फूलों की खेती में लगने वाले सामान्य रोग और उनकी रोकथाम के उपाय

फूलों की खेती नगदी फसल के रूप में की जाती है. जो वर्तमान में किसानों के लिए लाभ की खेती बनती जा रही है. आज फूलों का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता है. जिस कारण इनकी खपत भी काफी ज्यादा है. फूलों की खेती से अच्छी उपज लेने के लिए इसके पौधों की उचित देखभाल करना काफी अहम होता है. क्योंकि फूलों की खेती में कीट और जीवाणु जनित रोग कई तरह के रोग लग जाते हैं. जिनकी रोकथाम करना जरूरी होता हैं. आज हम आपको फूलों की खेती में लगने वाले सामान्य रोग और उनकी रोकथाम के लिए आवश्यक कीटनाशकों के बारे में बताने वाले हैं.

फूलों की खेती में सामान्य रोग

थ्रिप्स

फूलों की खेती में लगने वाला थ्रिप्स रोग पौधों के विकास को प्रभावित करता है. थ्रिप्स का रोग एक कीट जनित रोग हैं. इस रोग के कीट पौधों की पत्तियों पर रहकर उनका रस चूसते हैं. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों की पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. जिनका आकर रोग के बढ़ने पर बढ़ता जाता है. और कुछ दिन बाद पत्तियां पूर्ण रूप से पीली पड़कर सुख जाती है. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. जिसका असर पौधों की पैदावार पर देखने को मिलता है.

उपचार – इस रोग की रोकथाम के लिए मिथाइल डिमेटोन, ड़ायमेथोयट या नीम के तेल का छिडकाव पौधों पर रोग लगने की शुरुआती अवस्था में करना चाहिए.

लीफ माइनर

लीफ माइनर रोग को पर्ण सुरंगक के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग का प्रभाव फूल और सब्जी वाली फसलों में सामान्य रूप से पाया जाता हैं. पौधों पर लगने वाला पर्ण सुरंगक रोग पौधों की पत्तियों को नुक्सान पहुँचाता हैं. इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों में सफ़ेद भूरे रंग की पारदर्शी नालीनुमा धारियां बन जाती है. जिनकी वजह से पौधों को उचित मात्रा में पोषक तत्व नही मिल पाते हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. और पौधों से प्राप्त होने वाली पैदावार कम प्राप्त होती है.

उपचार – इस रोग की रोकथाम के लिए डायमेथोएट, एन्डोसल्फान या इमेडाक्लोरपिड की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

दीमक

फूल वाली फसलों में दीमक का रोग सिंचाई की कमी होने पर अधिक दिखाई देता है. इस रोग के कीट पौधे की जड़ों को काटकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. और कुछ दिन बाद पौधा पूरी तरह से नष्ट होकर गिर जाता है.

उपचार – इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की रोपाई से पहले करंज की खल्ली एवं लिन्डेन धूल का छिडकाव खेत में करना चाहिए. इसके अलावा फोरेट का इस्तेमाल भी दीमक की मौजूदगी को कम करता है.

कातरा

फूलों के पौधों में कातरा का प्रकोप बारिश और गर्मी के मौसम में ज्यादा देखने को मिलता है. इसकी सुंडी के शरीर पर बाल दिखाई देते हैं. जिसका रंग लाल, काला और पीला दिखाई देता है. इस रोग की सुंडी पौधे की पत्तियों और फूल दोनों को खाकर काफी ज्यादा नुकसान पहुँचाती है. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है. और फूल भी अच्छे से नही खिल पाते हैं. जिसका असर पैदावार पर देखने को मिलता है.

उपचार – इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर इंडोसल्फान, प्रोफेनोफाँस या नीम के तेल का छिडकाव उचित मात्रा में करना चाहिए. इनके अलावा कपड़े धोने वाले सर्फ को पानी में घोलकर छिडकाव करने से भी लाभ मिलता है.

माहू

फूल वाले लगभग सभी पौधों में माहू रोग का प्रकोप ज्यादातर मौसम परिवर्तन के दौरान देखने को मिलता है. इस रोग के कीट पौधे पर समूह में रूप में आक्रमण करते हैं. इसके कीटों का आकर बहुत छोटा होता हैं, इसके कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं. जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता है.

उपचार – इस रोग की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रीड या नीम के तेल की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

तना छेदक

तना छेदक रोग के कीट की सुंडी पौधे के तने में छेद कर उसे अंदर से खाकर नष्ट कर देती है. जिससे पौधे विकास करना बंद कर देते हैं. रोग का प्रभाव बढ़ने पर पौधे की पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती है. और कुछ दिनों बाद पौधे सूखने लगते हैं.

उपचार – इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर क्लोरपायरीफॉस या हेलियोकिल की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

जड़ गलन

फूल वाले पौधों में जड़ गलन रोग का प्रभाव जल भराव की वजह से दिखाई देता है. इस रोग के लगने पर पौधे अपना विकास करना बंद कर देते हैं. पौधे की जड़ों के पास काले रंग का धब्बा बन जाता है. और पौधा मुरझाकर सूखने लगता है. और कुछ दिन बाद पौधा पूर्ण रूप से नष्ट हो जाता है.

उपचार – जड़ गलन रोग की रोकथाम के लिए पौधों में जलभराव ना होने दें. इसके अलावा रोग ग्रस्त पौधों की जड़ों में बोर्डो मिश्रण का छिडकाव करना चाहिए. और बीज रोपाई से पहले मिट्टी को भी बोर्डो मिश्रण से उपचारित कर लेना चाहिए.

मिली बग

फूल के पौधों में मीली बग का प्रकोप काफी फसलों में देखने को मिलता है. इस रोग के कीट पौधे की जड़, पत्ती और तना पर पाए जाते हैं. जो खुद को मोम जैसे पदार्थ के आवरण से ढक लेते हैं. जिस कारण इसका नियंत्रण काफी कठिन होता है. इस रोग के कीट पौधे का रस चूसकर उसके विकास और पैदावार दोनों को प्रभावित करते हैं.

उपचार – इस रोग की रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड, डायमेथोएट या मिथाइल डिमेटोन की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

पत्ती झुलसा

पत्ती झुलसा का रोग मौसमी फूल वाली फसलों में लगता हैं. जो पौधों पर फफूंद के माध्यम से फैलता है. इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधों पर भूरे रंग के धब्बे बनने लगते हैं. रोग के बढ़ने की स्थिति में धब्बों का आकर बढ़ जाता है. जिससे पौधे की नई शाखाएं और पत्तियां सूख जाती है. फलस्वरूप पौधे की मौत हो जाती है. जिसका असर पैदावार पर देखने को मिलता है.

उपचार – इस रोग की रोकथाम के लिए ब्लाईटास्क, मेन्कोजेब या बाविस्टिन की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

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