियों के सूख जाने के बाद फलियों को किसी एक स्थान पर इकट्ठा कर उसे मशीन ( थ्रेसर ) के माध्यम से निकलवा लेना चाहिए. इस दौरान ध्यान रखे की मशीन की चाल 300 से 400 आर पी एम रखनी चाहिए. इससे ज्यादा तेज़ होने पर सोयाबीन के बीज फुट जाते है जिससे इसकी पैदावार को ज्यादा नुक्सान पहुँचता है.

पैदावार और लाभ

सोयाबीन

सोयाबीन की फसल तीन महीने की होती है. जिसमें काफी कम मेहनत और खर्च आता है. इस कारण किसान भाई इसकी खेती कर आसानी से छोटे से टाइम में अच्छी कमाई कर सकते हैं. सोयाबीन की अलग अलग किस्मों के आधार इनकी पैदावार भी अलग अलग होती हैं. सोयाबीन की प्रति हेक्टेयर पैदावार 20 से 35 क्विंटल तक होती है. सोयाबीन का बाज़ार में भाव 3500 से 4500 रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से मिलता है. किसान भाई एक बार में एक से सवा लाख प्रति हेक्टेयर कमाई कर सकते हैं.

Filed Under: सब्ज़ी Tagged With: Soybean, सोयाबीन

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