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पीली सरसों की खेती कैसे करें

2019-10-01T12:31:51+05:30Updated on 2019-10-01 2019-10-01T12:31:51+05:30 by bishamber 1 Comment

पीली सरसों की खेती तिलहन फसल के रूप में की जाती है. इसकी फसल को तोरिया की तरह कैच क्रॉप के रूप में रबी और खरीफ की फसलों के बीच में उगाया जाता है. इसके पौधों का इस्तेमाल सब्जी बनाने में भी किया जाता है. इसके पौधों में कार्बोहाइड्रेट, डायट्री फाइबर, आयरन और कैल्शियम जैसे बहुत सारे तत्व पाए जाते हैं. जो मानव शरीर के लिए उपयोगी होते हैं. पीली सरसों के पौधे सामान्य सरसों की तरह ही दिखाई देते हैं. लेकिन इसके दानो का रंग पीला दिखाई देता है. और इसकी फलियों का आकार छोटा पाया जाता है. इसके दानों में तेल की मात्रा ज्यादा पाई जाती है. पीली सरसों का इस्तेमाल औषधीय रूप में भी होता है. इसके खाने से कई तरह ही बीमारियों से छुटकारा मिलता है.

Table of Contents

  • उपयुक्त मिट्टी
  • जलवायु और तापमान
  • उन्नत किस्में
    • पीताम्बरी
    • नरेन्द्र सरसों 2
    • के. 88
  • खेत की तैयारी
  • बीज की मात्रा और उपचार
  • बीज रोपाई का तरीका और समय
  • पौधों की सिंचाई
  • उर्वरक की मात्रा
  • खरपतवार नियंत्रण
  • पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम
    • माहू
    • बालदार सुंडी
    • अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा
    • आरा मक्खी
    • सफेद गेरूई
    • लीफ माइनर
    • तुलासिता
  • फसल की कटाई और मढ़ाई
  • पैदावार और लाभ
पीली सरसों की खेती

पीली सरसों की खेती समशीतोष्ण जलवायु के लिए उपयुक्त होती है. इसके पौधे अधिक गर्मी और सर्दी दोनों को सहन नही कर पाते. इसकी खेती के लिए सामान्य तापमान को उपयुक्त माना जाता है. पीली सरसों की खेती के लिए अधिक बारिश की भी जरूरत नही होती. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान लगभग सामान्य होना चाहिए. पीली सरसों की खेती कर किसान भाई रबी के मौसम में उगाई जाने वाली सब्जी फसल या देरी से रोपाई किये जाने वाले गेहूँ की किस्मों की रोपाई भी कर सकता है. जिससे किसान भाइयों की अच्छी कमाई हो जाती है.

अगर आप भी पीली सरसों की खेती कर अच्छा लाभ कमाना चाहते हैं तो आज हम आपको इसकी खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.

उपयुक्त मिट्टी

पीली सरसों की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है. जल भराव वाली भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त नही होती. पीली सरसों की खेती हल्की अम्लीय भूमि में की जा सकती है. इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. मान 5.8 से 6.8 के बीच होना चाहिए.

जलवायु और तापमान

पीली सरसों की खेती समशीतोष्ण और शीतोष्ण जलवायु वाली जगहों पर आसानी से की जा सकती है. इसकी खेती के लिए अधिक गर्मी का मौसम उपयुक्त नही माना जाता. और सर्दियों में पड़ने वाला पाला भी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नही होता. पीली सरसों की खेती के लिए सामान्य बारिश की जरूरत होती हैं. भारत में पीली सरसों की खेती ज्यादातर उत्तर भारत के मैदानी राज्यों में की जाती है. जिनमें उत्तर प्रदेश में इसे अधिक उगाया जाता है.

पीली सरसों की खेती के दौरान इसके पौधों को बीजों को अंकुरण के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है. बीजों के अंकुरण के बाद इसके पौधे अधिकतम 30 और न्यूनतम 10 डिग्री तापमान पर आसानी से विकास कर लेते हैं. लेकिन 25 डिग्री के आसपास के तापमान को इसके पौधों के विकास के लिए सबसे बेहतर माना जाता है. इस तापमान पर इसके पौधे बहुत अच्छे से विकास करते हैं.

उन्नत किस्में

पीली सरसों की खेती अभी व्यापक तरीके से नही की जाती. इस कारण अभी इसकी कुछ ही किस्मों का विकास किया गया है. जिन्हें कम समय में अधिक उत्पादन देने के लिए तैयार किया गया है.

पीताम्बरी

उन्नत किस्म का पौधा

पीली सरसों की इस किस्म के पौधे चार से पांच फिट की लम्बाई के पाए जाते है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 110 से 115 दिन बाद बाद पककर तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 18 से 20 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. इसके दानो का आकार सामान्य सरसों से बड़ा दिखाई देता है. जिनमें तेल की मात्रा 42 से 43 प्रतिशत के बीच पाई जाती है.

नरेन्द्र सरसों 2

पीली सरसों की इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 120 से 130 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 16 से 20 क्विंटल के आसपास पाया जाता है. पीली सरसों की इस किस्म के दानो में तेल की मात्रा 44 से 45 प्रतिशत के बीच पाई जाती है. और इसके पौधों की लम्बाई पांच फिट के आसपास पाई जाती है.

के. 88

पीली सरसों की इस किस्म को उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है. इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 125 दिन बाद पककर कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 18 क्विंटल के आसपास पाया जाता हैं. इस किस्म के पौधे अधिक सर्दी के मौसम को भी सहन कर सकते हैं.

खेत की तैयारी

पीली सरसों की खेती में बीजों के अंकुरण के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना अच्छा होता है. इसकी खेती के लिए शुरुआत में खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर खेत को खुला छोड़ दें. उसके बाद खेत में पुरानी गोबर की खाद को फैलाकर उसे अच्छे से मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई करवा दें.

खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी चलाकर उसका पलेव कर दें. पलेव करने के बाद जब भूमि की ऊपरी सतह हल्की सुखी हुई दिखाई देने लगे तब खेत की फिर से हल्की जुताई कर उसमें रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभूरा बना लें. उसके बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल बना दें. ताकि बारिश के मौसम खेत में जलभराव जैसी समस्याओं का सामना ना करना पड़े.

बीज की मात्रा और उपचार

पीली सरसों की प्रति हेक्टेयर रोपाई के दौरान चार किलो के आसपास बीज की जरूरत होती है. इसके बीजों की खेत में रोपाई से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि बीजों के अंकुरण के वक्त पौधों को शुरूआती रोगों का सामना ना करना पड़े. इसके बीजों को उपचारित करने के लिए मैंकोजेब और मेटालेक्सिल की उचित मात्रा का इस्तेमाल करना चाहिए.

बीज रोपाई का तरीका और समय

पीली सरसों के बीज की रोपाई कतारों में की जाती है. इसके बीजों की रोपाई के दौरान इसके दानो को तीन से चार सेंटीमीटर की गहराई में लगाना चाहिए. ताकि बीजों के अंकुरण में किसी तरह की परेशानी ना हों. इसके पैधों की कतारों में रोपाई के दौरान प्रत्येक कतारों के बीच एक फिट के आसपास दूरी होनी चाहिए. और कतारों में प्रत्येक पौधों के बीच 5 से 7 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए.

पीली सरसों की खेती कैच क्रॉप के रूप में रबी और खरीफ दोनों फसलों के बीच के वक्त में की जाती हैं. इस दौरान इसकी रोपाई सितम्बर माह के शुरुआत से लेकर आखिरी तक कर देनी चाहिए. जबकि गेहूँ की पैदावार लेने के लिए इसे सितम्बर माह के पहले सप्ताह में उगाना जरूरी होता है.

पौधों की सिंचाई

पीली सरसों के पौधों को पानी की ज्यादा जरूरत नही होती. इसके पौधे सूखे के प्रति सहनशील होते हैं. इसके पौधों को पककर तैयार होने के लिए दो से तीन सिंचाई की ही जरूरत होती है. इसके पौधों की पहली सिंचाई बीज रोपाई के लगभग 40 से 50 दिन बाद करनी चाहिए. इसके अलावा बाकी की सिंचाई जब पौधे पर फलियों में बीज बन रहे हो तब करनी चाहिए. इससे दानो का आकार अच्छा बनता है. और पैदावार भी अधिक प्राप्त होती है.

उर्वरक की मात्रा

पीली सरसों के पौधों को उर्वरक की सामान्य जरूरत होती है. शुरुआत में इसकी खेती के लिए खेत की तैयारी के दौरान 10 से 12 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को जैविक खाद के रूप में प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालकर अच्छे से मिट्टी में मिला दें. इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में असिंचित भूमि के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 40 किलो नाइट्रोजन, 30 किलो पोटाश और 30 किलो फास्फोरस की मात्रा को बीज रोपाई से पहले खेत की आखिरी जुताई के वक्त पौधों में देना चाहिए. जबकि सिंचित जगहों में खेती करने के दौरान उर्वरक की मात्रा को बढ़ा दिया जाता है. सिंचित जगहों पर खेती के दौरान 80 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो पोटाश, 40 किलो फास्फोरस की मात्रा को खेत की आखिरी जुताई वक्त पौधों को देना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण

पीली सरसों की खेती में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीकों से किया जा सकता है. रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए इसके बीजों की रोपाई से पहले पेन्डीमेथलीन की उचित मात्रा को पानी में मिलाकर पौधों पर छिडकना चाहिए. इससे खेतों में खरपतवार काफी कम मात्रा में जन्म लेती है. जिनसे पौधों प्रभावित नही होते.

जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए इसके पौधों को दो बार गुड़ाई की जाती है. इसके पौधों की पहली गुड़ाई पौधों की पहली सिंचाई से 15 दिन पहले और दूसरी गुड़ाई पौधों की पहली सिंचाई के 10 दिन बाद की जाती हैं.

पौधों में लगने वाले रोग और उनकी रोकथाम

पीली सरसों के पौधों में कई तरह के कीट और वायरस जनित रोग देखने को मिलते हैं जोस इसके पौधों और पैदावार दोनों को नुक्सान पहुँचाते हैं.

माहू

माहू रोग

पिली सरसों पर लगने वाला माहू रोग कीट जनित रोग हैं. इस रोग के कीट बहुत छोटे आकार के होते हैं. जिनका रंग हरा, पीला और काला दिखाई देता है. इस रोग के कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर पौधों के विकास को प्रभावित करते हैं. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर डाईमेथोएट या मिथाइल-ओ-डिमेटान की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

बालदार सुंडी

बालदार सुंडी को कातरा के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग के कीट पौधों की पत्तियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं. जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देता है. और पौधों का विकास रुक जाता है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मैलाथियान या क्यूनालफास की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा

इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते है. रोग बढ़ने पर इनका आकार बढ़ने लगता है और पूरी पत्ती पर फैल जाता है. जिससे पत्तियां समय से पहले ही पौधे से अलग होकर गिर जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए जिनेब या थायरम की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

आरा मक्खी

आरा मक्खी के कीट की सुंडी का रंग सलेटी काला दिखाई देता है. इसकी सुंडी पौधे की पत्तियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाती है. इस रोग के तीव्र होने की स्थिति में पौधे की पत्तियां जालीदार दिखाई देने लगती है. जिससे पौधा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया करना बंद कर देता है. इस रोग की रोकथाम के लिए रोग दिखाई देने के तुरंत बाद मैलाथियान या क्यूनालफास की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर कर देना चाहिए.

सफेद गेरूई

इस रोग के लगने पर पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर सफेद रंग के फफोले बन जाते है. जिससे पौधे की पत्तियां समय से पहले पीली होकर गिरने लगती है. जिससे पौधों का विकास रुक जाता है. और रोगग्रस्त पौधों पर फलियों का निर्माण भी नही होता. इस रोग की रोकथाम के लिए मैंकोजेब या जिनेब की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

लीफ माइनर

लीफ माइनर को पत्ती सुरंगक कीट के नाम से भी जाना जाता है. इस रोग के कीट पौधों की पत्तियों के हरे भाग को खाकर उनमें सुरंग नुमा आकृति बना देते हैं. पौधों पर रोग बढ़ने से पूरी पत्ती पारदर्शी नजर आती है. जिससे पौधे को विकास करने के लिए सूर्य का प्रकाश नही मिल पाता. जिस कारण पौधे में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होनी भी बंद हो जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफॉस , एजाडिरेक्टिन या डाईमेथोएट की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए.

तुलासिता

पीली सरसों की फसल में तुलासिता रोग फफूंद की वजह से फैलता है. इस रोग के लगने से पौधों की पुरानी पत्तियों पर छोटे छोटे आकार के गोल धब्बे बन जाते है. जिनके नीचे की तरफ सफ़ेद रंग की रुई के जैसी फफूंद दिखाई देती है. रोग बढ़ने पर सम्पूर्ण पौधे की पत्तियां पीली पड़कर नष्ट हो जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों पर मेटालैक्सिल की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए.

फसल की कटाई और मढ़ाई

पीली सरसों की पैदावार

पीली सरसों के पौधे बीज रोपाई के लगभग 120 दिन बाद पककर कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. इसकी फसल पकने के बाद इसकी फलियों का रंग सुनहरा पीला दिखाई देने लगता है. और पौधे के नीचे की सभी पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं. इस दौरान इसके पौधों की कटाई कर लेनी चाहिए.

इसके पौधों की कटाई के दौरान इसकी फलियों वाली शाखाओं को काटकर अलग कर लिया जाता है. जिसके बाद उन्हें सुखाने के लिए खेत में ही एक जगह एकत्रित कर देते हैं. और जब इसकी फलियाँ अच्छी तरह सुख जाती हैं तब मशीन की सहायता से उनकी मढ़ाई कर इसके बीजों को अलग कर लिया जाता है. जिसे बोरों में भरकर बाज़ार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है.

पैदावार और लाभ

पीली सरसों की विभिन्न किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 18 क्विंटल के आसपास पाई जाती है. पीली सरसों का बाजार भाव चार हजार रूपये प्रति क्विंटल के आसपास पाया जाता है. जिस हिसाब से किसान भाई एक बारे में एक हेक्टेयर से 70 हज़ार तक की कमाई आसानी से कर लेता है.

 

Filed Under: पौधे

Comments

  1. Ramsingh says

    July 21, 2020 at 11:29 pm

    Sir pili sharso ka pithambri kism ka bij Kota itawa Rajasthan me kha thatha Kya bae milaga mughe lhena h

    Reply

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