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लोबिया की उन्नत खेती कैसे करें

2019-09-06T17:39:54+05:30Updated on 2019-09-06 2019-09-06T17:39:54+05:30 by bishamber Leave a Comment

लोबिया की खेती दलहन फसल के रूप में की जाती है. भारत में इसे चौला और चौरा के नाम से भी जाना जाता है. इसकी कच्ची फलियों का इस्तेमाल सब्जी बनाने में किया जाता है. सब्जी के अलावा इसके दानो का इस्तेमाल खाने में कई तरह से किया जाता है. लोबिया का इस्तेमाल पशुओं के चारे के रूप में भी किया जाता है. इसके पौधों को पकने से पहले खेत में जोतकर इससे हरी खाद भी तैयार की जाती है.

Table of Contents

  • उपयुक्त मिट्टी
  • जलवायु और तापमान
  • उन्नत किस्में
    • काशी उन्नति
    • स्वर्ण
    • सी. 152
    • पूसा बरसाती
    • पंत लोबिया – 4
    • लोबिया 263
    • आर्क गरिमा
    • अम्बा
  • खेत की तैयारी
  • बीज की मात्रा और उपचार
  • बीज रोपाई का तरीका और टाइम
  • पौधों की सिंचाई
  • उर्वरक की मात्रा
  • खरपतवार नियंत्रण
  • पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
    • जीवाणु अंगमारी
    • माहू
    • फली छेदक
    • लोबिया मोजैक
    • रोमिल सुंडी
  • फसल की कटाई
  • पैदावार और लाभ
लोबिया की खेती

भारत में लोबिया की खेती मुख्य रूप से तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, केरल और उत्तर प्रदेश में की जाती है. इसके पौधे को विकास करने के लिए अधिक बारिश की जरूरत नही होती. इसके पौधे भूमि में नमी बनाकर रखते हैं. इसके पौधे लता और झाड़ीदार दोनों रूप में पाए जाते हैं. इसकी फलियों की लम्बाई डेढ़ एक फिट तक पाई जाती है. इसके पौधों को विकास करने के लिए शुष्क मौसम की जरूरत होती है.

अगर आप भी इसकी खेती करने का मन बना रहे हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है.

उपयुक्त मिट्टी

लोबिया की खेती हल्की, भारी, रेतीली, दोमट लगभग सभी तरह की भूमि में की जा सकती हैं. लेकिन इसकी खेती के लिए भूमि में जल भराव की समस्या नही होनी चाहिए. क्योंकि जल भराव की स्थिति में इसके पौधे विकास नही कर पाते और रोग ग्रस्त हो जाते हैं. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

लोबिया की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु की जरूरत होती है. लोबिया की खेती के लिए गर्म मौसम सबसे उपयुक्त होता है. लेकिन अधिक तेज़ गर्मी भी इसके पौधों के विकास और पैदावार को प्रभावित करती है. इसके पौधे सर्दी के मौसम में विकास नही कर पाते. और अधिक बारिश इसकी खेती के लिए उपयोगी नही होती.

लोबिया की खेती के लिए शुरुआत में बीजों को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. अंकुरित होने के बाद इसके पौधे 35 डिग्री तापमान पर भी आसानी से विकास कर लेते हैं. और 15 डिग्री से कम तापमान इसकी खेती के लिए नुकसानदायक होता है. सामान्य तापमान पर इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं.

उन्नत किस्में

लोबिया की काफी किस्में हैं. जिनका उत्पादन किसान भाई अलग अलग उद्देश्य के लिए करते हैं.

काशी उन्नति

लोबिया की इस किस्म को अगेती फसल के रूप में उगाते हैं. इस किस्म के पौधे बौने आकार के होते हैं. जो रोपाई के 40 से 50 दिन बाद हरी फलियों की तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 150 किवंटल के आसपास पाया जाता है. इसकी खेती हरी फलियों के लिए उपयोगी होती है.

स्वर्ण

लोबिया की इस किस्म के पौधों में एक ख़ास विशेषता पाई जाती है. इसके पौधों पर फलियाँ उपर लगती है. जिनके डंठल की लम्बाई भी अधिक होती है. जिस कारण फलियों की तुड़ाई करने में आसानी होती है. इसकी फलियाँ लगभग 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसके दानो का रंग लाल दिखाई देता है. इस किस्म के पौधों की प्रति हेक्टेयर पैदावार 25 किवंटल के आसपास पाई जाती है.

सी. 152

लोबिया की इस किस्म की खेती हरे चारे के लिए सबसे उपयुक्त होती है. लेकिन अगर इसकी फसल इसके दानो के उत्पादन के लिए की जाये तो इसके पौधे 100 से 110 दिन में पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 से 20 किवंटल के बीच पाया जाता है. इस किस्म को मध्य और उत्तर भारत में अधिक उगाया जाता है.

पूसा बरसाती

उन्नत किस्म का पौधा

लोबिया की इस किस्म को उत्तर भारत के मैदानी भागों में किसान भाई अगेती फसल के रूप में उगाते हैं. जबकि इसके पौधे बौने आकार के होते हैं. इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 45 से 50 दिन बाद हरी फलियों की तुडाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 100 से 150 किवंटल के आसपास पाया जाता है.

पंत लोबिया – 4

लोबिया की इस किस्म के पौधे लगभग डेढ़ फिट के आसपास पाए जाते हैं. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 60 से 65 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म की खेती अगेती फसल के रूप में की जाती है. इस किस्म की फलियों की लम्बाई आधा फिट के आसपास पाई जाती है. जिसके दानो का रंग सफ़ेद दिखाई देता है. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 15 से 20 किवंटल के आसपास पाया जाता है.

लोबिया 263

लोबिया की इस किस्म के पौधे खरीफ और रबी दोनों मौसम में उगाये जा सकते हैं. जिनकी खेती अगेती फसल के रूप में की जाती है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 40 से 50 दिन में पहली हरी फली की तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 125 किवंटल के आसपास पाया जाता है. इस किस्म के पौधों में विषाणु जनित रोग काफी कम पाए जाते हैं.

आर्क गरिमा

इस किस्म की खेती मुख्य रूप से वर्षा ऋतू के समय की जाती है. इस किस्म के पौधे ढाई से तीन मीटर की लम्बाई के होते हैं. इस किस्म के पौधे बेल के रूप में बढ़कर अपना विकास करते हैं. इसकी फलियाँ हलके हरे रंग की होती होती है. जिनकी लम्बाई 15 से 20 सेंटीमीटर के बीच पाई जाती है. इस किस्म के पौधों से प्रति हेक्टेयर 80 किवंटल के आसपास हरी फलियों का उत्पादन मिलता है. जो बीज रोपाई के लगभग 40 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाती है.

अम्बा

लोबिया की इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के 100 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इस किस्म के दानो का रंग लाल दिखाई देता है. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 25 से 30 किवंटल तक पाया जाता है. इस किस्म के पौधों पर विषाणु और कीट रोग काफी कम देखने को मिलते हैं. इस किस्म को मुख्य रूप से खरीफ की फसल के रूप में उगाते हैं.

इनके अलावा और भी कई किस्में बाज़ार में उपलब्ध हैं. जिनका उत्पादन किसान भाई अलग अलग मौसम के आधार पर करते हैं. जिनमें आर सी- 101, रशियन जोइंट, पूसा कोमल, सी .- 278, हिसार लोबिया- 46, पी के बी- 4, पूसा ऋतुराज, जी एफ सी- 1,  वी- 240, जवाहर लोबिया -21, पूसा सम्पदा और बन्डल लोबिया- 1 जैसी कई किस्में शामिल हैं.

खेत की तैयारी

लोबिया की खेती के लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के वक्त खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों नष्ट कर दें. उसके बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर खेत को कुछ दिन के लिए खुला छोड़ दें. उसके बाद खेत में जैविक खाद के रूप में पुरानी गोबर की खाद को उचित मात्रा में डालकर मिट्टी में मिला दें.

खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर दें. उसके बाद खेत में पानी चलाकर खेत का पलेव कर दें. पलेव करने के तीन से चार दिन बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से हल्की सूखने लगे तब खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें. और उसके बाद खेत में पाटा चलाकर भूमि को समतल बना दें. ताकि बारिश के मौसम में खेत में जलभराव जैसी समस्याओं का सामना ना करना पड़ें.

बीज की मात्रा और उपचार

लोबिया के बीजों को खेत में उगाने से पहले उन्हें उपचारित कर लें ताकि बीजों का अंकुरण अच्छे से हो पाए. बीजों को उपचारित करने के लिए थायरम, कार्बेन्डाजिम या कैप्टान दावा की उचित मात्र का इस्तेमाल करना चाहिए. एक हेक्टेयर में लोबिया की रोपाई के लिए 25 से 30 किलो बीज की जरूरत होती है. जबकि हरे चारे और हरी खाद की खेती के लिए 35 से 40 किलो बीज की जरूरत होती हैं.

बीज रोपाई का तरीका और टाइम

लोबिया की खेती का तरीका

लोबिया के बीजों की रोपाई अगर हरे चारे या हरी खाद के लिए कर रहे हों तो इसके लिए छिडकाव विधि का इस्तेमाल करना अच्छा होता है. इसके लिए पहले बीज को खेत में छिडक दें. उसके बाद कल्टीवेटर के पीछे पाटा बांधकर खेत की दो बार हल्की जुताई कर दे. ताकि इसके दाने मिट्टी में अच्छे से मिल जायें.

जबकि लोबिया की पैदावार लेने के लिए इसकी रोपाई मेड पर पंक्तियों में की जाती है. पंक्तियों में रोपाई के दौरान इसके बीजों को 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई में ही उगाना चाहिए. इससे बीजों का अंकुरण प्रभावित नही होता. इसके बीजों की रोपाई के दौरान फैलकर विकास करने वाली किस्मों की रोपाई के लिए मेड़ों के बीच 2 फिट जबकि झाडी के रूप में विकास करने वाली किस्मों के लिए एक फिट की दूरी रखनी चाहिए. और मेड पर पौधों के बीच 10 और 15 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए.

लोबिया की खेती सम्पूर्ण भारत वर्ष में खरीफ और रबी दोनो मौसम में की जाती है. उत्तर भारत में इसकी खेती खरीफ की फसल के रूप में की जाती है. इस दौरान इसके बीजों की रोपाई जून महीने में की जाती है. जबकि दक्षिण भारत में इसकी खेती रबी की फसल के रूप में करते हैं. इस दौरान रबी के मौसम में इसके बीजों की रोपाई अक्टूबर और नवम्बर माह में की जाती है. इसके अलावा पर्वतीय भू-भाग में इसकी पैदावार के लिए इसे मार्च में भी उगाते हैं.

पौधों की सिंचाई

लोबिया के पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत नही होती. लेकिन गर्मियों के मौसम में हरी फलियों के लिए की जाने वाली इसकी पैदावार को सिचाई की ज्यादा जरूरत होती है. इस दौरान इसके पौधों की सप्ताह में एक बार सिंचाई करना अच्छा होता है. जिससे पौधे अच्छे से विकास करते हैं और पैदावार भी अधिक मिलती है.

जबकि खरीफ के वक्त इसकी पैदावार को पानी की काफी कम जरूरत होती है. इस दौरान इसके पौधों की आवश्यकता के अनुसार दो से तीन सिचाई ही करनी चाहिए. रबी के मौसम में इसके पौधे को 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी देना अच्छा होता है.

उर्वरक की मात्रा

लोबिया के पौधों को उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है. इसके लिए शुरुआत में जैविक खाद के रूप में प्रति हेक्टेयर 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को खेत में छिडककर मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में दो बोरे एन.पी.के. की मात्रा का छिडकाव खेत की आखिरी जुताई के वक्त करना चाहिए. एन.पी.के. को खरीदते वक्त कम नाइट्रोजन की मात्रा वाले एन.पी.के. को खरीदें. क्योंकि इसके पौधे खुद जमीन में नाइट्रोजन की आपूर्ति करते हैं.

खरपतवार नियंत्रण

लोबिया की खेती में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीकों से किया जा सकता है. रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके बीजों की रोपाई के तुरंत बाद पेंडीमेथालिन की उचित मात्रा का छिडकाव खेत में कर देना चाहिए. इससे खेत में नई खरपतवार जन्म नही ले पाती है. और जन्म लेती भी हैं तो उनकी मात्रा काफी कम पाई जाती है.

जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण पौधों की नीलाई गुड़ाई कर किया जाता है. इसके लिए शुरुआत में बीजों की रोपाई के लगभग 20 से 25 दिन बाद पहली गुड़ाई कर देनी चाहिए. पहली गुड़ाई के बाद बाकी की गुड़ाई 15 दिन के अंतराल में कर देनी चाहिए. लोबिया के पौधों में दो से तीन गुड़ाई काफी होती है.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

लोबिया के पौधों में कई तरह के कीट और विषाणु जनित रोग पाए जाते हैं. जिनकी अगर वक्त रहते देखभाल ना की जाए तो पैदावार में काफी नुक्सान देखने को मिलता है.

जीवाणु अंगमारी

लोबिया के पौधों में ये रोग बीजों के अंकुरण के वक्त दिखाई देता है. जबकि विकसित पौधे में ये रोग सर्वप्रथम नई पत्तियों और शाखाओं पर दिखाई देता हैं. यह रोग पौधों पर शुरुआत में दिखाई देने पर पैदावार को काफी नुक्सान पहुँचाता है. शुरुआत में रोग लगने पर अंकुरित पौधे की पत्तियां लाल पड़कर सिकुड़ने लगती हैं. जबकि पौधों के विकास के दौरान रोग लगने पर नई पत्तियों पर सूखे हुए धब्बे बन जाते हैं. रोग बढ़ने पर पूरा पौधा सूखकर नष्ट हो जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर ऑक्सीक्लोराइड की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

माहू

लोबिया के पौधों में माहू का रोग का प्रभाव पौधों के विकास के दौरान देखने को मिलता है. इस रोग के कीट पौधों के कोमल भागों का रस चूसकर उनका विकास रोक देते हैं. इस रोग के कीटों का आकार छोटा और रंग काले, पीले और लाल दिखाई देता हैं. पौधों पर इस रोग के लगने की वजह से फलियों का आकार छोटा रहा जाता है. जिसका असर पैदावार पर देखने को अधिक मिलता हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर इमिडाक्लोरोप्रिड या मिथाइल डेमेटान की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

फली छेदक

फली छेदक रोग

लोबिया की खेती में फली छेदक रोग इसकी पैदावार को काफी ज्यादा नुकसान पहुँचाता है. इस रोग के कीट का लार्वा इसकी फलियों में छेद कर बीजों को खा जाता हैं. जबकि इसकी इल्ली पौधे की पत्तियों में रहकर इसके फूल और पत्तियों की खा जाती है. जिससे पौधा विकास करना भी बंद कर देता हैं. पौधों में इस रोग के बढ़ने पर पैदावार को काफी नुक्सान पहुँचता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर नीम के तेल, क्यूनालफॉस या मिथाइल पेराथियान पाउडर की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

लोबिया मोजैक

इस रोग के लगने पर पौधे की पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग बढ़ने पर पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती है. और पत्तियों पर फफोले की जैसी आकृतियाँ बननी शुरू हो जाती है. जिससे पत्तियां सिकुड़कर नष्ट हो जाती हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए डायमेक्रान या मेटासिस्टॉक्स की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

रोमिल सुंडी

रोमिल सुंडी का रोग लीबिया की खेती में काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाता हैं. पौधों पर इसका आक्रमण शुरुआत में अधिक देखने को मिलता है. इस रोग की सुंडी शुरुआत में ही इसके पौधे को काटकर नष्ट कर देती है. जिससे पौधों का अंकुरण प्रभावित होता है. और पैदावार भी काफी कम प्राप्त होती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर क्लोरोपायरीफॉस या क्विनॉलफॉस की उचित मात्रा का छिडकाव 10 दिन के अंतराल में दो बार करना अच्छा होता है.

फसल की कटाई

लोबिया की कच्ची हरी फलियों के लिए पैदावार करने के दौरान इसके पौधे बीज रोपाई के 40 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसकी हरी फलियों की तुड़ाई पकने से पहले कर लेनी चाहिए. जबकि इसकी खेती से दानो के रूप में पैदावार लेने के दौरान इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 100 से 110 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं.

इस दौरान जब इसके पौधों की पत्तियों का रंग पीला दिखाई देने लगता है और फलियाँ काली पड़ने लगती है. तब इसके पौधे को जमीन की सतह से काटकर कुछ दिन तेज धूप में सुखाने के लिए खेत में ही एकत्रित कर देना चाहिए. उसके बाद जब पौधे अच्छे से सूख जाए तब थ्रेसर के माध्यम से इसके दानो को निकलवा लेना चाहिए.

पैदावार और लाभ

लोबिया की खेती इसकी पैदावार के रूप में हरी फलियों और दानो के लिए की जाती है. हरी फलियों के रूप में इसकी विभिन्न किस्मों का औसतन उत्पादन 125 किवंटल के आसपास पाया जाता हैं. जबकि दानो के रूप में इसका उत्पादन 20 किवंटल के आसपास पाया जाता हैं. जिनका बाज़ार भाव काफी अच्छा मिलता है. जिससे किसान भाई इसकी खेती से कम खर्च में अधिक लाभ कमा सकता है.

Filed Under: सब्ज़ी

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